अधेड़ उम्र का प्रेम

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पहला इम्तिहान तो नहाने के समय था, लेकिन हम दोनों ने आराम से गरम पानी से शरीर का सेंका और बिना किसी सेक्स के नहा कर निकल लिए। नहाने के बाद आशा ने कहा कि गरम पानी से बदन की सिकाई ने बड़ा आराम दिया है। उस ने मुझ से पुछा कि तुम्हारी दवा के डिब्बे में कोई क्रीम है दर्द के लिए, मैंने कहा कि डिब्बे को खोल कर देख लेते है, यह कह कर मैं सुटकेस में से दवा का डिब्बा निकाल लाया। उसे खोला तो देखा कि उस में दर्द के लिए क्रीम पड़ी थी। आशा ने उसे लेकर मुझ से कहा कि पेट के बल लेटों मैं दवा लगा देती हूँ।

मैं उस की बात मान कर लेट गया उस ने अच्छे तरह से दवा को कमर पर लगा दिया। फिर उसे कपड़ें से ढ़क दिया। दवा ने अपना असर करना शुरु कर दिया मुझे कमर के दर्द में राहत सी मिली। मैंने लेटा रहना ही सही समझा। आशा ने कहा कि नाश्ता मगाँ लो। फोन कर के नाश्ते का ऑडर कर दिया। आधे घन्टे में नाश्ता आ गया। ब्रैड और ऑमलेट का नाश्ता था आराम से नाश्ता खत्म किया। और कुछ करने को नही था, बारिश के कारण बाहर जा नही सकते थे, बारिश के कारण टीवी भी नही देख सकते थे। एक ही काम था वह था बात करने का उसी को बिना किसी रुकावट के कर सकते थे।

बचपन के बारे में बातें होने लगी, आशा ने बताया कि उस का बचपन तो मस्त था वह अपने घर में अकेली लड़की थी इस लिए वह अपनी मनमर्जी करती थी। मैंने कहा कि मैं तो बड़ा होने के कारण जिम्मेदारी बचपन से ही सर पर थी। इस लिए बचपन में मस्ती करने का समय नही मिला।

आशा से मैंने पुछा कि यहाँ से वापस जाने के बाद वह कैसे आगे चलेगी। उस ने कहा कि नौकरी तो मैंने छोड़ दी है। आर्थिक परेशानी कोई नही है। कुछ दिन आराम करने के बाद कोई अपना काम आरम्भ करने का विचार आ रहा है। फिर उस ने कहा कि अब तो मेरी जिम्मेदारी आप की है, आप ही कुछ सोचना, मैंने कहा कि मैंने कुछ सोचा तो था अपनी पत्नी को व्यस्त करने के लिए, सोचता हूँ कि अगर तुम्हे कोई परेशानी ना हो तो तुम्हें भी इस में लगा लूँ।

उस ने कहा की दीदी को परेशानी नही होनी चाहिए, मैंने कहा कि अभी तो यह विचार के स्तर पर है, जब धरातल पर आयेगा तो अगर वो नही करेगी तो शायद तुम करोगी। उस ने कहा कि मेरे पर इतना विश्वास है मैंने कहा कि अपने से ज्यादा है। काम तो और लोगों ने करना है हमें तो उस को चलाना है। ज्यादा कठिन काम नही है। असल में तो मैं ही उसे चलाऊँगा। तुम सब तो मेरा साथ दोगी। इस बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी।

आशा से उस की माता जी का पुछा तो उस ने बताया कि वह तो वृंदावन के आश्रम में चली गई है। मेरे साथ हुए व्यवहार से उन को बहुत धक्का लगा है इस लिए उन्होने सांसारिक कार्यो से अपने को दूर कर लिया है। मैंने उन से कहा कि मैं अकेली रह जाऊँगी लेकिन उन्होने कहा कि तेरी चिन्ता नहीं है। पता नही उन्हें किसी बात का आभास हो गया था इस लिए उन्होनें मेरी एक बात नही सुनी। उन के जाने के बाद मैं एकदम अकेली हो गयी थी। तुम्हारे मेरे जीवन में आने से मेरा अकेलापन खत्म हुआ है।

