अधेड़ उम्र का प्रेम

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मैंने अपने हाथ उन के शरीर से अलग कर लिए और उन्हें बंधन से मुक्त कर दिया। मुझे लगा कि वह अब उठ कर अलग हो जाएगी, लेकिन मेरा ऐसा सोचना गलत था। ऐसा करते ही आवाज आई कि अपनें से दूर क्यों कर रहे है? मैंने यह सुन कर उसे फिर आलिंगन में ले लिया। मेरे चेहरे पर गरम पानी की बुंदे गिरी तो मुझे पता चला कि मैंने उन्हें रुला दिया था। मेरे होंठों ने उस की आँखों से आँसु पी लिए। पुरे चेहरे को होंठों से चुम लिया, अब उस का बोझ महसुस नहीं हो रहा था, वो फुलों की तरह हल्की लग रही थी। काफी देर तक ऐसे ही पड़ें रहे फिर वह उठ कर खड़ी हो गई। और बेड के कोने पर बैठ गई। मैं ऐसे ही बेड पर पड़ा रहा।

मैंने कहा कि बेड का गद्दा तो बहुत आरामदायक है उठने का मन ही नही कर रहा है।

किस ने कहा कि उठे, आराम करिए, मैं चाय बना कर लाती हूं। यह कह कर वह चली गई।

मैंने जुते उतार कर पांव ऊपर कर लिए और आराम से लेट गया, थका तो था ही सो नींद आ गई। उस के झकझोड़ने से नींद खुली तो देखा कि वह चाय लेकर खड़ी थी। चाय की प्लेट बेड पर ही रख कर वह किनारे बैठ गई। मैंने कहा कि ऊपर आराम से बैठ जाओ तो पांव ऊपर कर के मेरे सामने बैठ गई। दोनों के बीच में चाय, नाश्ते की प्लेट थी। मैं तो सो गया था काफी थका हुआ था।

बढ़िया है मालिक ने अपने सामान की जाँच कर ली। आप ही ने सोना है इस पर।

हम दोनों में शर्म सी था। मैंने उसे दूर करने की कोशिश की। पुछा कि आज की घटना से कोई परेशानी, जबाव मिला कौन सी परेशानी। एक दूसरें पर गिर जाना, ऐसा तो कभी ना कभी होना ही था। बेड पर गिरे अच्छा था। आप के लिए चाय नही कॉफी लाई हूँ। मैंने कहा कॉफी चलेगी। हम दोनों कॉफी पीने लगे। मैंने पुछा कि अकेले कोई परेशानी तो नही है। वह बोली की अभी तक तो अकेलापन लगा नही है। घर बदलने में ही लगी रही हूँ। कॉफी पीने के बाद वह प्लेट रखने को चली गई। मैंने सोचा कि आज अच्छा मौका है कि दोनों के बीच की दीवार गिराने का।

उन को आवाज दी तो वह कमरे में आई तो मैंने कहा कि कमरे का दरवाजा बन्द कर दो। उस ने ऐसा ही किया। मुझे पता था कि हमारे घर में अन्दर आने से पहले उस ने घर का दरवाजा बन्द कर दिया था।

मैं बेड से उठ कर उस के पास गया और उसे अपने आलिंगन में ले लिया और कहा कि किसी तरह की शिकायत की सुनवाई नही होगी। यह सुन कर वह हँस दी। मैंने उस का चेहरा अपने हाथों में लेकर उस के होंठो को अपने होंठों से ढ़क दिया। इस बार उस के शरीर में कोई कसमसाहट नही थी। मैं धीरे-धीरे उस के होंठों को चुस रहा था। थोड़ी देर बाद उस की जीभ ने मेरे होंठों का स्पर्श किया। दोनों एक दूसरे को इस तरह से चुम रहे थे मानों कोई प्रेमी-प्रेमिका बरसों बाद मिले हो। शायद ऐसा ही था। अब उस के हाथ भी मेरी कमर से लपटे हुए थे।

मैंने उस को अपने से अलग किया तो उस ने कहा कि इस का क्या कारण है मैंने कहा कि आज इतना ही सही है। तुम्हें मैंने अपनी परेशानी उस दिन बताई तो थी। इस पर वह बोली की वहाँ तक कौन जा रहा है। मैंने कहा कि मुझे वापस आफिस जाना है।

