अनचाहा संबंध

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अपनी सलहज के साथ बना संबंध और उसके परिणाम
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जीवन में कभी-कभी ऐसे संबंध बनते है जिन में बंध कर आप संतुष्ट नहीं होते लेकिन उन से निकल भी नहीं पाते। मेरे जीवन में भी एक ऐसा संबंध बना जिस से मैं सारे जीवन निकल नहीं सकता या कह सकते है कि निकलना ही नहीं चाहता। इस संबंध को नैतिक अनैतिक की सीमा में बाँधा नहीं जा सकता है। मेरी शादी को दो वर्ष के आस-पास हुआ था। हम दोनों में अच्छी निभ रही थी। दोनों ने एक दूसरे को भरपूर जानने के लिये शादी के समय ही निर्णय किया था कि तीन वर्ष तक बच्चा पैदा नहीं करेगे। परिवार से दूर दोनों पति पत्नी अपनी निजता का रोज भरपूर फायदा उठाते थे। हमारी सेक्स लाइव बहुत जोरदार थी। दोनों के बीच कोई मन मुटाव भी नहीं होता था।

एक दिन संभोग के बाद पत्नी जिस का नाम रमा है मुझ से बोली कि आप मुझे एक वचन दो, मैं आप से जो माँगुगी वह आप मुझे दोगे। मुझे लगा कि वह रोमान्टिक हो कर कुछ माँग रही है। मैंने गरदन हिला कर हाँ कर दी। वह बोली कि एक बार फिर सोच लो मना मत करना। मैंने कहा कि मेरा सब कुछ तुम्हारा ही तो है तो मैं उसे तुम्हें देने से मना क्यों करुँगा। वह कुछ क्षण हिचकिचायी और बोली कि तुम से कुछ ऐसा माँग रही हूँ जो केवल तुम ही दे सकते हो और वह बहुत जरुरी है मैं उसकी बात सुन कर अचकचा सा गया कि ऐसा क्या है जो सिर्फ मेरे पास ही है। मुझे चुप देख कर वह बोली कि तुम्हें मेरी भाभी के साथ सोना पड़ेगा और उन्हें गर्भवती करना पड़ेगा। उसके यह शब्द सुन कर एक बार तो मैं हतप्रभ रह गया और अचकचा कर उसकी तरफ देखा कि वह अपने होश में है या नहीं।

उसने बिना पलके झपकाये मेरे से कहा कि यह कार्य तुम ही कर सकते हो। मेरे परिवार की इज्जत का सवाल है। भाई की शादी को चार साल हो गये है और अभी तक कोई बच्चा नहीं हुआ है। भाभी की सारी जाँच सही है लेकिन भाई अपनी जाँच नहीं करवाना चाहता है। उसे सबने समझाया है लेकिन वह किसी की नहीं सुनता। लगता है कि उसे अपनी खराबी का पता है या कुछ और बात है। भाभी को ही सारी बातें सुननी पड़ती है। परिवार में माता-पिता दोनों परेशान है। तुम्हें तो पता है कि भाभी मेरी सहेली भी है उन की परेशानी से मैं बहुत परेशान हूँ, वह तो आत्महत्या करने की धमकी देती है। तुम बताओ क्या करुँ? हमने पहले सोचा कि IVF करवा लेते है लेकिन ना भाई और ना ही भाभी इस के लिये राजी है। समझ नहीं आ रहा कि क्या करे?

मुझे ध्यान आया कि महाभारत में भी ऐसा हुआ था कि नियोग द्वारा परिवार आगे बढ़ा था। मैं पत्नी की तरफ हैरत से देख रहा था। वह बोली कि ऐसे मुझे मत देखो, तुम से कुछ माँग रही हूँ। मैंने कहा कि सही कह रही हो कि हमारे यहाँ नियोग की प्रथा थी लेकिन यह तो पुरानी बात है। अब कहाँ ऐसा संभव है। वह बोली कि सब संभव है, किसी को कुछ पता नहीं चलेगा। तुम, मैं और भाभी के सिवा कोई कुछ नहीं जान पायेगा। परिवार की इज्जत भी बच जायेगी। भाभी आत्महत्या करने का विचार छो़ड़ देगी।

तुम्हें लगता है भाभी इस के लिये तैयार होगी।

मैंने उन से इस विषय पर बात की है, उन की कुछ शर्तें है

क्या शर्ते हैं

तुम उन से शारीरिक संबंध बनाओगे तभी वह इस बात के लिये राजी होगी।

तुम इस बात के लिये राजी कैसे हुई और यह कैसे सोचा कि मैं ऐसा करुँगा?