आगे की राह तो खुली है, देखते है कि क्या होता है। आशा ने मुझ से पुछा कि तुम अब क्या करोगे? मैंने कहा कि इस संबंध को मान्यता दिलाना तो मुश्किल है लेकिन जो कुछ होगा उस का सामना तो करना पड़ेगा। तुम्हें भी परेशानी झेलनी पड़ेगी, आशा बोली की मैं तो उस के लिए पुरी तरह से तैयार हूँ। मेरे पास तो खोने को कुछ नही है, मुझे जो मिला है उस को मैं छोड़ नहीं दूँगी। दीदी से भीख भी मांग सकती हूँ। मैंने कहा कि इस की जरुरत नही पड़ेगी हाँ लेकिन कमर कस के रखनी पड़ेगी। लोगों की बाते सुनने की आदत डालनी पड़ेगी। हम दोनों अपने-अपने जीवन के बारे में बातें करते रहे एक-दूसरें के बारे में जान कर एक-दूसरें को जानने में मदद मिलती है।

आशा को मेरे जीवन के बारे में पता चला कि मैं किन परीस्थियों में जी रहा हूँ। मुझे पता चला कि आशा के जीवन में क्या दूख है और वह उन के कैसे लड़ रही है। उसे और मुझे समझ आया कि हम उम्र के इस पड़ाव पर अपने प्यार को कैसे आगे ले जायेगे तथा किस तरह की बाधाऔं का सामना हमें करना पड़ेगा। प्रेम आगे-पीछे नहीं देखता वह तो बस हो जाता है, उस को भोगना पड़ता है उस के कारण भोगना पड़ता है। उस पर किसी का बस नहीं चलता। हम दोनों इस डगर पर चल पड़े है पता नही आगे क्या होगा?

बारिश बन्द नहीं हुई थी, लगातार बरस रही थी, बाहर जाने का आज मौका नही मिलने वाला था, सेक्स भी दिन में नहीं करना था, सिर्फ आराम ही करना था ताकि थके हुए शरीर को अपने को सुधारने का मौका मिल जाये। मैं तो कमर के दर्द के कारण बिस्तर में ही पड़ा था, आशा भी थकी हुई थी और लेटी हूई थी मैंने आशा से कहा कि खाने का ऑडर कर दो, उस ने फोन लेकर कर दिया, आधे घन्टे बाद खाना आ गया। दोनों खाना कर के फिर से लेट गये।

दो बजे के बाद आशा ने मुझ से पुछा कि एक बात पुछू बुरा तो नही मानोगे मैंने कहा कुछ भी पुछ सकती हो तो उस ने पुछा कि मेरे तुम्हे फोन करने पर तुम्हारी पहली राय क्या थी, क्या यह सोचा कि यह तो गले पड़ गयी है या यह लगा कि इस का चरित्र तो सही नहीं है। मैंने कहा कि इस में से कुछ भी नही सोचा, सिर्फ ये सोचा कि तुम्हारी हेल्प कैसे कर सकता हूँ? दूसरी कोई और बात ध्यान में ही नही आयी। तुम्हारा और मेरा मिलन शायद प्रारब्ध ने लिख रखा था इस लिए मेरे सोचने के लिए कुछ रखा ही नही।

तुम्हारी बात सही है कि जो भी हुआ है वह बड़ी जल्दी में हुआ लेकिन उस को ऐसा होना ही था सो हुआ। मैंने तो आज तक बीवी के सिवा किसी और को ध्यान से देखा ही नही है। अपने ऑफिस में कोल्ड के नाम से मशहुर हुँ। औरतों से में दूर ही रहता हूँ लेकिन तुम से एक बार बात करके ही दिल लग गया इस को क्या कहूँ प्रारब्ध के सिवा। पत्नी के साथ मानसिक मित्रता न होने के कारण मैं भी मन से अकेला हूँ पहले तो काम में व्यस्त होने के कारण कुछ समझ नही आता था लेकिन अब जीवन में स्थिर होने के बाद यह कमी खलती है सोचा था कि तुम मेरी यह कमी भर दोगी लेकिन यह तो उस से भी आगे चली गयी है। जीवन के इस मोड़ पर शरीरिक सुख के साथ मानसिक साथ भी जरुरी है।

