अधेड़ उम्र का प्रेम

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सुखे कपड़ें पहनने के बाद ठन्ड लगने लगी तो बाहर धुप सेकने खड़े हो गये। पर्यटक ना होने के कारण कोई दुकान नही खुली थी। मैंने गाड़ी वाले से कहा कि यहाँ पास में कोई बाजार है तो उस ने कहा कि कुछ दूर पर छोटा सा बाजार है मैंने उसे वहाँ ले चलने को कहा। बीस मिनट की ड्राइव के बाद छोटा सा पहाड़ी बाजार आया। हम दोनों ऐसे ही उस में घुमने लगे। आशा को कुछ गरम कपड़ें पसन्द आये तो उन को खरीद लिया। मुझे भी कुछ पसन्द आया लेकिन मैंने मन को रोक लिया मेरी बात को आशा ने पकड़ लिया और पुछा कि खरीद क्यों नही रहे। मैंने कहा कि उसे पता तो है।

उस ने कहा कि तुम खरीद लो मैं अपने साथ ले जाओगी। मैंने भी एक पहाड़ी टोपी और शाल खरीद लिया। आशा को मेरे मन की हर बात पता चल जाती है। पहाड़ी हस्तशिल्प की कुछ चीजे भी पसन्द आयी तो उन्हें भी खरीद लिया। लकड़ी का सामान भी खरीदा। वहां से जब चले तो गाड़ी के ड्राइवर ने कहा कि साहब आप ने बहुत बढिया सामान खरीदा है मैंने कहा कि यह चीज नीचे मैदान में नही मिलती तो वह बोला कि साहब अगर इस को अच्छा मार्किट मिल जाये तो यहाँ के लोगों की हालात सुधर जाये उस की इस बात ने मेरे मन में एक विचार को जन्म दिया। जो आगे चल कर बड़ा लाभदायक सिद्द हुआ।

दोपहर के दो बज रहे थे मैंने उस से पुछा कि खाना खाने की कोई जगह है तो वह बोला कि उपर एक नया रेस्टोरेन्ट खुला है वही चलते है। वहाँ जा कर देखा कि जगह बढि़या थी और खाना लाजबाव था। आज का दिन अच्छा गुजर रहा था। पास में एक मेडीकल स्टोर देख कर मुझे एक आइडिया आया और मैं उस में चला गया वहां पुछा तो मेरी मनपसन्द की चीज मिल गयी, उसे ले कर मैं वापस आ गया। रिर्सोट लोटने के बाद शाम को फिर से आकाश पर बादल छा गये और थोड़ी देर में ही जोरदार बारिश होने लगी। कुछ देर तक हम दोनों बारिश का मजा लेते रहे फिर ठन्ड बढ़ने पर अन्दर आ गये। अन्दर आ कर आशा ने मुझ से पुछा कि किस दवा की जरुरत पड़ गयी थी जो मेडीकल स्टोर गये थे। मैंने कहा कि कुछ याद आया तो लेने चला गया था मिल गया तो खरीद लाया। आशा ने ज्यादा नही पुछा।

आशा बोली कि आप को तो फोटोग्राफी का इतना शौक है लेकिन आप ने तो एक भी फोटो नही ली है। मैंने कहा कि मेरी एक भी फोटो मेरे जी का जन्जाल बन जानी है इस लिये मन को मसोस कर रह रहा हुँ वो बोली कि मुझे तो पता है कि आप कितनी अच्छी फोटोस् पोस्ट करते है। मैंने कहा कि मेरी इस हरकत के पीछे भी राज है जल्द ही तुम्हे पता चल जायेगा। उस ने सर हिलाया कि उसे सब पता है। खाना खाने के बाद जब सोने की बारी आयी तो आशा ने कहा कि आज तो अवकाश नही है मैंने कहा कि काहे का अवकाश।

