अधेड़ उम्र का प्रेम

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मैंने उस ने पुछा कि मेरे वीर्य का स्वाद कैसा था उस ने हँस कर कहा कि अपने आप चख कर देखिए मैंने कहा कि अभी कैसे होगा तो उस ने हाथ बढ़ा कर मेरे लिंग पर लगे वीर्य को जो अभी सुखा नही था ऊंगली पर लगा कर मेरे होंठों से लगा दिया। मैंने चखा तो कसेला और नमकीन था वो बोली की इस में मेरा भी स्वाद है अच्छा मेरे का कैसा स्वाद है मैंने उस की योनि में ऊंगली डाल कर उसे उस के होंठों से लगा दिया, वह बोली कि यह तो नमकीन है।

आशा बोली की मैंने कही पढ़ा था कि पति-पत्नी को एक दूसरें के द्रवों को पीना चाहिए इस से दोनों के अन्दर एक-दूसरें के प्रति एलर्जी खत्म हो जाती है। मैंने कहा कि आज की हरकत इसी बात के लिए थी, वह गरदन झुका कर बोली कि हाँ। मुझे दो दिन से काफी जलन हो रही थी, मुझे लगाकि इस तरह से मेरी जलन कम हो जायेगी। मैंने कहा कि मैडम यह जलन इस लिए हो रही है कि तुम्हे संभोंग की आदत नही है। मेरे भी लिंग पर और अन्दर जलन हो रही है इस का कारण भी एक ही है।

मैं ने भी लम्बे समय से संभोग नही किया है। दोनों रोज करेगे तो यह जलन कम या खत्म हो जायेगी। उस ने फिर उठ कर अपना चेहरा मेरे पेट पर रख दिया बोली मुझे ऐसे ही मजा आ रहा है। हम दोनों ऐसे ही पड़े रहे। घड़ी देखी तो रात के दो बज रहे थे मैंने उस से कहा कि सो लेते है ताकि सफर की थकान उतर जाए, उस ने हाँ में सर हिलाया और बगल में आ कर लिपट गई, मुझे भी उस की पकड़ अच्छी लग रही थी मैंने भी उसे बाहों में भर लिया और दोनों सो गये।

दूसरा दिन -------------

सुबह सो कर उठे तो सूरज निकलने को था हम पहाड़ की चोटी पर थे यहां से सूर्योदय का दृश्य बढ़िया दिखता था इस लिए कपड़ें पहन कर दोनों बाहर आ कर आकाश देखने लगे। अभी दिन निकलने में देर थी लेकिन आकाश पर लालिमा छा रही थी। थोड़ी देर में ही सूर्य निकल आया लाल आग का गोला लग रहा था। बड़ा सुन्दर दृश्य था मन ही नही भर रहा था लग रहा था कि देखते ही रहे। इस की फोटो जानबुझ कर नही खीचँ रहे थे। इस के बाद कमरे में लौट आये। तब तक चाय भी आ गई थी उस को नाश्ते का ऑडर कर के नहाने का मन किया, मैंने कहा कि मैडम जी पहले आप नहा ले मैं बाद में नहाता हूँ तो आदेश मिला की अकेले नहाने की तो मना है। इस लिए साथ ही नहाना पड़ेगा।

सारा बदन दर्द कर रहा था, कोई और शैतानी करने की हिम्मत नही थी। मैंने कहा कि चलों नहाने चलो, तो वह मेरे का साथ ले कर बाथरुम में आ गई। मैंने कहा कि पहले मैं तुम्हे नहलाता हूँ बाद में तुम मुझे नहला देना, आशा बोली कि यह काम हम एक साथ भी कर सकते है। टब में पानी भर गया था दोनों उस में घुस गये। एक दूसरें के शरीर पर साबुन लगा कर मलने के बाद गरम पानी में देर तक लेटे रहे, गरम पानी ने शरीर के दर्द को कुछ कम कर दिया फिर निकल कर एक दूसरें का शरीर तोलिए से पौछ कर सुखा कर एक-दूसरें को अन्डर गार्मेन्ट पहना दिये। कपड़ें पहन कर बाहर आ गये। यह एक नये तरह का अनुभव था इस में सेक्स की इच्छा नही हुई। लेकिन एक दूसरें के शरीर को अच्छी तरह से अनुभव किया।

