अनचाहा संबंध

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वह उठ कर चली गयी और मैं कपड़ें पहन कर सो गया।

रोज ऐसा ही हो रहा था। रमा अपने आप को नये माहौल के अनुसार ढाल रही थी। मेरी सेक्स लाइफ तो सही चल रही थी। कभी रमा के साथ और कभी वीणा के साथ सेक्स नियमित रुप से हो रहा था। महीने के बाद वाणी वापस चली गयी। इस के बाद मेरी माँ आ गयी। वह अपनी पोती से दूर नहीं रह पा रही थी। रमा को उन के आने से फायदा था। उसे बेटी को देखभाल करने में सहायता मिल रही थी। कुछ दिन बाद माँ को वापस जाना पड़ा, अब दोनों अकेले थे। बेटी की देखभाल करने के लिये। कुछ दिन बाद मेरी ससुराब वालों ने आग्रह किया कि हम दोनों कुछ दिन के लिये उन के यहाँ रहने आ जाये ताकि वह सब भी मेरी बेटी को देख सके। रमा काफी लम्बे समय के कही गयी नहीं थी इस लिये हम एक सप्ताह के लिये उस के मायके आ गये।

यहाँ और सब तो रमा और मेरी बेटी को देख कर खुश थे लेकिन वाणी अपनी पुरानी हरकतें दोहरा रही थी। वह जब भी मौका मिलता था मेरा अपमान करने में चूक नहीं रही थी। पहले तो मैं उसके इस व्यवहार को अनदेखा कर देता था लेकिन इस बार मैंने और रमा नें दोनों ने महसुस किया की कुछ सही नहीं है। मुझ से ज्यादा निकटता ना दिखाना सही है लेकिन मेरा जानबुझ कर अपमान करना, हमारी समझ से परे था। वाणी के इस व्यवहार को मेरे सास-ससुर साली और साला भी महसुस कर रहे थे लेकिन कोई खुल कर कुछ नहीं कह पा रहा था। मुझे भी बहुत अजीब सा लग रहा था कि वाणी जो मेरे घर पर मेरे से प्यार करने में मरी जाती है यहाँ अपने घर में मेरा अपमान क्यो कर रही है। इसके पीछे का कोई कारण मुझे समझ नहीं आ रहा था। हमने पुरा सप्ताह मुश्किल से काटा और उस के बाद घर पर वापिस आ गये।

घर पर आ कर बैठे ही थे कि मेरे ससुर का फोन आया और उन्होनें मेरे साथ वाणी द्रारा किये व्यवहार के लिये क्षमा माँगी। मैंने उन्हें कहा कि किसी और की गल्ती के लिये आप को क्षमा माँगने की जरुरत नहीं है। जिस ने गल्ती करी है उसी को माफी माँगनी चाहिये। रात में सोते समय मैंने रमा से पुछा कि तुम्हें कुछ अन्दाजा है कि वाणी मेरे से ऐसा व्यवहार क्यों कर रही है तो वह बोली कि मैं तो खुद बहुत हैरान हूँ कि ऐसा क्या हुआ है कि वह तुम्हारें साथ ऐसा कर रहे हो।

तुम ने तो उसे माँ बनाया है। मैंने कहा कि वह यहाँ पर तो मुझ से प्यार करने में मरी जाती है, लेकिन अपने घर जा कर ऐसा क्यों करती है मुझे समझ नहीं आता। मैंने रमा से कहा कि अब आगे से वह मुझ से ऐसा कुछ नहीं माँगेगी जो ऐसा होगा। वह बोली कि मेरी कुछ समझ नहीं आ रहा है। अभी तो वह दो महीने पहले एक महीना रह कर गयी थी तब तो ऐसा कुछ नहीं था तुम्हारें साथ रोज ही सेक्स करती थी। मुझे भी कह रही थी कि हम दोनों को तुम्हारा ध्यान रखना चाहिये।

ऐसा ध्यान ना ही रखे तो सही रहेगा

तुम अब वहाँ जाना ही नहीं

कहीं वह यही तो नहीं चाहती कि उस का काम निकलने के बाद मैं वहाँ कभी ना जाऊँ

अगर वह चाहती है तो भी यह संभव नहीं है, वह मेरा भी घर है, मेरा और तुम्हारा भी उस घर पर उसके जितना ही अधिकार है।