मैंने यह कह कर उसे आलिंगन में ले कर चुम लिया। उस ने कहा कि कल से लग रहा था कि तुम्हें कुछ परेशानी हो रही है। मैंने कहा कि मुझे कुछ नही हुआ है। सही हूँ। हम दोनों के होंठ फिर एक दूसरें से चिपट गये। जब तक सांस नही फुली तब तक अलग नही हूए। मैंने आशा के सारे कपड़ें उतारने शुरु कर दिये तो उस से कहा कि बिस्तर में तो जाने दो मैंने कहा कि बिस्तर कौन सा दूर है यह कह कर मैंने उसे गोद में उठाया और बिस्तर में लिटा दिया। मेरे हाथ उस के नंगे बदन पर फिर रहे थे। रजाई में होने के कारण उस को ठन्ड नही लग रही थी उस ने अब मेरे कपड़ें बदन से अलग करने शुरु कर दिये।

मैं बिस्तर पर घुटनो के बल खड़ा हुआ तो मेरा लिंग उस के मुँह के पास आ गया उस ने उसे मुँह में ले लिया। लिंग ने अपनी पुरी लम्बाई ले ली थी। उस ने लिंग को पुरा चुस कर मुझे स्खलित कर दिया। अब मेरी बारी थी मेरी ऊंगलियां उसकी योनि में अन्दर बाहर हो रही थी, आशा उत्तेजना वश मुँह से आहहहहहहहहहहहहहह उईईईईईईईईईईईईईईईईई एईईईईईईईईईईईईईईई आहहहहहहहहहहहहहह कर रही थी। उस के जी-स्पाट को मैंने उत्तेजित कर के उसे स्खलित कर दिया उस की योनि से पानी की धार निकल पड़ी। आशा का सारा शरीर उत्तेजना के कारण कांप रहा था, मुझे कुछ याद आया तो मैं रजाई से निकल गया।

आशा ने मुझे अजीब सी नजरों से देखा मैं अपनी पेन्ट तक गया और उस की जेब से एक लिफाफा निकाल कर वापस रजाई में घुस गया और आशा को चुम कर कहा कि मैडम चिन्ता मत करो। मैंने अपने लिंग को देखा तो वह अपने पुरे शबाब पर था मेने लिफाफे में से एक कंडो़म निकाला और उसे खोल के लिंग पर चढ़ा लिया यह देख कर आशा ने कहा कि इस की क्या जरुरत थी मैंने कहा कि अभी पता चल जायेगा। यह कह कर मैं उस के पांवो के बीच बैठ गया और मैंने लिंग को उस की योनि में डाल दिया जब धक्के लगा कर लिंग को योनि में डाला तो आशा बोली कि यह क्या है। अच्छा लग रहा है मैंने कहा कि पुरा तो जाने दो फिर देखना यह कह कर मैंने पुरा लिंग योनि में धुसेड दिया।

आशा के मुँह से कराह निकल गयी। जब मैंने धक्के लगाने शुरु किये तो हर धक्के पर उस के मुँह से कराह निकलने लगी। मैंने कुछ देर बार धक्के बन्द कर के उस से पुछा कि कैसा लग रहा है तो वह बोली कि कुछ दानेदार सा लग रहा है मैंने कहा कि डॉटेड कंडोम है इस के मोटे डॉटो की वजह से आनंद बढ जाता है तो उस ने सर हिलाया। अब वह मेरे उपर थी और उस के हिप्स जोर-जोर से धक्कें लगा कर मेरे लिंग को अपने अन्दर समाने की चेष्टा कर रहे थे। मैं उस के लटकते उरोजों को चाट रहा था।

उस के धक्कें बढ़ते जा रहे थे उन की ताकत भी बढ़ रही थी लग रहा था कि मेरे अंड़कोश भी उस की योनि में समा जायेगे। हम दोनों संभोग से पहले ही स्खलित हो चुके थे इस लिेए चरम पर पहुँचने में ज्यादा समय लगना था। इस लिये मैंने अब आशा को डॉगी स्टाइल में लिटा कर उस के पीछे से योनि में लिंग डाला तो उस की चीख निकल गयी वो बोली की आराम से करो। मैंने लिंग को धीरे-धीरे से उस की योनि में पुरा घुसा दिया और जब धक्के लगाने शुरु किये तो उस के कुल्हों ने जबाव देना शुरु कर दिया कंड़ोम के डॉट की वजह से उस की योनि के अन्दर घर्षण बढ़ गया था योनि पुरी तरह से लिंग पर कसी थी मेरे हर धक्के पर उस की आह निकल रही थी इस से मेरी उत्तेजना बढ़ रही थी।