नाश्ता करने के बाद पता किया कि आस-पास घुमने की जगह कहाँ-कहाँ है। पता चला कि थोड़ी दूर पर नदी है और प्राचीन मन्दिर है। पैदल ही जा सकते है। हम ने फैसला किया कि वहाँ हो कर आते है। रास्ता पता करके वहाँ के लिए निकल गए। पन्द्रह मिनट में वहाँ पहुँच गये। बहुत ही नयनाभिराम दृश्य था, नदी की कलकल करती आवाज दिल को शान्ति प्रदान कर रही थी। नदी का जल इतना साफ था कि तल में तैरती मछलियां साफ-साफ दिख रही थी कैमरा साथ ना होने का दूख हुआ। हम दोनों कपड़ें ऊँचे कर के पांव नदी में डाल कर बैठ गये ठन्ड़े पानी ने रात की सारी थकान दूर कर दी। काफी देर तक ऐसे ही बैठे रहे। फिर नदी के किनारे बने प्राचीन शिव मन्दिर में दर्शन करने गये।

मन्दिर में कोई पुजारी नही था, एक लोटा रखा था नदी से जल ला कर शिव लिंग पर चढ़ाया। बैठ कर माथा टेका। आशा मुझे यह सब करता देखती रही फिर उस ने भी वैसा ही किया। मन्दिर में आ कर मन को बड़ा चैन मिला। बाहर आ कर आशा ने कहा कि यहाँ की शान्ति मन की परेशानियों को खत्म कर देती है। मन करता है कि यहाँ पर ही बैठे रहे। मैंने कहा कि पहाड़ पर आ कर व्यक्ति के मन को शुकुन मिल जाता है। प्रकृति की गोद में जो चैन है वो कही नहीं है। दोनों हाथ में हाथ डाल कर घुमते रहे। हमें देख कर कोई अन्दाजा भी नही लगा सकता था कि हम एक दूसरें से एक हफ्ते पहले ही मिले है।

लगता था कि बहुत पुराने प्रेमी युगल है। मेरे मन की बात आशा ने भी पढ़ ली और बोली की क्या इस उम्र में प्रेम नही कर सकते? मैं हँस दिया वो बोली की यह हँसी किस बात पर है, प्रेम वाली या तुम्हारे मन की बात जान लेना। मैंने कहा कि दोनों पर है। वो नकली गुस्से में मेरी तरफ पलटी मैं ने कानों का हाथ लगा कर माफी माँगी। अगर कोई और हमें देखता तो यह कहता कि बच्चों जैसी हरकतें कर रहे है। लेकिन हमें दूसरों की परवाह ही कहाँ थी।

दो घन्टे से ज्यादा नदी पर बिताने के बाद हम कॉटेज लौट आए। कुछ समय के बाद खाना भी आ गया। पहाड़ पर घुमने के कारण भुख लग रही थी इस लिए चुपचाप खाना खा लिया।

मैंने खाना लाने वाले से पुछा कि यहाँ शराब की दुकान है तो उसने कहा कि सर जो भी आप को चाहिए बता दिजिए आ जाएगी मैंने उसे व्हीस्की या वोदका की एक बोतल के लिए बोल दिया। आशा बाद में बोली की शराब की क्या जरुरत थी? मैंने कहा कि थोड़ी सी हो तो एक-आध पैग से थकान उतर जाती है। वैसे तो मैं पीता नही हूँ लेकिन यहाँ आ कर मन कर रहा है।

उस ने शरारत से कहा कि एक शराब से मन नही भर रहा है क्या? मैंने कहा कि उस के शरुर को और बढ़ाना चाहता हूँ अगर वो नही चाहेगी तो नही पियेगे। उस ने कहा इस को उसी समय तय करेगे। अभी तो कुछ कहना गलत होगा।