मैंने अपने मन पर भारी पत्थर रखा है और तुम मेरी कोई बात नहीं टालते हो ऐसा मैं जानती हूँ

लेकिन यह तो गलत है तुम्हारे मेरे संबंध बिगड़ सकते है। मैं भटक सकता हूँ

भटक कर दिखायो, मुझे पता है तुम कैसे हो, मुझे अपने पति पर अटल विश्वास है

अनैतिक नहीं है

नैतिक अनैतिक का मुझे पता नहीं लेकिन अगर हम किसी का जीवन बचा पाये तो सब कुछ जायज है

मुझे नहीं पता था कि मेरी बीवी इतनी बड़ी दार्शनिक है

मजाक मत बनाओ

चलो मान लेता हूँ कि मैं राजी हूँ तुम मेरा वीर्य ले कर उन की योनि में डाल दो, काम हो जायेगा

तुम ने सुना नहीं वह इस के लिये राजी नहीं है उन का कहना है कि जो भी हो वह स्वाभाविक रुप से हो

मैं उन्हें भाभी मानता हूँ उन के साथ शारीरिक संबंध, मन नहीं मानता

सही हो लेकिन तुम समस्या को समझोगे तो समझ आयेगा कि यह सब तो मामुली चीज है

किसी के साथ सोना, मामुली तुम होश में तो हो तुम्हारे मेरे संबंध खराब हो गये तो, मैं उन से जुड़ गया तो

तुम ऐसा कुछ नही करोगे ना कर सकते हो ऐसा मेरा विश्वास है, पत्नी हूँ तुम्हारी तुम्हें जानती हूँ

बहुत भारी रिस्क ले रही हो

रिस्क तो है, लेकिन जिस परिवार की मैं सदस्य हूँ उस के प्रति मेरे कर्तव्य भी तो है।

हम अपना बच्चा उन को गोद दे सकते है

इस पर वह राजी नहीं है, बात भी सही है जिस बात को छुपाना चाहते है वही सामने आ जायेगी

हाँ यह तो तुम सही कह रही हो

मुझे सोचने दो

ज्यादा समय नहीं है, कल भाभी यहाँ आ रही है

आने दो

सोच लो

यार कोई समान लेने जाने वाली बात तो नहीं है, तुम जो माँग रही हो उस के लिये मन को भी तो समझाना पड़ेगा।

मैं कहाँ मना कर रही हूँ, जो मुझ से चाहिये मुझे बता दो

मेरी तो उन से घनिष्टता भी नहीं है फिर यह सब करना, बड़ा कठिन है, कितने दिन के लिये आ रही है?

8 दिन के लिये

कोई और साथ है

हाँ, छोटी बहन

बात बहुत मुश्किल नहीं है, अकेले होती तो सही रहता

सही है लेकिन मेरे यहाँ वह अकेली नहीं आ सकती, किसी को साथ आना ही पड़ेगा। इसी लिये छोटी आ रही है, उसे मैं सभाल लुगी।

मुझे उन से बात करनी पड़ेगी अकेले में, एकान्त दोगी मुझे

बिल्कुल दूगी, लेकिन कोई ऐसी बात मत करना कि जिस से वह अपमानित महसुस करे

नहीं, मैं तो बस उन को समझना चाहता हूँ और कुछ नहीं, सेक्स संबंध मेरे लिये मशीनी नहीं मानसिक है।

