अधेड़ उम्र का प्रेम

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उस को फोन किया तो पता चला कि ऑफ सीजन के कारण रेट भी सस्ते है और भीड़ भी नही है भरपूर एकान्त है। मैंने एक कॅाटेज सात दिन के लिए बुक कर कहा कि पहुँचने का क्या जरिया है? इस पर उस ने कहा कि आप बताओ कब निकलता चाहते है मैं गाड़ी भेज दुँगा, मैंने पता दिया और दो घन्टे बाद आने के लिए कह दिया। टैक्सी पकड़ कर आशा के घर पहुचा और उस से कहा कि वह तैयार हो जाए, उस ने कहा कि कितनें दिनों के कपड़ें रखूँ। मैंने कहा कि सात दिन के रख लो। उस ने सामान सुटकेस में रखना शुरु कर दिया। मैंने उस से पुछा कि पीछे घर की सूरक्षा कैसे होगी तो उस ने बताया कि उस की एक सहेली शाम को घर पर आ जाया करेगी।

हम दोनों एक घन्टे में चलने के लिए तैयार हो गये, सारा सामान रख लिया गरम कपड़ों की जरुरत तो नही थी लेकिन शाल और स्वेटर रख लिया। जैल की टयूब भी रख ली। मैंने आशा से पुछा कि और कोई दवा तो नही रह गई उस ने कहा कि नहीं सब रख ली है। खाना खा कर हम दोनों बातें करते रहे। थोड़ी देर में ही गाड़ी वाले का फोन आ गया उस को पता बता कर सामान बाहर रख कर घर को बन्द कर के खडे़ं ही हुए थे कि गाड़ी आ गयी। गाड़ी में सुटकेस रखवा कर दोनों उस में बैठ गये। ड्राईवर से पुछा कि कितनें घन्टे का सफर है तो उस ने कहा कि आठ से दस घन्टें लग सकते है। आशा ने अपनी सहेली को फोन कर दिया।

सफर ठीक रहा, मौसम सुहावना था। शहर के बाहर आ कर खुले माहौल का आनंद लेते हुए कब मंजिल आ गई पता ही नही चला। रिसोर्ट बिल्कुल पहाड़ी पर बना हुआ था, कॅाटेज एक दूसरें से दूर-दूर पहाड़ी पर बिखरे हूये थे। भरपूर एकान्त था, कोई भी परेशान करने वाला नही था। खाने के लिए बढ़िया रेस्टोरेन्ट था। सामान कॅाटेज में पहुँचा दिया गया और वहाँ की किचन में भरपूर सामान था। हम दोनों को अपने लिए इसी एकान्त की आवश्यकता थी। इस सब को देख कर आशा बहुत खुश थी। उसका तो बाहर जाने का यह पहला अवसर था।

अटेन्डेन्ट जो एक लड़की थी, उस ने हम से रात के खाने के लिए पुछा और सुबह की चाय के बारे में पुछ कर वह चली गई। उस के जाते ही आशा मुझ से लिपट गई और बोली की यह सब कब कर लिया? मैंने कहा कि तुम्हारें पास से जा कर ऑफिस गया और घर जा कर सामान पैक करके निकला तो कुछ पता नही था फिर इस जगह की याद आई और बन्दे को फोन किया तो जगह मिल गई बाकी तो तुम्हें पता ही है। उस के उत्साह की कमी नहीं थी वो बोली की बाहर तो बर्फ से ढ़के पहाड़ दिख रहे है, मैंने कहा कि सीजन में तो इस जगह की बुकिंग मिलती नही है। हमारी किस्मत अच्छी है की अभी ऑफ सीजन चल रहा है।

पहला दिन -------

हम दोनों सफर से थक गये थे इस लिए मैं तो नहाने के लिए बाथरुम में जा रहा था तो आशा बोली की यहाँ कोई काम अकेले करने की इजाजत नही है। मैं रुक गया और बोला कि नहाने के अलावा और कुछ हुआ तो, वह शरारत से बोली की इस लिए तो अकेले करना मना है। मैंने कहा कि फिर चलों नहाते है।