उस को यह बात समझ आई। वह बोली चलो हमारे बीच की दूरियाँ कम होनी तो शुरु हुई, मुझे तो लगा था कि यह दूरी शायद कभी कम ही नही हो पायेगी।

मैंने कहा कि हर बात का एक समय निश्चित है जो जब होना है तब ही होगा। हम तो कारण मात्र है।

रोने का क्या कारण है।

इतनी खुशी पा कर आँसु रुक नही पाये।

आगे इन को बचा कर रखना।

मैं चलने लगा तो वह पीछे से मुझ से लिपट गई। मैंने उसे सामने ला कर एक बार फिर चुमा और कहा कि ज्यादा खाने से अपच हो जाती है। मेरी यह बात सुन कर वह जोर से हँस पड़ी।

मैं घर से बाहर कार ले कर निकल गया।

आज मन कुछ प्रसन्न था, चिन्ता कम थी, तनाव भी कम था।

दूसरे दिन अपने एक वैद्यराज दोस्त से मिलने चला गया, उस ने मुझे आया देख कर कहा कि तुम्हें देख कर बहुत खुशी हुई है। मैंने कहा कि उस की मदद की दरकार है। मैंने उसे अपनी कमजोरी के बारे में बताया तो वह बोला कि यह उम्र के साथ होने वाली परेशानी है, दो-तीन महीने दवाई खाने से दूर हो जाऐगी, वो बोला कि जब तक तुम अपनी आँखों से नही देखोगे मेरी बात पर यकीन नही करोगे। उस ने चार-पांच दवा खाने को दी और एक तेल दिया लिंग पर मालिश करने के लिए।

वह बोला कि एक महीने तक परहेज करना पड़ेगा, फिर तुम खुद इस इस का असर देखना। मैं दवा लेकर घर आ गया। रात को जब दवा खा रहा था तो बीवी बोली की इस उम्र में इतनी दवा नही खानी चाहिए, मैंने कोई जबाव नही दिया। एक हफ्ते बाद ही मैंने महसुस किया कि मेरी जाँघों के बीच में रक्त का प्रहाव बढ़ गया था। दसवें दिन बीवी के साथ सोते हुए लगा कि लिंग में तनाव आ रहा था। ज्यादा ध्यान नही दिया। सुबह उठने पर देखा कि लिंग तो पुरी तरह से तना हुआ था मुझे अपनी आँखों पर यकीन नही हुआ। बाथरुम में जा कर ब्रीफ उतार कर देखा तो यकीन हुआ। नसें उभर आई थी। मोटाई बढ़ गई थी।

महीने भर बाद एक रात पत्नी को मुझ पर प्यार आया तो मैंने भी उत्तर मैं उसे दबोच लिया और सालों बाद मिया-बीवी हमबिस्तर हुए। बीवी ने तो तौबा कर ली। लेकिन मैं जानता था कि मन ही मन उसे भी अच्छा लगा था। समय भी काफी बढ़ गया था। आधा घन्टा लगा। सुबह बीवी का व्यवहार बदला हुआ था।

अब मन मैं इच्छा थी कि उस के साथ कब यह कर पाऊँगा।

दो हफ्तें बाद एक दिन सुबह श्रीमति जी से कहासुनी हो गई बात इतनी बढ़ गई कि नाश्ता भी नहीं किया और आफिस चला गया। दोपहर तक माईग्रन इतना होने लगा कि उल्टी आने लगी, आधे दिन की छुट्टी ले कर निकला लेकिन पता नही था कि कहाँ जाना है। बाहर से उस को फोन करा कि उस के घर आ सकता हूँ तो उस का जवाब था नेकी और पुछ-पुछ। अभी आ जाओ मैंने कहा कि रास्ते में हूँ। उस के घर पहुचा तो वह इन्तजार कर रही थी। मेरा चेहरा देख कर उसे पता चला गया कि मेरी हालात खराब है। मैंने कहा कि माईग्रन का दर्द हो रहा है। शायद उल्टी हो जाये इस लिए सोना चाहता हूँ।

