अधेड़ उम्र का प्रेम

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मेरी बात पर कोई कुछ नही बोला, काफी देर बाद आशा ने चुप्पी तोड़ी और कहा कि दीदी को मैंने समझाया है कि मुझे बस तुम्हारे साथ की तम्मना है नही तो मैं मर जाऊँगी। मैरे जीवन में एक तुम ही आशा की किरण हो, अगर यह किरण भी मुझ से छीन ली गयी तो मैं अपना जीवन खत्म कर लूगी। पत्नी ने कहा कि मुझे इस संबंध से कोई परेशानी नही है लेकिन मेरे जीवन का तथा मेरी बेटी के जीवन का भविष्य क्या होगा? मैंने कहा कि इस की चिन्ता मत करो मैं हूँ इस सब की चिन्ता करने के लिए, कुछ नही बदल रहा है सिर्फ आशा मेरे जीवन में साथी की तरह रहेगी।

मैं तुम्हारे साथ ही रहूँगा। कभी-कभी आशा के पास चला जाया करुँगा। आर्थिक स्थिति के विषय में किसी को कोई चिन्ता करने की जरुरत नही है। वह मेरी जिम्मेदारी है। मैंने पत्नी के हाथ अपने हाथ में लेकर कहा कि तुम मेरी हो इस लिए तुम्हारी जिम्मेदारी मेरी है। तुम्हारें मेरे मन नही जुड़ पाये है इस का दोष किसी पर नही डाला जा सकता है शायद हम दोनों एक दूसरें को समझ ही नही पाये है लेकिन इस से यह बात कम नही हो जाती कि हम दोनों पति-पत्नी है और मैं तुम्हे अपने से अलग नही कर सकता हूँ।

आशा का साथ मेरे लिए इस लिए जरुरी है क्योकि वह मेरे मन को समझ पाती है। उस को भी एक साथी की जरुरत है समाज के बने खांचे में तो मेरा आशा का संबंध नही आता लेकिन कुछ संबंधों को कोई नाम नही दे सकते है। यह ऐसा ही है। यह कह कर मैं चुप हो गया। एक गहन सन्नाटा छा गया।

पत्नी ने चुप्पी तोड़ी और कहा कि मैं तुम्हारे मन के साथ नही जुड़ पायी यह मेरी खराबी है मुझे पता है कि तुम्हें जब सहारे की जरुरत होती है तब मैं अलग रहती हूँ शायद मैं जीवन को कुछ और ही समझ बैठी थी। अब जब तुम ने वह सहारा बाहर ढुढ़ लिया है तो मैं क्या कर सकती हूँ? आशा ने मुझे बहुत सी बातें बतायी है, मैं क्या कहुँ मुझे समझ में नही आ रहा है? तुम दोनों ने मेरे सामने इसे माना यह भी बड़ी बात है लेकिन मैं यह कैसे स्वीकार करुँ कि मेरे पति की एक प्रेमिका है। इस बात को पचा पाना मेरे लिए मुश्किल हो रहा है। एक बात मैं समझ सकती हूँ कि तुम्हें आशा से प्यार हो गया है नही तो तुम को जितना मैं जानती हूँ तुम किसी संबंध में इतने आगे नही जाने वाले हो।

मैं सोच रहा था कि इतना जल्दी यह सब हो जायेगा मुझे इस की आशा नही थी लेकिन अब जब हो ही गया है तो उस का सामना करना पड़ेगा। दो-दो जिन्दगीयों का सवाल था।