हम दोनों कपड़ें उतार कर बाथरुम में घुस गये। पानी गरम करने लगा दिया। बड़ा बाथरुम था, एक तरफ बाथटब लगा हुआ था शावर भी था। मैंने कहा कि कभी बाथटब में नहाने का मौका नही मिला है, आज इस में ही नहाते है। टब को पानी से भरने के लिए लगा दिया। उस में साबुन मिला कर पहले आशा लेट गई फिर मैं भी घुस गया, गरम पानी से शरीर को आराम मिला, थकान मिटने लगी। मैंने ने आशा को अपने से लपेट लिया। उस ने भी मुझे चुमना शुरु कर दिया। मैंने हाथों से उस के बदन के रगड़ना आरम्भ किया, इस मालिश से आशा के शरीर की थकान मिट गई और वासना की आग लग गई। उस ने मेरे निप्पलों को दांत से काटना शुरु कर दिया। मैंने उसे अपने शरीर से खेलने दिया, उस को यह मौका काफी देर से मिला था।

मैं तो पानी की गरमी और उस के शरीर की गरमी का मजा ले रहा था। जब वो थक गई तो मैंने उस के उरोजों को हाथों से मसाज करना शुरु किया। उरोज किसी पच्चीस साल की नवयौवना जैसे उठे हुए थे। मेरे लिए तो यह वरदान था, उस के कुल्हों पर ज्यादा मांस नही था लेकिन मांसल तो थे ही कमर भी पतली थी मैं तो पहली बार उस को इतना ध्यान से देख रहा था इस बात को आशा ने पकड़ लिया। वह बोली की अब सब काम आँखों से ही करोगे। मैंने कहा कि इन की प्यास भी तो मिटानी है। वह हँसी। मैंने उस के कुल्हों पर हाथों से दबाव बनाया। फिर जाँघों में बीच हाथ सरका कर योनि को सहलाया, उस ने भी मेरे लिंग को सहलाना शुरु कर दिया, महाराज तो पुरा तन कर खडे हो गये, मैं टब के किनारे पर बैठ गया, आशा को मनमाफिक मौका मिल गया।

उस ने तने हुए लिंग को मुँह में ले लिया। वह मजे से लेटी हुयी लिंग को चुस रही थी, मेरा बैठना मुश्किल हो रहा था। लेकिन मैं उस के मजे का रोकना नही चाहता था उस ने अपने मन की कर ली। वीर्य निकल कर उस के होंठों पर गिर रहा था। मेरे शरीर में करंट की धारा दौड़ रही थी। मैं भी आनंद से कांप सा रहा था। आशा ने उठ कर मेरे होंठों पर अपने वीर्य से सने होंठ रख दिये मैं भी अब अपने ही वीर्य का स्वाद ले रहा था। ये भी नमकीन कसैला सा था। उस की जीभ मेरे मुँह में घुस कर सारा स्वाद अन्दर डाल रही थी।

अब मेरी बारी थी मैंने आशा को किनारे बिठा कर उस की योनि को चाटना शुरु किया। आज तो मौका था मैंने उस की योनि के लिप्पस को अलग कर के जीभ को अन्दर डाल दिया। वह भी वासना की उमंग के कारण कांप रही थी। मैंने जीभ के साथ ऊंगली भी योनि में डाल कर जी स्पाट को सहलाना शुरु किया। योनि के कलोरिट को चुसना शुरु किया। आशा हिलने लगी। थोडी देर बाद मेरे चेहरे पर पानी की धार गिरी, आशा के मुँह से सिसकिया निकली। आहहहहहहहहहहहहहहह उईईईईईईईईईईईईईईईईईईई आहहहहहहहहहहहहहहहहहहहह......

वह भी डिस्चार्ज हुई थी उस के शरीर में लहरें सी उठ रही थी और इस के साथ योनि द्रव की धार मेरे चेहरे को भिगोती रही। मैंने उसे वापिस पानी में घसीट लिया। अब वह मेरे चेहरे को चाट कर अपने डिस्चार्ज द्रव का स्वाद ले रही थी। अनोखा अनुभव था दोनों ने चरम सुख का आनंद लिया था लेकिन दोनों के शरीर एक दूसरें से मिले नही थे। इस के बाद और कुछ करने की शक्ति बची नही थी। दोनों नहा कर बाहर निकल आये।

