Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.
You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.
Click hereनेहा के पास हम आ तो गये थे उस को साथ मिल गया था लेकिन हमारी परेशानी कम नहीं हुई थी। कुछ ज्यादा ही हो गयी थी। मुझे नौकरी ढूढ़नी थी। नेहा को भी सारी परेशानी झेलते हुये नौकरी भी करनी थी। वह नौकरी पर जा रही थी।
तीसरे महीने के बाद उस की परेशानी कुछ हद तक कम हो गयी थी। हम दोनों के बीच शारीरिक संबंध नहीं हो रहे थे। कोई मनाही नहीं थी लेकिन दिमाग सेक्स की तरफ जा ही नहीं रहा था। एक दिन रात में मैं नेहा के साथ लेटा था तो वह बोली कि अभी तक मुझ से नाराज हो, मैंने कहा कि नाराज क्यों होऊँगा तुम ने तो मुझे बच्चा दिया है।
तो मेरे साथ प्यार क्यों नहीं करते।
मुझे डर लगता है,
डाक्टर ने कहा है कि कर सकते है।
लेकिन मुझे डर लगता है मैं कुछ ऐसा नहीं करना चाहता कि जिस से तुम्हें या बच्चे को खतरा हो।
तुम्हारा डर समझ सकती हूँ लेकिन मेरी भी तो इच्छा का ध्यान रखो।
तुम्हारा ही तो ध्यान है, फिर भी तुम नाराज हो।
मुझे लग रहा है कि तुम मुझ से नाराज हो
नहीं नाराज नहीं हुँ, मेरे होने वाले बच्चे की माँ से क्यों नाराज होऊँगा
दूर-दूर मत रहो
कहाँ दूर हूँ, तुम्हारे पास ही तु हूँ
दीदी कह रही थी कि तुम हम दोनों के बीच खो गये हो
अगर खो गया हूँ तो अच्छी बात है तुम दोनों ही तो मेरा संसार हो
मुझे पता है कि मैं बातों में तुम से नहीं जीत सकती, लेकिन मुझ से प्यार करो, मैं प्यासी हूँ
मुझे संतुष्ट होने दो की कुछ गलत नहीं होगा तब तुम से प्यार करुँगा
कब पता करोगें
अभी पता करता हूँ, यह कह कर मैंने अपने डाक्टर दोस्त को फोन किया तो वह बोला कि कहाँ हो तो मैने बताया कि मैं बाहर हूँ, फिर मैनें उसे अपनी समस्या बताई तो वह बोला की सेक्स के समय पोजिशन का ध्यान रखो। जिस से पेट पर दबाव ना पड़े। मुझे समझ आ गया कि मुझे क्या करना है। उसे धन्यवाद कह कर मैंने फोन काट दिया।
क्या पता चला
सब कुछ
मैंने तो कुछ सुना नहीं
सब कुछ कहा नहीं जाता समझा जाता है।
अब मुझे भी समझा दो
तुम्हें ही तो समझाना है।
तुम्हारे इरादे सही नहीं लग रहे है, दीदी को आवाज दूँ
अब दीदी की याद क्यो आयी
तुम बात ही ऐसी कर रहे हो
कैसी बात
गन्दी बात
मैंने तो कुछ कहा ही नहीं
मुझे समझ आता है।
अपनी दीदी को बुला ले
दीदी दीदी, नेहा ने पत्नी को आवाज लगायी तो पत्नी कमरे में आ गई। मुझे देख कर नेहा से बोली कि क्या बात है
दीदी यह गन्दी बात कर रहे है
क्या कर रहे है
आप इनसे पुछो
पत्नी ने मेरे से पुछा कि क्यों तंग कर रहे हो, मैं कहा तंग कर रहा हूँ यही कह रही है कि मैं इस से नाराज हूँ। सेक्स नहीं करता इस के साथ। तुम्हें पता है ना कि क्यों नहीं कर रहा था। इसे भी सब पता है लेकिन फिर भी मुझे सुना रही है। अभी मैंने पता किया है कि सामने से पेट पर दबाव नहीं पड़ना चाहिये तो कुछ और सोच रहा था। उसी को लेकर यह हल्ला मचा रही है। इस से पुछो कि इस में क्या गन्दी बात कर रहा हँ। पत्नी बोली कि गन्दी बात तो नहीं है, सिर्फ पोजिशन का ही तो फर्क है।
तुम ने इस के साथ आज तक नहीं किया है।
आज तक ऐसा मौका ही नहीं आया।
जो भी करना आराम से करना। धीरे धीरे करना ज्यादा जोर से मत करना।