मैंने उस से पुछा कि अब बदन दर्द का कैसा हाल है? उस ने कहा कि उसे पता है कि वह कैसे चल कर गई है, हिम्मत तो नही थी लेकिन तुम साथ थे इस लिए कोई चिन्ता भी नही थी। दर्द तो धीरे-धीरे ही जायेगा। मैंने कहा कि मेरे पास पैन-किलर है कहो तो दूँ। वह कुछ देर सोचती रही फिर बोली लाओ दे दो और एक तुम भी ले लो। मैंने कहा जो हुक्म सरकार, मेरी बात सुन कर आशा ने तकिया उठा कर मेरे को मारा, बोली कि जो कुछ हाथ में आयेगा उसे ही मार दूंगी।

मैं ने हँस कर उसे बाहों में ले लिया और कहा की सरकार कहने मैं गुलाम की क्या गलती है मेरी कमर पर मुक्कों की बरसात होने लगी मैं ने उसे और कस कर चिपका लिया। आशा की मुक्कों की बरसात तो रुक गयी लेकिन बाहर बरसात शुरु हो गई, बादल बड़े जोर से गरजने लगे। दिन में ही रात हो गयी। अंधेरा छा गया हम बाहर आ कर कुर्सियों पर बैठ कर इस का नजारा करने लगे। मैंने उसे चिड़ाने के लिए कहा कि तुम्हारे मुक्कों की बरसात से असली बरसात भी आ गई, उस ने आँखे तरेर कर मेरी तरफ देखा मैं ने आँख मार दी। उस के होंठों पर मुस्कान बिखर गई।

अंधेरे में पहाड़ की चोटी से बरसात को देखना एक नया अनुभव था दूर बिजली गिरती हूई दिख रही थी। पानी घमाघम बरस रहा था। इस कारण सर्दी बढ़ गयी। थोडी देर में हम दोनों कमरे में आ गये। ऐसे मौकों पर बिजली भी चली जाती है लेकिन रिसोर्ट ने शायद जेनसेट लगा रखा था। वह उस का इस्तेमाल कम ही करते है प्रदुषण के कारण। सोफे पर आशा मेरे से चिपट कर बैठी और बोली कि तुम मेरी किसी बात से नाराज तो नही हो। मैंने कहा कि ऐसा तुम्हे कैसे लगा, वो बोली की ऐसे ही पुछ रही हूँ। मैंने कहा कि अगर दुबारा पुछा तो तुम्हे मेरे मुक्कों की बरसात झेलनी पड़ेगी, यह सुन का वो बोली ना बावा ना ऐसा मत करना, तो मैंने कहा कि तुम ऐसा सवाल दुबारा मत करना।

मुझे लगता है कि जब तुम चुप रहते हो तो शायद मुझ से नाराज हो?

चुप रहना नाराज होने की निशानी तो हो सकती है लेकिन मैं तुम से नाराज होऊँ तो किस वजह से, कोई मेरे साथ अपना सब कुछ दांव पर लगा कर आई है और मैं उस से नाराज हो जाऊँ, यार ऐसा आदमी तो मैं नही हूँ। मैंने उसे किस करके पुछा कि मैं कब चुप था और कब उसे लगा कि मैं नाराज हूँ। उस ने कहा कि मन्दिर में मैं तुम्हारे साथ पुजा नही कर रही थी तब तुम चुप थे तो मुझे लगा कि नाराज हो।

मैं जब पुजा करता हूँ तो मन में मन्त्रों का उच्चारण करता हूँ इस लिए चुप था। तुम मेरे साथ पूजा नही कर रही थी तो तुम्हारे पास कोई ना कोई कारण होगा। मेरी शादीशुदा पत्नी भी मेरे साथ पूजा नही करती। यह उस की मर्जी है, मैं इस के लिए परेशान नही होता। भगवान के साथ सब का सीधा संबंध होता है। ऐसा मेरा मानना है। अब समझ आया मेरा चुप रहने का राज।

वह बोली की मेरे साथ इतना बुरा हुआ है कि मेरे विश्वास को धक्का लगा है। उसे दूबारा बनने में समय लगेगा। मैंने उस से कहा कि मैं उसे कभी इस बात के लिए मजबुर नही करुँगा, क्योकि मेरा मानना है कि श्रद्धा तो मन से निकलती है। उसे थोपा नही जा सकता।