कपड़ें पहन कर हम दोनों ने चाय बनायी और उस की चुस्कियां लेते हुए बेड पर रजाई में दुबक गये। आशा बोली की मेरे को तो बड़ी शरम आ रही थी, मैंने कहा कि इस में शर्म की क्या बात है जैसे आदमी डिस्चार्ज होते है वैसे ही औरतें भी होती है, कहते है कि औरतें काफी कम ही इस चरम सुख को पा पाती है। वो हँस कर बोली की प्रोफेसर साहब कोई विषय है जिस की आप को जानकारी ना हो। मैं हँस गया कि जब किसी चीज की कमी हो तो उस के बारे में जानकारी रखनी पड़ती है। मेरा काम ही रिसर्च करना है।

ज्यादा ज्ञानी होने का नुकसान होता है। यह मैं जानता हूँ, मेरी इस बात को सुन कर आशा ने कहा कि अगर बुरा लगा तो माफ कर दो। मैंने कहा की माफी की बात ही नही है। ज्ञानी होने के अपने नुकसान है। यह कह कर मैं भी हँस दिया। मैं माहौल को खराब नही करना चाहता था। आशा ने यह बात महसुस कर ली और वह मेरी हथेलियों को पकड़ कर चुम कर बोली कि बहुत बुरा लगा है माफ कर दो। कान पकड़ती हूँ आगे ऐसा नही होगा। मैं ने हँस कर कहा कि अब तुम भी इस को छोड़ दो। उस ने अपना चेहरा मेरी छाती में छुपा लिया, मेरी छाती में गरमाहट होने लगी मैंने उस का चेहरा उठाया तो वह आँसुओं से भरा हुआ था मैंने उस का माथा चुमा और उसकी दोनों आँखों को चुम कर कहा कि इस में रोने की बात नही है।

मैंने भी आज ही किसी के डिस्चार्ज का अनुभव किया है। समझ लो की मैं कितने सालों से विवाहित हूँ ये तो तुम जानती हो। फिर भी यह मेरा पहला अनुभव है। इसी लिए वह बात कही थी, ये तो शायद मेरी मेहनत का नतीजा था। उस के होंठों पर मद्मिम हँसी आयी। इनाम तो बनता है, वह बोली जो चाहिए ले लो, सारा तो तुम्हारा है। मैंने शरारत से कहा कि ना मत करना। उसे शरारत का अहसास हुआ और उस ने अपने मुक्के मेरी छाती पर मारने शुरु कर दिये, मैं हँसी से लोटपोट हो गया। मैंने कहा तुम ने क्या समझ लिया। उस ने जबाव नही दिया।

रात हो गयी थी मैंने कहा कि खाना मँगा ले, उस ने कहा कि उसे भी भुख लग रही है मैंने इन्टरकॅाम पर खाना लाने को कह दिया, थोड़ी देर में खाना सर्व हो गया। मैंने खाना लाने वाले से कहा कि बरतन सुबह चाय लाते समय ले जाए।

खाना स्वादिस्ट था, भुख भी थी, इस लिए पेट से ज्यादा खा लिया गया। खाना खाने के बाद मैंने पोर्टेबल स्पीकर पर रोमांटिक संगीत लगा दिया। मध्यम संगीत ने शमा और रंगीन कर दिया। मैंने आशा से कहा कि मेरी बात का बुरा मत मानना, कई सालों के पत्नी के जिद्दी व्यवहार से मेरा व्यवहार ऐसा हो गया है मेरे में भी सामान्य आदमी की तरह कमियाँ है। उस ने मेरे हाथ पकड़ कर अपने सर पर रख लिया और चुप हो गई। मैंने उसे चुम कर कहा कि मैं बड़ा बुरा आदमी हूँ। आशा बोली कि मुझे तो बिल्कुल भी अनुभव नही है। यह कह सकते हो कि मेरा तो दुसरा दिन है मैंने कहा कि इस की सजा तो बनती है यह कह कर मैंने उसे फैन्च किस कर लिया। उस ने भी वैसे ही जबाव दिया। इस से हमारे इस विवाद का अन्त हुआ।

संगीत का असर माहौल पर हो रहा था। संगीत ने दोनों को तनाव मुक्त कर दिया। हम दोनों काफी देर तक एक दूसरें की बाहों में पड़े रहे। मैं ऊठ कर सुटकेस के पास गया और उस में से दवाओं का डिब्बा निकाल कर बाथरुम में चला गया। वहाँ जा कर वैद्यराज के दिये तेल को निकाल कर उस से लिंग पर मालिश की। मालिश से सारा तेल मासंपेशियों ने सोख लिया। दो और दवाओं की गोलियों को निकाल कर कमरे में आ कर पानी के साथ खा लिया। आशा ने पुछा की किस बात की दवा है, मैंने कहा कि सोचों कि किस बात की दवा है?