कमरे में मौन फिर से पसर गया। कभी कभी मौन ही सबसे ज्यादा आवाज करता है। आशा की आँखों से आँसु बह रहे थे। मैंने चाहा कि मैं उन्हे पोछ दूँ लेकिन फिर मन ने कहा कि अभी इन्हे बहने दो। तभी मेरी पत्नी उठी और उस ने अपनी साड़ी के पल्लू से आशा के आँसु पोछ दिये और कहा कि तुम्हें रोने के लिए इन्होनें पसन्द नही किया है। तुम्हारी आँख में आँसु इन की और मेरी असफलता है ऐसा मैं होने नही दूँगी। अगर भाग्य में ऐसा ही होना लिखा था तो हम सब कुछ नही कर सकते। यह कोशिश कर सकते है कि बची हुई जिन्दगी सुख से बीता ले। तुम्हें कोई चिन्ता करने की जरुरत नही है अब तुम भी मेरी जिम्मेदारी हो गयी हो। इन की खुशी में ही मेरी खुशी है सो तुम भी मेरी खुशी का हिस्सा हो। बेटी इस सब को कैसे समझेगी यह देखना होगा, लेकिन हम सब को सब्र रखना पड़ेगा। यह कह कर वह चुप हो गयी।

कमरे में फिर से सन्नाटा छा गया। कोई कुछ बोलने के लिए तैयार नही था। सब के पास बहुत कुछ बोलने को था लेकिन कोई बोलना नही चाहता था।

फिर अचानक वह ऊठी और चाय बनाने की कह कर कमरे से निकल गयी। कमरे में अब मैं और आशा रह गये। आशा उठ कर मेरे पास आ कर बैठ गयी और रोने लगी। मैंने उसे रोने से रोका तो उस ने कहा कि मेरे से तुम से दूरी बर्दाश्त नही हो रही थी आज जाने क्या मन में आया कि दीदी से मिलने चली आई। बातों बातों में मेरे वजन बढ़ने की बात चली तो दीदी बोली कि क्या बात है शरीर भर गया है? शायद मियां जी काफी प्यार कर रहे है? इस बात पर मेरा धेर्य जबाव दे गया और मैंने सब कुछ बता दिया। कुछ देर तक तो दीदी शॅक में बैठी रही फिर उठ कर तुम्हें फोन कर दिया। मुझ से कुछ नही कहा। मैंने उस से कहा कि यह तो एक ना एक दिन तो होना ही था सो आज हो गया। इतना कह कर मैं चुप हो गया समझ नही आ रहा था कि क्या बोलुँ?

थोड़ी देर में पत्नी चाय लेकर आ गयी। सब चुपचाप चाय पीने लगे तो उस ने कहा कि इतनी चुप्पी क्यों है कोई मर तो नही गया है। उस की बात पर हम सब की हँसी छुट गयी। माहौल थोड़ा सा हल्का हुआ तो तनाव भी छट गया। चाय में स्वाद लौट आया। फिर जो बातें शुरु हुई तो शाम तक चलती रही। रात के खाने के बाद मैंने कहा कि मैं आशा को छोड़ कर आता हूँ तो पत्नी ने कहा कि कल सुबह ही आना पता नही यह रात को क्या कर ले?

मैं कार में आशा को बिठा कर उस के घर के लिए निकल पड़ा लेकिन मुझे अपनी पत्नी की चिन्ता भी सता रही थी कि क्या पता इस सब के बाद वह कैसे रियेक्ट करेगी। आशा के घर पहुँच कर मैंने अपने घर पर फोन करा तो बेटी ने फोन उठाया और कहा कि मम्मी से बात करनी है मैंने कहा कि वह कहाँ है तो पता चला कि रसोई में काम कर रही है। उस ने आ कर फोन पर कहा कि मेरी चिन्ता मत करो जहाँ हो वहाँ सभालो। यह सुन कर मुझे चैन आया।

आशा के पास बैठा तो वह मुझ से लिपट गयी और बोली कि तुम मुझे माफ कर दो मैंने बिना तुम से पुछे यह कदम उठा लिया। मैंने उसे अपने से अलग किया और अपने पास बिठा कर कहा कि अब मैं क्या कहुँ जो हो गया वह होना ही था। ऐसा होगा सोचा नही था। तुम बताओ तुम्हारी दीदी ने क्या कहा तुम से। आशा बोली की पहले तो दीदी चुपचाप बैठी रही, फिर मुझ से बोली की तुम्हारी तरह की औरत इन को चहिए थी। जो इन के मन को समझ सके इन से बात कर सके मेरे से तो यह सब होता नही है।