मैं उन से बात करती हूँ

मेरी हाँ पर प्रसन्न हो कर पत्नी मुझ से लिपट गयी और बोली कि तुम हमेशा मेरे रहोगे।

दूसरे दिन शनिवार होने के कारण मेरी छुट्टी थी, सो मैं देर से सो कर उठा तो पत्नी बोली कि तैयार हो जाओ कुछ देर बाद भाभी आने वाली है। मैं उस की बात सुन कर चौका और नहाने चल दिया। नहा कर आया तो नाश्ता करने बैठ गया। अभी हम नाश्ता कर ही रहे थे कि तक दरवाजे की घन्टी बजी। पत्नी ने जब दरवाजा खोला तो उसकी भाभी यानि वाणी और मेरी छोटी साली खड़ी थी। पत्नी ने उन दोनों का स्वागत किया और उन्हें बिठा कर उनके लिये नाश्ता लाने चली गयी। मैंने दोनों से पुछा कि यात्रा में कोई परेशानी तो नहीं हुई तो वाणी बोली कि नहीं हमने तो खुब इंजाय किया।

नाश्ता करने के बाद दोनों कपड़ें बदलने चली गयी। मैं कमरे में बैठा आगे होने वाले घटना क्रम के बारे में सोचता रहा। मन मान नहीं रहा था लेकिन विषय की गम्भीरता का ध्यान रख कर मन में आ रहा था कि अगर एक अनैतिक संबंध से एक परिवार बचता है तो क्या बुरा है फिर अच्छा या बुरा का फैसला करने वाला मैं कौन होता हूँ। कोई हल नहीं मिल रहा था। अपनी सलहज को मैंने कभी घ्यान से भी नहीं देखा था उस से शारीरिक संबंध बनाना अजीब सा लग रहा था लेकिन कोई और रास्ता नजर नहीं आ रहा था।

दोपहर के खाने के बाद मैं सोने चला गया। मेरी नींद किसी के झकझौरने से खुली, देखा कि मेरी सलहज यानि वाणी बेड के किनारे पर खड़ी थी। मैं अचकचा कर उठ कर बैठ गया। मेरी हालत देख कर वह हंसी और बोली कि आप हड़वड़ा क्यों रहे है मैं कोई भुत नहीं हूँ। मैंने सरक कर उन्हें बैठने की जगह दी और कहा कि गहरी नींद में था इस लिये ऐसा लग रहा है। लगता है मुझ से डर लग रहा है।

ऐसा क्यों लगा, आप को

आप के व्यवहार से

किस व्यवहार से

आप ने मेरा स्वागत मन से नहीं किया

स्वागत तो किया था

हाँ सो तो है लेकिन उस में रोमांच नहीं था

मेरी जान पर बनी है और आप को रोमांच की पड़ी है

जान पर क्यों पड़ी है, इस लिये कि किसी और के साथ सोना है,

हाँ

इतने शरीफ तो नहीं लगते

शराफत का सार्टिफिकेट गले में लटका कर तो नहीं घुम सकता

नाराज है मुझ से

नहीं

फिर क्या बात है

कोई बात नहीं है, और सब कहाँ है

दीदी छोटी के साथ बाजार गयी है

आप से कुछ बात करनी थी इस लिये वह गयी है

मुझे पता है,क्या बात करनी है

जो होगा वह आप की मर्जी से हो रहा है या कोई जबरदस्ती

आप को ऐसा कैसे लगा?

नहीं मैंने यो ही पुछा क्यों कि किसी और से संबंध किसी के लिये भी आसान नहीं है

सही है लेकिन कोई और राह नहीं है, आप ही एक मात्र सहारा है

अगर मेरे में कोई खराबी हो तो, वैसे भी हम दोनों भी तो दो साल से बिना बच्चे के है

इस के बारे में मुझे पता है आप मुझे डराओ नहीं, रही खराबी की बात तो दीदी सब चैक करा चुकी है

जरुरी है कि एक बार में गर्भ ठहर ही जाये

मैं चैक करवा के आयी हूँ अंड़ें निकलने वाले है। अगर इस बार नहीं ठहरा तो दूबारा ट्राई करेगे, लेकिन बच्चा तो चाहिये

आप बड़ी बहादूर हो

मेरा नाम क्यों नहीं लेते

यहाँ ले लेता हूँ लेकिन ससुराल में नहीं ले सकता

वहाँ किस ने कहा है, जब तक मैं यहाँ हूँ वाणी ही बुलाये

छोटी शिकायत तो नहीं कर देगी

नहीं उसे कोई मतलब नहीं है

मेरे से कोई सवाल जबाव

नहीं बस मुझ से पुरा प्यार करें, अधुरापन या बनावट ना रखे

आप को पता है कि मैं आपकी ननद का पति हूँ फिर भी ऐसी बात करती है

तभी तो करती हूँ आप पर मेरा अधिकार है, मैं आप के घर की सदस्य हूँ मेरी खुशहाली की चिन्ता भी आपका कर्तव्य है।

