रहस्यमय संबंध

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उसे यह समझ आया कि कभी-कभी दूर रहने में भी प्यार झलकता है। अब देखना था कि पत्नी ने इस अलगाव से क्या समझा था? यह तो उस के आगे आने वाले व्यवहार से पता चलेगा। वह तो पहले भी संतुलित थी लेकिन माधवी के अधिकारवादी व्यवहार को देख कर ऐसा करने लगी थी। अगर दोनों बदलाव के समझ जाती है तो जीवन का सही आनंद लिया जा सकता है। पत्नी आस्ट्रेलिया जा कर अपना वजन कम कर आयी थी। शायद बेटी ने यह किया था यहाँ पर तो मेरी हर बात उसे बुरी लगती थी। इस लिये इस संबंध में कुछ कहना बंद कर दिया था।

कुछ दिन बाद लगा कि अब दोनों के बीच ज्यादा संतुलन था। मुझे लेकर दोनों अधिकार नहीं दिखाती थी। जब जिसे मेरा सानिध्य चाहिये होता था उसे मिलता था। पत्नी अब सेक्स में भी कुछ ज्यादा रुचि लेने लगी थी। माधवी एक दिन शायद इसी बात को लेकर उसे छेड़ रही थी। मैंने कुछ पुछा नहीं लेकिन रात को मेरे साथ सोते समय माधवी ने पताया कि आज दीदी को लगड़ाते देख मैंने उन्हें छेड़ा तो वह नाराज नहीं हुई और बोली कि आदत छुट गयी थी अब दूबारा से पड़ जायेगी। तुम खुश मत हो।

मुझे बड़ा मजा आया आज हम दोनों पहली बार सौतन के रुप में एक-दूसरें से व्यवहार कर रही थी। कल उन के साथ क्या करा था? मेरे को चुप देख कर वह बोली कि कुछ छुपा नहीं है कल उन से पुछ लुंगी। मैंने कहा कि नये आसन में सेक्स कर लिया था और वह भी तुम्हारी तरह काफी देर तक चला सो दर्द तो होना ही था। लेकिन मज़ा भरपुर आया दोनों को। वह शरारत से मुस्कराई और बोली कि आज मेरी बारी है। मैंनें हँस कर कहा कि तुम्हें कोई असर नही पड़ता। वह तो चार महीने बाद सेक्स कर रही थी सो ऐसा होना ही था।

माधवी एक बात है कल एक चीज नई हुई कि पहले उस के साथ सेक्स दो-चार मिनट ही चलता था कल वह तुम्हारें और मेरे बीच वाले समय तक चला यह बात समझ में नहीं आयी। माधवी कुछ देर सोचती रही फिर बोली कि शायद इस बार वह रुचि से कर रही हो। उस की इस बात पर मैंने उसे बताया कि बिना उस की मर्जी के मैं उस से कभी संबंध नहीं बनाता। मेरी बात सुन कर माधवी मेरी तरफ देखती हूई बोली कि अब मुझे समझ आ रहा है कि तुम ने क्या भुगता है? मैंने कहा कि उसे याद करने से क्या फायदा?

मैंने उसे बताया कि इसी कारण से तो मैं जब उस के साथ होता हूँ तो वह सबसे अच्छा समय होता है। अपनी बढ़ाई सुन कर माधवी मेरे पास आयी और बोली कि ज्यादा मख्खन मत लगाओं। मैंने कहा कि सच ही कह रहा हूँ अब मानना ना मानना तुम्हारी मर्जी। इसी कारण से तो तुम्हारी और मेरी निकटता इतनी ज्यादा है। वह यह सुन कर शर्मा गयी। मेरे होठों पर ऊंगली रख कर चुप रहने को कहा और बोली कि बोलों क्या इनाम चाहिये? मैंने मजाक में कहा कि पलट तो नहीं जायोंगी तो वह मेरी बदमाशी समझ कर बोली कि आज नहीं बाद में इनाम मिलेगा। आज तो ऐसे ही कर लेते है। यह कह कर उस के हाथ अपने काम पर लग गये। मैं भी कैसे रुक सकता था फिर जो युद्ध शुरु हुआ तो दोनों के पस्त होने तक चलता रहा। पस्त होने के बाद दोनों सो गये।