तुम शायद कर पायोगी। आशा ने कहा कि दीदी भी आप को बहुत प्यार करती है यह आज पता चला। लेकिन उन के प्यार का तरीका अलग है शायद। मैंने उसे आंलिगन में ले कर कहा कि अब किस बात की चिन्ता है जो होना था सो हो गया देखते है आगे क्या होगा? आशा भी मुझ से लिपट गयी। दोनों के होंठ एक दूसरें से चिपक गये काफी दिनों से दोनों से एक दूसरें का स्वाद नही लिया था। जब सांस फुलने लगी तब दोनों अलग हुए। मैंने उसे अलग किया और उस के चारों तरफ घुम कर देखना चाहा कि वह कहा से मोटी हो गयी है। मेरी इस हरकत पर आशा ने कहा कि क्या देख रहे हो? मैंने हँस कर कहा कि देख रहा हूँ कि कहाँ से वजन बढ़ गया है? आशा ने कहा कि ऊपर का साईज बढ़ गया है और यह बात दीदी ने पहचान ली हम औरतों की नजर बड़ी तेज होती है इस बात में।

मैं ने हाथ बढ़ा कर उस के स्तनों को छुना चाहा तो वह छिटक कर दूर खड़ी हो गयी। और बोली की यह नाराज है आप से । मैंने कहा कि भई नाराजगी की वजह तो पता चलनी चाहिए। इस पर आशा कुछ लेने के लिए चली गयी। जब लोटी तो उस के हाथ में ब्रा थी। उस ने ब्रा को मेरे हाथ में दे कर कहा कि पहले यह सही आती थी अब नही आती चैक करा तो पता चला की साईज दो नम्बर बढ़ गया है सब आप की करामत है इतनी सारी ब्रा बेकार हो गयी है क्या करुँ? मैंने कहा कि नये साईज की नयी खरीद लो। उस ने कहा कि मैं सोच रही थी कि कुछ दिन इन्तजार कर लेती कि शायद साईज और ना बढ़ जाये।

मैंने कहा कि मैडम मेरी राय में तो साईज जो बढ़ना था वह बढ़ गया है। पहले तो इन की मालिश नही होती थी अब एक हफ्ते में खुब मालिश हुई थी इस लिए साईज बड़ा हो गया है। दो ले लो कुछ दिन देख कर और भी खरीद लेना। मेरी बात सुन कर आशा ने ब्रा मेरे गले में डाल कर कहा कि तुम्हारे पास हर बात की जवाब है हर समस्या का हल है। कुछ ऐसा है तो तुम्हें नही आता। मैंने कहा कि हाँ है ना मुझे औरतों का मन पढ़ना नही आता।

मैंने आशा से कहा की वह एक इन्चीटेप ले कर आये, आशा इन्चीटेप ले कर आ गयी। मैंने उस के बाद उस का ब्लाउज उतार दिया और उस की ब्रा भी उतार दी, आशा हैरानी से मुझे देख रही थी। मैंने उस के स्तनों के नीचे से उस का नाप लिया, इस के बाद उस के स्तनों के उपर से नाप ले कर देखा और आशा से कहा कि उस का नया साईज 36 है उस की ब्रा उठा कर साईज देखा तो वह 32 की थी। मेरे को आश्चर्य हुआ कि इतना अन्तर कैसे हो गया दो सप्ताह में।