यह तो है, मेरी ही हो, लेकिन मन को मनाना मुश्किल हो रहा है।

यह इस लिये है कि सब कुछ आप के सामने खुला हुआ है, अगर यह ही छुप कर होता तो आपका मन परेशान नहीं होता।

मुझे साफगोई पसन्द है, कहाँ से शुरुआत करें

जहाँ से आप चाहो।

वाणी तुम्हारा मेरा यह संबंध आगे के हमारे जीवन में कोई बाधा तो उत्पन्न नहीं करेगा?

नहीं करेगा क्योकि हम दोनों अपने जीवन को जीना सही तरीके से जानते है। आप जो है वही रहेगे, केवल मैं आप के जीवन का अटुट हिस्सा बन जाऊँगी

तुम्हारी यह बात अच्छी लगी। इस के बाद हमारे जीवन हमेशा के लिये बदल जायेगे लेकिन यह बदलाव अच्छे कि लिये होगा ऐसी मेरी कामना है, मैं अच्छा प्रेमी नहीं हूँ

मुझे मत समझाइये, आपकी पत्नी मेरी ननद ही नहीं दोस्त है। मुझे सब पता है। शरारतों से बाज आओ

मैंने वाणी का हाथ पकड़ कर उसे अपने से सटा लिया। उस के शरीर की सुगंध मेरे लिये नयी थी। मैं उस के कारण मदहोश होने वाला था। वह यह जानती थी। उस ने मेरा चेहरा अपने हाथों में ले कर मेरे होंठों पर अपने होंठों की छाप छोड़ दी। वाणी के अधरों की मधुरता मुझे भाने लगी। कुछ देर तक हम दोनों एक दूसरे के अधरों का रसपान करते रहे, इस का एक फायदा हुआ कि हमारी शर्म खत्म हो गयी और हम अगले दौर के लिये तैयार हो गये। वासना की आग हम दोनों के शरीर में भड़क गयी। मेरे होंठ वाणी की गरदन पर होते हुये छाती पर आ गये लेकिन ज्यादा नीचे नहीं जा सके क्यों कि वहाँ पर कपड़ों की बाधा थी।

उस ने सलवार कुरता पहना हुआ था मैंने उसे ऊपर कर के उतार दिया। ब्रा में उसके उरोज मुझे ललचा रहे थे। मैंने उसकी ब्रा उतार दी और उस के उरोजों को अपने होंठों से चुमना शुरु कर दिया। मेरे से अब अपने आप को कन्ट्रोल करना संभव नहीं था। हाथों से उसकी पीठ को सहला कर मैंने उस की सलवार भी उतार दी अब वह पेंटी में थी। इस के बाद मैंने अपने कपड़ें उतार दिये और मैं भी ब्रीफ में था। हम दोनों एक दूसरें के शरीरों को सहला रहे थे। ऐसा करना जरुरी था। हम दोनों ऐसे रिश्ते में थे कि अगर हमें सेक्स का आनंद लेना था तो अपने दिमाग से रिश्तों को निकाल देना था। शरीर को सहला कर हम दोनों अपने शरीर में सेक्स की आग को भड़का रहे थे। उस के बाद उसे बुझाना भी था।

मैंने वाणी की पेंटी उतार दी और अपनी ब्रीफ भी उतार कर रख दी। इस के बाद मैंने हाथ से उस की योनि को सहलाया और अपनी ऊंगली उस की योनि में डाल दी। वहाँ पर नमी भरपुर थी। ऊंगली योनि में अंदर बाहर करके मैंने आग को और भड़काया और उस के बाद उसे भोगने के लिये उसकी भरी जाँघों के बीच बैठ गया। अपने लिंग को वाणी की योनि के मुँख पर एक दो बार सहलाया और लिंग को योनि में डालने की कोशिश की जो फेल हो गयी। तभी वाणी ने अपने हाथ से लिंग को पकड़ कर योनि के मुँख पर रखा और मुझे इशारा किया मैंने दबाव डाला और लिंग का सुपारा योनि में चला गया। दूसरे धक्के में लिंग पुरा योनि में समा गया। कुछ क्षण रुकने के बाद मैंने लिंग को अंदर बाहर करना शुरु कर दिया। वाणी भी नीचे से मेरा साथ देने लगी। हमें यह संभोग जल्दी खत्म करना था। रमा किसी समय भी बाजार से वापस आ सकती थी।

