अनचाहा संबंध

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मैं सोने चला गया। रात को कुछ नहीं हुआ। सुबह 5 बजे के करीब मुझे लगा कि कोई और मेरी बगल में आ कर लेटा है। फिर वही खुशबु मेरे नथुनों में आने लगी। आज मैं कुछ जाग्रत या जगा हुआ था। फिर किसी की टाँग मेरी टाँग पर चढ़ गयी। मुझे समझ आ गया कि वाणी आ गयी है। हम दोनों एक-दूसरे से सट गये। फिर जो होना था वह होना शुरु हो गया। सुबह तो मेरे महाराज में कुछ ज्यादा ही तनाव था। वाणी को आज कुछ नया सा लगा होगा, लेकिन उस ने मुझे महसुस नहीं होने दिया। हम दोनों संभोग में लगे रहे। दोनों ज्यादा मन से भाग नहीं ले रहे थे।

धीरे-धीरे हम दोनों के शरीर में वासना की आग भड़क गयी और संभोग में हमारी भागीदारी बढ़ गयी। वाणी के मुँह से कराह निकल रही थी। मैं भी अपने आप को रोक नहीं पा रहा था। वाणी के अंगों का मर्दन पुरी ताकत से कर रहा था। वह भी अपने हाथों से मेरे शरीर को भड़का रही थी। आग जब शान्त हुई तो हम दोनों एक-दूसरे की बगल में लेट गये। मैंने पुछा कि आज तो ज्यादा ताकत नहीं लगायी तो जबाव मिला कि आप को अपनी ताकत का अंदाजा नहीं है। लेकिन मैं संतुष्ट हूँ आप मेरी चिन्ता मत करो। मैं चुप रहा तो वह बोली कि लगता है कल की बात से अब तक नाराज है?

इस बात का कितनी बार जबाव देना होगा?

जितनी बार पुछा जाये

नाइंसाफी है

जैसा आप समझे

आप से इस बात का बदला लुगाँ

आप का स्वागत है

अच्छा

आप को मैं बहुत अच्छी तरह से समझती हूँ, आप ऐसा कुछ नहीं कर सकते

अच्छा, मेरे बारे में इतनी जानकारी कैसे है?

हैं बस

कुछ और भी पता चले जो मुझे अपने बारे में ना पता हो

कभी समय मिलेगा तब सब बताऊंगी

वो तो कभी मिलेगा नहीं, अगर सब कुछ सही रहा तो आप साल भर के लिये तो बिजी हो जाओगी, मुझ से कहाँ मिल पायेगी

कभी तो समय मिलेगा ही, जब मैं आप के साथ बैठ कर भविष्य की रुपरेखा बनाऊंगी

मेरे साथ क्यों

आप अब मेरे साथ जुड़ गये है, मेरा भाग्य भी आप का भाग्य हो गया है

बड़े खतरनाक विचार है, आपकी सहेली को पता है यह सब

उस से कुछ छुपा नहीं है

लेकिन मुझे कुछ पता नहीं है यह गलत बात है

आप के लिये ही तो सब कुछ हो रहा है

दिन हो गया है मैं तो उठ गया हूँ आप अगर सोना चाहे तो सो जाए

नहीं अब सोना नहीं है मैं चाय बना कर लाती हूँ, आप कमरे से निकल मत जाना

अब इस बात को इतना मत खीचों

अच्छा

हाँ

वाणी चाय बनाने चली गयी। मैं भी उठ कर कपड़ें पहन कर तैयार हो गया। कुछ देर बाद वाणी चाय बना कर ले आयी। मैंने वाणी से पुछा कि रमा कहाँ है? जो जबाव मिला कि छोटी के साथ सो रही है। यह मैं नहीं चाहता था लेकिन कुछ कर नहीं सकता था। हम दोनों चाय पीने लगे तो वाणी बोली

आप मुझ से बात क्यों नहीं करते?

बात कर तो रहा हूँ।

यह कोई बात करना है।

और क्या बात करुँ?

कुछ भी

मुझे तुम्हारे साथ बात करने के लिये कोई विषय ही नहीं मिलता

मुझे आज पहली बार पता चला है कि बात करने के लिये विषय की आवश्यकता होती है

होती है खास तौर पर जो अजनबियों के बीच

मैं और अजनबी?