मुझे साड़ी बहुत पसन्द है लेकिन मेरी बीवी साड़ी नही पहनती। शुरु के एक दो साल तो उसने साड़ी पहनी लेकिन इस के बाद सलवार-सुट पर दिल आ गया, मेरे कहने पर भी नही पहनती थी, हार कर मैंने कहना ही बन्द करा दिया। आज भी मुझे लगता है कि साड़ी में वह बहुत सुन्दर लगती है, लेकिन क्या किया जा सकता है मैंने ही उसे जीन्स और टॉप पहनने के लिए राजी किया। लेकिन अब नही कहता, थक गया हूँ। उस के व्यवहार से तो लगता है कि मैं जो चीज उस से करने को कहूँ वो जिद में उसे ही नही करती, चाहे किसी खाने की चीज बनाने की बात हो या कपड़ें पहनने की बात, अब मैं कहता ही नही, मेरे घर की मालकिन वो है मैं तो किराएदार की तरह रहता हूँ।

बहुत दुख होता है पहले गुस्सा भी आता था, लड़ाई भी करता था, लेकिन समझ मैं आया कि हर चीज वैसी नही हो सकती जैसी हम चाहते है, इस समझ से बहुत से झगड़ें सुलझ गये। पहले बहुत बोलता था अपने घर का बड़ा लड़का होने के कारण सब को निर्देश देने की आदत बचपन से है। फिर नौकरी में भी ऐसी ही पोजिशन है। लेकिन घर में आप की हैसियत आप निर्धारित नही कर सकते। मैं अपने घर में अपने खरीदे म्युजिक सिस्टम पर मन पसन्द गानें नही सुन सकता, केवल कार में ही सुन सकता हूँ। क्या-क्या बताऊँ सुनना चाहोंगी। मैं भावावेश में बोलता ही जा रहा था, तभी लगा कि आशा को अपना दुख सुनाने का क्या फायदा है?

यह समझ कर मैं चुप हो गया। उस ने मुझे बाहों से झकझोर कर कहा कि चुप क्यो हो गये? एक दोस्त के नाते मैं तुम्हारे दुख सुनने की हैसियत रखती हूँ। मैंने हँस कहा कि यार तुम तो मैंने दिल में ही बैठी हो, हर बात जो सोचता हूँ जान जाती हो, बड़ी खतरनाक बात है ये तो। उस ने हँस कर कहा कि सोचते ही क्यों हो मेरे को दे दो यह जिम्मेदारी। परेशानी खत्म हो जायेगी। यह कह कर वह मेरे गले में बाहें डाल कर लटक गई और मेरे होंठों से छेडछाड़ करने लगी। बाहर बरसात बड़ें जोर से हो रही थी मैंने उसे उसे उठा कर सोफे पर लिटा दिया और उस को किस करने लगा। उस की बाहें मेरी गरदन पर कस गई वह मेरे कान में बोली कि दुबारा ऐसा मत करना, अपने सब गम मुझे दे दो। मुझे गम उठाने का लम्बा अनुभव है।

शब्द अब खत्म हो गये और शरीर के अंग अब वाचाल हो गये। उन के आगे मैंने हथियार डाल दिये। आशा ने मेरे होंठों के चुम्बन ले ले कर उन्हें सुजा सा दिया, जब तक उस की सांस नही फुली वो चुम्बन रत रही। मैंने उसे रोका नही।

जब बाढ़ आ रही हो तो बांध बाधने से कोई फायदा नही होता। प्रवाह को अपना रास्ता बना लेने देना चाहिए। नहीं तो वह रास्ते का सब कुछ तहस-नहस कर देता है।

ठन्ड के कारण मैंने उसे उठा कर बेड में रजाई के अन्दर किया और खुद भी उस के बगल में लेट गया। दोनों चुप थे मैंने कहा कि अब हम में से कौन नाराज है। यह सुन कर वो खिलखिला कर हँस पड़ी और बोली कि तुम से बातों में जीता ही नही जा सकता, मैं भी हार मानती हूँ।

जो सजा देनी है दिजिए

मैंने कहा कि सजा तो मिलेगी ही, इन्तजार करो।

मुह पर जोर से तकिया पड़ा। मैंने भी अपने तकिए से पलट कर वार किया। बाहर पानी बरसने की जोरदार आवाज और कमरे के अन्दर तकिया वार की आवाज।