हम दोनों एक-दूसरें में समाने की भरपुर कोशिश कर रहे थे। वाणी शायद डिस्चार्ज हो गयी थी इस लिये फच-फच की आवाज आने लग गयी थी। उस की आँखें बंद थी वह किसी की कल्पना कर रही थी या और कुछ मुझे पता नहीं था। लेकिन मैं सिर्फ उसी को देख रहा था। उस के चहरे पर आनंद के क्षण दीख रहे थे। कुछ देर बाद मैं थक गया तो उस से उतर कर वाणी की बगल में लेट गया। वह मेरे ऊपर आ गयी और लिंग को योनि में डाल कर कुल्हें उपर नीचे करने लगी। उस की गति भी तेज होती गयी। शायद हम दोनों ही इस संभोग को जल्दी खत्म करना चाहते थे। इसी लिये उस ने करवट ली और मैं उस के ऊपर आ गया।

मैं जोर-जोर से धक्कें लगा रहा था। वह भी नीचे से अपने कुल्हें उछाल रही थी। फिर उस के पांव मेरी कमर पर कस गये, इस का मतलब था कि वह डिस्चार्ज हो गयी थी। मेरी गति तेज ही थी। मैंने अपने शरीर को एक लकीर में सीधा किया और जोर-जोर से प्रहार करने लगा। धक्कों के कारण वाणी आहहहहह उहहहहह कर रही थी। कुछ देर बाद मेरी आँखे मुंद सी गयी और मैं वाणी के ऊपर लेट गया। कुछ देर बाद होश सही होने पर उस की बगल में आ गया। वह भी गहरी सांसे ले रही थी। मैंने उस की योनि पर हाथ लगा कर देखा तो वह योनि द्रव्य से भरी थी। योनि द्रव्य बाहर निकल रहा था। मुझे चिन्ता था कि वह जिस कार्य के लिये आयी है वह पुरा होगा या नहीं।

मैं बेड से उठ गया और अपने कपड़ें पहनने लगा और वह भी उठ कर बैठ गयी। मैंने उस के कपड़ें उसे दे दिये। वह भी उन्हें पहनने लगी। कपड़ें पहनने के बाद वह बोली कि अब आप क्या करेगें? मैंने कहा कि जा कर शरीर को साफ करता हूँ ताकि सुगंध चली जाये। तुम भी अपने आप को साफ कर लो। वह मेरी तरफ देख कर बोली कि आप इतनी दूर की सोचते है तो लगता है कि आप इतने शरीफ नहीं है जितना दिखते है। मैंने हँस कर कहा कि वाणी जी शरीफ होता तो आपके साथ नहीं होता इस लिये जैसा समझ आ रहा है वैसा कर रहा हूँ। रमा को बुरा ना लगे यह भी तो देखना है। वह मेरी बात समझ गयी और अपने आप को साफ करने चली गयी। मैं भी वाशरुम में घुस गया।

कुछ देर बाद हम दोनों अपने-आप को साफ करके आ गये। मैंने वाणी से पुछा कि मिलन कैसा रहा?

सही था मुझे इस का कुछ-कुछ पहले से अंदाजा था कि मेरे साथ आप क्या करेगें

कैसे पता था

मेरे सोर्स है

सोर्स को कसना पड़ेगा, वह हर बात किसी को बताता रहता है यह तो अच्छी बात नहीं है

आप हम औरतों को सीखा नहीं सकते

अच्छा जी

हाँ जी

सवाल का जबाव नहीं दिया

दम ही निकाल दिया था, सारा शरीर टुट सा गया है

अगर ज्यादा ताकत लगा दी तो क्षमा चाहता हूँ

क्षमा किस बात की, ऐसा ही होना चाहिये

कोई गलती हो तो बताना

इस में क्या गलती हो सकती है

एक तो तुम ने बता दी है

ऐसी गलती तो हर औरत चाहती है कि उसके साथ बार-बार हो

लेकिन रोती जरुर है

हमें समझना मुश्किल काम है

सो तो है

कितनी बार डिस्चार्ज हुई?