इतने सब के बाद भी तुम मेरे लिये अजनबी हो, मैं तुम्हें समझ नहीं पाया हूँ क्या करुँ

और क्या समझना है

पता नहीं लेकिन तुम अभी भी मेरे लिये अबुझ पहेली हो

मुझे बुझों मत अबुझ ही रहने दो

अच्छा जैसा तुम चाहो, लेकिन मुझ से लड़ना तो बंद कर दो

यह तो हो नहीं सकता

तुम से फिर मिलना बहुत मुश्किल होगा, लेकिन तुम सारा समय शिकायत करने में ही बीता देती हो

क्या बात है अब दिल की बात जबान पर आयी है

हाँ आ तो गयी है

सुन कर अच्छा लगा

और क्या सुन कर अच्छा लगेगा

अपनी प्रशंसा

तुम मुझे घर से निकलवा कर छोड़ोगी

क्यो,

तुम्हारी दोस्त और मेरी बीवी मुझे घर से बाहर कर देगी, ऐसा ना करो

आप जैसे बाहर से दिखते हो वैसे हो नहीं

पता नहीं मैं क्या हूँ, लेकिन जैसा हूँ तुम्हारे सामने हूँ

मैं रमा को उठाने जा रही हूँ

हाँ उसे उठा तो और कहो कि छोटी के साथ ना सोया करे, गलत संदेश जाता है

वाणी रमा को उठाने चली गयी और मैं अपने कामों में लग गया। ऑफिस जा कर रमा को फोन किया तो वह बोली कि हम दोपहर के बाद घुमने जायेगे। हो सकता है कि शाम को घर पर लेट आये। मैंने पुछा कि मैं क्या करुँ तो वह बोली कि या तो तुम जल्दी आ जाओ और या फिर लेट आयो। मैंने कहा कि मैं लेट ही आता हूँ। आज अपने मित्रों से मिल लेता हूँ। रात को जब घर पहुंचा तो ये सब घुम कर वापस आ चुके थे। रात जैसी बीतनी थी बीत गयी। सुबह भी कुछ नहीं हुआ।

चौथी रात

मैं अपने ऑफिस चला गया। दोपहर में रमा का फोन आया कि तुम शाम को एक घंटे जल्दी आ जाना। मैं उस का इशारा समझ गया। मैं जब घर पहुंचा तो रमा और उसकी बहन घर पर नहीं थे। वाणी ने बताया कि वह दोनों बाजार गयी है मैं थकी होने के कारण नहीं गयी हूँ। मुझे असली कारण पता था। मैं कपड़ें बदलने जाने लगा तो वह बोली कि कुछ पहनना नहीं। मैंने उसे आश्चर्य से देखा तो वह बोली कि इतनी बात तो मान सकते हो। मैंने कहा कि तुम्हारी तो सब बात मान रहा हूँ कुछ और है तो बताओ? वह बोली कि आज में आप को संपूर्ण रुप से देखना चाहती हूँ कि मेरे बच्चों का पिता असल में कैसा दिखता है। मैंने पुछा कि यह क्या है तो वह बोली कि बस जो बात मन में थी वह बता दी है। मैंने उस का हाथ पकड़ा और उसे कमरे में अपने साथ ले गया। वह बेड पर बैठ गयी। मैं उसके सामने कपड़ें उतारता रहा वह मुझे देखती रही।

मैंने कपड़ें उतारने के बाद कहा कि मैं नहाने जा रहा हूँ तो वह बोली कि आप बाद में नहा लेना। मैने उस की बात मान ली। मैं उस के सामने ब्रीफ और बनियान में खड़ा था वह कुछ देर मुझे देखती रही फिर खड़ी हो कर मेरे गले में बाँहें डाल कर बोली कि तुम कभी कभी बिल्कुल बेवकुफ लगते हो। मैंने कहा कि तुम्हारें सामने तो मेरी बुद्धि चलती ही नहीं है। उस के होंठ मेरे होंठों से चिपक गये। हम दोनों एक दूसरें के लबों का रस पीने लगे। आज की शाम जोरदार होने वाली थी ऐसा अनुमान मुझे होने लगा था।