मेरी बात पर आशा ने कहा कि आप को हर बात कैसे पता है? मैंने उस के सर पर चपत लगा कर कहा कि मैडम में शादीशुदा हुँ काफी सालों से पत्नी को ब्रा से परेशानी होती थी तो उस के सही साईज की ब्रा ढुढ़ने में मदद की थी पहली सही साईज की बढियां ब्रा मैंने ही ला कर दी थी। मेरी बात पर वह हँसने लगी। मैंने उसे अपने पास किया और उस के स्तनों को हाथों से सहलाने लगा। उस ने अपने स्तन हाथों से ठाप लिये और कमरे से निकल गयी। उस की यह हरकत मेरी समझ में नही आयी।

कुछ देर में वह ब्लाउज पहन कर आ गयी। इस बार उस के उरोज भारी लग रहे थे। उस ने पास आ कर कहा कि अब बताओ सही साईज है या नही? मैंने देख कर कहा कि लगता है कि सही साईज है। इस पर वह बोली कि छुट्टीयों से आने के बाद उसे ब्रा पहनने में परेशानी हो रही थी सो एक दिन उस ने साईज चैक किया तो पता चला कि साईज बड़ा हो गया है तब वह नये साईज की ब्रा लायी थी लेकिन आज तो पुरानी ब्रा पहन कर गयी थी लेकिन दीदी ने पहचान लिया कि ब्रैस्ट का साईज पहले से बढ़ गया है। साड़ी के नीचे से भी उन्होने यह सब देख लिया था।

मैंने उसे हाथ पकड़ कर अपने से लिपटा कर कहा कि तुम इतने सालों तक कुँवारी सा जीवन जीती रही थी तुम्हें क्या पता कि शादी के बाद शरीर में क्या बदलाव आते है तुम्हारी दीदी तो शादी के बाद एकदम मोटी हो गयी थी सो उस ने इस बाद को एकदम पकड़ लिया। आशा ने कहा कि तुम सही कह रहे हो मेरा तो कुंवारापन अभी खत्म हुआ है सो मुझे पता नही था शरीर भी कई जगह से भर सा गया है। यह सब बदलाव मेरी समझ में नही आ रहे थे आज जब तुम ने समझाया तो मेरी समझ में आया कि मैं तो कब से इस बदलाव के लिए तड़फ रही थी। मेरे हाथ उस के कुल्हों पर थे उन की मांसलता बढ़ गयी थी, मेरे हाथ उसे महसुस करने के लिए मचल रहे थे। लेकिन आज आशा आन वाली विरहिका के रुप में थी मेरा क्या होना था यह मुझे भी नही मालुम था?

मैंने कपड़ें बदले और सोने के लिए बेड पर लेट गया। बुरी तरह से थका था सो लेटते ही सो गया। सुबह आँख खुली तो देखा कि आशा मेरे से लिपट कर सो रही थी। सोती हुई वह बहुत मासुम लग रही थी। मैं उसे एकटक देखता रहा। तभी उस की नींद भी खुल गयी और वह उठ का बैठ गयी। मुझे घुरते देख कर बोली की इतना ध्यान से क्या देख रहे हो कभी देखी नही हुँ सोती हुई। मैंने कुछ नही कहा तो उस ने मेरे गले में बांहै डाल दी और मेरे होंठों को चुम कर कहा कि चुप क्यो हो? मैंने कहा कि कुछ नहीं ऐसे ही उस ने कहा कि कुछ तो कारण होगा? रात को भी चुपचाप सो गये। मैंने कहा कि बहुत थका हूआ था। शरीर से ज्यादा मानसिक तौर पर इस लिए कब सो गया पता ही नही चला? मेरी बात सुन कर उस ने कहा कि क्या बात है मुझे क्यो नही बताते? मैंने कहा कि कुछ खास नही है, कामकाज की बातें है तुम जानकर क्या करोंगी। वह चुप हो गयी।

