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नेहा बोली कि क्या आप को सच में नही पता है कि आप कितने सैक्सी लगते हो और कितनी लड़कियां आप पर मरती है। मैंने कहा कि आज से पहले तो किसी के मुँह से सुना नही था। तेरे मुँह से पहली बार सुना है कि मैं सैक्सी भी लगता हूँ। वह बोली कि सब को लगता है कि आप जानबुझ कर ऐसा करते है लेकिन अब मैं कह सकती हूँ कि आप को पता ही नहीं है मैंने मजाक में कहा कि पता होता तो हम भी एक-आध इश्क फरमा लेते तो नेहा बोली कि आप ने सच में कभी इश्क नही किया तो मैंने कहा कि तुझे नही लगा कि तेरा प्रेमी तो अनाड़ी है। इस पर वह बोली कि कई बार लगा कि आप जानबुझ कर ऐसा कर रहे हो। लेकिन अब पता है कि आप ऐसे ही हो मुझे तो ऐसे ही पसन्द हो। आप के साथ जब चलती हूँ तो दूसरों की निगाह में जलन देख कर अच्छा लगता है। उस रात को तो भी मेरी दोस्तों ने मुझे भड़काया था कि तु अपने इतने सैक्सी बॉस को उस सुखी के साथ छोड़ आई है।

मैंने कहा कि अब तो पुरा तुम्हारा हूँ। वह बोली कि हाँ मेरे हो। यह कह कर उस ने मेरे होंठों को अपने होंठो से बंद कर दिया हम दोनों एक मधुर और द्रीर्ध चुम्बन में रत हो गये। चुम्बन तो हमारी सबसे पसन्दीदा चीज थी जब सांस रुकने लगी तब अलग हुए और नेहा मेरे ऊपर आ कर बोली कि आज सब कुछ मैं करुँगी। उस ने हाथ लगा कर लिंग को योनि में डाल लिया और धीरे-धीरे कुल्हों को हिला कर उसे अन्दर बाहर करने लगी। मैं ने उस के फुले हुये निप्पलों को दोतों से काटना शुरु किया उस ने भी झुक कर मेरे होंठ को दोतों से काट लिया। फिर उस के दांत मेरे कन्धे के मांस में गड़ गये मैंने कहा कि नेहा कुछ तो दया करो तो वो बोली कि नही आज तो मेरी मर्जी ही चलेगी। मैंने भी उस से उरोजों को जोर जोर से मसला। वो करहाने लगी। उस के कुल्हों की गति बढ़ गयी। मेरे अंड़कोषों पर उस की योनि का प्रहार तेज हो गया उस की गति बढ़ती ही जा रही थी मैंने भी अपने पांवों को उस के कुल्हों पर कस लिया।

मेरे शरीर में तनाव बढ़ता जा रहा था फिर अचानक आँखों के सामने तारें नाचने लगे। मैंने बाहों से नेहा को कस कर जकड़ लिया उस ने भी कोई विरोध नही किया। काफी देर तक दोनों ऐसे ही पड़े रहे। नीचे से द्रव बह कर बिस्तर को गिला कर रहा था नेहा करवट बदल कर मेरे नीचे आ गयी और मैं उस के उपर आ गया उस के पांव मेरी कमर पर कसे हुऐ थे। कुछ देर बाद मैं उस पर से हट कर बगल में लेट गया और बोला कि आज तो निचुड़ गया हूँ। तो वह बोली कि कुछ मेरी हालत भी ऐसी ही हो रही है। सारा बदन टुट रहा है। मैंने कहा कि शायद कुछ समय आराम करना चाहिए। नेहा ने कहा कि कही हम अति तो नही कर रहे है तो मैंने कहा कि शरीर तो कुछ ऐसा ही संकेत कर रहे है। नेहा ने कहा कि आप मना क्यो नही करते मैंने कहा कि मना कैसे करुँ मेरा मन भी तो नही मान रहा है लेकिन अब तो शरीर ने संकेत कर दिया है तो मानना ही पड़ेगा। आज कुछ और नही करेगे। मैंने कहा कि आज अवकाश लेगे। नेहा हँस दी, बोली कि अवकाश और आप।