मेरे हाथ उस के कपड़ें उतारने में लग गये, कुछ देर बाद वह भी मेरी अवस्था में आ गयी। हम दोनों एक दूसरे के शरीर को सहला कर उसे भड़का रहे थे। मैं उस की गरदन को चुम रहा था। वह मेरे कानों को चुम रही थी। उस के वक्ष बड़ें कठोर थे ज्यादा मांसल तो नहीं थे लेकिन यौवन से भरपुर उरोजों का रस पीने में मुझे मजा आ रहा था। उस ने भी मेरे उरोजों को दांत से काटना शुरु कर दिया। उस के नाखुन मेरी पीठ पर गड़ रहे थे। मैंने कहा कि ध्यान से वहाँ निशान मत बना देना तो वह बोली कि निशान तो बनेगे ही। मैं उस की इस बात से आचंभित था कि उसे अपनी ननद यानि मेरी पत्नी से कोई डर नहीं था। पता नहीं इस का क्या कारण था। शायद उन दोनों के बीच धनिष्ट मित्रता के कारण ऐसा था।

मैं बैठ गया और उस की पेंटी पर चुम्बन लेने लगा। मैंने उस की पेंटी नीचे खिसखा दी और योनि के होठों को चुम लिया। वह चिहुक गयी। शयद उसे इस की आदत नहीं थी। मेरी ऊँगली उस की योनि में अंदर बाहर होने लगी। फिर मेरी जीभ का नंबर आया। वाणी खड़ी खड़ी काँप रही थी। लेकिन मेरे हाथों ने उसे कुल्हों से थाम रखा था। कुछ देर मेरी जीभ उस की योनि का आनंद उठाती रही। उस ने मुझे अपने साथ बेड पर गिरा लिया। वह मेरे पैरो की तरफ मुड़ गयी और उस के हाथ मेरा लिंग आ गया। उसे सहला लेने के बाद उस ने उसे मुँह में ले लिया कुछ देर तो चुसा फिर उसे मुँह में अंदर बाहर करने लगी। अब काँपने की बारी मेरी थी। लेकिन वह मुझे स्खलित करना नहीं चाहती थी सो कुछ देर बाद उसने लिंग को मुँख से निकाल दिया। अब उस के हाथ मेरे कुल्हों से हो कर मेरे पाँवों पर घुम रहे थे। मैं भी उस की मांसल जाँघों को चुम रहा थ। हमारे शरीर वासना की आग से जलने लगे थे। अब इस आग को बुझाना जरुरी था।

मैंने उस की जाँघो को हाथों से अलग किया और बैठ कर अपने लिंग को उस की योनि के मुँख पर लगा दिया। जरा सा दबाब डाला तो लिंग योनि में घुस गया। वहाँ पर बिल्कुल घर्षण नहीं था। लिंग लगभग फिसलता हुआ पुरा अंदर चला गया। मैं कुछ क्षण के लिये ठहर गया। फिर मैं धीरे-धीरे लिंग को अंदर-बाहर करने लगा। वाणी के कुल्हें भी मेरा साथ दे रहे थे। हम दोनों संभोग कर मजा लेने लगे। काफी देर तक इसी आसन में रहने के कारण में थक सा गया और वाणी की बगल में लेट गया। फिर मैंने वाणी को पीठ की तरफ से अपने से सटाया और पीछे की तरफ से उस में प्रवेश किया और उस के मुँह को अपनी तरफ कर के चुमा। वह भी मुझे चुमने लगी। हम दोनों कुछ देर तक इसी आसन में संभोग करते रहे।

वाणी बोली कि मैं शायद डिस्चार्ज होने वाली हूँ तुम ऊपर आ जाओ। मैं उस के ऊपर आ गया। उस के दोनों पाँवों को अपने हाथों से पकड़ कर मैं लिंग अंदर बाहर करने लगा। वाणी को इस से दर्द हो रहा था लेकिन वह कुछ कह नहीं रही थी। उस के चेहरे पर जब मैंने दर्द की लकीरे देखी तो उस के पाँव छोड़ दिये। मैं भी डिस्चार्ज होने वाला था इस लिये अपनी गति कम कर ली। लेकिन उस का फायदा नहीं हुआ कुछ देर बात मेरी आँखों के सामने तारे झिलमिला गये और मैं वाणी के अंदर डिस्चार्ज हो गया।