मैं उस के कुल्हों पर हाथों से थप्पड़ मार रहा था। काफी देर हम इस आसन में रहे फिर मैंने उसे पीठ के बल लिटा कर उस की टांगों को अपने कन्धे पर रख कर लिंग को योनि में डाला इस आसन में योनि और कस जाती है इस पर डॉट की वजह से होने वाले घर्षण के कारण आशा कराह रही थी उस ने कहा कि जान निकाल दो। मैं धक्कें लगाता रहा लेकिन मुझे पता था कि ज्यादा देर इस आसन में रहने के बाद आशा की टांगे बुरी तरह से दर्द करेगी इस कारण से मैंने उस की टांगे नीचे कर दी, कुछ देर बाद मैं उस के ऊपर से उठ गया तथा उस को उल्टे हाथ की तरफ करवट दिला कर उस की पीठ के पीछे लेट गया और उस की टांग उठा कर अपनी टांग पर रख ली अब उस की योनि का रास्ता मेरे लिंग से लिये साफ था वह उस में प्रवेश कर गया।

आशा के मुँह से कराह निकली। मैंने उस के चेहरे को अपनी तरफ कर के उस के होंठ चुम लिये। इस से उस को आराम सा पड़ा। मैंने हाथों से उस के स्तनों को सहलाना शुरु कर दिया पीछे से लिंग योनि के उपर धक्कें लगाने लगा। आशा के कुल्हों पर मेरें धक्कों की मार पड़ रही थी। योनि लिंग की मार झेल रही थी। चरम अभी दूर था लेकिन संभोग के कारण मेरे शरीर में इतनी गरमी हो रही थी की मानो शरीर में आग लगी हो। पुरा बदन पसीने से नहा रहा था।

जब मुझे लगा कि पीछे से चरम नही आ रहा तो मैंने उसे पीठ के बल कर के उस के ऊपर आ कर योनि में लिंग डाल दिया अब मेरा शरीर तन कर एक लाईन में आ गया था और मैं तने सीधे शरीर से धक्के लगा रहा था नीचे से आशा आनंद के कारण मुँह से उल्टा सीधा बंक रही थी मैं अपनी गति और बढ़ा कर तेज-तेज धक्के लगा रहा था नीचे से आशा के कुल्हें भी साथ दे रहे थे उस के नाखुन मेरी पीठ के मांस में घुसे हुये थे हम दोनों इस सब से बेखबर सफर पर चले जा रहे थे। अचानक ज्बालामुखी फट गया और मेरी आँखे बन्द हो गयी। आशा ने अपनी टागें मेरी पीठ पर लपेट ली।

मुझे ऐसा लगा कि मेरे पुरे शरीर में आग लग गयी है। पसीने से पुरा शरीर नहा रहा था। होश आने पर मैं आशा के ऊपर से उठ कर उस की बगल में लेट गया। दोनों की सांसे उखड़ी हुई थी। कुछ देर बाद जब हम दोनों की सांसें सही हुई तो मैंने आशा की तरफ करवट ली तो देखा कि उस के स्तन बड़ी तेजी से उपर नीचे हो रहे थे। वह भी करवट बदल कर मेरी तरफ हो गयी। मैंने उसे चुमा तो उस ने कहा कि आज क्या हुआ है सारा शरीर जल रहा है। पसीने से नहा गयी हुँ, मैंने कहा कि मेरा भी यही हाल है लग रहा है कि सारा शरीर जल रहा है। आशा मुझ से लिपट गयी और बोली की मुझे तो अब होश आया है जाने क्या क्या बक रही थी। मैं चुपचाप उस की पीठ सहलाता रहा। जब कुछ शान्त हुए तो मैंने कहा कि मुझे भी समझ नही आ रहा है कि आज ऐसा क्या हुआ है कि शरीर में बहुत गर्मी हो गयी है।