पत्नियां इस के प्रति लापरवाह हो जाती है शारीरिक सुख तो खरीदा भी जा सकता है लेकिन मन का साथ नही। तुम्हारे मेरे जीवन में आने से मुझ में नई उर्जा का संचार हुआ है, लग रहा है कि मैंने दुसरा जन्म लिया है। अब लगता है कि सारा जीवन सब के लिए जीता रहा अब बचे हुए समय में अपने लिए भी जी लूँ। तुम मेरी वही आशा हो। मानोगी कि मैं और मेरी पत्नी महीनों एक दूसरें के साथ सोते हुए संभोग नही करते मेरे द्वारा उसे चुमे जाने से भी उस को परहेज है, मैं जो चीज करने को कहु तो वह काम वह नही करेगी। अगर मैं किसी सब्जी को बनाने को कहुँ तो समझो कि वह अब नही बनेगी। अपने घर में अपनी पसन्द के गाने नही सुन सकता, चीजे नही खरीद सकता, वह मेरी पसन्द के कपड़ें नही पहनती, क्या-क्या बताऊँ मैंने तो जीना ही छोड़ दिया था। बस चल रहा था तुम ने आ कर मेरे जीवन में आ कर मुझ पर अहसान किया है।

मेरी बात सुन कर आशा बोली कि तुम्हारे जीवन के बारे जान कर दुख हो रहा है, मुझे लगता है कि मेरा यह बेकार जीवन अगर तुम्हारे काम आये तो मैं समझुगी कि मेरा जन्म सफल हो गया है। इतने दिनों से एक बेकार बेमतलब का जीवन जी रही थी, उस दिन तो समझ ही नही आया कि इस बेमतलब की जिन्दगी का क्या करुँ? तुम ने संभाल लिया नही तो मैं उस दिन आत्महत्या कर लेती। तुम ने भी मुझे नया जीवन दिया है। शायद हम दोनों मिल कर अपने जीवन का नया अर्थ ढुढ़ ले। जितना भी जीवन बचा है उसे अपने लिए जी ले, समाज का सामना कर लेगे।

बस तुम मेरा साथ नही छोड़ना। मैं जी नही पाँऊगी। मैं जैसी भी हूँ तुम्हारी हूँ। यह कह कर वह चुप हो गयी, मैंने उसे अपने से लिपटा लिया और कहा कि ऐसा दुबारा मत कहना नही तो कुछ ऐसा कहुँगा जो मैंने अपनी जवानी में भी किसी के लिऐ नही कहा है सुन कर तुम कहोगी कि कितने चीप हो। मेरी बात सुन कर आशा की हँसी छुट गयी वो बोली कि तुम ऐसे कैसे बात बदल देते हो। मैंने कहा कि बातचीत बहुत गम्भीर हो रही थी इस लिये उसे रोकना जरुरी था। यार मेरे जैसे बोर के साथ रह कर तुम भी बोर होती जा रही हो।

मेरे होंठ उस के होंठों से जुड़ गये। मेरे कसाब से उस को घबराहट होने लगी तो वह बोली कि दम तो मत निकालो अब। मैंने अपनी जकड़ ढ़ीली कर दी। लेकिन होंठ उस के होंठों से जुड़े रहे। उस की आँखों से आंसु निकल कर उस के चेहरे को भीगोने लगे। मैंने अपने होंठों से आंसुऔ को पी लिया और कहा कि अब के बाद इस विषय पर कोई बात नही करेगे। इस से तो सेक्स करना ही अच्छा है दर्द ही तो होता है शरीर में दिल तो नही दुखँता। इस बात पर उस ने मेरे पर मुक्कों की बरसात कर दी। मैंने अपने को बचाने की कोई कोशिश नही की।

दिन ऐसे ही लेटे लेटे बीत गया। रात को लगा कि आज कुछ नही करते। इस लिए दोनों एक दूसरें की बाहों में सो गये। नीद भी जल्दी आ गई।