जब हालत सही हुये तो वाणी की बगल में लेट गया। वाणी भी हाँफ सी रही थी। हम दोनों कुछ क्षण अपने को सभालते रहे। जब हालत सही हो गयी तो मैंने वाणी से पुछा कि आज का अनुभव कैसा रहा? तो जबाव मिला कि लाजवाव।

मुझे नहीं पता कि आप के कितने रुप अभी सामने आने बाकी है।

साथ रहो धीरे-धीरे सामने आ जायेगे।

आप साथ कहाँ रहने दे रहे है।

मैंने कब मना किया है

कहा भी कब है

समझ नही आता कैसे क्या कहुँ?

जैसे कुछ पता ही नहीं है

क्या नहीं पता

कि आप से मिलने के लिये कितने जतन करने पड़ रहे है

क्यों जब ननद राजी है तब क्या परेशानी है

आप की रजामंदी तो पता ही नहीं चलती

मैं तो रजामंद हूँ, इस में क्या शक है, तुम ही पुछल्ला साथ में लायी हो तो मैं क्या करुँ?

बिना उस के तो आ ही नही सकती आप को सब पता है

कोई मुझे बता तो सकता है, जैसे आप रमा ने कहा मैंने किया। मुझ तक बात पहुँचाओ तो सही

आप नहीं पुछ सकते

मैं पुछता अच्छा लगता हूँ

अब अच्छा बुरा कहाँ से आ गया

बात तो काम के होने की हो रही है। आज भी दीदी ने सोचा कि ऐसा करते है तो दिन में समय मिला नहीं तो आप की माने तो सारे दिन बरबाद हो जाते

कहो तो छुट्टी ले लूँ सारे दिन तुम्हारें पल्लू से बंधा रहूँगा।

क्या बात है पल्लू से बँधा रहुँगा, बात करने का तो समय नहीं है आप के पास

क्या बात करुँ आप से, यह कि कैसे आप को भोगूं, यह तो मुझ से होगा नहीं, कुछ दिन रहे तभी तो आप से निकटता होगी, बातें भी होगी

आप अपने चारों तरफ घेरा बना कर क्यों रहते है

कोई घेरा नहीं है, आप को ऐसा लग रहा है, कुछ दिन बाद ऐसा लगना बंद हो जायेगा

देखते है आप कितना सच कह रहे है

आज का अनुभव नया था?

कुछ तो नया था, आज से पहले मैंने नहीं किया था

आप को तो पुरी क्लास देनी पड़ेगी, मुझे तो लगता था कि आप हमारी सीनियर है

मजाक मत करो, कुछ बातें तुम्हें नहीं बता सकती लेकिन तुम इशारे से समझ लो

मुझे तो लगता है कि हम तीनों रमा मैं और तुम एक दिन मस्ती करते है, बोलों क्या कहती हो

पता नहीं लेकिन ऐसा हो कैसे सकता है?

हाँ हो नहीं सकता लेकिन समाधान निकाला सकता है। रमा से पुछता हूँ, तुम्हारी हाँ है

मैंने ना कब कहा है, लगता है कोई शरारत सुझ रही है

हाँ देखते है कब पुरी हो सकती है, तुम्हें ज्यादा दर्द तो नहीं हुआ

नहीं लेकिन पीछे से करने में अंदर बहुत लगता है

हाँ लेकिन उसी का मजा है

सो तो है

मैं तो नहाने जा रहा हूँ, तुम देख लो

मैं भी नहा लुगी

हम दोनों नहा कर बैठे ही थे कि रमा अपनी बहन के साथ आ गयी। दोनों बहनों के हाथ सामानों के थैलों से भरे हुये थे। वाणी ने रमा से शिकायत करी कि आप मेरे लिये तो कुछ नहीं लायी होगी। रमा बोली कि ऐसा हो ही नहीं सकता था। रमा को याद आया तो पुछा कि यह आ गये। वाणी बोली कि आप के आने से पहले ही आये है। रमा ने चैन की सांस ली। चारों जनों से बैठ कर लाया हुआ सामान देखा और उसके बाद चाय पीने का दौर चला। रात के खाने के बाद जब मैं सोने की तैयारी कर रहा था तो वाणी मेरे पास आयी और बोली कि सुबह जल्दी जगने की जरुरत नहीं है आप पुरी नींद लिजिये।