करुँगा तो तब जब यह करने देगी अभी से शिकायत कर रही है।
जब करनी थी तब तो करी नहीं।
नेहा बोली दीदी कब की बात कर रही हो। जब हम दोनों आये थे और रात को तुम जोर जोर से कराह रही थी। तब तो तुने मुझ से कोई शिकायत नहीं करी थी।
दीदी इन से पुछा था तो यह बोले कि माफ कर दो, मैंने बात खत्म कर दी। उसके बाद आज तक हाथ नहीं लगाया है।
तुम्हे सब पता है, सबसे पहले तेरी और बच्चें की चिन्ता है उस के बाद कुछ और सोचना है। लेकिन तुम आज इस की इच्छा पुरी क्यों नहीं कर देते।
करने का मौका तो दे, अभी से तुम को बुला लिया।
तुम दोनों के बीच मैं क्यों पड़ुँ अपना झगड़ा खुद सुलझाओ।
यह कर कर पत्नी कमरे का दरवाजा बंद करके चली गयी। मैने नेहा को देखा और कहा कि नेहा आज तुझे कोई नहीं बचा सकता। वह बोली कि बचना कौन चाहता है।
मुझे पता था कि वह समागम को मरी जा रही थी। मैं भी यही चाहता था। इसी लिये नेहा के पीछे लेट कर उस आलिंगन में कस लिया। मेरे हाथ उस के उरोजों पर पहुँच गये और उन को सहलाने लगा। कपड़ों के ऊपर से कुछ ज्यादा हो नहीं पा रहा था। मैंने उस का कुर्ता ऊपर करके उतार दिया। नीचे ब्रा थी उस के हुक खोल कर उसे भी निकाल दिया। अब मेरे हाथ उस के निप्पलों को मसलने लग गये। मैं कोशिश कर रहा था कि ज्यादा ताकत ना लगाऊँ। कुछ देर नेहा के शरीर को सहला कर उस की सलवार को उतार कर पेंटी भी निकाल दी। आज मेरे दिल मे जो अरमान थे उन्हें पुरा करना चाहता था लेकिन कैसे करुँ यह असमंजस था। मैं 69 की पोजिशन में नेहा के सामने लेट गया और योनि को चाटने लग गया। नेहा के मुँह के सामने लिंग था सो वह भी उसे मुँह में ले कर चुसने लगी।
कुछ देर तक हम दोनों एक दूसरे को उत्तेजित करते रहे। जब उत्तेजना बढ़ गयी तो मैनें पोजिशन बदल कर नेहा को चुमा और उस को उरोजों को चुसा और इसके बाद नेहा को करवट दिला कर उस की पीठ अपने सामने कर ली। उस की एक टांग अपनी टांगों के ऊपर कर के लिंग को योनि में डालने की कोशिश की पहली बार मे तो लिंग बाहर निकल गया लेकिन दूसरी बार में लिंग नेहा की योनि में घुस गया। मैंने धीरे से पुरा लिंग योनि में डालने की कोशिश की नेहा के चुतड़ों के बीच से लिंग जितना घुस सकता था योनि में घुसेड़ दिया। नेहा को भी यह शायद सही लगा वह भी अपने कुल्हें हिलाने लगी। तीन महीने से वह प्यासी थी मैं धीरे-धीरे घक्कें लगाने लगा। हाथों से उस के स्तनों को दबा रहा था। नेहा बोली कि डर क्यों रहे हो। किसी की चिन्ता है।
हाँ अपने होने वाले बच्चे की।
मेरी नहीं है।
तेरी तो सबसे पहली है, तेरे कारण ही तो वह आयगा।
मुझे लगा कि तुम इतने नाराज हो कि मुझे छु ही नहीं रहे हो।
नेहा ऐसे बेकार के ख्याल तेरे दिमाग में कैसे आये?
पता नहीं लेकिन आज कल ऐसे ही विचार दिमाग में घुमते रहते है। पहले दो महीने तो मुझे बिल्कुल भी होश नहीं था अब इस महीने से कुछ होश आया है तो लग रहा है कि तुम पास हो कर भी दूर क्यों हो।
मेरे से पुछ लेना था तेरी दीदी बता देती
हर बात दीदी को बताना सही नहीं लगता, इसी लिये नहीं कहा
अब तो उसे पता चल गया
वह तो तुम ने कहा तो बोलना पड़ा
मैंने क्या गंदी बात कही थी जो शिकायत कर दी
पीछे से करने की बात गंदी नहीं है?