कोई ऐसे रंग बदलता है मैंने देखा नहीं था

अब तो देख लिया

मेरे से आखिर उस को इतना विरोध क्यों है, मैंने क्या बुरा किया है

तुम ने तो उस की इज्जत ही रखी है, उसे माँ बना कर उस पर से बाँझ का दाग मिटाया है

उस का वह यह बदला दे रही है

कुछ और बात है, मुझे विश्वास नहीं होता कि वह ऐसी बात कर सकती है

पहले भी करती थी मैं देख कर अनदेखा कर देता था

मुझे पता है लेकिन मुझे लगता था कि तुम वैसे भी किसी से ज्यादा बात नहीं करते हो, शायद इसी वजह से ऐसा हो

चलो जल्दी ही तुम्हारें मेरे सामने सच्चाई सामने आ गयी है, अब मुझे वहाँ जाने की मत कहना

तुम मेरे से नाराज हो

नहीं, लेकिन परेशान हूँ

मैंने उसे अपने से चिपटा लिया और उसे चुम कर कहा कि मेरी बेटी की माँ और मेरी सरकार तुम से नाराज हो कर बंदा कहाँ जायेगा। तुम तो मेरी रानी हो। वह मेरे गले लग कर सुबकने लगी। मैंने उसे रोका नहीं। उसका दुख अगर ऐसे ही निकलता है तो निकलने देना चाहिये था। हम दोनों के विश्वास को बहुत धक्का पहुँचा था। पता नहीं अब हम दोनों किसी पर विश्वास कर पायेगे या नहीं।

जीवन ऐसे ही चल रहा था। बेटी जब दो साल की हो गयी तो हमने अपने परिवार को बढ़ाने का सोचा और इसी राह पर चल पड़े। कुछ दिनों बाद रमा गर्भवती हो गयी। इस बार हम दोनों ने किसी को छः महीने तक कुछ नही बताया। जब साँतवा महीना लगा तो परेशानी बढ़ने लगी तो रमा ने यह खुशखबरी अपनी माँ को दी और मैंने भी अपनी माँ को इस बारे में बता दिया। वाणी के बारे में हम अपने दिमाग से निकाल चुके थे। उस घटना के बाद हम दोनों रमा के मायके भी नहीं गये थे। कह सकते है कि शायद जैसा वाणी चाहती थी हम ने वैसा ही किया था। रमा के गर्भवती होने की खबर सुन कर उस की माँ और छोटी बहन घर पर आ गयी। उन के आने से मेरे मन में थोड़ी सी तसल्ली सी आ गयी कि मेरे ऑफिस जाने पर पीछे से रमा के पास कोई तो देखभाल करने के लिये है।

मेरे शाम को ऑफिस से आने के बाद हम सब लोग मिल कर खाना खाते थे और बातें किया करते थे। एक दिन इसी माहौल में रमा की माँ बोली कि वाणी तुम्हारें यहाँ आना चाहती थी लेकिन मैंने मना कर दिया कि तुम्हारी हरकतों की वजह से मेरे बेटी-दामाद हम से दूर हो गये है। अब तुम उन से दूर ही रहो। उस की इस बात पर हम दोनों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखायी। रमा की बहन बोली कि वह यहाँ आने केलिये बहुत रो रही थी लेकिन भाई ने भी मना कर दिया। मैं और रमा कुछ कह नहीं रहे थे। रमा बोली कि माँ मुझे आज तक समझ नहीं आया है कि वह इन से ऐसा व्यवहार क्यों करती है। माँ बोली कि केवल इन के साथ ही उस ने ऐसा किया है नहीं तो उस के व्यवहार में हम कोई गल्ती नहीं निकाल सकते।