मैंने नेहा से कहा कि तुम्हें कोई और बात तो नही करनी हमारे संबंध को पक्का करने के लिए। वह बोली कि आप क्या कहते हो मैंने कहा कि मन में कुछ तो आता होगा उस के समाधान के लिए क्या कोई कानूनी कार्यवाही करना चाहती हो, वह बोली की अब आप ने और कुछ कहा तो मैं आप को पीट दुँगी। मैंने कहा कि पीट ले लेकिन मेरी बात को सुन तो ले तो वह बोली कि क्या करुँ। मैंने कहा कि किसी वकील से पुछ कर देखता हूँ तो वह बोली कि मुझे किसी कागजात की जरुरत नही है आप ने और सबसे बढ़ कर दीदी ने स्वीकार कर लिया है तो मुझे कोई चिन्ता नही है जो आप को सही लगे कर लेना। मैं मना नही करुँगी।

यह कह कर वह दुबारा मैंने ऊपर आ गयी और मेरी छाती में मुँह छुपा कर रोने लगी। मैंने उसे उठा कर कहा कि मेरी बहादूर बीवी जी ऐसा मत करो। लेकिन वह छाती में मुँह गड़ाये पड़ी रही। मैंने जबरदस्ती उसे अलग करा और बगल में लिटा कर अपने से सटा लिया। उस के मुक्कें मेरी पीठ पर पड़ते रहे। मैंने नेहा से कहा कि भई अब माफ कर दो आगे से नही करुँगा तब जा कर मुक्कों की बरसात रुकी। सूर्य देवता निकल आये थे, मैंने नेहा से कहा कि चाय बना कर लाये। यह सुन कर वह कपड़ें पहन कर चाय बनाने चली गयी। मैंने भी उठ कर कपड़ें पहन लिये और किचन की तरफ चल दिया।

नेहा चाय लेकर बीवी के कमरे से गई थोड़ी देर में रोने की आवाज आने लगी मैं देखने गया तो बीवी ने मुझे देख कर कहा कि तुम ने नेहा को रुला दिया, इस से माफी माँगों मैंने अपने दोनों कान पकड़ कर नेहा से माफी मांगी तो नेहा कि हँसी छुट गयी। बीवी ने कहा कि यह बात मैंने ही इन से कही थी हम दोनों को तुम्हारे मान-सम्मान की चिन्ता है नही चाहते कि कोई भी तुम्हारे बारे में कोई हल्की बात बोले इस लिए यह बात हुई थी तुम अब हमारी चिन्ता हो इस लिए ऐसा सोचा है कि इस संबंध को कानूनी मान्यता दी जाये। नेहा यह सुन कर चुप हो गयी और बोली कि मुझे तो कुछ समझ ही नही आया इस लिए रोना निकल गया। मैं बोला कि मैडम कुछ बातें दिल की बजाय दिमाग से करनी पड़ती है। अब दूबारा इस पर बात नही होगी। तीनों चाय पीते रहे।

अवकाश

आज कही नहीं जाना था घर पर ही दिन बिताना तय हुआ, ताकि आगे के बारे में आपस में बात कर सके। नाश्ते के बाद जब बैठे तो नेहा ने कहा कि आप जब भी घर छोड़ों तो मुझे बता देना मैं मदद के लिए आ जाऊँगी। मैंने कहा कि दिल्ली जा कर देखते है अलग तो होना ही पड़ेगा ऐसी घुटन में सांस नही ली जा रही है क्या पता हमारे अलग होने के बाद रिश्तें कुछ सुधर जाये। वह बोली कि घर किराये पर लेना है या खरीदना है मैंने कहा कि अभी खरीदने के पैसे नही है लेकिन खरीदना चाहे तो खरीद भी सकते है। किराये पर घर देखते है ऑफिस के पास ही ताकि आने-जाने में कम समय लगेगा। नेहा ने कहा कि जब आप घर ले लोगे तो मैं कुछ दिनों के लिए आप के पास आ जाऊँगी। बीवी ने कहा कि घर सेट करने के लिए आना ही पड़ेगा। मैंने कहा कि अभी घर किराये पर ले लेते है बाद में अगर लगा तो अपना ले लेगे। नेहा ने कहा कि मैं तो चाहती हूँ कि आप बंगलुरु ही आ जाओ, बढ़िया शहर है मैं भी पास रह पाऊँगी। मैंने कहा कि अभी कुछ कह नही सकता लेकिन ऐसा हो जाये तो अच्छा रहेगा। बीवी भी बोली कि यह सही रहेगा अगर हो सके तो। मैंने कहा कि नौकरी तो मिल जायेगी लेकिन अभी इस नौकरी को छोड़ने का मन नही है।