उस ने कहा कि कपड़े बदल कर सो जाईए। बेडरुम में पहुँचा तो उस ने पहनने के लिए अलग से कपड़े अलमारी से निकाल कर दिये। मुझे आश्चर्य हुआ लेकिन कुछ पुछने की ताकत नही थी सो कपड़े बदल कर बेड पर लेट गया, थोड़ी देर में नींद आ गई। पता नही कब तक सोता रहा। जब उठा तो देखा कि वह कमरे में ही बैठी थी। मैंने पुछा कि बैठने की क्या आवश्यकता थी। उस ने कहा कि कुछ बातें बताई नही जाती समझी जाती है, चाय लाऊँ। मैंने कहा कि कुछ खाना भी खिला दो सुबह से कुछ खाया भी नही है। अब उस ने पुछा कि हुआ क्या है? मैंने उसे सुबह की घटना बता दी।

उस ने कहा कि पहले तो घर पर फोन कर के बता दो कि कहाँ पर हो, और रात को घर नही आ रहे हो। मैंने कहा कि तुम्हारा नाम लूँ उस ने कहा कि मेरे या किसी का नाम लेने की जरुरत नही है, केवल बता दो ताकि दीदी को परेशानी ना हो। मैंने यहीं किया और घर पर फोन करके कहा कि रात को घर नही आऊँगा किसी के घर पर हूँ। दूसरी तरफ से और कुछ पुछा नही गया। मैंने बताया नही। उस ने चैन की साँस ली, मैंने पुछा कि मेरे से ज्यादा दीदी की चिन्ता है तुम को, इस पर उस ने कहा कि तुम तो मेरे सामने हो, लेकिन उन को सुबह से तुम्हारा कोई पता नही है और रात को घर नही पहुँचे तो पता नही क्या कर ले। अब वह चैन से रहेगी। तुम पुरुष स्त्री के मन को नही समझ सकते। मैंने बहस करना सही नही समझा अभी सुबह बहस के चक्कर में ही तो झगड़ा इतना बढ़ गया था।

थोड़ी देर में वह खाना ले कर आ गई, मैंने पहले खाना खाया और फिर चाय पीने लगा, उस ने मेरे पास बैठ कर कहा कि आज रात आप मेरे पास हो इस का मैं फायदा उठाना चाहती हूँ, तुम्हे कोई परेशानी तो नही है। मुझे कुछ समझ तो आ रहा था लेकिन मै समझना नहीं चाहता था। जो हो रहा है होने दो। मैंने हाँ मै सर हिलाया, बोली की बाजार जा रही हूँ कुछ लाना तो नही है तुम्हारे लिए कोई दवाई जो लेते हो और आज ना ली हो। मैंने कहा ऐसा कुछ नही है। तुम अपना काम कर लो। मै फिर सोने जा रहा हूँ। खाना खाने के बाद नींद फिर आ रही है। उसने पुछा कि माईग्रेन के लिए तो कोई दवा नही लेनी मैंने कहा कि एस्परीन पड़ी हो तो बढ़िया है अगर मिले तो ले आना, ऐस्परीन तो घर में है।

इस के बाद वह गाड़ी ले कर चली गई और मैं फिर नींद में डुब गया।

जब उठा तो रात के आठ बज रहे थे, उस ने मुझ से कहा कि नहा लो, अच्छा लगेगा मैं आपके लिए कपड़े लाई हूँ उन को पहन लेना। मैंने गरम पानी से नहा कर अपने आप को तरोताजा महसुस करा, मेरे लिए अन्डरगारमेन्ट भी बाथरुम में रखे थे बिल्कुल सही नाप के थे। इस का मुझे बहुत आश्चर्य था लेकिन उस समय पुछना उचित नही समझा। नया कुरता पायजामा भी पहन लिए वह भी फिट आ गये। तैयार हो कर जब कमरे में घुसा तो वह मुझे एकटक देखती रही। मैंने कहा क्या बात है उस ने कोई जबाव नही दिया। पुछा कि अब कुछ खाना है। मैंने मना किया।

वह मेरे पास आ कर बैठ गई और मुझ से सट कर बोली की आज की रात आपकी और मेरी पहली रात है चाहे कैसी भी हो लेकिन मैं इसे ढ़ग से मनाना चाहती हूँ मेरा कहा मानोगे, मैंने कहा कहो तो, वह बोली की आज की रात को सुहागरात की तरह मनाते है। देखते है कि शायद कुछ सुख निकल आये। मैंने कहा कि चलो ऐसा ही करते है, मुझे क्या करना है बताओ वो हँस कर बोली कि तुम्हें ही तो सब कुछ करना है।

मैंने कहा वो तो पता है लेकिन तुम्हारे मन में और कोई बात हो तो उसे भी बता दो। उस ने कहा कि मैं तैयार हो कर आती हूँ फिर बताऊँगी। मैं ने कहा कि साड़ी पहनना, उस ने कुछ कहा नही और कमरे से चली गई। मै रात को होने वाली बात के बारे में सोचने लगा। अपनी पहली सुहागरात में तो कुछ याद करने लायक था नही। देखते है आज क्या होता है?