उस ने सोच कर कहा कि तुम को जिस की ज्यादा चिन्ता थी उसी की दवा है शायद, मैंने कहा कि तुम्हारा अनुमान सही है। इस का असर कल ही तुम ने देखा था। इस दवा ने मेरे आत्मविश्वास को लौटा दिया है। इस दवा का भी बड़ा शुक्रगुजार हूँ। सेक्स की कमजोरी भी बड़ी परेशान करती है। तुम ने तो बड़ी बात की थी कि मेरी इस परेशानी की परवाह नही की। मेरी यह बात सुन कर आशा रजाई से निकल कर मैरे पास आ कर लिपट कर बोली की सेक्स के लिए दोस्ती नही की थी। मन से दोस्ती की थी सेक्स तो मुफ्त में साथ में मिला है। नही मिलता तो भी कोई गम नही था। मैंने कहा तुम्हारी इसी बात ने तो मेरा मन जीत लिया था।

सेक्स का भी जीवन में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है, इस को मानना चाहिए।

हाँ यह तो है।

अब क्या करना है?

सोते है। कुछ करने की ताकत है

हां है तो सही, ज्यादा लम्बा नही करेगे।

चलो करके, कम या ज्यादा देखते है।

मैंने कहा पहले थोड़ी देर आराम करते है फिर कोशिश करेगें।

मैं लेटा हुआ था और मेरे पेट पर आशा सर रख कर लेटी थी। उस को इस में आराम मिल रहा था। मैं भी उसे देख पा रहा था। अपने हाथ से मैं उस के बालों को सहला रहा था। थोड़ी देर में मेरा हाथ सर से होता हुआ उस की छाती पर पहुँच गया। नाईट सुट के नीचे उस ने कुछ नही पहना था सो हाथों को किसी चीज का अवरोध नही मिला। वे भरे पुरे कठोर उरोजों को सहला रहे थे धीरे धीरे सहलाना खत्म हो गया और मसलना और दबाना आरम्भ हो गया। उसे भी यह अच्छा लग रहा था इस लिए उस ने अपनी पोजिशन बदली नही। इस का असर मेरे लिंग पर पड़ा और उस में कठोरता आनी शुरु हो गई। मैं बेड पर बैठ गया अब आशा मेरी गोद में लेटी थी। मैंने उस के नाईटसुट के बटन खोल दिये।

दोनों उरोजों को नंगा देख कर मेरे से रहा नही गया और मैंने गरदन झुका कर उन को चुमना चाहा, मेरी मंशा भाप कर आशा ने नीचे खिसकने की कोशिश की लेकिन मेरे हाथों ने उस के उरोजों को पकड़ कर उसे रोक दिया। दोनों निप्पल मेरे हाथों में थे मैं उन्हें खीच रहा था आशा को दर्द हो रहा था। मेरा चेहरा उस की छातियों के उपर झुका था मैंने अपने मुँह में उस के उरोज को पुरा भरने की कोशिश की और उसके बाद उस को निगलने का प्रयास किया मेरे दांत उस के उरोजों को काटने के लिए आतुर थे लेकिन वह ऐसा कर नही पा रहे थे क्योकि मुँह तो उरोज से भरा हुआ था दबाने की जगह नही थी। मेरी इस हरकत ने आशा के शरीर में उत्तेजना बढ़ा दी।