नेहा ने कहा कि आप कहोगे तो कम्पनी अपना ऑफिस ही यहाँ खोल देगी, मैंने हँस के कहा कि हाँ ऐसा हो सकता है लेकिन मेरी आफत बढ़ जायेगी जो मैं अभी नही चाहता हूँ । बच्चे की बात चली तो बीवी ने कहा कि बच्चा तो चाहिए मैंने कहा कि शायद मन में शान्ति होगी तो यह भी हो जायेगा। नेहा बोली कि मैं क्या करुँ मैंने कहा कि कुछ मत करो। वह बोली कि मुझे तो जल्दी बच्चा चाहिए था लेकिन अब आप लोग मेरे पास हो तो कोई बात नही है। मैंने कहा कि जब होना होगा तब हो जायेगा इस बात के लिए इतना परेशान मत होयो। नेहा ने बीवी से पुछा कि दीदी कोई और बात जिस का मुझे ध्यान रखना है तो मुझे बता दो, मैं ध्यान रखुगी। बीवी बोली कि कोई बात होगी तो मैं फोन पर बता दूँगी। तुम काम में व्यस्त रहती हो इस लिये इस की चिन्ता ना करो।

मैंने कहा कि तुम दोनों से जो नई साडियां खरीदी है वही पहन कर दिखा दो, नेहा बोली कि मैं पहन कर आती हूँ बीवी बोली कि पहले नेहा को देखती हूँ फिर अपनी वाली पहन कर आऊँगी। थोड़ी देर बात नेहा मेरी पत्नी की दी हुई साड़ी पहन कर आ गयी। उस पर वह प्रिंटिड़ साड़ी खुब फब रही थी। उस का ब्लाउज भी सही सिला था। नेहा के बाद बीवी गुलाबी साड़ी पहन कर आयी। यह रंग तो उस पर पहले से ही फबता था। ब्लाउज सही सिला होने के कारण वह सुन्दर लग रही थी। मेरी आंखों में चमक देख कर वह बोली कि कुछ बोलने की जरुरत नहीं है मुझे सब पता चल गया है। मैंने नेहा कि तरफ देख कर कहा कि तेरी दीदी पर यह रंग खुब फबता है। मेरी इस बात पर नेहा ने सर हिलाया। दोनों खुश थी और इस कारण से मैं भी खुश था। सारा दिन बातें करते, भविष्य के लिये प्लान करते बीत गया। रात भी बीत गयी।

अगले दिन मैं और नेहा इस बात पर विचार करते रहे कि अगर मैं दिल्ली की नौकरी छोड़ देता हूँ तो मुझे यहाँ पर कैसी नौकरी मिल पायेगी। नेहा का कहना था कि मेरे लिये नौकरी की कमी नहीं है। मेरा भी यही मानना था। मेरी जिस सीईओ मित्र से नेहा चिढ़ती थी वह भी इसी शहर में थी और मुझे पता था कि वह भी मेरी नौकरी ढूढ़ने में सहायता कर सकती थी। लेकिन मैंने यह बात नेहा को नहीं बताई क्योकि वह इस से नाराज हो सकती थी। उसे मेरी यह मित्रता पसन्द नहीं थी। दोपहर को हम सब शहर में घुमने चले गये। शाम को लौटे तो पत्नी ने नेहा से कहा कि बाहर से खाने का कुछ मंगा ले घर में बनाने की जरुरत नहीं है। मुझे तुझ से कुछ बात करनी है। नेहा नें खाना बाहर से ऑडर कर दिया। इस के बाद दोनों कमरा बंद करके बात करने लगी। कुछ देर बात नेहा मेरे पास आयी और बोली की आप को दीदी बुला रही है।