चौथा दिन ----------------

सुबह जब ऊठे तो सूर्य निकलने वाला था अधेरा छट रहा था मैं बिस्तर से निकल कर कपड़ें पहन कर बाहर आ गया। पहाड़ों पर सूर्योदय देखने का अपना एक अलग मजा है। मैं इसी का आनंद ले रहा था कि पीछे से कोई आ कर लिपट गया। मुझे जब उरोजों की गरमाहट लगी तो पता चला कि आशा भी ऊठ कर आ गयी थी। उस ने कहा कि मुझे भी ऊँठा लेते मैंने कहा कि तुम सो रही थी लगा कि तुम्हारी नींद में क्यो खलल डालू। इस लिए नही जगाया। दोनों एक दूसरें के हाथों में हाथ डाले सू्र्योदय का आनंद लेते रहे। जब सूर्य आकाश में काफी ऊचाँ हो गया तो दोनों वापस कमरे में चले आये।

मैंने आशा से पुछा कि नींद तो अच्छी आई तो उस ने कहा कि उसकी नींद तो सबेरे ही खुली है। मैंने कहा कि मैंने भी रात में अच्छी नींद ली है। चाय पीने के बाद नाश्ता ऑडर कर के नहाने में लग गये। नहाने के बाद आशा ने पुछा कि आज क्या करना है मैंने कहा कि यहां से 10-15 किलोमीटर दूर एक झील है आज उसे देखने चलते है। जब तक नाश्ता आया हम दोनों तैयार हो गये थे। नाश्ता कर के चले तो गाड़ी आ कर खड़ी हो गयी थी। गाड़ी में बैठ कर निकल लिये। एक घन्टे के बाद झील पर पहुँच गये। झील पर एकान्त था, रोमान्टिक माहौल था दोनों एक-दूसरें के हाथों में हाथ डाल कर झील के किनारे घुमते हुए नाव वालो तक पहुँच गये लेकिन आशा ने नाव में चढ़ने से मना कर दिया फिर हम झील के किनारे-किनारे टहलते हुए दूर निकल गये।

पेड़ों का झुरमुट था झील दिख नही रही थी, हम दोनों ही थे आशा ने मुझे एक कोने में ले जा कर मुझे आलिंगन में ले लिया। उस ने कहा कि ऐसे माहौल में रोमान्टिक होना पड़ता है। मैंने उस के होंठों का चुम्बन ले कर कहा कि सही कह रही हो। हम दोनो देर तक आलिंगन बंध रहे। आशा के आलिंगन के कारण मेरे लिंग में तनाव आ गया था। जगंल में अकेले होने के कारण मैं थोड़ा चिन्तित था इस लिए मैंने आशा को अपने से अलग करा और उस झुरमुठ से निकल गये दोनों टहलते हुए झील का चक्कर लगाते हुए गाड़ी तक आ गये। खाने का पता किया तो चाय पकोड़े की दूकान ही मिली। ऐसे माहौल में गरम चाय और पकौड़े खाने का मजा कुछ और ही है। चाय और पकैड़े खाते हुए झील के दृश्य को आँखों में समाते रहे।

बादल छा रहे थे इस लिए चलने के लिए तैयार हो गये। वापस आते समय हल्की बारिश होने लगी। डाइवर से पुछा कि कही कोई अच्छा होटल हो तो रोक ले। उस ने एक होटल पर गाड़ी रोक ली वह भी खाना खाना चाहता था हम दोनों भी खाना खाने चले गये। भरपेट खाना खा कर वापिसी के लिए निकल पड़े। वापिस आ कर कपड़ें बदलने के दौरान मैंने देखा कि लिंग अभी भी तनाव में था आशा का ध्यान भी उस तरफ था उस ने कहा कि इस की भी कुछ सुन लो। मैंने कहा कि इसे भी अपनी मित्र से मिलवा देते है नही तो दोनों नाराज हो जायेगे। मेरी बात सुन कर आशा खिलखिला कर हँस पड़ी। मैंने कपड़ें उतार कर बिस्तर की शरण ली आशा भी पिछे नही रही। दोनों के नगें बदन जब एक दूसरें से मिले तो दोनों की गरमाहट एक दूसरें को मिलने लगी। मिलन की आग तो दोनों तरफ लगी हूई थी। दोनों के हाथ एक-दूसरें के बदन पर फिरने लगे। करंट दोनों के शरीर में भरने लगा।