मैंने उस के कसे हुए पेट पर हाथ फिराया और फिर हाथ पीछे ले जा कर उस के कुल्हों को दबाया। वह मेरी गोद में उलट गई अब उस की पीठ मेरे सामने थी मैं उस की गरदन पर चुम्बन करता हुआ पीठ से होता हुआ कमर के नीचे की गहराई में पहुँचा मेरे होंठों की हरकतों से उस ने सिसकी ली। मैंने उस को खीच कर उस के कुल्हों को अपने सामने कर उन पर चुम्बन लेना शुरु कर दिया मेरा एक हाथ कुल्हों के बीच से होता हुआ योनि तक पहुँच गया था। ऊंगली जब अन्दर घुसी तो योनि पानी से भरी थी। मुझे लगा कि अब देर नही करनी चाहिए।

मैंने उस को पीठ के बल बेड पर लिटा दिया और उस के कपडे़ं उतार दिये। अपने कपड़ें भी निकाल दिये। फिर उस के पांवों के बीच बैठ कर लिंग को जो अब पुरे साईज का था योनि के मुँह पर लगा कर धक्का दिया। लिंग पहली बार में ही आधा घुस गया। आशा के मुँह से सिसकी निकली लेकिन मैंने दूसरें वार में लिंग को पुरा योनि में धकेल दिया। आशा ने अपने दांत मेरे कन्धे में गढ़ा दिये मेरे शरीर में दर्द की लहर दौड़ गई, लेकिन इस से मेरी गति पर कोई असर नही पड़ा मैं स्थिर गति से धक्कें लगाता रहा। नीचे से उस की कसमसाहट को काबु में करने के लिए मैंने उस के हाथ उस के सर के ऊपर कर के उन्हें अपने हाथों से कस कर पकड़ लिया अब वह मुझे चुनौती नही दे सकती थी।

मेरा सारा शरीर सीधा हो कर धक्कें देने में लगा हुआ था। नीचे ने आशा की आवाज आई की आज मेरे अंग-अंग को तोड़ तो। और जोर से जोर से। कमरे में फच फच की आवाज भर गई। मेरा उदेश्य था कि जल्दी ही स्खलित हो जाऊ लेकिन यह होना आसान नही था। नीचे आशा की योनि पर प्रहार पर प्रहार मेरा लिंग कर रहा था हर प्रहार पर उस के मुँह से सिसकियां निकल रही थी। आशा ने फिर अपने दांतों से मेरे कन्धे को काटा तो मुझे चेतना सी आई मैंने अपने गति कम की, आशा बोली कि कहाँ जाने की जल्दी हो रही है धीरे-धीरे कर लो या आज मेरी कमर तोड़ने का इरादा है। कल में खड़ी भी नही हो पाऊँगी, मैंने कहा कि तुम्हें खड़ी हो कर करना क्या है। बिस्तर में ही पड़ी रहना। उस ने कहा कि पिछला सारा आज ही निबटाना है। मैंने सॅारी कह कर लिंग को निकाल लिया। उस ने कहा कि यह करने को तो नही कहा?

मैंने लेट कर उसे उठा कर अपने ऊपर कर लिया और कहा कि अब उस की बारी है लेकिन जोर कम लगाना है। उस ने कुल्हें उठा कर हाथ से लिंग को योनि पर लगा कर धीरे से उसे अन्दर कर लिया। मैंने कहा की मेरी गल्ती थी मैं ज्यादा ही तेज हो गया था, अब तुम्हारी बारी है जिस गति से करना हो करो। उस ने कहा कि नाराज हो मैंने कहा नही नाराज होने की बात नही है दो आदमी मिल कर कुछ कर रहे है तो दोनों में सहमति तो होनी चाहिए। उस की गति बहुत धीमी थी उस के कुल्हों में पहले ही दर्द हो रहा था। थोड़ी देर में ही वह मेरे बगल में लेट गई और बोली की अब मेरे से नही हो रहा।

मैं ने उसे पीठ की तरफ से अपनी तरफ कर के उस की एक टांग उठा कर अपनी टांग पर रख कर पीछे से लिंग को उसकी योनि में डाल दिया। इस आसन में लिंग पुरा तो नही जाता लेकिन लिंग योनि को उल्टी तरफ से रगड़ता है तो स्त्री को ज्यादा मजा आता है। आशा के साथ भी ऐसा ही हो रहा था वह इस पोजिशन का मजा ले रही थी। मैं भी इस में ज्यादा जोर नही लगा रहा था। हाथों से उरोजों को मसलता रहा। आश बोली की अब ऊपर आ जाओ नही तो मैं तुम पर चढ़ जाऊँगी। मैं ने उस की बात मानी और उस को पलट कर उस पर सवार हो गया। मेरा सारा ध्यान इस तरफ था कि उस को पहले की तरह कष्ट ना हो। उस ने कहा कि जब डिस्चार्ज होने वाले हो तो लिंग को निकाल लेना मुझे मुँह में वीर्य चाहिए मैंने कहा जैसा सरकार चाहे, इस पर उस की हँसी निकल गयी।