मैं उस के साथ कमरे में गया तो देखा कि पत्नी बेड पर बैठी थी और उस के सामने कुछ गहने रखे थे। मैंने आश्चर्य से उसे देखा तो वह बोली कि मैं इस के लिये मंगलसुत्र लायी थी। तुम इस के गले में पहना दो। मैंने मंगलसुत्र उठा कर नेहा के गले में पहना दिया। मुझे पता था कि यह मेरी पत्नी का पुराना मंगलसुत्र था। पत्नी ने नेहा से कहा कि इसे हर समय पहने रखना सुहाग की निशानी है। इसे देख कर लोगों को अपने आप सब कुछ समझ में आ जायेगा। यह नया नहीं है मेरा है। इन्होनें अभी हाल में मुझे नया दिलाया था। अगर यह नहीं होता तो मैं तेरे लिये नया ले कर आती। और कुछ तो बताने के लिये नहीं है जैसा तुझे सही लगे करना। मैं और यह तो अब तेरी देखभाल करने के लिये है ही। तेरा अच्छा बुरा सब हमारा है।

हम दोनों का सब कुछ तेरा है। यह अपने बारें में ज्यादा नहीं बोलते इन की पुरानी आदत है इस लिये बुरा नहीं मानना, जब भी कुछ पुछना हो तो मुझ से पुछ लेना। नेहा चुपचाप सब सुन रही थी। मैं भी चुपचाप खड़ा था। यह हालत मेरे घर की वास्तविकता बता रही थी कि मैं बाहर कितना भी बड़ा हुँ लेकिन मेरा घर परिवार मेरी बीवी ही चलाती है। वही असली रिंग मास्टर है। नेहा और मैं तो हूकुम के तामील करने वाले थे। पत्नी इस के बाद बोली कि अब अपने घर में एक पूजा घर बना ले। यह जब भी यहाँ पर आयेगे तो पूजा कर पायेगे। तेरे लिये भी सही रहेगा। बिना भगवान के घर पुरा नहीं होता। रोज सुबह दीपक जलाया कर। मैंने कुछ कहने के लिये मुँह खोला फिर चुप हो गया।

पत्नी ने यह नोटिस कर लिया और मुझ से बोली कि क्या कहना चाहते हो। मैंने कहा कि इसे बता दो कि मंदिर में किस किस की तस्वीर रखनी है यह ला कर रख लेगी। वह बोली कि मैंने इसे सब बता दिया है अगर यहाँ से नहीं मिलेगा तो जब तुम अगली बार आयोगे तो तुम्हारें हाथ भेज दूँगी। मैंने नेहा से कहा कि अब यहाँ की मास्टर भी यह हो गयी है, जैसी इनकी मर्जी हो वैसा ही करना। मेरी बात सुन कर नेहा नें मुझे घुर कर देखा और कहा कि तुम हर बात में टांग मत घुसेड़ों। मैं यह सुन कर चुप हो गया।

पत्नी ने मुझे बताया कि मैंने इसे बता दिया है कि अब हम घर से अलग हो जायेगें और ऑफिस के पास ही कोई मकान किराये पर ले लेगे। इस से तुम्हारा आने-जाने का समय बचेगा और वह समय तुम मेरे साथ बिता पायोगे। हम जब मकान किराये पर लेगे तो पूजा करवायेगे तब नेहा भी आयेगी। इस बहाने सब से उस का परिचय भी हो जायेगा। यह सुन कर मैंने कहा कि यह समय इस का परिचय कराने के लिये सही रहेगा? पत्नी बोली कि संशय तो मेरे मन में भी है लेकिन इस से कब तक बचेगें। एक ना एक दिन को हमें हालात का सामना करना पड़ेगा। औरों के व्यवहार के बारें में तो हम कुछ नहीं कह सकते। लेकिन इस को ज्यादा दिन तक टाल भी नहीं सकते। मैं और तुम कथा में साथ बैठे और यह अलग बैठी हो यह तो सही नहीं रहेगा। नेहा बोली कि दीदी यह सही कह रहे है उस दिन अगर मेरी वजह से झगड़ा हो गया तो सारा माहौल खराब हो जायेगा। मैंने कहा कि इस का भी कोई उपाय करते है कि उस दिन सब से परिचय भी हो जाये और झगड़ा भी ना हो।

क्या करोगें?