कुछ ही देर में दोनों थक गये। मैंने आशा से कहा कि अगर चाय पीनी है तो किचन में चाय का सामान रखा है। होटल से चाय ऐसी बारिश में आनी मुश्किल है। वह बोली की चलो आज इस की किचन को देखते है। किचन में चाय, चीनी और सुखे दुध के पैकेट रखे थे। आशा ने चाय बना कर एक कप मुझे दिया और अपना कप ले कर कमरे में आ गई। दोनों जने रजाई में घुस गये। ठन्ड़ में गरम चाय का मजा ही और कुछ है। चाय के साथ फिर से बातें शुरु हो गई। उस ने कहा कि मैं कभी-कभी कुछ ऐसा बोल जाऊँ जो तुम्हे अच्छा ना लगे तो मेरे से कह देना मन में मत रखना। मैंने कहा कि मन में किसी और बात की जगह कहाँ है वहाँ तो तुम बैठी हो। आशा ने हँस कर कहा कि तुम्हारी यही बातें बनाने की आदत ने तो मुझे पटा लिया है।

मैंने कहा कि इस की चिन्ता करने की जरुरत नही है। अगर कभी ऐसी बात होगी तो मेरे से पहले शायद तुम खुद जान जाओगी। उस ने सहमति से सर हिलाया। मैंने कहा कि डर तो मुझे है कि मैं कभी-कभी कंट्रोल से बाहर हो जाता हूँ, पता नही उस समय तुम कैसे रियेक्ट करोगी? मुझे इस बात की चिन्ता है। उस ने कहा कि देखेगे अभी से उस की चिन्ता करना व्यर्थ है। मैं ने भी सर हिलाया। चाय पीने से शरीर में गर्मी आ गई दोनों से फिर से एक दूसरें को चुमना शुरु कर दिया। दो दिन से हमारी प्यार करने की इच्छा खत्म नही हो रही थी, और बढ़ गई थी।

कमरे से निकल का बालकोनी में खड़े हो कर बरसती बारिश का आनंद लेते रहें। पहाड़ो पर रात में दूर कही जलती लाईट बड़ी मनोहर लगती है। लगता है कि कोई तारा टिमटिमा रहा है। बारिश में तो यह दृश्य और लुभावना बन जाता है। इस से रोमांटिक माहौल हो ही नही सकता। हम दोनों इसी माहौल में डुबे हुऐ थे। आशा ने मेरी बांह पकड़ कर कहा कि तुम्हें पहाड़ अच्छे लगते है, मैंने कहा कि मेरा बस चले तो मैं यहां घर बना कर रह जाऊँ।

शहर की भागमभाग से तो यहां का शान्त जीवन बढ़िया लगता है। लेकिन आदत तो शहर की भागमभाग की पड़ी हुई है। ठन्ड़ बढ़ गई थी। हमनें गरम कपड़ें पहनें नही थे इस लिए हमें फिर से कमरे के अन्दर आना पड़ा। खाना खाने का समय हो गया था रेस्टोरेन्ट को फोन कर के खाना भेजने को कहा और पुछा कि जो ऑडर दिया तो वह आया है या नही तो उस ने कहा कि सर आ गया है उस को भी साथ में भेजता हूँ।

वेटर खाना और बोतल, गिलास सहित रख कर चला गया। खाना खाने के बाद दोनों व्हीस्की की बोतल खोल कर बैठ गये। गिलास में ड्रिक डालने के बाद सोड़ा डालने के बाद सिप लेने लगे। आशा बोली की जहाँ तक मुझे पता है कि आप शराब नही पीते, अब क्या हो गया है? मैंने कहा कि रोज नहीं पीता लेकिन कभी मौका पड़ता है तो मैं पी लेता हूँ। आज एक तो सर्दी और मौका है तो ले लेते है। कभी कभी नियम तोड़ लेने चाहिए।

हम दोनों सिप लेते रहे। व्हीस्की वैसे भी धीरे-धीरे चढ़ती है। हम पर भी धीरे-धीरे शरुर चढ़ रहा था। नशे में होता ये है कि आदमी रिलेक्स हो जाता है। और सच बोलने लगता है। हम दोनों भी एक दूसरें से सच ही बोल रहे थे। दो पैग पीने के बाद हम दोनों पुरे शरुर में थे। आशा ने कहा कि आज मैं तुम्हे अपने बारे में सब बता देना चाहती हूँ। मैंने कहा कि अब ऐसा क्या है कि जो मुझे बताना चाहती हो। है कुछ जो तुम्हें पता होना चाहिए।