आशा मेरे ऊपर आ गयी और उस ने हाथ के सहारे से मेरे लिंग को योनि में डाल लिया। फिर धीरे-धीरे कुल्हों को हिलाने लगी मैं उस के होठो को चुम रहा था। आशा कि गति एकदम बढ़ गयी मैं भी उस के साथ चल पड़ा। जब आशा थक गयी तो मैं उस के ऊपर आ गया और अपनी कोहनियों के सहारे से टिक कर लिंग को धक्के लगाने लगा। आशा आहहहहहहहहहहहह उईईईईईईईईईईईईईई उहहहहहहह करने लगी। फचाफच की आवाज आने लगी। मेरे कुल्हें जोर-जोर से योनि पर धक्का लगाने लगे। वासना के प्रभाव में दोनों पुरी ताकत से संभोग में रत थे।

थोड़ी देर बाद मैंने आशा के पीछे से प्रवेश किया उस की सीधी टांग को अपनी टांग पर कर के मैं धक्कें लगा रहा था। आशा का मुँह मेरी तरफ था मैं उस को चुम रहा था इस आसन में अलग मजा आता है। एक हाथ से उरोजों को मसलता रहा। एक हाथ उस की नाभी के पास के पेट को सहला रहा था। चरम पर मैं पहले पहुँचा लेकिन रुक नही पा रहा था कुछ देर बाद आशा भी पहुँच गयी। उस ने मेरी टागें अपनी टागों से जकड़ ली। हम दोनों अभी भी रुके नही थे पसीने से तरबतर हो गये थे लेकिन दौड़ रहे थे। जब थक गये तो मैं आशा के पीछे से हट कर बगल में लेट गया वो भी सीधी लेट गयी, थोड़ी देर बाद मेरे से लिपट कर बोली कि प्यास बुझती ही नही है।

मैंने कहा कि जब प्यार है तो प्यास भी होगी। मैंने अपना हाथ उस की योनि पर लगाया तो वह पुरी तरह से भीगी हुई थी मेरा लिंग भी चिपचिपा हो रहा था। मैं आशा के उपर आ गया और उस की योनि में अपनी ऊंगली डाल कर अन्दर बाहर करने लगा। उस ने कराहना शुरु कर दिया। मैंने उस के जी-स्पाट को काफी देर रगड़ा और फिर उस की योनि को थपथपाया। आशा का ऑगाज्म हो गया मेरा हाथ भी चिपचिपा हो गया मैंने एक ऊगली मुँह में डाल कर उस का स्वाद चखा तो नमकीन था। मेरी हरकत पर आशा ने मुझे मुक्का मारा तो मैंने अपनी ऊंगली उस के होठो पर रख दी नानुकुर के बाद उस ने भी उस का स्वाद चख लिया।

इस दौरान मैं दूबारा से उत्तेजित हो गया और मैं ने अपना लिंग आशा की योनि में डाल दिया योनि में इतना गिलापन था कि लिंग फिसलता हुआ पुरा अन्दर चला गया। मेरे लिए यह आश्चर्य की बात थी कि कहाँ तो एक बार संभोग करना मुश्किल था और अब एक के बाद दस मिनट में दूसरी बार कर रहा हूँ। यह बात मुझे समझ में नही आ रही थी आशा तो दूसरी बार का मजा ले रही थी, उस ने भी नीचे से कुल्हें ऊठाना शुरु कर दिये थे। एक बार फिर हम दोनों रेस में दौड़ रहे थे यह नही पता था कि कब तक दौड़ पायेगे लेकिन दौड़ रहे थे।

इस बार स्खलित होने में काफी लम्बा समय लगा क्योकि वीर्य तो पहले ही निकल चुका था। पागलपन की हालत में दोनों सैक्स करने में लगे रहे। रुकने के हालात नही थे। जब चरम पर पहुंचे तो बुरी तरह थक चुके थे और हांफ रहे थे। लेकिन थकान की किसी को परवाह नही थी। कमर के नीचे के हिस्से में दर्द हो गया। आशा को ऊपर कर लिया वो भी स्खलित हो कर मेरे ऊपर ही पड़ी रही। जब होश आया तो दोनों ने उठ कर शरीर साफ किये और कपड़ें पहन लियें।