हम दोनों चुप बैठे रहे। मैंने उन्हें समझाया कि शायद मेरे से उन को कोई परेशानी हो इसी वजह से वह ऐसा करती होगी। इस कारण से हम दोनों ने वहाँ जाना ही छोड़ दिया है। रमा की माँ बोली कि बेटा यहीं तो आप ने गलत किया है उस के किये की सजा आप हम सब को दे रहे है। रमा बोली कि माँ मैं अपने पति का अपमान सहन नहीं कर सकती हूँ। इस से अच्छा है कि हम उस के यहाँ ना जाये। हम वही कर रहे है जो हमें सही लग रहा है। मैंने बात बदलने केलिये कहा कि आप भी तो यहाँ आ सकती है यह भी तो आप का ही घर है। मेरी बात पर उन्होने गरदना हिला दी।

एक शनिवार को हम सब नाश्ता करके ही बैठे थे कि रमा का भाई अपनी पत्नी और बेटे के साथ आ गये। उन को आया देख कर हम सब हैरत में थे। रमा और मैं तो इस परिस्थिति के लिये बिल्कुल तैयार नहीं थे। हम सब ने उन का स्वागत किया और रमा अपने भानजे को गोद में लेकर दूलारने लग गयी। रमा की बहन उन दोनों के लिये नाश्ता बनाने चली गयी। वहाँ हम पाँच लोग रह गये। रमा और मेरे चेहरे पर वाणी को देख कर तनाव था। रमा के भाई ने कहा कि मैं इस को यहाँ इस लिये लाया हूँ कि यह आप सब से माफी माँग सके। उस की इस बात से हम सब सकते में आ गये।

रमा बोली कि माफी किस बात की है अगर इन को कोई पसन्द नहीं है तो अपनी उस नापसन्द को अपने तक रखना चाहिये और घर आये का स्वागत करना चाहिये। यह तो सामान्य सी बात है। मैंने रमा का हाथ दबा कर चुप रहने का इशारा किया तो वह चुप हो गयी। मैं वहाँ से जाने लगा तो रमा के भाई ने मुझे रुकने को कहा। मैं वही खड़ा रहा। मुझे अचानक अपने घर का वातावरण भारी सा लगने लगा था। मैंने कहा कि पहले आप दोनों नाश्ता करो उस के बाद बात करते है। वह मेरी बात मान गया। रमा की बहन नाश्ता ले कर आ गयी और वाणी और मेरा साला दोनों नाश्ता करने लगे। मैंने वाणी के बेटे को गोद में उठा कर चुमा और उस से खेलने लग गया।

नाश्ता करने के बाद माहौल में शान्ति छा गयी। रमा की माँ ने बेटे और बहु से कहा कि दोनों कपड़ें बदल का हाथ मुँह धो लो तो बेटा बोला कि माँ पहले वह काम होना चाहिये जिस के लिये हम दोनों यहाँ आये है। उस की बात सुन कर वाणी ने मेरे पैरों में सर झुका कर माफी माँगी उस की बात से मैं अचकचा गया और पीछे हट कर कहा कि इस सब की कोई आवश्यकता नही है। वाणी बोली कि जरुरत है मैंने जो कुछ आप के साथ किया वह माफी लायक नहीं है लेकिन फिर भी शायद आप मेरी गल्ती को माफ कर दे। मुझे खुद समझ नहीं आ रहा है कि मैंने आप के साथ ऐसा क्यों किया। आप तो मुझ से कभी ज्यादा बात भीनहीं करते थे। मैंने कहा कि वाणी जो हुआ उसे भुल जायो। उस ने अपनी ननद के पैरों में भी सर झुका कर माफी माँगी । ननद ने अपनी भाभी को उठा कर गले लगा लिया। दोनों ननद भाभी के आँसुओं में उन के गिले-शिकवे बह गये।