सुबह उठ कर दोनों नीचे ठहलने लगे। आधा घंटा टहलने के बाद जब वापस ऊपर आ रहे थे तो माधवी बोली कि कल से मैं दीदी को भी साथ लेकर जाऊंगी। सुबह का टहलना बहुत जरुरी है। मैनें कहा कि कोशिश करके देख लो मैं तो बहुत बार कह चुका हूँ तुम भी कर के देख लो। वह बोली कि एक बार कर के देखने में क्या जाता है। दूसरी सुबह जब मैं पत्नी के साथ था तो माधवी नें फोन किया और मैं चलने लगा तो पत्नी भी टहलने के लिये तैयार हो गयी। हम तीनों काफी देर तक टहलते रहे, इसी बीच माधवी ने कहा कि कहीं पहाड़ों पर घुमने चलते है बहुत दिनों से मन कर रहा है।

मैंने कहा की प्रोग्राम बना लो एक सप्ताह तो बिता ही सकते है। माधवी ने जब पत्नी की तरफ देखा तो वह बोली कि काफी दिनों से कहीं नहीं गये है अच्छा रहेगा। सो यह तय हो गया कि हम तीनों पहाड़ों पर जा रहे थे। माधवी ने सारा इंतजाम कर लिया। शनिवार को हम तीनों पहाड़ों पर एक रिसोर्ट के लिये निकल गये। दो सहायक भी साथ गये थे। शाम पर अपने गंत्वय पर पहुँच कर मन खुश हो गया। शान्त जगह थी चारों तरफ जगंलों से घिरी हुई और उस में नदी के किनारें कॉटेज बने हुये थे। रात को प्यारी नींद आयी। शहर की आपा-धापी से जगंल की शान्ति अच्छी लग रही थी। सब लंबें सफर के कारण थके हुये थे सो बिस्तर पर जाते ही नींद के आगोश में चले गये।

दिन में नदी के किनारें घुप सेकीं और जगंल की सैर की। शाम को नदीं की कलकल करती आवाज सुनते हुऐ चाय पी, रात को खाना खा कर जब सोने का समय हुआ तो पत्नी बोली कि मेरे को तुम से कुछ बात करनी है यह इस बात का घ्योतक था कि आज रात मेरे पास रहो। मैं उस के पास रुक गया, रात को बिस्तर में वह बोली कि मुझे तुम से और माधवी से माफी मागँनी है। मैनें पुछा कि किस बात की? तो वह बोली कि जैसे तुम्हें कुछ पता नहीं है तुम दोनों नें मेरी सारी गलतियां माफ करी है और मैं हुँ कि अपनी ही चला रही हूँ किसी और के बारें में सोच ही नहीं रही हूँ, अब मुझे महसुस हुआ है कि माधवी का भी तुम्हारें पर अधिकार है वह भी तुम्हारें साथ की उतनी ही अधिकारी है जितना मैं। मैं यह भी समझ गयी हुँ कि तुम्हारा मन उस से ज्यादा मिलता है, जो मेरे साथ नहीं मिला है, उम्र के इस मोड़ पर अगर कोई तुम्हारी बात समझता है तो मुझे क्यों बुरा लगना चाहिये।

आज जो कुछ हमारें पास है उस के बदले में उसे प्यार, इज्जत मिलनी चाहिये तुम तो उसे देते ही हो मुझे भी देनी चाहिये। मैं अपनी गल्ती समझ गयी हूँ और आगे से इसे सही कर दूँगी तुम चिन्ता मत करों। मैं उस की बात चुपचाप सुनता रहा, मुझे पता था कि वह समझदार है लेकिन कोई औरत अपने पति को किसी के साथ बाँटने की बात आसानी से नहीं मान सकती। मैनें उसे गले लगाया और फिर हम दोनों एक जोरदार संभोग में लग गये। संभोग लम्बा चला शायद इस लिये की दोनों भागीदार पुरे मन से भाग ले रहे थे। जब संभोग खत्म हुआ तो दोनों सन्तुष्ट हो कर नींद में डुब गये।