आशा बोली कि हमारी प्यार की प्यास तो जितना पीते है उतनी बढ़ती जा रही है। मैंने कहा कि बढ़ने दो। मैं तो एक बार के बाद ही इतना थक जाता था कि सो जाता था लेकिन अब तो दूसरी बार भी कर पा रहा हूँ अपनी ताकत पर विश्वास नही हो रहा है। शायद तुम्हारे साथ का असर है आशा ने कहा कि मैं क्या कहुँ? हाँ प्यार में काफी ताकत होती है। यह तो पता है। शाम तक दोनों बिस्तर में लेटे रहे। शाम को बारिश फिर से शुरु हो गयी। ठन्ड़ की वजह से चाय की तलब लग गयी। चाय का ऑडर कर दिया। बाहर आ कर बारिश का आनंद लेने लगे। चाय आने पर बाहर ही खड़े खड़े पीते रहे। लगा कि रात को तो पार्टी होनी चाहिए। इन्तजाम तो था ही।

रात को आशा ने शराब पीने से रोक दिया। उस ने कहा कि नशे की कोई जरूरत नही है मैं भी उस की बात से सहमत था। रात का खाना खाने के बाद दोनों बात करने लगे और भविष्य के बारे में योजना बनाने लगे। जब सोने गये तो भी बातें खत्म नही हो रही थी, आशा ने कहा कि अब सोते है बातें कल कर लेगें लगा कि और कुछ करने की जरुरत नही है। नींद भी जोर से आ रही थी इस लिए जल्द ही गहरी नींद में चले गये।

पांचवा दिन --------------

सुबह जब मैं सो कर उठा तो सूर्य अभी निकला नही था, आकाश काला था मैं जग कर यह विचार करने लगा कि आगे क्या-क्या परेशानियाँ आने वाली है तथा उन से कैसे निबटना पड़ेगा। सबसे पहले तो यह संबंध दुनिया की नजरों से ज्यादा दिन तक छुपा नही रहेगा। समाज का तो सामना कर सकते है लेकिन घर में जो कोहराम मचेगा, उसका सामना करना मुश्किल होगा। आशा की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी अब मेरी है यह भी सोचना था। इसी उधेड़बुन में बैठा था कि आशा भी उठ कर बैठ गयी और मुझ से बोली की क्या सोच रहे हो, मेरे बारे में सोच रहे हो?

मैंने उस से पुछा कि तुम औरतों को सामने वाले के दिमाग में आ रहे विचार कैसे पता चल जाते है तो उस ने कहा कि छठी इन्दिय भगवान की देन है जिससे प्यार करते है उस के मन की बात भाँप लेते है। मैंने हँस कर कहा कि तुम लोगों से कोई बात छुपाना मुश्किल काम है। मैं तुम्हारे और अपने संबंध के बारे में ही सोच रहा था कि आगे क्या करना है? विरोध का सामना कैसे करना है। उस ने कहा कि तुमने तो सारी जिन्दगी योजना बनाने में ही लगाई है क्या योजना है तुम्हारे पास, मैंने कहा कि कोई योजना नही है, जैसे-जैसे कोई बात सामने आयेंगी उस का हल खोजेगे।

यही अभी तक की योजना है। मेरी पत्नी कैसे रियेक्ट करेगी यह देखना है उस के बाद मेरी बेटी का रियेक्शन कैसा होगा यह भी महत्वपुर्ण है। उन दोनों के लिये मेरी कोई ज्यादा अहमियत नही है केवल पैसा कमा कर देने वाली मशीन हूँ मैं, इस से ज्यादा महत्व नही है जब तक उन को पैसे मिलते रहेगे वो मेरी किसी बात का ज्यादा विरोध नही करेगी। पत्नी अपने अधिकार क्षेञ में किसी की दखलन्दाजी बर्दाश्त नही करेगी। उस को मेरे से प्यार नही है लेकिन उस का काम चल रहा है लेकिन मेरा नही चल रहा है यह उस को समझाना पड़ेगा। तब शायद उस का विरोध कम हो पाये।