लोगों की कमजोर नस की पहचान करुँगा

यह अच्छा रहेगा

इस के सिवा कोई और चारा नहीं है।

इस से अच्छा है कि मैं पूजा में ना आऊँ

यह तो अब हो नहीं सकता

तुम किसी से कुछ नहीं कहोगे, मेरी कसम

अच्छा कुछ नहीं बोलुंगा

दीदी पर छोड़ दो वह संभाल लेगी

अच्छा तेरी दीदी पर छोड़ देता हूँ

उस दिन गुस्सा मत करना।

कोशिश करुँगा

कोशिश नहीं, वायदा करो

वायदा किया, अगर गुस्सा करुँ तो मुझे रोक देना

तुम दोनों अभी से लड़ने लग गये।

नहीं तैयारी कर रहे थे कि क्या करेगें।

छोड़ो कुछ नहीं होगा, तुम्हारे सामने कोई कुछ नहीं कहेगा और जो संबंध तोड़ना चाहता हो वो ऐसा कर सकता है।

इस अवसर पर ऐसा कुछ हो उस से बचना चाहिये। मैं पूजा में इन के साथ नहीं बैठूगी।

यह तु नही तय करेंगी, हम तय करेगे और तय हो चुका है।

शुभ अवसर पर झगड़ा सही नहीं रहेगा।

देखते है। अपनी पूजा तो हमारे अनुसार ही होगी।

इस बात पर अब और बहस बेकार है, तुम और मैं पूजा में एक साथ बैठेगे।

नेहा का मगांया खाना आ गया था। हम तीनों खाना खाने बैठ गये। इस दौरान मैंने कहा कि नेहा तुम चिन्ता नहीं करना किसी बात की यह सब तेरी दीदी संभाल लेगी। रात को सोते समय नेहा मुझ से बोली कि तुम ने घर से अलग होने का फैसला कर लिया है। मैंने कहा कि हाँ फैसला पक्का है, अब तनाव सहा नहीं जाता, मैं तो घर से बाहर रहता हूँ सब कुछ तेरी दीदी को सहना और झेलना पड़ता है। इसी लिये यह निर्णय लिया है उसे भी शान्ति की जरुरत है वह तो मुझे पुरी बात बताती नहीं हैं लेकिन अब उस की बर्दास्त की हद भी खत्म हो गयी है। तुम तैयार रहो कि तुम्हें दिल्ली आना पड़ेगा।

नेहा बोली कि मैं मैनेज कर लुँगी। वैसे भी मैं कौन सी छुट्टियां लेती हूँ। मैंने उसे चुम कर पुछा कि महीना कब हुआ तो वह बोली कि दस दिन हो गये है। यह सुन कर मैं बोला कि इस बार तो शायद कंसिव होना मुश्किल है क्योंकि महावारी के शुरु होने के 14 दिन से 17 दिन इस काम के लिये सही रहते है। वह बोली कि मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। मैंने कहा कि कोई चिन्ता मत कर मेरे पर छोड़ दे। वह कुछ नहीं बोली और मेरी छाती में सिर छुपा लिया। फिर वही हुआ जो होना था।

दोपहर की फ्लाईट पकड़ कर हम दोनों वापिस आ गये। जिन्दगी फिर से अपने ढर्रे पर चलने लगी। लेकिन मैं अपने लिये मकान ढुढ़ने में लग गया था। मुझे पता था कि कभी भी हालात बिगड़ सकते थे। हुआ भी ऐसा ही एक दिन किसी मामुली बात पर झगड़ा बहुत बढ़ गया और मैंने फैसला किया किया कि अब एक साथ नहीं रहा जा सकता है। गुस्से से मैं घर से बाहर निकल गया। इस कारण से पत्नी ने नेहा को फोन कर दिया। उस ने मुझे फोन किया तो मैंने पुछा कि क्या हुआ तो वह बोली कि आप घर छोड़ कर क्यों आ गये। दीदी घर में अकेली है।