सोते समय रमा से मैंने पुछा कि तुम्हारी भाभी को तो कुछ पता ही नहीं है तो वह बोली कि हाँ हम दोनों के मुकाबले तो वह कुछ भी नहीं जानती। मैंने कहा कि क्यों ना एक बार हम तीनों एक साथ सेक्स करे। वह वोली कि वाणी तैयार नहीं होगी। मैंने उसे बताया कि वह तैयार है मैंने बात करी थी। हमें लग रहा था कि तुम तैयार नहीं होयोगी। वह बोली कि मैं तो यह चाहती थी लेकिन तुम कोई बात ही नहीं कर रहे थे इस लिये चुप थी। मैंने उस से पुछा कि यह संभव कैसे होगा तो वह बोली कि कोई उपाय करना पड़ेगा। मुझे चुम कर बोली कि तुम सो जाओ मैं कुछ सोचती हूँ। मैं नींद में डुब गया।

पाँचवी रात

सुबह मुझे तो ऑफिस जाना था सो मैं तो तैयार हो कर ऑफिस के लिये निकल गया। सारे दिन काम में डुबा रहने के कारण किसी बात का ध्यान ही नहीं रहा। शाम को जब घर पर लौटा तो रमा बोली कि तुम अभी कपड़ें मत बदलों कुछ सामान लेने चलना है। वह मुझे लेकर घर से बाहर आ गई। हम दोनों बाजार के लिये पैदल चल दिये। रास्ते में रमा बोली कि मुझे एक बात सुझी है कि रात को छोटी को नींद की गोली दूध में घोल कर दे देते है वह आराम से सोती रहेगी और हम अपना काम कर पायेगे। मैंने कहा कि योजना तो सही बनायी है लेकिन छोटी को नींद की गोली देने के मैं खिलाफ हूँ। वह बोली कि तुम्हारी बात सही है फिर क्या करे। तुम्हारें पास कोई और उपाय हो तो बताओ। मैंने उसे कहा कि आज रात कुछ नहीं करते। कल मैं कुछ पता करके तुम्हें बताता हूँ।

रमा बोली कि तुम्हें तीनों के एक साथ सेक्स करने की बात कैसे दिमाग में आयी। मैंने उसे बताया कि वाणी के साथ कुछ नया किया तो पता चला कि उसे तो कुछ पता ही नहीं है। तब मन में आया कि अगर तुम भी साथ हो तो हम उसे कुछ नया सीखा सकते है। रमा ने पुछा कि हम तो उसे सीखा देगे लेकिन वह भाई के साथ कैसे करेगी? वहाँ कैसे करेगी यह मैं नहीं बता सकता लेकिन उसे कुछ नया तो सीखा ही सकते है शायद आगे काम आये या उस की सेक्स लाइफ सुधर जाये। रमा बोली कि तुम से क्या कहुँ भाई तो एकदम दकियानुसी आदमी है। कुछ सुनने समझने की कोशिश ही नहीं करता है।

हम दोनों सामान ले कर वापस आ गये। रात को जब सोने गये तो रमा बोली कि तुम सुबह के लिये तैयार रहना मैं उसे तुम्हारे पास भेज दूंगी। मैंने कहा कि तुम बहन के पास मत सोना। सोने केलिये बड़ें कमरे में सो सकती हो। वह बोली कि मैं सब समझती हूँ लेकिन समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करुँ। आगे से ध्यान रखुँगी। मैं उस को अपने से लपेटे सो गया।