आज तो शराब भी नही पी है। आशा ने मुझे कन्धे पर काट कर कान में कहा कि हर रोज तुम्हारा नया रुप सामने आ रहा है। आज तो सही में जान ही निकल गयी थी। अभी तक शरीर जल रहा है। मैं उस के चेहरे को चुमता रहा। उस के हाथ मेरे लिंग पर पहुंचे तो उस ने कहा कि यह तो अभी भी तैयार है एक और बार के लिए। मैंने कहा कि पता नही आज क्या हो रहा है मेरी तो समझ के बाहर है। आशा ने कहा कि तुम्हारा कंडोम का आइडिया पहले तो मेरी समझ में नही आया लेकिन बाद में जब अन्दर गया तो पता चला कि इस से तो मजा कई गुना बढ़ गया। मैंने कहा कि मुझे भी कंड़ोम युज करना पसन्द नही है लेकिन वहां उसी समय दिमाग में आया कि इस्तेमाल कर के देखते है क्या होता है। लग नही रहा था कि यहाँ पर मिल पायेगा लेकिन मिल गया। सेक्स तो हर जगह एक सा ही है।

आशा बोली की आज तो शायद आधा धन्टे से ज्यादा समय लगा है मैंने कहा कि शायद चालीस मिनट लगे है वो बोली कि तभी तो कमर का बाजा बज गया है सुबह पता चलेगा कि चला भी जायेगा या नही तो मैंने कहा कि हम गोद में ले कर चलेगे इस पर उस ने मेरी पीठ पर जोर से मुक्का मारा। बोली कि कुल्हों का भी कचुमर निकाल दिया है। फिर उस का हाथ मेरे लिंग पर गया तो अभी भी तना था इस के कारण कंड़ोम चढा हुआ था उस ने उठ कर कंड़ोम उतारा और लिंग को मुंह में ले लिया। उस की जीभ को मेरे सारे लिंग पर महसुस किया कुछ देर बाद मैं फिर से स्खलित हुआ आशा के मुँह में और उस ने सारा वीर्य पी लिया और लिंग को चाट कर साफ कर दिया।

इस के बाद मैं भी उस की योनि की तरफ गया और उस से टपकते द्रव को पी गया तथा जीभ से पुरी योनि को चाट लिया। योनि पुरी तरह से साफ हो गयी। आशा के लिंग को साफ करने के बाद उस का तनाव भी चला गया और वह सिुकड़ कर सिमट गया। यह देख कर आशा बोली कि मालकिन के सामने ही ठन्ड़ा हुआ नही तो प्रेमिका के सामने तो इठला रहा था उस की बात सुन कर मेरी हँसी निकल गयी। मैंने कहा कि कह तो तुम सच रही हो मालकिन के सामने सारी हेकड़ी निकल गयी। वासना कहे या प्यार हम दोनों उस में पुरे डुबे हुए थे दोनों की हरकते समझ में नही आ रही थी। लेकिन प्रेम में डुबों का कोई आचार व्यवहार समझ से परे होता है। वही हालत हम दोनों की थी दोनों की समझ काम करना बन्द कर गयी थी।

इतने लम्बे संभोग के बाद शरीर थक गये थे और आराम के लिये तडप रहे थे जैसे ही आराम मिला दोनों गहरी नींद में डुब गये।

छटा दिन -----------------

सुबह जब आँख खुली तो सारा शरीर टुट रहा था सोने के बावजुद थकान हो रही थी मेरी कमर दर्द कर रही थी। मैं फिर से लेट गया। रात के लम्बे संभोग का परिणाम था। लेकिन मुझे इस का कोई गम नही था ये तो प्रेम की प्ररिकाष्टा का एक रुप था। आशा भी जब उठी तो उस के मुँह से कराह निकली, मुझे जगा देख कर बोली कि देखो ना क्या हालत करी है मेरी? मैं चुप रहा तो उस ने उठ कर मुझे चुमा और बोली की नाराज हो? मैंने कहा कि मैडम नाराज होने की हालत भी नही है मेरी, जैसी तुम्हारी है वही मेरी हालत है। उस ने उठने की कोशिश की तो उस की दर्द से कराह निकल गयी और बोली कि आज तो सच में बिस्तर से नही निकल पाऊँगी। मैंने उस के कान में कहा की हनीमून में तो ऐसा ही होता है।