वाणी के आने से माहौल में थोड़ी देर तनाव रहा फिर कुछ समय बाद वह खत्म हो गया। शाम को मेरा साला बोला कि जीजाजी जी अभी तो हम दोनों चले जायेगे क्योकि घर पर कोई नहीं है, लेकिन माँ के आने के बाद जब तक जचगी नहीं होती, वाणी यही रहेगी। मैं उस की बात पर कुछ नहीं बोला। मेरे कुछ कहने के लिये था भी नहीं। दूसरे दिन रमा का भाई और उसकी भाभी वापस चली गयी। उनके जाने केबाद रमा की माँ ने कहा कि वाणी का व्यवहार मेरी समझ में नहीं आ रहा था वैसे तो वह सब का ध्यान रखती है कभी किसी से ऊँचा नहीं बोलती, सुघड़ तो है। रमा बोली कि माँ मुझे नहीं पता कि क्या हुआ है लेकिन वह अपने किये की क्षमा माँग गयी है। हमें भी लगता है कि उन्हें क्षमा कर देना चाहिये। मैंने भी कहा कि मांजी आप भी उन को क्षमा कर दीजिये। वह भी आपकी बेटी ही है। वह बोली कि आज उस ने आप से क्षमा माँग कर मेरी सारी शंकाओ को दूर कर दिया है। उन के यह कहने के बाद घर के माहौल में छाया तनाव गायब हो गया।

रमा की गर्भावस्था ज्यो-ज्यो आगे बढ़ रही थी हम दोनों का तनाव भी उसी के साथ बढ़ रहा था। रमा की माँ और बहन को वापिस जाना था। वह वापिस चली गयी। अब वाणी के आने का अवसर था और हम दोनों यह सोच रहे थे कि उस के आने के बाद हम दोनों कैसे रियेक्ट करेगे। वह माफी तो माँग गयी थी लेकिन क्या हमारे साथ उस के संबंध उस आत्मियता के साथ हो पायेगे जैसे पहले थे। हम दोनों ही उस के आने से खुश भी थे और शंकित भी थे। वह दिन भी आ गया जब वह अपने बेटे के साथ आने के लिये घर से चल पड़ी मैं उसे स्टेशन पर लेने गया। ट्रेन से उतर कर उस ने मेरे पैर छुये और अपने बेटे को मेरी गोद में दे दिया। और खुद सामान ले कर मेरे साथ बाहर चल पड़ी। हम दोनों पार्किग में आ कर गाड़ी में बैठ गये। मैं इस दौरान चुप था।

रास्ते में मुझे चुप देख कर वह बोली कि अब तक नाराज है मुझ से। मैंने उस की तरफ देखे बिना ही कहा कि मेरी नाराजगी से तुम्हे क्या फर्क पड़ता है। वह बोली कि नाराजगी अपनी जगह सही है लेकिन जब आप मेरा पक्ष सुनेगे तो समझ जायेगे कि मैंने ऐसा क्यों किया था। मैंने कुछ नहीं कहा और चुपचाप गाड़ी चलाता रहा। वह मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर बोली कि आप को मेरे पर इतना ही विश्वास था। उसकी इस बात पर मैंने कहा कि मैंने तो तुम्हें कुछ कहा ही नहीं है। तुम ही ना जाने क्यों नाराज हो गयी थी। वह बोली कि आप दोनों को जब सब बात पता चलेगी तो आप भी मुझे माफ कर दोगे। मैंने उसे बताया कि हम उसे पहले ही माफ कर चुके है। तो वह बोली कि ऐसा माफ कर चुके है कि मुझ से बात भी नहीं कर रहे। उस की इस बात पर मैंने हँस कर कहा कि तुम नारियों की माया तुम ही जानों हम पुरुष तो इस मायाजाल में उलझने के लिये ही बने है। मेरी इस बात पर वह बोली कि यह हुयी ना कोई बात। इस के बाद हम दोनों के मध्य सन्नाटा छा गया।

घर आ कर वाणी रमा से गले मिली और बोली कि पहले तो आप दोनों को मुझे दिल से क्षमा करना पड़ेगा। रमा बोली कि तुम्हें तो पहले ही क्षमा कर चुके है लेकिन अभी तक तुम्हारें व्यवहार का कारण नहीं समझ पाये है। मुझे इतना तो पता था कि इस के पीछे की तुम्हारा कोई कारण होगा लेकिन उसे हम समझ नहीं पाये थे। अब तुम आ गयी हो तो हमें समझा देना। रमा अपने भतीजे को खिलाने लगी और वाणी अपनी भानजी को। मैं बिचारा अकेला एक तरफ बैठ कर उन दोनों को देखने लगा। वाकई मैं नारी को समझना मानव के बस की बात तो नहीं है। यह आज मुझे पक्की तरह से पता चल गया था।