तुम्हें कैसे पता चला

चल जाता है

तुम्ही बताओ

मेरे ख्याल से दो बार तो डिस्चार्ज हुई थी, पहली बार जब फच की आवाज शुरु हुई, दूसरी बार जब तुम्हारी टाँगें मेरी कमर पर कस गयी थी

तुम प्यार कर रहे थे या यह सब नोट कर रहे थे

दोनों कर रहा था। पहली बार के कारण थोड़ा ज्यादा ध्यान दे रहा था

मुझे कुछ नहीं ध्यान मैं तो आँखें बंद करे पड़ी थी

शर्म के कारण

नहीं तो

किसी और का ध्यान कर रही थी

तुम ने डाक्टरी कर रखी है क्या

तुम्हारा ध्यान कही और था

हाँ था लेकिन मैं कुछ नहीं बताऊँगी

मैं कुछ पुछुगाँ भी नहीं

क्यों

तुम्हारी जिन्दगी है तुम्हारी कल्पना, मैं कौन होता हूँ कुछ पुछने वाला

सो तो है

अपना जो काम है वह कर रहे है

हाँ यह तो है

मैं आप का होता कौन हूँ जो आप से कुछ पुछु

आप मेरे सब कुछ होते है, अगर नहीं होते तो मैं आप को अपना सब कुछ नहीं सौपती

बुरा लगा तो माफ कर दो

हम तो लड़ रहे है

हाँ

क्यों

पता नहीं

लगता है यह लड़ाई प्यार होने की निशानी है

बड़ी खतरनाक बात कर रही हो पता भी है इसका क्या असर पड़ेगा

पता है लेकिन मैं जिस व्यक्ति को अपने बच्चों का पिता बना रही हूँ उस से प्यार तो कर सकती हूँ, एकतरफा ही सही

हम अपने संबंधों में बंधें हुये है, उस से बाहर निकलने की कोशिश करेगें तो विनाश ही करेगे

मुझे पता है, इस का कभी किसी को पता नहीं चलेगा, लेकिन आप मुझे ऐसा करने से रोक नहीं सकते।

रोक नहीं रहा हूँ लेकिन उस के असर को बता रहा हूँ, यह हमेशा हमारे दिमाग में रहना चाहिये

हमेशा रहेगा। मुझे एक बच्चा थोड़ी ना चाहिये, कम से कम दो या तीन तो चाहिये ही

बड़ी लम्बी लिस्ट है, हमारा नंबर कब आयेगा

मेरे बच्चों के बीच में जो समय होगा, वह आप के बच्चों का होगा

इतना सब सोच के रखा है

हाँ, सब सोच के रखा है

मैंने वाणी का सर प्यार से हिलाया और कमरे के बाहर निकल गया। पत्नी के आने से पहले हमें सामान्य हो जाना था।

कुछ देर बाद रमा अपनी बहन के साथ आ गयी। दरवाजा मैंने खोला और उस की आँखों के सवाल का आँखों से जवाब दे दिया। उस के चेहरे पर संतोष झलक गया। वह अंदर आ गयी। दोनों बहनें खरीदारी करके आयी थी और अपने लाई वस्तुयें वीणा को दिखाने लग गयी। मैं अकेला कमरे में बैठ कर सोचता रहा कि मेरी बीवी भी ना जाने कैसी है अपने पति के दूसरी स्त्री से बने संबंध को लेकर परेशान नहीं है। अपने पति पर इतना बड़ा विश्वास है। मेरी जिम्मेदारी है कि मैं कभी उस के विश्वास को ना तोडूं। बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी मेरे कंधों पर।