उस का काफी देर इन्तजार करना पड़ा लेकिन जब वह आई तो मेरी आँखे उसे देख कर खुली रह गई। लाल साड़ी में मेकअप के साथ तो वह गजब ढ़ा रही थी। उसे देख कर मैंने कहा कि आज तो बिजली गिरनी ही है। वह हँस दी, बोली की कुछ दवा की शायद जरुरत पड़े इस लिए ले कर आती हूँ। एक लिफाफा लेकर वापस लौटी। उसे बेड की साइट टेबल पर रख कर बोली की पानी की जरुरत है या किसी गरम चीज की मैंने कहा कि मेरे पास तो गरम चीज है। उस ने आँख तरेर कर देखा। मैंने आँख मारी। बोली कि फ्रिज में बीयर की बोतलें ला कर रखी है ले कर आती हूँ। वो उन को लेकर लौटी और हम दोनों ने जल्दी ही उन को खाली कर दिया। दोनों को थोड़ा सा सरुर चढ़ गया था।

उस ने मुझ से कहा की मैं बेड पर जा कर बैठ रही हूँ तुम जरा बाहर जा कर आओ, मैं कमरे से बाहर गया और जब उस की आवाज आई तो कमरे में घुसा तो देखा कि वह बेड पर बैठी थी चद्दर पुरी तरह से गुलाब की पखुडियों से भरी हुई थी। उस ने बेड से उतर कर नीचे आ कर मेरे पाँव छु कर मेरें पावों पर अपना सर टेक दिया, इस बात से मैं आवाक रह गया पीछे की तरफ हटना चाहा तो उस ने ऊठ कर कहा कि मैं आज अपने आप को समर्पित कर रही हूँ अपने भगवान् के कदमों में सर टेकना तो जरुरी था। मैंने उसे बाहों में लेकर बेड पर बिठा दिया और उस के पास बैठ गया।

मैंने कहा कि आज ऐसे मौके पर तुम्हें देने के लिए कुछ भी नही है। फिर मुझे ध्यान आया और अपनी पेंट में से पर्स निकाल कर उस में से ग्यारह सौ रुपया निकाल कर उस के हाथ पर रख कर बोला कि यह शगुन के है रख लो। उस ने ले कर माथे से लगा कर रख लिए। वह बोली की आप की और मेरी जोड़ी का भविष्य तो मुझे पता नही है, लेकिन जब से आप मेरी जिन्दगी में आये है, उस में बहार आ गयी है। मैंने कहा कि मैंने भी शायद एक सच्चा दोस्त पाया है। आयों कसम खाये कि इस दोस्ती को बनाए रखेगे। उस ने कहा कि आप की उस दिन की बात ने मुझे दूसरी जिन्दगी दी थी। मैंने कहा कि मैं भी अकेलापन भोग रहा था, तुम्हारे साथ ने उसे खत्म किया है।

मैंने उस को हथेलियों को उठा कर चुम लिया। वह भी मेरे करीब आ गई। बोली की आज आप को मैं अपने आप को गिफ्ट कर रही हूँ आशा करती हूँ कि आप को पसन्द आऊँगी। मैंने उसे बाहों में ले कर कहा कि मैं भी आज अपने आप को तुम्हें सौप रहा हूँ।

हम दोनों गहरे आलिंगन में कस गये। मेरे होंठों ने उस के होंठों का ढ़क लिया। हमारें शरीरों के में बीच में जगह नही रही। दोनों एक दूसरे को कस कर जकड़े हुँए काफी समय तक यु ही खड़े रहे। चुम्बन लेने के कारण दोनों की साँस फूल गई। अलग हुऐ तो मैंने उसे गोद में उठा कर बेड पर बिठा दिया। फिर उस के साथ बैठ गया। मैंने उस से कहा कि शायद मैं उसे पुरी तरह से सन्तुष्ट ना कर सकुँ, इस पर उस ने मुझ से कहा कि इस की उसे चिन्ता ही नही है। शारीरिक सुख की उसे चिन्ता ही नही है, यह सुख तो आज तक उसे मिला ही नही है। यह कह कर उस ने मेरे को बेड पर गिरा दिया और मेरे ऊपर आ गई।