रात के खाने के बाद हम तीनों जने बात करने बैठे तो रमा बोली कि भाभी आप को अपने व्यवहार को हमें समझाना पड़ेगा क्योकि इस के कारण परिवार में काफी तनाव रहा है आप ने कोई सफाई भी नहीं दी थी। वाणी बोली कि मैं जीजाजी से अनमना सा व्यवहार जानबुझ कर ऐसा करती थी ताकि किसी को हम दोनों पर शक ना हो लेकिन उस दिन कुछ ऐसा हो गया कि मैं ऐक्टिग करने की रौ में अपनी सीमा लाँघ गयी और जब बात बिगड़ गयी तो मुझ से किसी को कोई कारण समझाया नहीं गया। असल में मैं ही उस समय उलझ गयी थी कि सब लोगों का अपने इस तरह के व्यवहार का क्या स्पिष्टिकरण दूँ। मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। मुझे लगता था कि इस विषय में आप लोगों को मैंने पहले ही बता रखा है इस लिये आप इसे सभांल लेगे। लेकिन उस दिन बात काबू से बाहर हो गयी और आप दोनों भी नहीं समझ पाये या नाराज हो गये। कोई मेरे साथ नहीं था और मुझे समझ ही नहीं आया कि मैंने जो करा है उसे किस तरह से समझाऊँ। यह मेरी बहुत बड़ी गल्ती थी और उस की मुझे सजा मिली है जो मेरे जैसे को मिलनी ही चाहिये।

मैंने आप दोनों का अपमान किया और दिल दुखाया, जिन्होने मेरी झोली में खुशियां डाली। मैं आत्मग्लानि से मरी जा रही थी लेकिन अपनी बात किसी को बता नहीं पा रही थी। आप दोनों भी वापस आ गये। वहाँ पीछे सारा परिवार मुझ से नाराज हो गया। ये भी मुझ से बात नहीं कर रहे थे। आप ने इतने सालों तक रिस्ता तोड़ सा दिया। मुझे यह ही समझ नहीं आ रहा था कि मैं कैसे माफी माँगु लेकिन जब मैंने देखा कि आप ने मेरे को कुछ नहीं कहा। कोई गुस्सा नहीं दिखाया तो मुझे आशा कि किरण नजर आयी और दीदी की गुड न्यूज सुन कर लगा कि अब मैं अपनी बिगड़ी बात बना सकुँगी।

मैंने आप के यहाँ आने की बहुत कोशिश की लेकिन माँजी ने मना कर दिया। मैं कई दिन तक रोती रही लेकिन किसी ने मेरी नहीं सुनी। माँजी के यहाँ आने के बाद एक दिन मैंने इन से कहाँ कि मुझे आप के यहाँ ले चलो मैं अपने किये की आप के पैरों में पड़ कर माफी माँगना चाहती हूँ तो इन का दिल पिघल गया और ये मुझ को आप के यहाँ ले कर आ गये। बाकि तो आप को सब पता है। मैं एक बात को लेकर बिल्कुल निश्चित हूँ कि आप मुझ से कितने भी नाराज थे लेकिन आप ने मेरा कोई राज किसी को नहीं बताया। आप पर मेरा विश्वास और पक्का हो गया है।

मैं ने वाणी से पुछा कि तुम्हें यह सब करने कि जरुरत क्या थी तुम मेरी सलहज हो, मेरे से मजाक भी कर सकती हो मैं भी तुम्हारे साथ ऐसा ही कर सकता हूँ। वह बोली कि मेरी मति मारी गयी थी। मैं होशियार बनने के चक्कर में मुर्ख बन गयी। जग हसाँई हुई और आप की नजरों में भी गिर गयी। रमा बोली कि उस दिन के व्यवहार से मेरे दिल को बहुत धक्का लगा लेकिन मन इस सब पर विश्वास करने को नहीं कर रहा था। यह भी यही कह रहे थे कि तुम्हारें इस आचरण के पीछे जरुर कोई ना कोई बात होगी। लेकिन आँखों देखा निगला भी तो नहीं जाता है।