पहली रात

रात को मेरे साथ सोते में उस ने मुझ से लिपट कर कहा कि मुझ से नाराज तो नहीं हो? मैंने कहा कि पहले परेशान था लेकिन तुम से नाराज नहीं था। अब परेशान भी नहीं हूँ। जैसा तुम चाहती थी वैसा मैंने कर दिया। तुम बताओ खुश हो? वह मुझे चुम कर बोली कि तुम ने बहुत बड़ी समस्या दूर कर दी है। तुम्हें तो इनाम मिलना चाहिये। बोला क्या चाहते हो? मैंने कहा कि सोना चाहता हूँ तो वह बोली कि इनाम किसी और दिन देगे। आज तुम आराम करो।

मैं नींद में डुब गया। रात को मुझे लगा कि कोई नयी खुशबु मेरे नथुनों में आ रही है। फिर लगा कि पुरानी खुशबु भी है। दोनों खुशबुऐं मेरे दिमाग को चकरा रही थी। मैं उन में डुब सा गया था। किसी की टाँगें मेरी टाँगों से लिपटी हुई थी। किसी के हाथ मेरे बदन पर फिर रहे थे। मैं शायद नींद में कोई सपना देख रहा था। किसी की सुगंध ने मुझे नशा सा कर दिया था और मैं आकाश में तैर सा रहा था। फिर कुछ देर बाद में धरातल पर आ गया। पता नहीं क्या हो रहा था मेरे साथ मैं जाग्रत था या सो रहा था मुझे कुछ पता नहीं चल रहा था ना मैं पता करना चाहता था।

सुबह उठा तो पत्नी मेरे पर टाँग रख कर सो रही थी यह उस की मनपसन्द पोजिशन थी सोने की। सुबह के तनाव की वजह से लिंग तना हुआ था लगा कि उस का तनाव कम करने के लिये बाथरुम जाना पड़ेगा लेकिन उठने का मन नहीं था सो पत्नी को सीधा किया कि उसे भोगा जाये और कपड़ें हटायें तो देखा कि लिंग तो पहले से ही चिपचिपा हुआ पड़ा था। शायद नाइटफॉल हुआ था जो मुझे होता नहीं था। शरीर से अलग तरह की सुगंध आ रही थी। इस लिये फिर से सो गया। पत्नी के उठाने पर जागा तो देखा कि वह मेरे कपड़ें सही कर रही थी।

मुझे जगा देख कर बोली कि नींद में भी चैन नहीं है कपड़ें गंदे कर लिये है। मैंने कहा कि तुमने किये होगे तो वह बोली कि नहीं मैंने कुछ नहीं किया है। अगले कुछ दिनों तक तो मैं ऐसा कुछ सोच भी नहीं सकती हूँ। उस की बात सुन कर मैं वर्तमान में आ गया और सोचा कि हाँ अगले कुछ दिन तो हमने किसी और के नाम कर दिये है। मैं बिस्तर से उठ कर बाथरुम चला गया और वहाँ अपना प्रेशर रिलिज कर आया। वह बोली कि सभल जाओ, भाभी आने वाली होगी। उस की बात सही निकली, दरवाजा खटखटाने की आवाज आयी और वाणी चाय ले कर कमरे में आ गयी। मैं उन्हें देख कर अचकचा गया और कमरे से बाहर निकल गया।

वाणी मेरे पीछे आयी और बोली कि जीजा जी आप की चाय अंदर रखी है पी लिजिये। मैं फिर से कमरे में लौट गया। रमा बोली कि बाहर क्यों चले गये थे? मुझे कोई जवाब नहीं सुझ रहा था इस लिये चुप रह कर चाय पीने लगा।

परेशान लग रहे हो

नहीं कोई खास बात नहीं है

पहले तो ऐसा नहीं करते थे

क्या

कोई आये तो कमरे के बाहर चले जाना

ऐसे ही चला गया था, किसी के कारण ऐसा नही किया था

किसी को ऐसा लग सकता है

अगर लगा है तो मैं क्षमा माँग लुगाँ

गुस्सा क्यों कर रहे हो

तुम बात का पतगड़ बना रही हो

वाणी को कमरे में आता देख हम दोनों चुप हो गये। वह बोली कि चाय सही बनी है, मैंने कहा कि हाँ चाय तो आप बढ़िया बनाती है