सुबह जल्दी उठ कर मैं बाहर आया तो माधवी भी बाहर आ गयी थी, मेरे पास आ कर बोली कि तुम्हें जगानें में झिझक रही थी कि दीदी क्या सोचेगी? मैनें उस से कहा कि झिझक छोड़ दो, उस ने हम दोनों के संबंध को स्वीकार कर लिया है। कल रात वह यही सब मुझे बता रही थी। इसी समय पत्नी भी जाग कर बाहर आ गयी और बोली कि मेरे को छोड़ कर घुमने मत चल देना। माधवी बोली कि आप को उठाने में झिझक रही थी तो यह बोले कि आप ने मुझे स्वीकार कर लिया है। मुझे यह जानकर अच्छा लगा मैं आपकी जगह नहीं ले सकती, मैं तो सिर्फ इन के जीवन में थोड़ा सा हिस्सा चाहती हूँ।

पत्नी बोली कि तुम हम दोनों के जीवन का अभिन्न हिस्सा है कभी-कभी हम दूसरे को उस की हमारें मन में जो इज्जत होती है, दिखा नहीं पाते, इसी वजह से गलतफहमियां पैदा हो जाती है। आज मैं तुम दोनों के सामने यही गलतफहमी खत्म करना चाहती हूं। तुम दोनों मुझे एक जैसै प्यारें हो, मेरे अपने हो। इस से ज्यादा कुछ नही कह सकती लेकिन तुम्हारा मेरे पर उतना ही अधिकार है जितना इन का मुझ पर है। मेरा भी तुम पर उतना ही हक है जितना इन का तुम पर है। यह कह कर वह चुप हो गयी। यह सुन कर माधवी भावुक हो कर पत्नी के गले लग गयी।

मैनें हँस कर कहा कि दोनों बहनें मुझे ना भुल जाना। वह दोनों एक साथ बोली कि तुम तो कुछ भी बोलते रहते हो? हमारी बातचीत चल ही रही थी कि एक सहायिका चाय ले कर आती दिखायी दी। हम तीनों उसे देख कर चुप हो गये। वह चाय रख कर चली गयी। हम सब चाय पीने लगे। फिर माधवी बोली कि नहा कर नाश्ता करके पास में एक शिव मन्दिर है वहाँ चलते है। कुछ देर बाहर की ताजी हवा का मजा लेते रहे फिर नित्यकर्म करने के लिये अंदर चले गये।

मैं नहाने जाने लगा तो पत्नी बोली कि जल्दी आयों, मुझे भी नहाना है। मैं बाथरुम में घुस गया। जब नहा कर निकला तो देखा कि माधवी मेरे कपड़ें ले कर खड़ी थी और पत्नी अपने कपड़ें निकाल रही थी। मैनें यह देख कर कहा कि इन लोगों को साथ क्यों लाई हो, जब सब कुछ तुम्हें ही करना है तो माधवी बोली कि वह हमारा काम करेंगी लेकिन तुम्हारा काम तो हम दोनों ही करेंगी। मैं यह सुन कर हँस दिया।

पत्नी बोली कि कभी तो हमारी सुन लिया करों हर समय अपनी ही चलाते हो। घर में तो हम दोनों की ही चलेगी, बाहर तुम चला लेना। मैं मुस्कराया और माधवी के हाथ से कपड़ें ले कर पहनने लग गया, पत्नी नहाने चली गयी। माधवी बोली कि अब यह क्या कह रहे थे? मैनें कहा कि यह पुछ रहा था कि जब यह सब तुम ने ही करना था तो इन पुछल्लों को क्यों ले कर आयी हो? वह बोली कि और पचासों काम है इन के करने के लिये। फिर वह मेरे लिपट कर बोली कि किस तो बनता है। मैनें उसे चुम कर कहा कि बदमाशी मत करो। उस ने कहा कि यह तो मेरा अधिकार है, मेरे को कपड़ें पहनते देख कर वह बोली कि साहब तो तैयार हो गये है अब मलिका की बारी हैं।