सुबह मेरी नींद वाणी के जगाने से हुई। वह मुझ पर झुक कर मुझे जगा रही थी। मैंने उसे अपने पर गिरा लिया। उस के उरोज मेरी छाती में दबे जा रहे थे। कुछ देर मैं उन का मजा लेता रहा और उ स के कुल्हों और पीठ को सहलाता रहा। वाणी बोली कि आग लगी हूँई है, और मत लगाओ। मैंने उस के गाउन को ऊपर उठा कर उतार दिया। अब वह नंगी मेरे ऊपर लेटी थी। मैं उसे चुम रहा था। वह बदले में मुझे चुम रही थी। उस के कुल्हें हल्के-हल्के धक्के लगा कर मेरे लिंग को उकसा रहे थे। वाणी के व्यवहार में अब काफी बदलाव आ चुका था। मैं उस के बदले व्यवहार का मजा उठा रहा था। वह यह समझ गयी और बोली कि ज्यादा तड़पाओ मत मैंने उसे अपने से लिपटा कर करवट बदल ली। अब वह मेरे नीचे थी। मेरा लिंग तन कर पत्थर का बन चुका था। ब्रीफ में उसे परेशानी हो रही थी।

मैंने अपनी ऊंगली उस की योनि में डाली तो पता चला कि वह पुरी तरह से उत्तेजित थी। अब देर करने की जरुरत नहीं थी। मैंने ब्रीफ उतार दी और लिंग को उस की योनि के मुँख पर रख कर धक्का दिया। पहले धक्के में लिंग योनि में घुस गया। मेरी इस हरकत पर वाणी ने कुल्हें पर चुटकी काटी। मैं धीमी गति से लिंग को अंदर बाहर करने लगा। काफी देर ऐसा ही करता रहा। फिर वाणी को पेट के बल उलटा करके उसके पीछे से योनि में लिंग डाला। दर्द के कारण वाणी कराहने लगी। कुछ देर हम इसी आसन में रहे। फिर वाणी के सीधा करके उसके कुल्हों के नीचे सिराहना रख कर उस में प्रवेश किया, उसे यह आसन पसन्द आ रहा था। कुछ देर हम ऐसे ही संभोग करते रहे।

इसके बाद मैंने बैठ कर उसे अपनी गोद में बिठा लिया और उस की योनि में लिंग डाल दिया। योनि के अंदर लिंग गहरायी में जा रहा था। मुझे उस के उरोजों को मुंह में ले कर चुसने का अवसर मिल रहा था। वाणी मेरी गरदन में बाँहें डाल कर उछल-उछल कर लिंग को अंदर समाती रही। हम दोनों संभोग का पुरा मजा ले रहे थे। मुझे जब लगा कि मैं स्खलित होने वाला हूँ तो मैंने उसे पीठ के बल लिटाया और उस में प्रवेश कर संभोग करना शुरु किया। कुछ देर बाद मैं स्खलित हो गया। उसी समय वाणी भी स्खलित हुई थी। उस के पाँव मेरी कमर पर कस गये। कुछ देर हम ऐसे ही पड़े रहे। फिर अलग हो कर लेट गये।

वाणी बोली कि आज तो नीचे बहुत दर्द हो रहा है लिंग ने बहुत गहरे तक टक्कर मारी है। तुम तो पक्के शैतान हो। पता नहीं अगले तीन दिनों में मेरा क्या हाल करोगे? मैंने कहा कि अभी तो शुरुआत है आगे देखो क्या होता है। उस ने नकली गुस्से में मेरी छाती पर मुक्के मारने शुरु कर दिये। उन से बचने के लिये मैंने उसे अपने से चिपका लिया। हम दोनों के नीचे के हिस्से गीले थे और हमें उसे सुखा कर अपने सामान्य रुप में आना था। इस लिये हम दोनों अलग हो गये और मैं बाथरुम में घुस गया। मेरे बाहर आने के बाद वाणी भी अंदर चली गयी। बाहर आ कर उसने अपना गाउन डाल लिया। मुझे नोच कर बोली कि रमा ने यह नहीं बताया था कि तुम इतने बदमाश हो। आज जान ही निकल गयी है। मैंने कहा कि अब तुम मेरी चेली बन गयी हो, शिक्षा तो मिलेगी लेकिन तुम्हें गुरुदक्षिणा भी देनी होगी। वह मुस्कराती हूँई चाय बनाने चली गयी।

मुझे यह पता करना था कि रमा कहाँ है। वह बड़ें कमरे में तो नहीं मिली। वह छोटी के पास ना सो कर उस के बेड के नीचे सो रही थी। मैं यह सोच कर परेशान था कि यह अपने परिवार के लिये कितना त्याग कर रही है जो कोई कभी नहीं जान पायेगा। उसे मैंने हल्के से हिला कर जगाया और अपने साथ ले कर बेडरुम में आ गया। वह बेड पर आ कर लेट गयी। उसे नींद आ रही थी तो लेटते ही सो गयी।