वाणी बोली कि मेरी गल्ती थी और मैंने उसे उसी समय सुधारने की कोई कोशिश नहीं की। अगर उसी समय माफी माँग लेती तो इतना समय व्यर्थ नहीं जाता। मैं उस की बात सुन कर बोला कि रमा इसे अभी भी अपनी चिन्ता है। वाणी बोली कि दीदी अब आप मेरे से आगे हो गयी है। मुझे अपनी गल्ती की सजा मिल गयी है। और कोई सजा आप दोनों देना चाहो तो दे सकते हो।

हम दोनों ने कहा कि जो सजा तुम्हें मिली है तुम्हारे लिये वही काफी है लेकिन आगे से ध्यान रखना कि कभी गल्ती से भी ऐसा कुछ मत कर देना। वह अपने दोनों कानों को हाथ लगा कर बोली कि कभी गल्ती से भी करुँ तो आप मेरी पिटाई कर देना। मैं कुछ नहीं कहुँगी।

हम दोनों उस की बात पर हँस दिये और बोले कि तुम अब इतनी चालाक बनने की कोशिश करना बंद कर दो।जैसी हो वैसी ही रहो। हमें तुम ऐसी ही पसन्द हो। हमारी इस बात पर वह मुस्करा दी। उसे पता था कि वह माफी पा चुकी है। इस लिये उस ने कहा कि इस बार मेरा भी नंबर लगना चाहिये। रमा बोली कि अब तो नंबर मेरे बाद ही आयेगा। वह बोली कि क्या मतलब? रमा बोली कि पहले मुझे तो निबट जाने दे तभी तो तेरा नंबर लगेगा। दोनों एक साथ एक जैसी होगी तो एक दूसरे की सहायता कैसे करेगी? वाणी को बात समझ में आ गयी और वह रमा को चुम कर मुझे देखती हूँ चली गयी।

रमा बोली कि आप क्या कहते हो?

मैंने क्या कहना है

वाणी की माँग के बारे में

यह तो पहले से तय है कि उस ने दो बच्चे करने है

तुम उस से नाराज तो नहीं हो

नहीं मैं पहले भी नाराज नहीं था लेकिन उस का व्यवहार समझ नहीं आ रहा था।

मेरे से तो तुम अब संभोग कर नहीं पा रहे हो तो उस से कर लो

देखते है अभी मन नहीं मान रहा है

क्या बात है

कोई खास बात नहीं है

फिर क्यों मना कर रहे हो?

मैं मना नहीं कर रहा हूँ लेकिन तुम अभी मुझ पर जोर नहीं डालो

वाणी को मना कर दूँ

मैं उस से बात कर लुगाँ, तुम परेशान मत होयो

जैसी तुम्हारी मर्जी

हम दोनों सोने के लिये बेड पर लेट गये। नींद इतनी आसानी से कहाँ आनी थी। मुझे करवटें बदलते देख रमा बोली कि कोई परेशानी है तो मुझे बता दो। मैंने कहा कि कुछ नहीं है लेकिन मन परेशान है। तुम सो जाओ। वह बोली कि तुम करवटे बदलते रहोगे तो मुझे नींद कहाँ आयेगी। मैंने उसे उठ कर चुमा और उस के पीछे की तरफ जा कर लेट गया और अपने हाथ उस के पेट पर रख दिये। कुछ देर बाद उसे सहलाने लग गया। फिर हाथ उस के स्तनों पर पहुँच गये और उन का मसाज होने लगा। रमा को इस से आराम सा मिला और वह सो गयी। मैं भी सोने की कोशिश करने लगा। दोनों बच्चे अलग कमरे में सो रहे थे।