तुम्हारी माँ इस को कैसे लेगी तुम मेरे से बेहतर जानती हो। आशा ने कहा कि मेरी माँ को मुझ से कोई मतलब नही है उस ने संसार से मोह खत्म कर दिया है तो उस की तरफ से कोई विरोध नही होगा। रहे मेरे संबंधी तो उन की मुझे परवाह नही है समाज की इतने सालों तक परवाह करने का मुझे क्या फल मिला है यह तो तुम जानते हो। मुझे लगता है कि मैं दीदी को समझा पाऊँगी। बेटी की बात तो तुम बेहतर जानते होगे। मैंने कहा कि वह अपनी माँ के करीब है जैसा वो कहेगी वह वैसा ही करेगी।

मैंने कहा कि पहली प्राथमिकता है कि आर्थिक रुप से मैं और तुम आत्मनिर्भर हो जाये, इस में कोई कठिनाई तो नही दिख रही है तुम भी आर्थिक रुप से किसी पर निर्भर नही हो, और मैं भी किसी पर निर्भर नही हूँ। तुम्हारे समय काटने के लिए किसी बिजनेस को शुरु करना होगा ताकि तुम उस में व्यस्त रह सको और मैं तुम से नियमित रुप से मिल पाऊँ। मेरी बात सुन कर आशा ने कहा कि तुम इतनी दूर तक की सोचते हो यह आज ही पता चला। मैंने कहा कि अगर मैंने और तुमने जीवन एक साथ निभाना है तो यह सब सोचना ही पड़ेगा।

आशा बोली कि बुरा मत मानना, अगर तुम्हारा अपनी पत्नी से संबंध इतना ही खराब था तो कभी इस के बारे में कुछ सोचा क्यों नही? मैंने कहा कि उस के स्वभाव के बारे में शादी के कुछ समय के बाद ही पता चल गया था लेकिन मैंने उस के साथ निभाने की पुरी कोशिश की, लगता था कि समय के साथ सब कुछ सही हो जायेगा लेकिन ऐसा हुआ नही फिर ध्यान और बातों में चला गया, धीरे-धीरे मैं ही अलग होता गया अपने मन को मारने की कला में पांरगत हो गया। बस जैसे जीना जरुरी हो इस लिए ही जीना शुरु कर दिया।

तुम्हारे साथ मिलने के बाद लगा कि मुझे भी अपनी जिन्दगी जीने का अधिकार है, अब जितनी भी बची है उसे सिर्फ अपने मन मुताबिक जीने की तमन्ना है। आधे से ज्यादा जीवन जीने के बाद लगा कि बस अब और नही। एक साथ की ही तो तमन्ना थी वह भी नही मिल सका। किसी और से संबंध के बारे में सोचा ही नही लगा कि जब विवाह ही ऐसा है तो और इतर संबंध से क्या होगा। तुम से मिलना भी शायद प्रारब्ध में लिखा है नही तो मैं तो औरतों से दूर ही रहता था। ऐसा नही है कि शादी के बाद किसी से लगाव नही हुआ। एक से हुआ था लेकिन वह संबंध भी लालच के लिये था। उस में जो धोखा मिला तो मन के सभी दरवाजे इस तरफ से बन्द कर लिये। तुम ने ही उन को न केवल खोला ही नही है बल्कि तोड़ ही दिया है।

मेरी बात सुन कर आशा ने कहा कि दरवाजे ना रहने से तो कोई भी आ सकता है, मैंने कहा कि कोई आयेगा जब ना जब वहाँ खाली जगह होगी, वहाँ तो तुम विराजमान हो। मेरी बात सुन कर आशा की हँसी निकल गयी और मुझे हाथ से मारती हुई बोली की इतनी गम्भीर बात में भी तुम मजाक कर लेते हो। मैंने उसे अपने से लिपटाते हूऐ कहा कि बताओ कोई जगह खाली है तो उस ने कहा कि नहीं वहाँ तो भीड़ लगी है। दीदी, बेटी और मैं इस के बाद किसी की एन्ट्री नही हो सकती। मैंने कहा कि यही तो मैं कह रहा हूँ।