मैंने कहा कि अगर अतीत की कोई बात है तो मैं नही सुनना चाहता, और कुछ है तो कह लो। उस ने कहा कि अब तो कहने को कुछ बचा नही। लेकिन कुछ है जो तुम्हे पता होना जरुरी है। बोली की कई साल पहले स्कूल में मेरे साथ एक टीचर पढ़ाता था, उस के साथ थोड़ा सा लगाव सा हो गया था। लेकिन वह तो किसी और ही चक्कर में था। मैंने अपने पैर वापस खिचं लिए थे। मुझे लगा कि तुम्हे पता चले और मैं तुम्हारे सामने झूठी पड़ु इस से बढिया है कि पहले ही बता दूं। मैंने कहा कि सब का अतीत होता है, मेरा भी है तुम्हारा भी होगा। जो बीत गया वो बीत गया। मैं ऑफिस में काम करता हूँ। 10 घन्टे किसी के साथ काम करता हूँ तो नजदीकी हो जाती है लेकिन मैंने अपनी सीमा बांध रखी थी।

अगर कभी अतीत से कुछ आ गया तो देख लेगे। आज जो है पहले उस का आनंद लो, आगे तो अभी और कठिनाईयां आयेगी, अगर उन की सोचते रहे तो आज का भी मजा चला जायेगा।

मैंने यह कह कर उसे अपनी बांहों के घेरे में लिया। उस के होंठों पर अपने लब रख दिए। उस ने अपनी बांहे मेरे गले में डाल दी। फिर उस की आँखों से आँसु गिरने लगे। मैंने ने आँसु पी लिए। मुझे लगा कि आशा को बोलने देना चाहिए, इस लिए मैंने उसे कन्धे से पकड़ कर अपने पास बिठा लिया। मैंने कहा कि जो तुम्हारे मन है वो तुम बोल दो, मैं सब सुनना चाहता हूँ। उस ने अपना सर मैरे कन्धे पर टिका दिया और बोली की यही एक बात थी जो मेरे मन को खाये जा रही थी कि कल किसी ने तुम्हे बताई तो तुम मेरे बारे में क्या सोचोगें? मैं सब कुछ बर्दाश्त कर सकती हूँ लेकिन तुम्हारे मन में अपने लिए शक नही सह सकती।

मैंने उसे अपने हाथ ने अपने से सटा कर कहा कि हम तुम जीवन के मध्य काल में एक दूसरें से मिले है। यौवन तो बीत चुका है। यौवन में किसी के प्रति आकर्षण आम बात है, तुम भी हुई होगी और मैं भी हुआ हुँगा। मेरे साथ तो परिवारिक जिम्मेदारियां इतनी थी कि किसी के प्रति आकर्षित होने का मौका ही नही मिला। मैं तो इस मार्ग का नया पथिक हूँ, तुम अपने बारे में बताओं, आशा ने कहा कि मेरी शादी हुई तो मुझे भी अपने पति से ही आकर्षण था, लेकिन वह आगे बढ़ा ही नही। उन के मुझे छोड़ देने के बाद मैंने समय बिताने के लिए पढ़ाना शुरु कर दिया। वहां एक शिक्षक का व्यवहार मेरे प्रति सहानुभूतिपूर्ण था। शुरु में तो मैं उसे इग्नोर करती रही, लेकिन मुझे भी सहानुभूति की जरुरत थी। हमारे में नजदीकीयां बढ़ गई। हम दोनों स्कूल में अपना समय एक साथ बिताते थे।