मुझे लगा कि अब वह समय आने को है तो मैंने लिंग को योनि से निकाल लिया और आगे खिसक कर उस के चेहरे के पास पहुँच गया। उस ने लिंग को अपने मुँह में ले कर चुस लिया। मेरी सिसकियां निकलने लगी उस ने मेरे कुल्हों पर हाथ जमा कर उन्हे मुँह से सटा लिया। मैंने दो तीन झटके खाये और मेरा ज्वालामुखी उस के मुँह के अन्दर फट गया। उस ने सारा वीर्य निगल लिया। लेकिन मेरे को छोड़ा नही। मैं बैठा हुआ हिलता रहा। उस के मुँह से वीर्य बाहर आ रहा था। मेरे शरीर का तनाव कम हो गया था, जब लिंग का साईज छोटा हो गया तो वह आशा के मुँह से निकल गया मैं ने झुक कर उस के होंठों को चुम कर अपने ही वीर्य का स्वाद लिया। उस के चेहरे पर सन्तुष्टी के भाव थे। मैं भी उस की बगल में लेट गया।

उस ने पुछा कि अब क्या हाल है? मैंने कहा कि सही है तुम अपना बताओ, तो वह बोली की इतनी देर से अपना हाल ही तो बता रही हूँ। मैंने कहा कि यार अगर कुछ गलत हो गया हो तो माफ कर दो। उत्तेजना के कारण अपने पर कंट्रोल नही रख पाया। उस ने कहा कि शायद मैं भी नयी होने के कारण ज्यादा ही हल्ला मचा रही हूँ मैंने कहा कि छोड़ो मजा आया या नही? उस ने कहा कि उस की तो कमी नही है। मैंने उस की योनि में ऊंगली करी तो वो भी पानी से भीगी हूई थी। वह बोली की तुम्हारे पास आते ही यह गीली हो जाती है। मैंने कहा कि ऐसा होता है।

मैंने उसे बताया कि दर्द उसे ही नही हो रहा, बल्कि मुझे भी कमर में काफी दर्द हो रहा है। कई सालों से इतना करने की आदत ही नही रही। अपने पर रोक लगानी पड़ेगी नही तो पुरी छुट्टियों का मजा बेकार ना हो जाए दोनों दर्द के मारे बिस्तर पर ही पड़े रहें। उस की हँसी निकल गई बोली की हमारी हालात तो उस बच्चे की तरह हो गई है जिसे अभी-अभी नया खिलोना मिला है। मैं भी इस खेल की नयी खिलाड़ी हूँ इस लिए जल्दी शोर मचाने लगती हूँ। मैंने कहा कि तुम्हारे साथ का कमाल है कि मैं इतनी देर तक कर पा रहा हूँ नही तो पत्नी के साथ तो दो-तीन मिनट ही चल पाता हूँ।

अपने आप पर विश्वास नही हो रहा इस लिए जल्दबाजी कर रहा हूँ। उस ने मुझ से लिपट कर होंठों को चुम कर कहा कि इस बात की चिन्ता मत करो। जो हो रहा है उस का आनंद लो। मैं तो तुम से अब ऐसे ही शिकायत करुगी मेरे पास अब तक कोई शिकायत सुनने वाला नही था अब तुम हो मैं तो बच्चों की तरह हर बात की शिकायत कँरुगी और तुम को सुननी पड़ेगी मैंने कहा कि बन्दा खिदमद में हाजिर है। आशा ने कहा कि जब भी चापलुसी वाली बात करते हो तो उर्दू में क्यों उतर आते हो मैंने कहा कि शायद हिन्दी में चम्चागिरी के लिए शब्द नही मिलते। उस ने हँसना शुरु कर दिया बोली कि प्रोफेसर साहब ने भाषा विज्ञान में भी हाथ आजमा रखा है। मैंने कहा कि मजाक नही है मैंने हिऩ्दी साहित्य में एमए कर रखा है। उस को विश्वास नही हुआ कि मैनेजमैन्ट का आदमी साहित्य का विद्यार्थी है। मैंने कहा कि यह सच है। बोली की आप को समझने में अभी काफी समय लगेगा।