आशा ने कहा कि मैं मजाक कर रही हूँ। मैं और तुम उम्र के इस पड़ाव पर है कि हमें साथी की आवश्यकता है जिस से मन की बात कर सके। मैंने उस की बात पर सर हिलाया। मैंने उस से कहा कि एक बार ऐसा मौका आया कि सेक्स के लिए किसी का इन्तजाम कोई कर रहा था और उस ने कहा कि तुम भी आ जाओ, तब मन ने कहा कि सेक्स वो भी पैसे दे कर ऐसा ही है जैसे जानवर करते है जब तक प्रेम ना हो तब तक सेक्स कैसे हो सकता है मेरे को समझ नही आया। मैंने उसे मना कर दिया। कभी नही लगा कि अपनी प्यास बुझाने के लिए किसी के पास पैसे दे कर जाना पड़े। मन इस तरह का है ही नही।

इस लिये मन को मारना सीख लिया लेकिन उस रस्ते पर जाना गवारा नही किया। फिर जीवन की आपाधापी में सेक्स की वारियता नीचे और नीचे चली गयी। तुम से मिलने के बाद लगा कि अभी तो इस का आनंद लेने की शक्ति बची है इस लिए प्रयास किया और उस का परिणाम तुम्हारे सामने है। बीते दिनों में जो कुछ हुआ है मुझे अभी तक उस पर विश्वास हो रहा है। लेकिन एक बात समझ में आयी है कि इस के लिए साथी का साथ भी बहुत आवश्यक है। बिना सही साथी के मेरे साथ जो हुआ वही होता है। हमारी बातें और चलती रहती अगर मेरी नजर बाहर ना जाती।

बाहर आकाश पर लालिमा छाने लगी थी इस का मतलब था कि सूर्योदय होने वाला था मैं आशा को साथ लेकर उसे देखने बाहर आ गया। बाहर ठन्ड़ लगने पर आशा अन्दर से कपड़ें लेने चली गयी। मैं वही खड़ा रहा, वो जब लौटी तो मेरे को जैकेट दे कर बोली कि इसे पहन लो नही तो ठन्ड़ लग जायेगी और मेरी कमर में हाथ डाल कर खड़ी हो गयी। मैंने भी अपना हाथ उस की कमर में डाल दिया और हम दोनों सूर्योदय को देखने लगे। मुझे लगा कि मेरे और आशा के जीवन में भी नया सूर्योदय हो रहा है। आशा की किरणों से हमारे जीवन का अंधियारा छट जायेगा।

सूर्य के उदय के बाद हम दोनों अन्दर आ गये और मैंने चाय का ऑडर कर दिया। आशा ने पुछा कि आज क्या करना है तो मैंने कहा कि यहाँ से कुछ दूर पर एक झरना है वहीं चलते है। उस ने पुछा कि वहाँ तो नहा भी सकते है मैंने कहा कि मुझे ज्यादा पता नही है अभी चाय लेकर आने वाले से पुछ लेते है? थोड़ी देर में चाय लेकर एक लड़की आयी तो मैंने उस से पुछा कि पास में जो झरना है वहां नहा सकते है तो उस ने कहा कि सर वहाँ नहा सकते है तथा कपड़ें बदलने के लिए जगह भी बनी हुई है। आप साथ में कपड़ें जरुर ले कर जाना। उस के जाने के बाद मैंने आशा से कहा कि वही चल कर नहा लेगे ठन्ड में बार बार नहाने का मन नही कर रहा है तो आशा बोली की तुमने मेरे मन की बात कह दी है। मैं सारे कपड़ें एक बैग में ले कर चलती हूँ। मैंने फोन करके गाड़ी का इन्तजाम करने को कह दिया।

नाश्ता कर के हम दोनों बैग ले कर बाहर आये तो गाड़ी हमारा इन्तजार कर रही थी। थोड़ी देर में ही झरने पर पहुँच गये। सौ फुट के ज्यादा की ऊचाई से पानी गिर रहा था नीचे पानी की बौछारों की वजह से धुंध सी छायी हुई थी। सारा सामान गाड़ी में रख कर झरने का नजारा ही कर रहा था कि आशा ने हाथ पकड़ कर कहा कि बाहर से क्या देख रहे हो अन्दर चलो और मेरे साथ वह भी झरने के नीचे खड़ी हो गयी। पानी की तेज धार के नीचे खड़े हो कर पता चला कि पानी कितना तेज हो सकता है, काफी देर तक पानी से नहाने के बाद हम दोनों झरने से बाहर आये और कपड़ें बदलने चले गये।