एक दिन मैं स्टाफ रुम में पढ़ा कर आ रही थी तो मेरे कानों में आवाजें पड़ी, उन में से एक आवाज मेरी परिचित थी। मैंने अन्दर ना जा कर दरवाजे के पीछे से सुनना चाहा। मेरा मित्र किसी से मेरे बारे में बात कर रहा था कि यार टाईम पास करने के लिए है। शादी थोड़ी ना करनी है। अभी हाथ नही रखने दे रही है। कुछ दिनों में यह भी हो जायेगा। मैं यह सुन कर धक्क से रह गई। मेरे पेरों के नीचे से जमीन निकल गई। लेकिन मैंने उस समय कुछ नही किया, स्टाफ रुम के बाहर से ही चली गई। दूसरें दिन मैंने उस से मिलने के बाद पुछा कि उस का मेरे बारे में क्या ख्याल है, उस ने कहा कि मैं उस की दोस्त हूँ और उसे मुझ से लगाव है।

मैं उस से पुछा की क्या वह मेरे से एक विवाहिता से विवाह करेगा। उस का जबाव था कि इस बारे में उस ने अभी कुछ सोचा नही है। घर वालों की भी कुछ इच्छा है। मुझे अपना जबाव मिल गया था। मैंने उस से एक दूरी बनानी शुरु कर दी। फिर मेरे कानों में किसी ने कहा कि वह मेरे बारे में कुछ हल्की बात कर रहा था। मैं इस बात को बढ़ाना नही चाहती थी क्योकि मेरा ही नुकसान था। मैंने उस स्कूल को छोड़ दिया। फिर में कभी उस से नही मिली। ना मैंने उस से कुछ और किया था। सिर्फ बातचीत थी।

इस घटना के बाद मैंने हर पुरुष से एक निश्चित दूरी बना के रखनी शुरु कर दी। तुम पहले हो जिस ने मुझे छुआ है। तुम्हें जब देखा नही था सिर्फ फेसबुक पर परिचय था तभी मन को लगा था कि मेरे पसन्द का पुरुष मिल गया है, उस दिन उस पार्टी में आप को देख कर अपने आप को रोक नही सकी और तुम्हारे पास पहुँच गई। बाकी तो तुम्हें पता ही है।

यह सब कहने के बाद उस के चेहरे पर एक अलग तरह का सन्तोष था, मैंने उस से कुछ नही कहा सिर्फ उसे अपनी छाती से चुपका लिया, वो भी मेरी छाती में दुबक गई। ना जाने कितनी देर तक हम दोनों ऐसे ही बैठे रहे।

मैंने उस गोद में उठा कर बेड पर लिटा दिया और उस से पुछा कि बदन का दर्द कैसा है, उस ने कहा कि हो रहा है लेकिन मीठा-मीठा है। तुम्हारी क्या हालत है। मैंने कहा कि कमर में काफी दर्द है। दवा का असर कुछ देर ही रहा है। अब लग रहा है कि रजाई में घुस कर सो जाऊँ। आशा ने कहा कि आज कुछ नही करते थे, आराम करते है, या जब नींद खुलेगी तो सोचेगें। मैंने कहा कि यही सही रहेगा। हम दोनों रजाई में लिपट कर सो गये। आराम की जरुरत दोनों को थी। ठन्ड़ भी थी बरसात भी हो रही थी। नींद भी आ ही गई।

तीसरा दिन ---------------

सुबह जब मेरी आँख खुली तो पांच बज रहे थे, पानी बरसने की आवाज आ रही थी। ठन्ड़ भी काफी थी। मैं उठा और किचन में जा कर दो कप चाय बना कर ले आया। आशा अभी भी सो रही थी। मैंने उसे हल्के से जगाया। वह आँखे मल कर उठ कर बैठ गई। बोली क्या समय है मैंने कहा कि पांच बजे है। बोली कि इतनी जल्दी कैसे उठ गये? मैंने कहा कि अन्दर की घड़ी का अलार्म बज गया था इस लिए जग गया और चाय बना लाया। चाय अकेले पीने का मन नही था सो इस लिए तुम्हें जगा लिया।

उस ने कहा कि अगर अकेले चाय पी लेते तो मैं तुम्हें बड़ा मारती। मैंने कहा कि मैडम इस लिए तो तो आप को इतनी जल्दी उठा दिया है। दोनों चाय पीते रहे, वो बोली की रात का नशा अभी भी है मैंने कहा कि नहाने के बाद शायद चला जायेगा। उस ने कहा कि अब शराब नही पीनी। मैंने कहा जैसे आपकी आज्ञा महाराज, उस ने खाने वाली नजरों से मुझे घुरा। चाय के बाद बालकॅानी में बैठ कर बारिश का आनंद लेने लगे।