आशा बोली की मुझे सेक्स का अनुभव तो नही है लेकिन लगता है की आप ने कामसुत्र को काफी पढ़ा है। मैंने कहा कि उस ने मेरी कमजोर नस पर हाथ रख दिया है। मैंने उसे बताया कि मेरी बीवी को सेक्स में ज्यादा रुचि नही थी शादी के शुरुआत में इस लिए मैंने कामसुत्र का अध्ययन किया, उस का मेरे जीवन में तो कोई उपयोग नही हुआ। बीवी ने तो मेरे हर कार्य को ना मानने का पहले से सोचा हुआ था। चाहे बाद में वह उस के लिए राजी हो जाये पर शुरुआत में उस के मुँह से ना ही निकलता था, इस वजह से मेरे मन में भी सेक्स को लेकर अरुचि उत्पन्न हो गई।

काफी सालों से तो मैंने इस को अपने जीवन से निकाल ही दिया था इस के कारण ही ऑफिस में कितनी ही महिलाओं के इशारों को मैंने नजरअन्दाज किया। मेरे बारे में ऐसी राय बन गई थी कि शायद मैं नपुंसक हूँ। वो तो एक बच्चे का बाप होने के काऱण ऐसा मानना मुश्किल था। मैंने किसी भी महिला को अपने करीब नही आने दिया। तुम कैसे उस सीमा को लाँघ पाई मुझे पता नही है। शायद तुम्हारी मेरी दोस्ती ऊपर से लिख कर आई है तभी तो मेरी बीवी मुझे किसी भी महिला के साथ देख कर परेशान नही होती।

आशा ने कहा कि यह तो मुझे भी पता था कि आप को किसी महिला का साथ या उस के साथ बातचीत करना पसन्द नही है। उस दिन जब आप ने मुझे पास बैठने को कहा तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ था। सारी रिस्तेदार आप से बातें तो करना चाहती है लेकिन किसी की हिम्मत नही पड़ती, मैंने कहा कि जिस की हिम्मत हुई उस का फायदा हो गया। वह बोली हाँ यह बात तो है मुझे हिम्मत करने का लाभ मिला है। सब दीदी से कहती है कि आप को ऐसे पति मिले है कि कोई शिकायत का मौका ही नही देते हमारे तो हमारी सुनते ही नही।

दीदी तो इस बात का जबाव देती थी कि भोगोंगी तो जानोगी कि कितनी बात मानते है। वो तो अपने भाईयों का ही पक्ष लेती है। उन के मुँह से आप की प्रशांसा मैंने नही सुनी। जब कि आप उन की कोई शिकायत नही करते। मैंने कहा कि कहावत सुनी होगी घर को जोगी जोगड़ा, आन गांव का सिद्द। ऐसी ही हालत थी शिकायत करना या लड़ना छोड़ दिया शादी के पहले कुछ सालों में तो इतना झगड़ा होता था कि पिता जी ने बीवी को तलाक देने को कह दिया था। उस का जिद्दीपन आज भी है। मैंने ही हथियार डाल दिये है।

मैंने कहा क्या मैं पुरानी बातें ले कर बैठ गया।

हमारे बीच तो ऐसा नही है। उस ने कहा कि क्या पता मैं दीदी से भी खराब होऊँ। मैंने कहा कि तुम खराब होगी तो तुम्हें पुरा बदल दुँगा। हम तो सामान्य आदमी है अच्छा-बुरा सब कुछ हमारे अन्दर है, इस में शर्म करने की जरुरत नही है। उस ने कहा कि मैंने तो जो बातें आप के बारे में रिस्तेदारी में सुनी थी वो ही बताई है। मेरा अपना अनुभव आप के बारे में बिल्कुल उलट है। आप मुझ जैसी को अपना सकते हो और समझ सकते हो तो गलत तो हो ही नही सकते? मैंने कहा कि अब मेरी प्रशंसा करनी बन्द करो और कुछ अपने बारे में बताओ।