अब पता चल गया कि पीछे से मेरा क्या मतलब था। अगर जो तु सोच रही थी वह भी होता तो गंदा क्या है। दूनिया करती है।
मुझे नहीं करना
बिना तेरी मर्जी के कुछ नहीं करुँगा, इस अवस्था में तो सोच भी नहीं सकता। तुझे मुझ पर इतना ही विश्वास है
तुम तो मजाक भी नहीं समझते
नहीं
जाओ बड़ें वो हो
नेहा के कुल्हें तेजी से हिल रहे थे और मेरे लिंग को अंदर समाने की कोशिश कर रहे थे। मैंने उस का मुँह अपनी तरफ किया और उस के होंठों को अपने होंठों से भीचं लिया। हम दोनों गहरे चुम्बन में डुब गये। फिर उसे सीधा कर दिया। काफी देर के बाद मैं स्खलित हुआ। नेहा भी थक सी गयी थी मैंने पुछा कि डिस्चार्च हुई तो वह बोली कि तुम्हें कुछ पता नहीं चल रहा, मैंने कहा कि नहीं पता नहीं चला तो वह बोली कि दो बार हो चुकी हूँ। थकान हो रही है मैंने उसे पीठ के बल सीधा किया और उस से पुछा कि अब क्या हाल है तो वह बोली कि सही है। तुम मुझे ऐसे ही प्यार करो चलेगा। मैंने कहा कि डाक्टर ने हाँ कह दिया है तो ऐसे ही करा करेगे। लेकिन तुम्हें ज्यादा थकाना सही नहीं है। वह बोली कि अगली बार में जब अपने डाक्टर से मिलुँगी तो इस बारे में पुछ लुँगी। मैंने कहा जैसी तुम्हारी मर्जी। अब आराम से सो जाओ और दिमाग से हर बात निकाल दो। मेरी बात सुन कर नेहा मुस्करा दी और आँखे बंद कर ली।
इसी तरह समय बीत रहा था। नौ महीने बाद नेहा ने एक लड़के को जन्म दिया। दोनों स्वस्थ्य थे। शीघ्र ही अस्पताल से घर आ गये। इस शहर में कोई रिस्तेदार तो था नहीं इस कारण से रीति रिवाज करना बहुत मु्श्किल काम था। घर में कोई बड़ा बुढ़ा भी नहीं था। मैंने कहा कि नेहा की माता जी को बुला ले तो नेहा नें मना कर दिया और बताया कि वह इतनी दूर नहीं आ सकती है। पत्नी ने मेरी किसी रिस्तेदार से बात करके सारे रीतिरिवाज करना शुरु कर दिया। छटी मनायी गयी। इस के बाद बच्चे के नामकरण का प्रोग्राम होना था। हमें नहीं पता था कि कौन आयेगा और कौन नहीं? मेरे भाई और मेरा साला आया और उस ने भाई के सारे कर्तव्य पुरे किये। मेरे पिता जी नहीं आये। पत्नी को और मुझे यह देख कर संतोष हुआ कि परिवार ने नेहा को स्वीकार्य कर लिया है। कुछ दिनों बाद पुत्र को लेकर दिल्ली गये और अपने पिता से उनके पौत्र को मिलवाया। बेटे से वह नाराज भले हो लेकिन अपने पौत्र से वह नाराज नहीं थे।
मैंने नेहा से पुछा कि जब यहाँ आये है तो तुम्हारी माता जी से भी मिल लेते है। वह इस के लिये राजी नहीं थी। लेकिन उसे मना कर हम उस की माता जी से मिलने गये। वहाँ उस के परिवार ने कोई नाराजगी नहीं दिखायी। नानी ने अपने नाती को स्वागत किया। मेरा तथा पत्नी का भी स्वागत किया गया। सब से मिल कह हम चारों वापस दिल्ली आ गये और दूसरे दिन वापस बंगलुरु वापस हो गये।
घर पर पहुँच कर नेहा मुझ से बोली कि तुम ने जिद की तो में माँ से मिलने चली गयी नहीं तो वह कभी भी अपने नाती को नहीं देख पाती। मैंने कहा कि तुझ से मुझ से गुस्सा हो सकते है लेकिन अपने नाती से गुस्सा नहीं हो सकते। मेरे पिता जी भी तो अपने पोते से मिल कर खुश थे। जो हो रहा है सही है। वक्त सभी जख्मों को भर देता है। नेहा बोली कि यह तुम्हारा बड़ापन है नहीं तो दामाद तो वैसे ही नाक ऊँची रखते है। पत्नी बोली कि इन की यही बात तो लोग नहीं समझ पाते। मैंने कहा कि मैं तो वही करने की कोशिश करता हूँ जो सही लगता है।
जीवन ऐसे ही चल रहा था। कुछ समय बाद पत्नी भी गर्भवती हुई और उसने एक कन्या को जन्म दिया। दोनों बच्चें बड़ें हो रहे थे और हम तीनों जीवन का आनंद ले रहे थे। परेशानियां थी लेकिन उन का सामना करने के सिवा कोई और चारा नहीं था।
*** समाप्त ***