मेरी बात सुन कर उस के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी और वह कराहती हुई उठ कर बैठ गयी। बोली कि तुम्हें याद है कि तुमने दीदी के साथ हनीमून पर क्या करा था? मैंने हँस कर कहा कि हम तो हनीमून पर जा ही नही पाये। और क्या करा? ये तो एक पुरी कहानी है। ना सुनो तो अच्छा है। वह बोली कि इस उम्र में मेरे साथ ऐसा हुआ है तो उन के साथ जवानी में क्या हुआ होगा मैं आज समझ सकती हुँ। मैंने हँस कर कहा कि जब मिलो तो खुद ही पुछ लेना। यह कह कर मैं किचन में चाय बनाने चला गया जब चाय ले कर आया तो आशा कपड़ें पहन कर बेड पर बैठी थी मुझे देख कर बोली कि कपड़ें तो पहन लिजिये पहलवान जी ठन्ड आपकी प्रेमिका नही है।

मैंने अपनी हँसी रोकी और कहा कि मुझे ठन्ड नही लग रही है तो उस ने आँख तरेर कर कहा कि कुछ और करने का इरादा है तो छोड़ दो। मैंने नीचे देखा तो लिंग सिकुड़ा पड़ा था मैंने कहा कि इस हालत में कुछ हो भी नही सकता। मेरी तरफ देख कर उस की हँसी फुट पड़ी और उस ने मेरे हाथ से चाय का कप ले लिया, मैंने अपना कप मेज पर रख कर अपने कपड़ें ढुढ़ कर पहन लिये। फिर कुर्सी पर बैठ कर चाय पीने लगा। चाय पीते हुए आशा ने पुछा कि मुझे तो कुछ अनुभव नही है तुम्ही बताओ कि कल रात जो हुआ वैसा कभी हुआ है? मैंने याद करके कहा कि शायद एक बार पत्नी के साथ हुआ था लेकिन वह कल से बहुत कम था लेकिन था ऐसा ही कुछ। बाद में कई बार कोशिश की कि वैसा मजा फिर आये, लेकिन ऐसा हो नही पाया।

कारण मुझे आज तक समझ में सही आया है। मैंने कहा कि यह बात मायने रखती है कि दोनों को आनंद आया। उस ने सर हिलाया। चाय पी कर दोनों के शरीर में स्फुर्ति सी आ गयी थोड़ी देर बाद आशा तो नहाने के लिए चली गयी और मैं रात के बारे में सोचता रहा। वह जब बाथरुम से निकली तो चहक रही थी मेरे पास आ कर बोली की गर्म पानी ने तो सारी थकान मिटा दी है तुम भी नहा लो। मैं भी जब नहाने गया तो जैसे ही गर्म पानी शरीर पर पड़ा सारी थकान शरीर से निकल गयी और एक नही स्फुर्ति शरीर में भर गयी। रात की थकान गायब हो गयी थी। बाहर आ कर आशा के पास आया तो वह बोली कि रात को मैंने बहुत कुछ तुम से कहा क्योम कि मैं इस आनंद की आदी नही हुँ इस लिए मुझे माफ कर दो। शरीर के इस आनंद को मैं नही जानती थी? लेकिन अब पता चल गया है कि यह तो स्वर्गिक आनंद था जो शायद किसी-किसी को मिलता है।

नाश्ता करने के बाद तय किया कि आज वहाँ जायेगे जहाँ से बर्फ से ढ़की पर्वत श्रखला दिखाई देती हैं। आधा धन्टे के सफर के बाद पहाड़ के शिखर पर पहुँचे जहाँ शिवजी का प्राचीन मन्दिर था तथा यहाँ से बर्फ से ढ़के पर्वत शिखर साफ दिख रहे थे। मौसम साफ था इस कारण दृश्य मनोरम था काफी देर तक उस को ही देखते रहे मन ही नही भर रहा था। फिर थोड़ी दूर पहाड़ी के ऊपर जा कर नीचे की घाटी का मनोरम द्धश्य देखने लगे। इस में काफी देर हो गयी। नीचे चलने का समय हो गया था वहाँ से जब चले तो अचानक हवा चलने लगी, यह देख कर ड्राइवर बोला कि सर मौसम खराब होने वाला है आप लोग अच्छे रहे की आप को मौसम साफ मिला।