मैंने उस की साड़ी को सामने से हटा दिया। उस का वक्षस्थल मेरे सामने उघड़ गया। उस के बाल मेरे चेहरे पर पड़े हुए थे मैंने उन्हे हटा कर उस के माथे को चुमा, आँखों को चुमा और मेरे होंठ उस की गरदन पर फिरने लगे। वहाँ से उतर कर खुले वक्षस्थल पर आ गये, उस के दोनों स्तनों के बीच मेरा चेहरा था ब्लाउज के कारण और गहरे जाना मुमकिन नही था। मैंने हाथ बढ़ा कर ब्लाउज को खोल दिया उस के नीचे लाल ब्रा झलक रही थी। कप कसे और भरे हुए थे। ब्रा में कसे हुए अच्छे लग रहे थे। ललचा रहे थे कि उन्हें मसला जाए।

मैंने हाथ पीछे ले जा कर के ब्रा के हुक खोल दिए अब दोनों उरोज आजाद थे उस ने हाथ आगे कर के ब्लाउज और ब्रा उतार दी। मैंने हाथों से उन्हें सहला दिया। भुरे रंग के निप्पल तने हुए थे मैंने उन को ऊंगलियों के बीच लेकर मसलना शुरु कर दिया। इस से उस के मुँह से सिसकियां निकलने लगी। ऊंगलियों के बाद होंठों ने उन की जगह ले ली। मेरी जीभ निप्पलों के चारों ओर फिरने लगी। मेरा मन कर रहा था कि पुरे उरोज को मुँह में लेकर चुस लू। मैंने उठ कर उस की साड़ी को निकाल कर अलग कर दिया। साड़ी अब जमीन पर पड़ी थी। मैंने भी अपना कुरता उतार दिया, बनियान भी उतर गई। कमर से ऊपर हम दोनों नंगे थे। एक दूसरें पर पड़े एक दूसरें के शरीर की उष्मा को महसुस कर रहे थे।

बढ़ती उम्र में जल्दीबाजी हो नही सकती थी। हम में से कोई भी जल्दी करना भी नही चाहता था। आशा उठ कर बैठ गई मैं उस की गोद में सिर रख कर लेटा था। वो सिर झूका कर मेरी आँखों को चुम रही थी। मैं जीभ से उरोजों को चाट रहा था। फिर मैंने उस से कहा कि मैं शायद संभोग सही तरह से नही कर पाऊँगा। उस ने मेरे होंठों पर ऊंगली रख कर मुझे चुप कर दिया। मैंने अपना चेहरा नीचे घुमा कर उस की नाभी को चुमा। फिर मैंने हाथों से उस के पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया, मैं उठ कर बैठ गया मैंने उस के पेटीकोट को खीच कर उतार दिया, नीचे लाल रंग की ब्रीफ थी। मैंने उसे भी ऊंगलियाँ फसां कर नीचे कर के पावों से निकाल दिया। आशा अब पुरी तरह से वस्त्रहीन थी। मैंने भी अपने सारे कपड़ें उतार दिये।

मैंने उस को बेड के किनारे पर कर लिया उस के पांव फर्श पर थे मैं उस के पांवों के बीच बैठ गया मेरे सामने उस की योनि थी बिलकुल साफ और चिकनी थी मैंने उस की टागों को चौड़ा कर के अपने होंठ उस की योनि पर लगा दिये। योनि की भंग को होंठों में ले कर चुसा। आशा का शरीऱ कांपने लगा। मैं अब उस की योनि में अपनी ऊगली डाल कर उसे अन्दर बाहर करने लगा। मुझे थोड़ी अन्दर उस का जी स्पाट मिल गया, मैं अपनी ऊंगली से उसे मसलने लगा। इस से उस के मुँह से आहहहहहहहहहहहह उहहहहहहह आहहहहहह. निकलने लगी। मैं काफी समय तक योनि को चाटता रहा।