इस पर मैनें कहा कि मलिका तो अभी नहाने भी नहीं गयी है तो वह बोली कि पहले यह काम जरुरी था। अब में जा रही हूँ यह कह कर वह अपने कमरें में चली गयी। पत्नी जब नहा कर कर आयी तो बोली कि यह कहाँ गयी, मैनें बताया कि मलिका जी नहाने गयी है। पत्नी बोली कि कभी-कभी तो यह बच्चों की तरह की हरकतें करती है, मैनें कहा करने दिया करों अभी उस की उम्र है, मेरी बात सुन कर वह बोली कि मैं क्या बुढ़ी हो गयी हूँ? मैनें उन्हें देख कर कहा कि मैनें ऐसा कब कहाँ? तुम क्या कम शैतानी करती हो?

वह मुझे आंख दिखाने लगी, फिर उस ने मुझे जीभ निकाल कर चिढ़ाया यह उस का सबसे मनपसन्द काम था मुझे दिखाने के लिये। मैं यह देख कर मुस्कराया और बोला कि चलो तैयार हो लो, शैतानी करने के लिये दिन पड़ा है, वह भी कपड़ें पहननें लगी। मैं कमरें से बाहर निकल गया। मुझे पता था कि मुझे अब कहाँ जाना था।

माधवी के कमरे में गया, वह नहाने जा ही रही थी, मझे देख कर बोली कि बताओं क्या पहनुँ? मैनें कहा कि जींस और टॉप पहन ले जरुरत पड़ें तो जैकेट साथ रख ले। यह सुन कर वह खुश हुई और बोली कि मेरे मन की बात कही है। पहाड़ों पर साड़ी में परेशानी होती है। मैनें कहा हाँ यह तो है, वह नहाने चली गयी और मैं उस के कपड़ें देखने लगा, एक जींस और टॉप निकाल कर रख दिया और उस के साथ की जैकेट ढुढ़ने लगा। जैकेट मुझे नहीं मिली। जब वह नहा कर आयी तो में बैठा था अपने कपड़ें देख कर वह बोली कि क्या बात है सब कुछ मेरी पसन्द का है।

मैनें कहा कि इतने दिनों में पसन्द तो पता चल ही गयी है। वह बोली कि मन की बात क्यों नहीं पता कर लेते? मैनें जबाव दिया कि हर समय अपने मन का चाहा कहाँ हो पाता है। वह यह सुन कर बोली कि इस का मतलब है कि तुम्हें सब पता रहता है लेकिन करते कुछ नहीं हो। यह बात सुन कर मुझे लगा कि वह फिर से ताना मार रही है, मुझे चुप देख कर वह बोली कि ताना नहीं मार रही तुम्हें चिढ़ा रही हूँ और किस को चिढ़ाऊं? मैनें कहा कि जब मैं चिढ़ाऊं तो रोना नहीं। वह मेरा इशारा समझ कर बोली कि तुम ऐसा नहीं करोगें।

मैं हँस कर बोला कि मैं किस से लड़ूं? कोई और लाऊँ लड़ने के लिये तो वह बोली कि मान जाओं, अब ज्यादा मत सताओं मैनें कहा कि मैंने तो कुछ किया ही नहीं है। चलों छोड़ों तुम नाश्ता आर्डर करों तो वह बोली कि वह तो आर्डर हो गया है। साथ में ले जाने के लिये खाना भी कह दिया है। नाश्ता कर के निकलते है। ऐसा ही हुआ, मन्दिर के दर्शन करके नदी के किनारें समय बीता कर जब वापस लौट रहे थे तो ड्राइवर बोला कि साहब लोकल बाजार है कुछ देर रुकें, दोनों बोली हाँ यहाँ कुछ खरीदारी करते है। तीनों उतर कर बाजार में घुमने लगे। कस्बें का छोटा सा बाजार था, लोकल हस्तकला की चीजे और ऊन की बनी चीजे मिल रही थी सो दोनों खरीदारी करने लगी।