लौटते में फिर से बारिश होने लगी। रिसोर्ट पहुंचते-पहुंचते जोर की वर्षा होने लगी थी। शाम हो रही थी और कुछ करना भी नही था इस लिये चाय का ऑडर किया और उस के साथ पकौड़े आदि भी मंगवा लिये। बारिश में गरमागरम पकौडे़ हो तो मजा आ जाता है। बाहर बैठ कर बारिश का आनंद लेते रहे फिर अंधेरा घिरने पर अन्दर आ गये। कल यहाँ से वापस जाना था इस लिए उस की तैयारी भी करनी थी क्योकि सुबह ही निकलना था। सामान पैक करना शुरु कर दिया। फोन कर के कल के लिए गाड़ी के लिए बोल दिया। खाना मँगा कर खाने के बाद एक बार फिर से सामान चैक किया कि कही कुछ छुट तो नही गया है। सोने के लिए बिस्तर में घुसे तो आशा ने कहा कि आज कुछ नही यूज करना है। मैंने सर हिलाया।

उस ने अपने आप ही कपड़ें उतार कर रख दिये मैंने भी उसी की तरह किया। आज इस सफर का अन्तिम दिन है अब वापस उसी माहौल में लौट जाना है। दोनों इसी तरह के विचारों में मग्न थे फिर दोनों एक साथ बोले की चलो सोते है यह सुन का हम दोनों की हँसी निकल गयी। मैंने आशा को अपने आंलिगन में लेकर कहा कि कहो तुम्हारा हनीमून कैसा रहा? उस ने कहा कि बहुत बढ़िया रहा इस की तो कल्पना भी नही करी थी। उस के हाथ मेरी पीठ सहला रहे थे।

मेरे हाथ उस की पीठ पर थे। मैंने पुछा कि कुछ कमी तो नही लगी? उस ने कहा कि यह तो तुम ही बता सकते हो कि कुछ कमी तो नही रह गयी। मैंने कहा कि जो रह गयी होगी उसे वापस जा कर पुरा कर लेगे। इस सहलाने से दोनों के शरीर में उत्तेजना भरनी शुरु हो गयी थी। थोड़ी देर बाद ही शरीर की प्यास जग गयी और दोनों शरीर एक-दूसरें में समा जाने के लिए आतुर हो गये। फिर वहीं पुरातन खेल आरभ्य हो गया दौड़ शुरु हो गयी कोई भी रुकने को तैयार नही था फिर अचानक लावा फटा और सफर खत्म हो गया। दोनों थक कर एक-दूसरें की बांहो में सो गये।

सांतवा दिन ----------------

सुबह अलार्म बजा तो आँख खुली आज कोई खतरा लेने का समय नही था समय से निकलना जरुरी था नही तो अपने शहर वापस लौटने में काफी देर हो सकती थी। उठ कर आशा को जगाया और नहाने के लिए चला गया वहाँ से आया तो आशा नहाने के लिए चली गयी। आ कर नाश्ते का ऑडर किया और सारे सामान को एक तरफ रखा तथा एक बार फिर से सारी जगह को देखा कि अपना कुछ सामान रह तो नही गया है। गीले कपड़ें भी रख लिए तभी नाश्ता भी आ गया। नाश्ता करते में मुझे याद आया कि हमें पहुंचते हुए रात हो जायेगी इस कारण से मैं अपने घर नही जा पाऊँगा। तो मैंने आशा ने पुछा कि उस के घर पर रात को उसकी सहेली तो सोने नही आयेगी।

इस पर उस ने कहा कि मैंने उसे मना कर दिया था फिर भी रास्ते में फोन कर के दुबारा मना कर दुँगी तुम इस के लिए परेशान ना होओं। मैंने कहा कि मुझे रात को तुम्हारे घर पर ही रुकना पड़ सकता है तो उस ने कहा कि इस के लिए आप परेशान मत हो मैं संभाल लुगी। नाश्ते के बाद गाड़ी वाला आ गया पैमेन्ट तो पहले ही किया हुआ था इस लिए स्टाफ को टिप देकर हम दोनों वापसी के लिए चल पड़े। रास्ता लम्बा और थकाऊ था लेकिन आशा का साथ होने के कारण कट गया। जब अपने शहर पहुँचे तो रात हो चुकी थी। घर पर पहुँच कर सामान उतार कर गाड़ी वाले को पैमेन्ट किया और घर में घुसे तो घर खाली था, आज आशा की दोस्त नही आयी थी।