मुझे अपनी गल्ती का अहसास हुआ और मैंने उस से कहा कि झगड़ा ज्यादा ना बढ़ें इस लिये घर से बाहर आ गया था लेकिन अब घर जा रहा हूँ तुम चिन्ता ना करो तो वह बोली कि अब आप घर जाओ और आज ही मकान बदल लो। मैंने उसे बताया कि मकान तो देख लिया है उस की सफाई चल रही है, एक या दो दिन में वहाँ चले जायेगे। वह बोली कि मुझे बता देना में आ जाऊँगी। मैंने कहा कि परसों आ जाओ। छुट्टी ले कर आना। वह बोली कि आप चिन्ता ना करो। उस से बात कर के मैं घर वापस आ गया और मैंने सब को बुला कर कहा कि मैं घर छोड़ कर जा रहा हूँ। किसी नें मुझे रोका नहीं क्योकि सब यह चाहते थे कि वह मेरी जगह पर कब्जा कर ले।

अगले दिन ही मैंने अपना सामान जो ज्यादा नहीं था, गाड़ी बुला कर लदवाया और मकान पर भेज दिया। ऑफिस के पास होने के कारण ऑफिस के लोगों नें सामान उतरवाने में मेरी सहायता कर दी। सामान रख कर हम दोनों आसपास का बाजार देखने चले गये। तभी मेरे ऑफिस का कुलीग का फोन आया और उस ने बताया कि सर आप चिन्ता ना करे मैं आप को यहाँ की सारी जानकारी दे दूँगा। वह हमारे से कुछ दूर ही रहता था। यह जान कर हम दोनों ने चैन की सांस ली। किसी नयी जगह पर जा कर रहने में यह बहुत बड़ी समस्या होती है कि आप को पता नहीं होता कि कहाँ पर क्या मिलता है। रोजाना के कामकाज करना मुश्किल हो जाता है।

अगले दिन नेहा ने आने से पहले पुछा कि मुझे पता भेज दो। मैंने उसे कहा कि मैं उसे लेने आता हूँ तो वह बोली कि आप क्यों परेशान होते हो। मैंने कहा कि उसे घर ढुढ़ने में परेशानी होगी इसी लिये मैं एअरपोर्ट आ रहा हूँ। वह चुप हो गयी। नेहा को एअरपोर्ट से लेकर घर आया तो घर देख कर वह बोली कि मकान तो आप ने अच्छा ढुढ़ा है। पत्नी और वह दोनों गले मिली और नेहा घर देखने लगी। सारा सामान फैला हुआ था। सामान को लगाने में समय लगना था।

चाय पी कर नेहा बोली कि मैं तो बिल्कुल तैयार हुँ सामान को लगाने के लिये।

मैनें कहा कि चलों तीनों मिल कर यह काम करते है। पहले हम लोगों नें बेड को कमरे में लगया, इस के बाद कपड़ें वगैरहा को आलमारियों में रखा। सोफा हमारे पास था नहीं। बैठने के लिये कुर्सियां भी नहीं थी। कोई मेज भी नही था। नेहा बोली कि बाजार चल कर सोफा और मेज ले आते है। मैंने उसे बताया कि यह काम कल करेगें। आज तो इतना ही काफी है। रसोई में गैस को फिट कर दिया। नेहा और पत्नी खाना बनाने में लग गयी। मैंने कहा कि बाहर से खाना ला देता हूँ लेकिन दोनों ने मना कर दिया। मैंने फर्श पर ही गद्दा बिछा दिया ताकि हम लोग उस पर बैठ कर खाना खा सके। नेहा ने यह देख कर पत्नी से कहा कि यह तो इन की पुरानी आदत है। किसी भी तरह से काम चलाने की। पत्नी बोली कि तेरे से बेहतर कौन जानता होगा। कम साधनों में काम करना तो इन की आदत है। हम तीनों ने खाना खाया। सामान लगाने के कारण बड़ी थकान हो रही थी सो मैं तो खाना खाने के बाद गद्दे पर लेट गया और कम मेरी आँख लग गयी मुझे पता नहीं चला।