हम दोनों कल की बात पर कुछ ज्यादा बात नही कर रहे थे। दोनों को इस का कारण पता था। सुबह अभी हुई नही थी, मैंने उसे बाहों में भर कर कहा कि कल तुम्हारे साईज की जाँच अधुरी रह गयी थी चलो उसे पुरा कर लेते है मेरी बात सुन कर उस ने नकली गुस्से में मुझे मारा और कहा कि तुम्हारी चीज है, मैं क्या करुँ? उस ने साड़ी पहन रखी थी मुझे लगा कि रात में इस की क्या जरुरत थी उस ने कहा कि मैं भी थक गयी थी इस लिए बिना कपड़ें बदले ही सो गयी। मैंने उस के उरोजों को ब्लाउज के उपर से सहलाना शुरु किया, मेरे हाथों को लगा कि उस के उरोज ज्यादा भर गये है ।

ब्लाउज के बटन खोल कर के उसे उतार दिया अन्दर की बॉड़ी कलर की ब्रा के हुक भी खोल कर उसे भी निकाल दिया। अब भरे हुए उरोज तन कर खड़े थे। मेरे होंठ उन के निप्पलों से खेलने लगे। मैंने मुँह खोल कर उन को निगलने की कोशिश की तो वह मुँह में नही समाये। उन को चुमने के बाद दांतों से काटने के कारण आशा के मुँह से आहहहहहहहहहहहह उहहहहहहहहहहहहह निकलने लगी थी। उस के हाथ भी मेरी छाती पर फिर रहे थे। मेरे निप्पल उस ने नाखुनों से काट लिए अब कराहने की बारी मेरी थी। मेरी कमीज और बनियान आशा ने उतार कर फेक दी।

उस के होंठ मेरी छाती को बुरी तरह से चुम रहे थे। मैं उस की पीठ पर हाथों से मसाज कर रहा था। उस ने मेरे कान में कहा कि पता लगा कितने बड़े हुए है? मैंने कहा कि लगता है 2 साईज बढ़ गया है। उस ने कहा कि तुम्हारी करामात है इतने सालों में जो नही बड़े थे तुम ने एक हफ्ते में उन का साईज बढ़ा दिया। मैंने कहा कि इस की तो शाबाशी मिलनी चाहिए थी। उस ने कहा कि सारी ब्रा छोटी हो गयी है नई खरीद कर देनी होगी, मैंने कहा कि बन्दा कल ही ला कर देता है। यह कह कर मेरे दांत उस की गरदन के नीचे गड़ गये। उस ने अपने नाखुन मेरे मांस में धसा दिये।

हम दोनों को उत्तेजना के कारण दर्द का अहसास नही हो रहा था। मैंने उस के पेटीकोट को उतार कर पेंटी को उतार दिया तथा उसे अपने मुँह के उपर बिठा लिया अब उस की योनि मेरे मुँह पर थी और मैं उसे चख रहा था। उस के दोनों हाथ दीवार पर टिके हुए थे। मेरी जीभ उस की योनि में घुस कर रस पान कर रही थी। वह कांप रही थी। हिल रही थी लेकिन मैंने उस के कुल्हें कस कर हाथों से पकड़ें हुए थे। जब मुझे लगा कि अब वह कभी भी झड़ सकती है तो मैंने उसे नीचे लिटा कर उस में प्रवेश किया। उस के मुंह से सिसकियाँ निकलने लगी। वह कराह रही थी।

सर को इधर-उधर पटक रही थी। फच-फच की आवाज कमरे में भर गई। तुफान जोर से चल रहा था तभी अचानक लावा फट गया और सब कुछ शान्त हो गया। मैं आशा पर लेट गया। जब कुछ होश आया तो उस के ऊपर से हट कर उस की बगल में लेट गया। दोनों कुछ बोल नही रहे थे। शायद कुछ बोलने के लिए था भी नही। कुछ देर बाद आशा ने मुझे अपनी पेंटी दी और कहा कि अपने को पोछ लो मैंने उसे ले कर अपने लिंग को साफ कर के उसे पेंटी को वापस कर दिया। आशा ने पुछा कि क्या अभी भी दोपहर की बात सोच रहे हो तो मैंने सर हिलाया और कहा कि कुछ साफ नही है अगले कुछ दिनों में स्थिति स्पष्ट हो पायेगी तब तक चिन्ता तो रहेगी। मेरी बात पर आशा चुप रही।