हम दोनों अकेले थे। सामान रख कर आशा ने कहा कि भुख लग रही है कुछ खाने के लिए मंगा ले तो मैंने कहा कि मैंने रास्ते से ऑडर कर दिया था लेकर आ रहा होगा। थोड़ी देर में ही खाना आ गया। आशा ने कहा कि तुम्हारे दिमाग का क्या कहना है सब बात ध्यान में रहती है मैंने सर झुका कर धन्यवाद कहा तो मेरी पीठ पर मुक्का लगा। मैंने कहा कि ये तो गुलाम के साथ अच्छा व्यवहार नही है। आशा ने कहा कि चुप करो नही तो और पिटुँगी।

खाना खा कर मैंने कहा कि मेरा सामान अलग कर दो और जो कुछ वहाँ से खरीदा है उसे यही रख लो मैं उसे नही ले जा रहा हूँ तो आशा ने कहा कि मैंने पहले ही अलग कर दिया है केवल आप का सामान ही है फिर भी एक बार देख लो। मैंने सुटकेस खोल कर देखा और कहा कि सही है। आशा मेरे पीछे आ कर मुझे बांहों में भर कर खड़ी हो गयी और बोली कि यह सब सपने की तरह लग रहा है। मैंने कहा कि यही सपना नही है यथार्थ है यकीन करो। उस ने पीछे से ही मुझे चुमना शुरु कर दिया।

उस की गरम सांसे मेरी गरदन पर महसुस हो रही थी। मैंने उसे पकड़ कर आगे की तरफ कर लिया उस की आँखे गीली थी। मैंने उन्हे चुम कर कहा कि अब क्या बात है तो उस ने कहा कि कुछ नही ऐसे ही । मैंने कहा कि अब तो रोज मिलना होगा फिर रोना क्यो आ रहा है? वह कुछ नही बोली मैंने भी उसे ज्यादा नही पुछा। जब सोने लगे तो उस ने कहा कि वहाँ पर एक बात हम नही कर पाये मैंने पुछा क्या? तो उस ने कहा कि तुम मुझे कुछ सजा देने की बात कर रहे थे मैंने कहा कि वह तो मजाक था ऐसा कुछ नही था।

मैंने उसे गोद में उठाया और बेड पर लिटा दिया और उस के पास बैठ गया उसे कुछ याद आया तो बोली कि मैं अभी आती हूँ मैंने हैरान हो कर कहा कि कहा चली तो वह बोली की सारा घर देख कर आती हूँ मैंने कहा कि मैं भी साथ चलता हूँ यह कह कर मैं भी उस के साथ चल दिया। हम दोनों से सारा घर अच्छी तरह से देखा और हर दरवाजे को चैक किया फिर बेडरुम में वापस लौटे। वह बोली कि सारा मूड खराब कर दिया मैने। मैंने कहा कि यह बहुत जरुरी काम था अच्छा हुआ तुम्हे याद आया। मूड की क्या है अभी फिर बना लेते है।

यह कह कर मैंने उसे बांहों में भर कर चुमना शुरु कर दिया। मेरी प्रेयसी मेरे से ऐसे लिपटी की सालों बाद मिली हो। हम दोनों जाने कितनी देर तक आंलिगनबंध रहे फिर मैंने उसे उठा कर बेड पर लिटा दिया। गाड़ी में बैठे-बैठे पीठ और कमर अकड़ गयी थी दोनों पीठ सीधी करने के लिए लेट गये। पीठ सीधी होते ही दोनों की आँख लग गयी। आँख जब खुली तो रात आधी बीत चुकी थी। आशा झट से मेरे ऊपर आ गयी और उसके होंठ मेरे होंठों से चुपक गये। हाथ अपना काम करने लगे। मैंने उस की पेंटी खिसका कर ऊंगली योनि में डाली तो वह तैयार थी मेरे लिंग का स्वागत करने के लिए मैंने उस के कपड़ें उतारे और अपने भी उतार दिये।