वह बोली कि क्या जानना चाहते है? मैंने कहा कि परिवार को तो मैं जानता हूँ तुम्हारे बारे में भी कभी जानने की कोशिश नही की। थोड़े दिन पहले ही श्रीमति जी से पुछा तो पता चला कि तुम्हारे पति साथ नही रहते, मुझे पता ही नही था।

पता कैसे चलता मैंने ऐसा कभी जाहिर किया ही नही की वह मेरे साथ रहता नही है। शायद सात साल पहले आप को फेसबुक पर लाईक किया तो उस के पीछे यह कारण था कि जो व्यक्ति समाज में इतना माना जाता है इज्जत पाता है। शायद ऐसा मेरे जीवन में होता तो अच्छा रहता, आप की कामना मैंने पहली बार उस समय की थी। डर के कारण इस से आगे बढ़ने का साहस नही था। लेकिन सुबह से रात तक आप की हर पोस्ट को मैं देखती थी। इधर दो-तीन सालों से आप ज्यादा ऐक्टिव हो गये थे इस लिए आप को मैंने समझना शुरु किया।

आप की हर बात मैंने जाननी चाही। उत्सुकता इतनी बढ़ गई कि मैंने आपके ऑफिस के चक्कर भी लगा लिए थे। आपके आने जाने का टाईम तक मुझ को पता था। लेकिन आप से सम्पर्क करने की हिम्मत मुझ में नही थी। आप का सामना करने के नाम से कपंकपी होने लगती थी। मैंने यह सुन कहा कि तुम जब पहली बार मेरे पास आई तो तुम्हें देख कर तुम्हारी बात पर विश्वास करना कठिन है लेकिन तुम कह रही हो तो सही ही होगा। मुझे तो लगता नही है कि मेरे में कुछ इतना खास है। आशा ने कहा कि मुझे यह बात समझ में नही आती कि आप के चारों तरफ जो अरोमा बना हुआ है वो नेचुरल है या आप ने जानबझ कर बनाया है। मैंने कहा कि मैंने कुछ भी नही बनाया मैं बचपन से ऐसा ही हूँ।

मुझे कुछ भी नकली या बनाने की आवश्यक्ता नही पड़ी। किसी को दिखाने के लिए या आकर्षित करने के लिए लोग करते है लेकिन तुम ही बताओ मुझे इन सब की जरुरत ही नही पड़ी। कुछ चीजें तो मेरे विरोधियों ने बनाई है मैंने उस का कभी खंड़न नही किया। औरतों को मैं समझ ही नही सका इस लिए उन से दुर रहना ही अच्छा समझा। लेकिन तुम से बेहतर कौन जान सकता है कि मैं औरतों से दूर नही भागता। परिवार में भी महिलाओं का बहुमत है इस लिए यह आरोप तो झुठा है। सब से अच्छा व्यवहार करना तो संस्कार में मिला है। फिर भी कभी-कभी लगता है कि मैं कम पोलाइट हूँ। इस पर आशा ने कहा कि जो ज्यादा पोलाइट होते है वे लोग नकली होते है। तुम नकली नही हो।

मैं कोई ऐसी बात आशा से नही करना चाहता था जिससे उस के अतीत के घाव हरे हो जाए। इस लिए मैं ने उस के बारे में ज्यादा नही पुछा लेकिन यह बात भी उस से छुपी नही रही और उस ने कह दिया की मुझ से कुछ इस लिए नही पुछ रहे क्योकि मुझे परेशान नही करना चाहते? मैंने सर हिलाया। बोली यह बात भी तो तुम्हारी भलमानस को दिखाती है। मैंने उस के होंठों पर अपनी ऊंगली रखी, और कहा कि आशा अब मुझे आसमान पर चढ़ाओ तुम्हें ही ऊतारना पड़ेगा। वह हँस दी। बोली कि अब आप कहाँ जाने वाले हो। अपने पल्लु से बाँध कर रखुँगी। दीदी तो नही बाँध पाई लेकिन मैं तो नही छोड़ुगी। मैं हँस पड़ा।