जी स्पाट को मसलने के कारण आशा की उत्तेजना बहुत बढ़ गई थी उस ने अपनें हाथों से मेरा चेहरा अपनी योनि से चुपका दिया। मेरे मुँह में उस की योनि का नमकीन पानी का स्वाद आ रहा था इस की वजह से मेरे शरीर में भी तनाव आ रहा था। मेरा लिंग भी तन कर मेरे पेरों में बीच खड़ा था। मैं उसे देखना नही चाहता था आज सारा दारोमदार उसी पर था। योनि में कसाव बहुत था इस उम्र में शादीशुदा स्त्री की योनि इतनी कसी हुई नही हो सकती। मेरी बात को समझ कर आशा ने कहा कि मैं अभी तक कुँवारी हूँ।

आज पहली बार तुम ही सील तोड़ोगे अगर सील है तो। मैंने कहा कि देख लेते है मैंने योनि के दोनों लिप्स् को अलग कर के देखा तो हाइमन सुरक्षित था मैं आश्चर्यचकित था कि ऐसा कैसे हो सकता है, तो आशा ने कहा कि उस ने कभी मुझ से सम्पर्क ही नही बनाया, मेरा मन आशा के प्रति द्रवित हो उठा कि इस ने क्या-क्या कष्ट झेले है। उस ने कहा कि इस लिए मैं जैल ले कर आई हूँ ताकि दर्द ना हो। आशा ने बैठ कर मुझे खड़ा कर के मेरे लिंग को मुँह में ले लिया। उस के होंठों की गरमी ने मेरे लिंग को और गरम कर दिया।

आशा के मुँह में जा कर वो तो और मोटा हो गया। साईज सात इंच और मोटाई चार इंच हो गयी। उस के होंठो ने लिंग को मुँह में मसल डाला। अब मेरे मुँह से आह निकलने लगी। आशा ने पुरा लिंग मुँह में ले कर अन्दर बाहर करना शुरु कर दिया। मुझे लगा कि मैं उस के मुँह में ही ना स्सखलित हो जाऊ, इस कारण से मैंने लिंग को उस के मुँह से निकाल लिया और उस के पैर के पंजो को चुमता हुआ योनि तक पहुँच गया इस के बाद उसे मुँह के बल लिटा कर उस की पीठ पर पांव से लेकर गरदन तक चुम्बन लिये। इस से उस का शरीर और गरम हो गया।

मै भी अब पुरे शबाव पर था मैंने आशा को पीठ के बल लिटाया और जैल के ट्युब से जैल लेकर लिंग पर अच्छी तरह से लगा लिया इस के बाद लिंग के सुपारे को योनि के मुँह पर रख कर धक्का लगाया। चिकनाई के कारण लिंग का सुपारा अन्दर घुस गया, मैंने पुछा कि दर्द तो नही है तो उस ने कहा कि इस दर्द के लिए तो कब से तड़प रही थी। तुम रुकों मत। मैंने शरीर तान कर जोर से धक्का दिया इस बार लिंग पुरा योनि में चला गया। आशा ने होंठों को दांतों से दबा रखा था।

मैं ने कुछ रुक कर फिर से धक्के लगाने शुरु कर दिए। आशा के कुल्हें भी नीचे से ऊठ कर मेरा साथ दे रहे थे। हम दोनों के कुल्हें एक ही रिदम में ऊपर-नीचे हो रहे थे। मेरे घुटने दर्द करने लगे, इस लिए मैंने आशा को ऊठा कर अपनी गोद में बैठा लिया लिंग अभी भी योनि में ही था। उस के पांव मेरी कमर के पीछे थे उस का चेहरा मेरे सामने था। मैं अपने हाथ उस के कुल्हों के नीचे लगा कर उन्हें उछाल रहा था। लिंग सीधा बच्चेदानी के मुह पर टक्कर मार रहा था इस के कारण आशा सिसकियां ले रही थी।

उम्र के कारण हम दोनों के शरीर अब उतने लचीले नही थे। मैंने उस को पीठ के बल लिटा दिया अब मै उस के ऊपर था मेरे धक्कें पुरे जोर से चल रहे थे मैंने शरीर को सीधा तान लिया और धक्का लगाता रहा। अचानक मेरी आँखों के सामने तारें नाचने लगे। शरीर शिथिल पड़ गया। मैं डिस्चार्ज हो गया। वीर्य इतनी जोर से निकला था कि मेरे लिंग के मुँह पर आग सी लगी हुई थी। मैंने आशा को देखा वो गहरी सांसे ले रही थी।