मेरे पास ऑफिस के कोई कॉल आयी तो मैं उसे अटेन्ड करने लगा। दोनों जब वापस आयी तो उन की सहायिकायों के हाथ पैकेटों से भरें थे। रास्तें में एक झील भी पड़ती थी सो उसे भी देखने रुक गये। एकान्त में शान्त सी झील थी उस के किनारें घुमनें में मजा आ रहा था, वही बैठ कर साथ लाया खाना भी खाया गया। इस के बाद फोटोग्राफी भी की गयी। शाम को जब चलने लगे तो मौसम बदल गया। घने काले बादल घिर आये थे। लगता था जोरदार बारिश होने वाली थी।

जब वापस पहुँचे तो बारिश शुरु हो गयी थी। कुछ देर बाद चाय पकोड़ों के साथ आ गयी थी, माधवी जाने से पहले सब तय करके गयी थी। वह इस काम में पारगत थी। तीनों जनें बारिश में गरम-गरम चाय और पकोड़ों का मजा लेते रहे। बारिश और जोर से होने लगी तो अंदर आ गये। पत्नी माधवी से बोली कि आज बहुत दिनों बाद पहाड़ की बारिश का मजा लिया है। पहले कभी पहाड़ों पर जाते थे तो यह तो कुछ नहीं करतें थे बस सोते रहते थे। अब तो जग कर मजा ले रहे है। मैनें माधवी को बताया कि उन दिनों यहाँ आ कर नींद अच्छी आती थी तो बस हर समय सोने का ही मन करता था। वह हंसी और बोली कुछ और नहीं करते थे? मैनें पत्नी की तरफ देख कर कहा कि नहीं कुछ और नहीं किया कभी।

पत्नी मुझे देख कर मुस्कराई और बोली कि इसे क्यों नहीं बताते कि तुम इतने थके होते थे कि कुछ होता ही नहीं था। मैं नें माधवी को देखा तो वह शरारत से मुस्करा रही थी, मैं बोला कि अब मैडम अपनी बात थोड़ी ना बतायेगी, सारा ढिकरा तो मेरे सर ही फुटेगा। पत्नी बोली कि पुरानी बातें है अब उन्हें क्या याद करना। इन का काम और काम करना ही कारण था। मुझ से भी ज्यादा घुमा नहीं जाता। मैंने बात खत्म की और कहा कि अब तो घुम भी रहा हूँ और कुछ और भी कर रहा हूँ। मेरी बात पर दोनों मुस्करा दी।

रात को माधवी के साथ सोया तो वह बोली कि आज क्या इरादा है, मैनें कहा कि इरादा तो नेक है, तुम बताओ तो वह बोली कि जैसा तुम चाहो? मैंने कहा कि यहाँ कुछ ऐसा नहीं करते, बेकार में कुछ और परेशानी हो गयी तो सारा मजा खराब हो जायेगा। वह कुछ देर सोचती रही फिर बोली कि आप सही कह रहे हो। मेरे गले में बांहें डाल कर बोली कि तुम्हारें तो मजे है दो-दो मिली हुई है। मैनें कहा कि हाँ कह सकती हो। फिर हम दोनों फ्रेंच किस में लग गये, देर बाद अलग हुये तो माधवी मुझ पर सवार हो गयी और अपनी मनमानी करने लगी। मैनें उसे रोका नहीं। काफी देर तक प्यार का खेल चला, और जब दोनों थक गये तो एक-दूसरें की बांहों में सो गये।