मुझे लगा कि शायद आप मेरे हाथ की चाय का स्वाद भुल गये है।

अच्छे स्वाद हमेशा याद रहते है।

मुझे लगता था कि हम बुरे स्वाद याद रखते है

मैं तो अच्छे स्वाद याद रखता हूँ

रमा बोली कि मैं छोटी को चाय दे कर आती हूँ। उस के जाने के बाद वाणी बोली कि मुझे देख कर बाहर जाने की क्या आवश्यकता थी। मैंने उसे बताया कि मैं उसे देख कर नहीं बल्कि ऐसे ही बाहर गया था। उस के पीछे कोई कारण नहीं था। मेरे उत्तर से वह संतुष्ट नजर आयी। तभी रमा वापस आ गयी और बोली कि छोटी तो अभी सो रही है। मैंने कहा कि उसे सोने दो। उस ने जाग कर क्या करना है। वाणी ने सर हिलाया। रमा बोली कि भाभी नाश्ते में क्या खाना चाहती है? वाणी बोली कि जो जीजा जी को पसन्द हो वही चलेगा। रमा बोली कि संड़े को तो हम आलु के पराठें खाते है। वह बोली कि हम भी वही खायेगें। रमा हँस कर बोली कि मैं सोच रही थी कि पुरी आलु बना लूँ। वाणी बोली कि अगर जीजा जी को पसन्द है तो मैं भी खा लुगी। मैंने बात खत्म करने को कहा कि पुरी आलु ही सही रहेगा तुम यही बना लो। रमा कमरे से चली गयी।

वाणी बोली कि लगता है मुझ से अब तक नाराज है?

मैं आप का लगता क्या हूँ जो नाराज होऊँगा

कल इस बात का जवाब दे दिया था।

तुम्हारें पहले सवाल का जवाब भी मैंने कल ही दे दिया था

लेकिन आप का व्यवहार तो कुछ और ही कह रहा है

क्या कह रहा है, मैं कुछ परेशान सा हूँ, बस यही बात है

आप की परेशानी जानने की कोशिश कर रही थी

पहले मुझे तो परेशानी पता चले तभी तो आप को बताऊँगा

अच्छा तो यह बात है, परेशान है लेकिन क्यों है यह पता नहीं

हाँ ऐसा ही कुछ है।

जब पता चले तो जरुर बताइयेगा

जरुर

रमा को आता देख हम दोनों चुप हो गये। नाश्ता करने तक दोनों ने आपस में कोई बात नहीं की।

दूसरी रात

दिन के खाने के बाद हम सब घुमने चले गये। शाम को आते में बाहर से खाना लाये और उसे खा कर सोने चल दिये। इस दिन भी मुझे पहले दिन जैसा ही लगा। वहीं मादक खुशबु और दो के बीच पीसने का अनुभव, लेकिन मैं अपने अनुभव को किसी को बता नहीं पाया अपनी पत्नी को भी नहीं। सुबह मेरे कपड़ें तो खराब ही निकले। यह रहस्य मेरी समझ से बाहर था। मेरे पास इस को सुलझाने का समय भी नहीं था। मैं उठा और अपने काम में लग गया। उसके बाद ऑफिस के लिये निकल गया। सारा दिन ऑफिस में व्यस्त रहने के कारण दिन में किसी से बात नहीं हुई।

तीसरी रात

शाम को जब घर आया तो पत्नी बोली कि आज का क्या करना है? तुम बताओ, मैं तो कही नहीं जा सकता, रात खराब नहीं कर सकता सुबह ऑफिस जाना है, सुबह जैसे हम करते है उस समय ही कर सकते है, तुम बताओ क्या कहती हो? रमा बोली कि हाँ यही सही रहेगा। मैं उन को सुबह जल्दी उठा दूँगी। वह चुपचाप आ जायेगी और मैं छोटी के पास लेट जाऊँगी। मैंने कहा कि तुम ऐसी गल्ती मत करना। इस से सब गड़बड़ हो जायेगी। भाभी के छोटी के पास ना होने से ज्यादा परेशानी नहीं होगी लेकिन अगर तुम उन की जगह सोती मिली तो बात गलत हो जायेगी। मेरी बात रमा की समझ में आ गयी। रात को अब दोनों ननद-भाभी के बीच बात हुई मुझे पता नहीं चला।