आशा ऊपर से कमांड में थी उस ने अपने हाथ से लिंग को योनि में डाला और कुल्हें ऊपर नीचे करने लगी। उस की धीमी गति मुझे अच्छी लग रही थी। आज थके होने के कारण ताकत दिखाने का जौश नही था। उस के कुल्हों की गति बढ़ती गयी और वह और मैं एक साथ चरम पर पहुंचे। दोनों पसीने से नहा रहे थे। चरम के बाद की गर्मी और थकान के कारण कब दोनों की आँख लग गयी पता नही चला। सुबह जब मेरी आँख खुली तो आशा मेरे ऊपर अधलेटी पड़ी थी मैंने उसे अलग लिटाया और खुद जाने के लिये तैयार होने से पहले नहाने चला गया।

जब नहा कर आया तो आशा चाय ले कर खड़ी थी। बोली की कहो तो नाश्ता बना दूँ मैंने मना कर दिया। कपड़ें पहन कर अपना सुटकेस उठा कर मैं अपने घर जाने के लिए निकला तो आशा बोली की घर पहुँच कर मुझे फोन करना मैंने कहा कि ऑफिस जा कर फोन करुँगा। घर से थोड़ी दूर जा कर गाड़ी करी और अपने घर पहुँच गया। घर पर पहुँच कर सामान रख कर ऑफिस के लिए तैयार होने लगा तो पत्नी बोली कि अभी तो आये हो थोड़ी देर में चले जाना। मैंने कहा कि नहीं जल्दी है और मैं यह कह कर घर से निकल गया। ऑफिस पहुँच कर आशा को फोन कर के बताया कि ऑफिस आ गया हूँ और काम कर रहा हूँ उस ने कुछ नही कहा।

कई दिन गुजर गये, मेरी आशा से मुलाकात नही हो पायी। सिर्फ फोन पर बात हो पाती थी, काम का बोझ काफी था इस कारण से उस से मिलना नही हो पा रहा था। एक दिन जब ऑफिस में काम कर रहा था तभी पत्नी का फोन आया कि फौरन घर पर आने को कहा, मैं ने कुछ पुछना चाहा तो उस ने फोन काट दिया। मैं जब घर पहुँचा तो देखा कि आशा घर पर आई हुई थी। मुझे कुछ-कुछ समझ में आ गया लेकिन चुपचाप जा कर बैठ गया। पत्नी ने मुझ से पुछा कि यह सब कब से चल रहा है, मैंने पुछा कि क्या कब से चल रहा है? तो उस ने आशा की तरफ देखा, मुझे लगा कि अब कुछ भी छुपाना सही नही रहेगा तो मैं जैसे ही बोलने को हुआ तो आशा ने कहा कि मैंने दीदी को सब कुछ बता दिया है, दुबारा से बताने की जरुरत नही है, यह सुन कर मेरी पत्नी ने मेरी तरफ घूर कर देखा और आँखों में ही पुछा कि सही क्या है? मैंने हाथ के इशारे से आशा को चुप रहने को कहा और पत्नी से कहा कि ज्यादा समय नही हुआ है।

वैसे भी तुम सब कुछ पकड़ लेती हो तो ऐसा हो ही नही सकता कि यह बात तुम से लम्बे समय तक छुप सकती। मेरी बात सुन कर उस ने कहा कि मुझे लग तो रहा था कि मेरे ना पुछने पर तुम कही और जा सकते हो लेकिन लगता था कि ऐसा नही होगा, लेकिन मैं गलत थी, मेरी गलती ने तुम्हें बाहर जाने को मजबुर किया है यह मैं मानती हूँ लेकिन अगर तुम्हें इस से प्यार हो गया है तो मैं कुछ नही कर सकती, अब तुम पर है कि तुम मेरे साथ क्या करते हो? मैंने कहा कि मैं किसी के साथ कुछ नही करने वाला हूँ जैसा चल रहा है वैसा ही चलता रहेगा। मेरी बात सुन कर पत्नी ने कहा कि ऐसा कैसे होगा। मैंने कहा कि तुम्हें तो मेरे से वैसे भी प्यार नही है, ना शारीरिक संबंध में दिलचस्पी है तो तुम्हें इस से क्या फर्क पड़ेगा। जो कुछ फर्क पड़ेगा तो मुझे पड़ेगा, मैं कैसे इस सब को संभालुगा? समाज की चिन्ता भी मैं ही करुँगा।