किसी नें हिलाया तो मेरी आँख खुली तो देखा कि नेहा मुझे उठा रही थी। मेरे से बोली कि चाय पी लिजिये। मैं उठ कर बैठ गया। तभी पत्नी चाय ले कर आ गयी और हम तीनों नें चाय पीनी शुरु कर दी। नेहा बोली कि आप के पास तो ज्यादा सामान नहीं है। मैनें उसे कहा कि अभी तक हम परिवार का हिस्सा थे इस लिये अपने लिये कुछ अलग से लिया नहीं है। अब अपने लिये सामान लेना पड़ेगा। वह बोली कि हाँ यह तो है सारा घर का सामान खरीदना पड़ेगा। वह बोली की ज्यादा सामान मत लेना हो सकता है कि यहाँ से भी जाना पड़े। इस लिये मेरी राय तो यही है कि जरुरत का सामान ही खरीदते है। मैंने कहा कि जैसा तुम्हें सही लगे वैसा ही करो।

हम तीनों पास के बाजार गये और चार प्लास्टिक की कुर्सियां और एक मेज ले कर आ गये। फर्श पर बिछाने के लिये एक कालीन भी खरीद लिया। बाजार बड़ा था घरेलु जरुरत का हर सामान वहाँ पर मिल रहा था। रात को जब घर पहुँचे तो थक कर चुर थे। खाना बाहर से ले कर आये थे उसे खा कर ही सोने लगे तो मैंने कहा कि मैं फर्श पर लगे गद्दे पर सो रहा हूँ तुम दोनों बेड पर सो जायो तो दोनों कुछ नहीं बोली। मैं जब सोने की तैयारी कर रहा था तभी नेहा आयी और बोली कि मैं तुम्हारें साथ सोऊँगी। मैंने कहा कि यहाँ जगह कम हो तो वह बोली कि मैं मैनेज कर लुँगी। मैंने हाथ खडे़ करते हुये कहा कि जैसी तेरी मर्जी तो वह बोली कि हाँ मेरी मर्जी ही चलेगी। यह कह कर वह मेरी बगल में लेट गयी। फिर मुझ से लिपट कर बोली कि आज मेरा महावारी से 14वां दिन है इस लिये तुम्हारें साथ सोना जरुरी है। मैंने यह सुन कर कहा कि यह तो जरुरी काम है। हम दोनों ने कपड़ें उतार फैके और संभोग में लग गये। नयी जगह थी लेकिन हम दोनों के सामने बहुत आवश्यक काम था। संभोग देर तक चला फिर हम दोनों थक कर सो गये।

सुबह नेहा पहले जग कर नहाने चली गयी थी। मेरी आँख उस की आवाज से ही खुली। वह चाय ले कर खड़ी थी। मैं उठ कर बैठ गया वह भी मेरे पास बैठ गयी और बोली कि दीदी सो रही है। मैं जल्दी उठ गयी थी सो नहाने चली गयी और चाय बना ली। मैंने कहा कि आज जल्दी नहा ली तो वह बोली कि अब जल्दी ही नहा लेती हूँ। कुछ आदतें बदल ली है। चाय पीते में मैंने कहा कि यह अच्छा हुआ कि तुम इस समय यहाँ पर हो, शायद इस बार कंसिव कर पाओ। वह बोली कि मुझे तो ध्यान नहीं था रात में दीदी नें बताया और उन्होनें ही तुम्हारें पास भेजा था।

मैं बोला कि मेरा घर भी अजीब है बीवी सौत को पति के पास भेज रही है तो नेहा बोली कि ज्यादा मत बोलो नहीं तो चुगली कर दुँगी। मैंने कानों को हाथ लगाया और कहा कि तुम दोनों मालकिनों से बैर कौन लेना चाहता है। मेरी बात पर वह हँस पड़ी और बोली कि आज पूजा का सामान लाना है, पंडित जी से दीदी की बात हो गयी है। उस दिन कुछ और तो नहीं करना होता है। मैंने उसे बताया कि आने वालों का खाना बनाना होगा। देख लो कर लोगी या नहीं, नहीं तो बाहर से मंगवा लेते है। वह बोली कि दीदी मना कर रही थी। तुम हिसाब लगा कर बताओं कि कितने लोग आ सकते है उसी के हिसाब से इंतजाम करते है।