वहाँ से उठ कर भी कमरे में आ गये। चाय पीने के बाद रात की खुमारी उतर गई थी। अंधेरा अभी था, हम ने फिर से रजाई की शरण ली। चाय की गरमी ने फिर से हमारे मन पर असर डाला और फिर चुम्बनों का दौर शुरु हो गया। यह अगले दौर की तैयारी थी। अब दोनों को सेक्स की जल्दी पड़ी थी, मैंने उस के कपड़ें उतारे और अपने भी कपड़ें उतार दिये। थोड़ी देर एक दूसरें के शरीर से शरीर रगड़ते रहे। इस के बाद संभोग शुरु हो गया। दस मिनट में तुफान चरम पर पहुँच गया। दोनों हाफंते हुए एक दूसरें की बगल में पड़े थे। सेक्स की पहली डोज दोनों ने ले ली थी।

मुझे भी लगा कि आज बाहर जाना नही हो पायेगा मौसम खराब था। दिन में कई दौर चल सकते थे इस लिए शक्ति को बचा कर रखना सही रहेगा। लेकिन आधा घन्टे बाद ही जैसे ही आशा ने मेरी तरफ पीठ की मेरे लिंग ने उस के कुल्हों से टकरा कर दुबारा तनाव ले लिया। मैंने आशा की टागों के बीच जगह बना कर लिंग को योनि में जाने दिया, आशा ने भी अपनी टागें मोड़ कर पेट की तरफ कर ली अब मेरे को अपना काम करने में कोई बाधा नही थी। मैं धीरे-धीरे धक्के लगाता रहा, वह भी कभी कभी जबाव में कुल्हे हिला देती थी। काफी देर तक इस का आनंद लेते रहे। बहुत देर बाद उफान उतरा। इस बार बदन में जो दर्द हुआ उस ने पिछले तनाव को दूर कर दिया।

आशा ने कहा कि कुछ तो रुका करो। सारी चद्दर गिली हो गई है। अब सोओ गिले मे।

मैंने कहा कि तुम्हारे पिछवाड़े को टच कर के मेरे लिंग से रहा नही गया। अब मैं क्या करुँ। उस की हँसी निकल गई। हम दोनों एक तरफ हो कर लेट गये। सोने का समय नही था, इस लिए उठ कर बैठ गये। मैंने पुछा कि और चाय पीनी है तो आशा ने कहा कि तुम बैठों मैं चाय बना कर लाती हूँ और यह कह कर वो किचन में चली गई। थोड़ी देर में चाय लेकर आ गयी। बारिश अभी भी हो रही थी, मैंने चाय पीते हूए पुछा कि अभी नहाना है या थोड़ी देर में नहा ले, उस ने कहा कि पहले चाय तो पी ले उस के बाद नहाने की भी सोचेगे, इत्नी जल्दी क्या है? मजे से चाय की चुस्कियां लेते रहे।

पहाड़ की बारिश का पता नही है कि कब शुरु हो जाये और कब खत्म हो। चाय खत्म होने के बाद आशा ने कहा कि अब कमर के दर्द का क्या हाल है, कमर को तो तुम आराम लेने नही दे रहे हो। मैंने कहा कि जो तुम्हारा हाल है वही मेरा है हम शरीर को आराम लेने नही दे रहे है। ऐसे कैसे चलेगा। मैंने सर हिलाया। उस ने कहा कि सर हिलाने को नही कहा है, जवाब मागाँ है। मैंने से कुछ सोच कर कहा कि हमें अपने उपर रोक लगानी पड़ेगी।

आशा बोली की दिन में प्यार करना बन्द, नही तो पुरी छुट्टी बेकार हो जायेगी, दोनों जने बिस्तर में पड़े नजर आयेगें। मुझे उस की बात सही लगी, मैंने कहा कि तुम्हारी बात सही है ऐसा ही करते है, और आज सारे दिन लेट कर आराम करते है इस से शरीर की मासंपेशियों को आराम मिल पायेगा। आशा को मेरी बात अच्छी लगी, उस ने मेरा हाथ दबा कर सहमति जताई।