सुबह जब उठा तब भी बारिश हो रही थी। मेरे उठने से माधवी भी कुनमुनाई और बोली कि जल्दी क्यों उठ गये? मैनें कहा कि भई आंख खुल गयी थी इस लिये उठ गया। वह भी उठ कर बैठ गयी और बोली कि लगता है बारिश हो रही है मैंने कहा कि रात से शायद बंद ही नहीं हुई है। आज कहीं बाहर नहीं जा सकते। वह मुझ से बोली कि अच्छा है प्यार तो कर ही सकते है। रात से उस का मन भरा नही था सो वह एक बार और प्यार करने में लग गयी। जब उस की प्यास बुझी तो वह बोली कि लगता है दीदी से तुम्हें उधार मांगना पड़ेगा।

मैंने कहा कि उसका कोटा तो कल पुरा हो गया है अब मैं तुम्हारें साथ ही हुँ वह बोली कि पुछना तो पड़ेगा नहीं तो दीदी बुरा मान जायेगी। मैंने कहा यह तो तुम दोनों जानों। वह बोली कि मैं बात कर लु। मैं कुछ नही बोला। वह कपड़ें बदलने लगी। फिर बोली कि दीदी के पास जा रही हूं। यह कह कर वह पत्नी के रुम के लिये निकल गयी। मैं भी उठ कर कपड़े पहन कर बाहर खड़ा हो कर बारिश का आनंद उठाने लगा।

उस ने आवाज लगा कर मुझे भी कमरे में बुला लिया और बोली कि चाय यहीं मँगा ली है। चाय पी करआज का प्रोग्राम बनाने लगे तो वह बोली कि आज बारिश अगर ऐसे ही होती रही तो कही जा नहीं पायेगे। पत्नी बोली कि यही बैठ कर बारिश का मजा लेगे। शहरों में तो अब बारिश भी सही तरह से नही होती। माधवी और वह धीरे-धीरे बात करने लगी और मैं चाय पीता रहा।

दिन ऐसे ही बीत गया, रात को जब में पत्नी के पास बैठा था तो वह बोली कि तुम माधवी के साथ ही सो जायो, मुझे तो आज नींद आ रही है, मैं तो तुम्हारा साथ नहीं दे पाऊँगी। यह कह कर वह सो गयी। मैं माधवी के पास आ गया, वह बोली कि अब तुम पुरे हफ्ते मेरे साथ सोयोगें, मैनें दीदी से बात कर ली है। वह कह रही थी कि मेरा बस रोज रोज सेक्स करने का नही है इन्हें तो रोज रोज सेक्स चाहिये इस लिये तु ही सुला ले अपने पास। मैं यह सुन कर हैरान सा था तो वह बोली कि मुझे तुम्हारी परेशानी अच्छी तरह से समझ आ गयी है।

मैं कुछ नहीं बोला। वह बोली कि चिन्ता की क्या बात है मैं तो हुँ ना। हम दोनों प्यार करने लगे और जब थक गये तो सो गये। सुबह उठे तो फिर प्यार का एक दौर चला। आज मौसम खुला था सो बाहर घुमने चले गये। शाम को फिर से बारिश आ गयी। बाकि के दिन भी ऐसे ही कट गये। जब वापिस चले तो माधवी बोली कि काम के बीच-बीच में ऐसी छुट्टियाँ जरुरी है। पत्नी बोली हाँ ऐसा होना चाहिये।

वापस आ कर मैंने महसुस किया कि दोनों में बेहतर संबंध बन रहे थे। मैं इस लिये खुश था कि दोनों के खुश रहने से मैं और कामों में ध्यान दे पाता था। इसी तरह दो पत्नियों के साथ जीवन चलने लगा। मेरे लिये दोनों जरुरी थी, एक मेरी पत्नी थी, दूसरी मेरी जिम्मेदारी और प्रेमिका। दोनों का मेरे जीवन में अपना-अपना स्थान था।

समाप्त

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