मैंने मन ही मन हिसाब लगा कर कहाँ कि शायद 15 लोग होगे। वह बोली कि हम इतने लोगों का खाना तो बना लेगी। तुम जा कर सब्जी वगैरहा ला देना। हम दोनों बात कर ही रहे थे कि पत्नी भी उठ कर कमरे में आ गयी। हमें चाय पीते देख कर बोली कि मेरे को भी जगा लेते। नेहा बोली कि आप सो रही थी इस लिये नहीं जगाया। आप बैठों मैं चाय ले कर आती हूँ। पत्नी मेरे पास आ कर बैठ गयी, और बोली कि क्या बात चल रही थी। मैंने उसे बताया कि पूजा की बात कर रहे थे कि कितने आदमियों का खाना बनाना पड़ेगा। क्या सामान लाना है। पत्नी बोली कि नेहा ने सब कुछ जल्दी सीख लिया है।

कल रात मैंने ही उसे तुम्हारें पास भेजा था उस का सही समय चल रहा है। शायद कंसिव कर जाये। मैंने उसे बताया कि हम कोशिश तो कर रहे है आगे भगवान की मर्जी। नेहा चाय ले कर आ गयी। पत्नी बोली कि तुम दोनों बाजार जा कर सारा सामान ले आना। मैं यहाँ की तैयारी करती हूँ। फिर वह मेरे से बोली कि तुम सब को फोन करके कल आने को बोल दो और कथा का समय भी बता देना। देखते है कौन कौन आता है। मैंने उसकी बात में सर हिलाया तो यह देख कर नेहा बोली कि सर क्यों हिला रहे है जबाव दे। मैंने कहा कि मुझे खुद भी नहीं पता कि कौन आयेगा। मैं सब को फोन करता हूँ। बात यही खत्म हो गयी।

नाश्ता करके मैं और नेहा बाजार के लिये निकल गये। बाजार में कार नहीं जा सकती थी इस लिये दोनों कार खड़ी करके पैदल ही बाजार में घुमने लगे। नेहा के पास सामान की लिस्ट थी। सारा सामान लेने में काफी समय लग गया। इस बाजार को नेहा जानती थी। जब वह मेरे साथ काम करती थी तब वह यहाँ पर रही थी। मैं उस को उस समय की याद नहीं दिलाना चाहता था सो चुप रहा। नेहा ने यह बात नोट कर ली और बोली कि आज मेरे साथ आप चुप क्यों हो? मैंने कहा कि कोई बात नहीं है तो वह बोली कि पुरानी बातें याद ना करुँ इस लिये चुप हो। मैंने हाँ में सर हिलाया और कहा कि तुम औरतों को तो मन की बात पता चल जाती है फिर पुछती क्यों हो? वह बोली की कन्फर्म करने के लिये पुछ रही थी। मैं सब कुछ भुल चुकी हूँ। अब मुझे तुम्हारें सिवा कुछ भी याद नहीं है।

आज ज्यादा रोमांटिक नहीं हो रही हो?

क्यो कोई परेशानी है

नहीं तो

लगता तो है

नहीं भई कोई परेशानी नहीं है

रोमांस से दूर क्यों भागते है आप

कहाँ भाग रहा हूँ

सच्चाई बता रही हूँ कि आपने दिलबर के साथ हूँ तो रोमांटिक भी ना होऊँ, यह कैसी बात है

गल्ती हो गयी भई, माफ कर दो

तुम ऐसे क्यों हो?

कैसा

अनरोमांटिक

शायद ऐसा ही बना हूँ क्या करुँ?

मेरे लिये बदल जाओ

बदल गया हूँ और जैसा कहेगी बदल जाऊँगा

यह हुई ना दिलबर जैसी बात

घर चले

हाँ सब सामान खरीद लिया है। तुम्हें पता है मैंने कसम खाई थी कि मैं इस शहर में वापस नहीं आऊँगी।

क्यों

समझ जाओ

समझाओ

तुम से इतना गुस्सा थी कि शहर से भी नाराज थी। क्या पता था कि उसी शहर में उसी आदमी के साथ घुमना रहना होगा।

वक्त कब बदल जाये कोई नहीं जानता। अब तो सब तेरे मन का हो रहा है

हाँ यह तो है

फिर क्या परेशानी है

तुम बात क्यों नहीं कर रहे। कहीं पर खोये हो।

हाँ मैं कल होने वाले घटना क्रम को ले कर सोच रहा था।

कहो तो मैं सामने ना आऊँ।

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