मैंने गम्भीरता को खत्म करने के लिए कहा कि साईज तो तुम्हारा वाकई में बढ़ गया है इस के लिए तुम्हे मुझे धन्यवाद देना चाहिए औरतें तो अपना साईज बढ़ाने के लिए मरी जाती है ढेर सारे उपाय करती है तुम्हारा तो बिना कुछ करे ही बढ़ गया है। इस पर उस ने मुक्का मेरी छाती में जड़ दिया। बदले में मैंने उसे अपने से लिपटा कर चुम लिया। हमारी नकली लड़ाई खत्म हो गयी। उस ने अपना मुँह मेरी छाती में छुपा कर कहा कि अब तुम ही जानो सो करना मैं कुछ नही करुँगी। मैंने कुछ नही कहा और उसे अपने से चुपकाये ही सो गया।

सुबह उठ कर जब ऑफिस के लिए तैयार होने लगा तो घर से पत्नी का फोन आया कि दोपहर का खाना बना रखा है लेते हुए जाना। मैंने यह आशा को बताया तो उस ने कहा कि नाश्ता कर के खाना लेते हुए चले जाओ। मैंने वैसा ही किया। शाम को जब घर पहुंचा तो सब कुछ शान्त था, रात को जब सोने लगा तो पत्नी ने मेरे से लिपट कर कहा कि मुझे माफ कर दो मैंने तुम्हारे साथ बड़ा अन्याय किया है मैंने पुछा कि क्या किया है तो उस ने कहा कि सेक्स के लिए तुम्हें दूत्कारा है तुम्हारी इक्छा का ध्यान नही रखा केवल अपनी चलाई है तभी तो तुम किसी और की तरफ आकर्षित हुए हो अगर ऐसा नही होता तो जिस व्यक्ति के बारे में दुनिया बढ़ाई करती थी वह किसी और के प्यार में कैसे पड़ गया? मैं कुछ नही बोला।

उस ने कहा कि मुझे अपनी गल्ती का अहसास हो रहा है लेकिन अब बड़ी देर हो चुकी है लेकिन मैं कोशिश करुँगी कि इस गल्ती को जितना हो सके सुधार लुँ। मैंने उस की इस बात पर उसे अपने से लिपटा कर कहा कि कुछ कहने की आवश्यकता नही है। हम दोनों फिर उस आदिम तुफान की चपेट में आ गये जो जब आता है तो सब गिले शिकवे मिटा देता है। जब तुफान उतरा तो सब नाराजगियां खत्म हो गयी थी। जो रह गया था वह केवल प्यार था। इसी की तो जरुरत थी, कमी थी अब जब जीवन में यह लौट आया था तो हर बाधा का सामना किया जा सकता था। मुझे जब नींद आई तो मन में यह संतोष था कि जिस चीज की कमी थी वह मिल गयी है तथा और सब कुछ धीरे-धीरे ठीक हो जायेगा।

** समाप्त **

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2 Comments
katha_vachakkatha_vachak9 months agoAuthor

आप को कहानी अच्छी लगी, इस के लिये धन्यवाद. मैं इसे अपनी प्रशंसा के तौर पर ही ले रहा हूँ। इरोटिका में काम कथा ही होनी चाहिये।

AnonymousAnonymous9 months ago

इन सज्जन को चाहिए कि अपना नाम कथा_वाचक न रख के कामकथा-लेखक रख लेना चाहिए।

बढ़िया वर्णन किया है। 👌

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