वाणी जब चाय बना कर लायी तो रमा तो देख कर बोली कि यह कहाँ थी। मैंने उसे चुप रहने को कहा और हम दोनों बाहर बड़े कमरे में आ गये। वहाँ हम दोनों चाय पीने लगे। दिन अभी निकला नहीं था। मैंने वाणी से कहा कि अगर वह सोना चाहती है तो सो जाये। वह बोली कि चाय पीने के बाद नींद नहीं आती है। वैसे भी आप के नाश्ते की तैयारी करनी है। चाय के बाद हम दोनों अपने अपने काम में लग गये।

आज रमा सोती रही और वाणी ने ही नाश्ता बना कर मुझे दिया और मैं ऑफिस के लिये निकल गया। वाणी और मेरे में सामंजस्य बैठने लगा था। आगे यह क्या रुप लेने वाला था यह मैं नहीं जानता था। ना इस बारे में सोचना चाहता था। अभी तो हम सब का एक ही उदेश्य था कि वाणी किसी भी तरह से गर्भवती हो जाये। सारे प्रयास इसी दिशा में थे। वाणी और मेरे बीच लगाव सा पैदा हो रहा था। मैं उस से बचना चाहता था लेकिन मुझे पता था कि मैं बच नहीं सकता था।

छठी रात

रात की मस्ती

दिन बिना किसी घटना के गुजर गया। मैं ऑफिस से लौटा तो मुझे नहीं पता था कि मेरे पीछे क्या हुआ था। रमा की जिम्मेदारी थी कि वह अगर सेक्स चाहती थी तो उसे रात में अपनी छोटी बहन को सुलाने का को हल खोजना था। हल शायद उसे मिल गया था। रात के खाना खाने के बाद वह वीणा और छोटी के साथ गपशप में लग गयी। मुझे लग गया कि उस के दिमाग में कुछ जरुर होगा वह उसे ही लागु करने का उपाय ढुढ़ रही होगी। मैं कुछ पुछने की हालत में नहीं था। चुपचाप सोने के लिये जब कमरे में गया तो कमरे में कोई नहीं था। कुछ देर बाद रमा आती दिखायी दी। वह मेरे पास बैठ गयी और बोली कि आज मैं और वीणा यहाँ बातें करेगी इस से तुम्हारी नींद खराब होगी इस लिये तुम आज बाहर कमरे में दिवान पर सो जाओ। मैं उस की बात मान कर तकिया ले कर कमरे से निकल गया। दिवान पर जा कर तकिया लगा कर लेट गया। थका होने के कारण कुछ देर बाद मेरी आँख लग गयी। कब तक सोता रहा मुझे पता नहीं चला।

किसी के झकझौरने से मेरी नींद खुली। रमा ने मेरे मुँह पर हाथ रख कर मुझे अपने पीछे आने के लिये कहा, मैं चुपचाप उठ कर उस के पीछे चल दिया। अपने बेडरुम में पहुँच कर देखा कि वाणी भी वहाँ पर थी। मेरे दिमाग से यह कौधं गया कि आज की रात खास होने वाली है। मैंने कभी किसी तीन लोगों के साथ सेक्स नहीं किया था। पत्नी के सिवा वाणी ही दूसरी महिला थी जिस के साथ मेरे शारीरिक संबंध बने थे। आज जो हो रहा था वह हम सब के लिये नया था। क्या होगा यह किसी को भी नहीं पता था। लेकिन कुछ नया करने के लिये हम इस खेल को खेल रहे थे। मेरी और मेरी पत्नी के सेक्स जीवन थोड़ा खुला हुआ था। हम चाहते थे कि वाणी भी कुछ ऐसा ही करे, उसी के लिये यह सब कर रहे थे।

रमा ने मुझे बेड पर बिठा दिया। वाणी भी मेरी बगल में बैठी थी। रमा दरवाजा बंद करके आयी और बोली कि लाइट जलने दूँ या बंद कर दूँ मैंने कहा कि लाइट बंद कर के नाइट बल्ब जला दे। उस ने ऐसा ही किया।