मै कुछ देर तक ऐसे ही रहा फिर उठ कर उस की बगल में लेट गया। जब मेरी सांसे सामान्य हुई तो मैंने देखा कि आशा भी अब शान्त लग रही थी। उस की योनि से खुन मिश्रित पानी निकल रहा था मेरे लिंग से भी यही पानी टपक रहा था। मैंने आशा को अपने से लिपटा कर पुछा कि क्या हाल है? उस ने कहा कि हाल का तो पता नही पर तुम ने तो मार ही डाला। मैंने कहा कि धीरे करने का ध्यान ही नही रहा। वो बोली की धीरे की बात नही कर रही मैं तो उस की बात कर रही हूँ कि टाईम कितना लगा?

तुम तो मना कर रहे थे कि संभोग कर भी पाओंगे, यहाँ तो तुम ने मेरी हड्डियां हिला दी है शायद 20 मिनट से ज्यादा हो गया है। मैंने घड़ी देखी तो कहा की आधा घन्टा लगा है। उस ने मेरा माथा चुम कर कहा कि मेरा कुँवारापन आज का मेरा गिफ्ट था आप के लिए। मैंने कहा कि मेरा इतनी देर तक सेक्स करना भी तुम्हारा गिफ्ट है। यह सिर्फ तुम्हारी वजह से हुआ है। उस ने अपना चेहरा मेरी छाती में छुपा लिया।

हम दोनों लेटे हुए एक दूसरें के बदन को सहलातें रहें। आशा के हाथ मेरी पीठ पर घुम रहे थे उस ने मेरे निप्पल चुम लिए। थोडे़ समय के बाद हम दोनों को लगा कि हम एक बार और संभोग कर सकते है इस बार मैं नीचे था और आशा मेरे ऊपर, आशा ने लिंग के हाथ से पकड़ कर योनि के मुँह पर लगा कर कुल्हें को धक्का दिया, इस से लिंग योनि में चला गया आशा ने धीरे धीरे कुल्हों को हिला कर उस को अपने अन्दर लेती गई। मैं उस के उरोजो को मसल रहा था। फिर मैंने भी नीचे से अपने कुल्हों को धक्का देना शुरु कर दिया इस से आशा की योनि पर जोर से दबाव पड़ रहा था।

उस की गति अचानक बढ़ गई और फिर वह मेरे ऊपर गिर गई बोली कि अब मैं नही उठ सकती मैंने उसे करवट दे कर नीचे करा और उस के ऊपर हो कर धक्कें लगानें चालु रखे। हर धक्के पर उस की चीख सी निकल रही थी मुझे लगा कि कुछ हो ना जाए मैंने पुछा कि सही तो हो, उस ने सर हिला कर हाँ कहा। इस बार और देर लगनी थी। हम दोनों पुरे बेड पर लोटपोट लगाते रहे, मैंने थक कर अपने लिंग योनि से निकाल लिया, इस पर आशा ने लिंग को मुँह में ले लिया और मुँह से उसे पीने लगी तब जा कर मैं डिस्चार्ज हुआ। अब तो हम दोनों के शरीर बुरी तरह से टुट रहे थे दर्द कर रहे थे।

इतना दम भी नही बचा था कि अंगों को पौछ ले। एक-दूसरें से लिपट कर सो गये। रात को तीन बजे मेरी आँख खुली तो देखा कि दोनों जने नंगे पड़े थे शरीर के नीचे के हिस्से चिपचिपा रहे थे। मैंने उठ कर बाथरुम में जा कर तौलिया पानी में भिगोया और कमरे में आ कर पहले आशा को साफ किया फिर उसके बाद अपने को साफ किया। इस बीच आशा जाग गई लेकिन दर्द के कारण उठी नही,पड़ी रही। मैंने कहा कि कपड़ें पहना दूँ, उस ने सर हिलाया मैंने अलमारी खोल कर के उस का गाउन निकाल कर उस को पहना दिया। अपने लिए भी अलमारी में से नाईटसुट ले कर पहन लिया।