उस के बाद वह हम दोनों के बीच आ कर बैठ गयी। उस ने मेरे को चुमा और कहा कि आज तुम्हारी बुरा हालत करने वाली है हम दोनों। उस की बात पर वाणी मुस्करा दी। मैं चुप रहा तो वाणी बोली कि यह ऐसे ही रहते है या मेरे सामने ऐसा कर रहे है? रमा बोली कि ऐसे ही है इन से कुछ कहलवाना बहुत मुश्किल है लेकिन मैं सब करवा लेती हूँ।

मैंने पुछा कि रात ऐसे ही बातों में बेकार करनी है तो दोनों बोली कि नहीं बड़ी मुश्किल से सब इंतजाम हुआ है। मैंने रमा को पकड़ कर अपने से लगाया और उसे चुम कर कहा कि कैसे हुआ यह अभी नहीं जानना चाहता लेकिन हमें जो करना है करते है। वह वीणा को अपने से सटाती हूँई बोली कि तुम सही कह रहे हो। मैंने कहा कि कपड़ें तुम उतारोंगी या मैं सहायता करुँ तो जबाव ना में मिला।दोनों ने अपने कपड़ें उतार दिये, मैं भी अपने कपड़ें उतारने लग गया। कुछ देर बाद हम तीनों मादरजात नंगें थे। अब वह होना था जो हम ने पहले नहीं किया था।

अब मैं बेड के बीच में लेट गया और रमा और वीणा मेरे अगल बगल लेट गयी। रमा ने मुझे चुमा और मैंने वीणा को चुमा वह भी मुझे चुमने लगी। रमा के होंठ मेरी छाती को चुम रहे थे। यह उस की मनपसन्द जगह थी। वह मेरे निप्पल अपने दांतों से काट रही थी। इस वजह से उत्तेजना मेरे शरीर बिजली सी कौंध रही थी। मैं और वीणा अपने होंठों से एक दूसरे का रस चुस रहे थे अब हमारे बीच की शर्म चली गयी थी। वाणी भी मेरी छाती पर गरम साँस छोड़ने लगी एक निप्पल उस के कब्जे में था और दूसरा रमा के मुँह में था। मेरी आँखे कौधं सी रही थी। रमा अपने हाथ से मेरा पेट सहला कर मेरे लिंग को सहला रही थी।

उसे पता था कि इसे कैसे जल्दी उत्तेजित किया जाता है। वाणी भी उसी के नक्शे-कदम पर चल कर मेरी जाँघों को सहला रही थी। उस ने मेरी पिड़लियाँ सहलायी और मेरे पंजों को सहलाना और चुमना शुरु कर दिया। लगता था आज इस दोनों ने क्या करना है कैसे करना है तय कर रखा था। मैं बस सब होते हुये देख रहा था। रमा ने मेरे लिंग के मुँख को चुमा और उस पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी। उस के बाद वह मेरी छाती पर हाथ फिराने लगी। उसे पता था कि इस से मैं उत्तेजित हो जाता हूँ। मेरे बदन में वासना का तुफान भर रहा था।

मेरे हाथ भी पहले रमा के स्तनों को मसलते रहे फिर उन्होंनें वीणा के कपोतों को अपने करों में भर लिया। उन्हें मसलने में मुझे बहुत मजा आ रहा था। वाणी की कराह सुनी जा सकती थी। मेरा हाथ उस की जाँघों के मध्य पहुँच गया और वह अपने काम में लग गया। पहले योनि को बाहर से भरपुर सहलाया और उसके बाद योनि के अंदर ऊँगली घुसेड़ दी। कुछ देर अंदर की गरमी का मजा लेने के बाद मैंने वाणी के जी-स्पाट को ढुढ़ लियाऔर उस की मालिश करने लग गया। इस के कारण वाणी की उत्तेजना बहुत बढ़ गयी। वह बोली कि धीरे करो नहीं तो मैं अभी डिस्चार्ज हो जाऊँगी। मैंने अपनी गति कम कर दी। दूसरा हाथ रमा के कुल्हों की गहराई में उतर गया। वह गुदा पर जा कर उसे सहलाने लगा।