इस सब के बाद मैंने उस से पुछा कि चाय चलेगी तो वो बोली की चलेगी लेकिन उस में ताकत नही है, मैंने कहा कि मैं बना कर लाता हूँ।

मैं किचन में गया और दो कप पानी गैस पर चढ़ा दिया।और चाय की पत्ती ढुढ़ कर डाली, फिर दुध डाला और चीनी डाल कर खौलने का इन्तजार करने लगा। चाय जब खौल गई तब कपों में भर कर कपों को प्लेट में रख कर कमरे में आया। चाय का कप जब आशा को दिया तो उस ने कराह कर बैठने की कोशिश की, मैंने हाथ के सहारे से उस को उठा कर बिठा दिया और उस के हाथ में चाय का कप दे दिया। मैं भी उस के पास बैठ कर चाय पीने लगा, चाय पीने से आशा के शरीर में जान सी आ गई। उस ने मेरे हाथ को दबा कर कहा कि इस गुण के बारे में तो मुझे पता ही नही था मैंने हँस कर कहा कि सिर्फ चाय ही बनानी आती है और कुछ नही। वह बोली की कुछ मैं सिखा दूगी।

चाय ने हमारे खोये हुए दम को वापस लौटा दिया था, हम दोनों फिर से लिपट कर बातें करने लगें, आशा बोली की इतने सालों तक मैंने इस क्षण का इन्तजार किया था, इन्तजार का फल इतना अच्छा निकलेगा मुझे पता नही था। मैंने कहा कि मुझे भी खुशी है कि मैं इस पल का पुरा आनंद दे और ले पाया हूँ।

उस ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा कि आगे से किसी बात को लेकर डरने की जरुरत नही है हम दोनों मिल कर उस का सामना कर लेगे। तुम्हारी कमजोरी शायद तुम्हारें मन की बनाई हुई थी। आज तो युवाओं से लग रहे थे मैंने कहा कि हो सकता है जब आप का साथी साथ न दे तो आप की क्षमता भी कम हो जाती है। मानसिक ताकत तो है ही।

आशा बोली की एक तो कुँवारापन टुटा और उसके बाद फिर एक बार और कर लिया इस वजह से बदन बुरी तरह से टुट रहा था, चाय पी कर कुछ ताकत मिली है। खाना पड़ा है अगर भुख लगी हो तो खा लेते है। मैंने कहा कि तुम ने तो कुछ भी नही खाया तो उस ने सर हिला दिया। मैंने कहा कि चलो खाना गरम करके खाते है। हम दोनों ने सुबह चार बजे खाना खाया। भुख लगी हुई थी। सारा खाना चट कर गये। पांच बज गये थे, सूर्य निकलने वाला था हम ने दुबारा सोने का इरादा छोड़ दिया।

रात के अधेरे को चीर कर जब सुबह का सूरज निकला तो उसने हम दोनों के जीवन में एक नया उजाला भर दिया। इतने दिनों से आशा के जीवन में छाया अंधेरा भी छँट गया था।

मेरे को भी एक नई किरन दिखाई दे रही थी।

मैंने उठ कर नित्यकर्म कर के नहा कर आफिस जाने की तैयारी की तो आशा ने कहा कि आज की छुट्टी ले सकते हो। मैंने कहा कि मैं दो-चार दिन की छुट्टी ले कर वापस घर हो कर आता हूँ फिर हम कही बाहर जाने का प्रोगाम बनाएगें। मेरी यह बात सुन कर आशा का चेहरा चमक उठा।

मैंने आफिस जा कर एक हफ्ते की छुट्टी ले ली, घर जा कर पांच छह दिन के कपड़ें सुटकेस में रख कर जरुरी दवाईयां तथा और सामान रख लिया। श्रीमति जी से कहा कि मैं एक हफ्तें के लिए बाहर जा रहा हूँ। उस ने कुछ पुछा नही और मैंने कुछ बताया नही। सामान ले कर मैं निकल गया गाड़ी घर पर ही छोड़ दी। अब सवाल यह था कि कहाँ का प्रोगाम बनाया जाए, तभी ध्यान आया कि किसी ने ईमेल किया था कि हिमाचल प्रदेश में एक रिसोर्ट बनाया है जो एक जगह न हो कर छोटी-छोटी कॉटेज के रुप में बना था।