सुबह जल्दी उठ कर कमरे से बाहर गया तो देखा कि वाणी किचन में जा रही थी। मुझे देख कर मेरे पास आयी और मुझ से लिपट गयी। उस की आँखों से आँसु टपक कर मेरी छाती गिली करने लगे। मैं कुछ क्षण तो ऐसे ही खड़ा रहा फिर मैंने उसे आलिंगन में भर लिया। हम दोनों ने एक-दूसरे को थपथपाया। मैंने उस का चेहरा हाथों में लेकर उस के आँसु चाट लिये। वह चुप हो गयी। वह शायद कुछ और चाहती थी। मैं भी चाहता था लेकिन मन मना कर रहा था। वह मेरे गले में बाँहे डाल कर बोली कि तुम मेरी पिटाई क्यों नहीं कर देते ताकि तुम्हारें अंदर का गुस्सा निकल जाये। मैंने तुम्हें बहुत तड़पाया है। मेरी यही सजा है। मैं चुप रहा तो वह बोली कि मेरे सवाल का जवाब दो। मैंने कहा कि वाणी मैं जितना तुम्हें समझने की कोशिश करता हूँ उतना ही उलझता जाता हूँ बताओ मैं क्या करुँ? मुझे समझना बंद कर दो। मैं समझने के चीज नहीं हूँ प्यार करने के चीज हूँ। मुझ से बस प्यार करो।

तुम इतनी उलझी हुई क्यों हो

तुम ने उलझा रखा है

मैंने कैसे

तुम मुझे प्यार ही नहीं करते, इस लिये ऐसा होता है

वाह तुम्हारी गल्ती लेकिन दोष मेरा क्या बात है

हाँ यही बात है मैं सब के सामने तुम से कैसा व्यवहार करुँ यह समझ नहीं पाती इसी लिये उलटा-सीधा कर जाती हूँ।

इस का कोई समाधान

तुम अपने आप आगे बढ़ कर मुझ से बात किया करो सब के सामने तो मैं शायद सामान्य व्यवहार कर पाऊँ

चलो आगे से मैं ऐसा ही करुँगा अब तो खुश हो जाओ

मैं तो खुश हूँ, तुम अपनी बताओ, रोनी सुरत बना कर बाबा जी बने बैठे हो

बाबा जी मेरी हँसी निकल गयी।

वह बोली कि ऐसे अच्छे लगते हो, गम्भीरता का चोला छोड़ दो

अच्छा वैसा ही करुँगा जैसा तुम चाहती हो, अब तो खुश हो

हाँ बहुत खुश हूँ

चाय पिलाओ

तुम बना कर पिलाओ

चलो तुम बैठो मैं बना कर लाता हूँ

नहीं मैं साथ खड़ी हो कर तुम्हें देखुँगी

यह क्या पागलपन है

तुम आदमी लोग नहीं समझ सकते हम जिसे चाहती है उसे अपने काबु में रख कर खुश होती है

तुम्हारी माया तुम जानो

मैं किचन में आ गया और चाय बनाने लग गया। वाणी मुझे देखती रही। मैंने उसे ध्यान से देखा तो पता चला कि वह पतली हो गयी है। मुझे घुरता देख कर वह बोली कि पता चला कि मुझ पर क्या बीती है।

तुम पहले भी यह सब कर सकती थी, हम दोनों में से किसी से बात करते बता सकती थी।

मैंने कोशिश करी थी लेकिन इन्होने कहा कि तुम बहुत नाराज हो और किसी से मिलना नहीं चाहते।

हाँ हम दोनों ने माता जी और पिता जी को वहाँ आने से मना कर दिया था। हमें समझ नहीं आ रहा था कि हम क्या करे?

बुरा समय था कट गया

हाँ ऐसा कह सकती हो

चाय बन गयी थी, वाणी ने हट जाने को कहा और चाय कपों में भरने लगी। फिर चाय ले कर कमरे में चल दी। वहाँ पहुँच कर रमा को जगा कर उसे चाय का कप पकड़ा कर बोली कि दीदी आज की चाय जीजा जी ने बनायी है। रमा बोली कि आज कल यह ही मुझे चाय बना कर देते है। मेरे से सुबह उठा ही नहीं जाता है। रमा मुझे चाय पीता देख कर बोली कि अब तो आप भाभी को माफ कर दो। मैंने कहा कि माफ कर तो दिया है। और क्या करुँ? इन को काम करने दो।

आगे से यही सब काम करेगी। मैं तो बस इन का हाथ बटाँ दूँगा अगर यह चाहेगी

वाणी बोली कि दीदी यही सही रहेगा

रमा बोली कि जैसी तुम सलहज ननदोई की मर्जी मुझे तो बस काम चाहिये

उस की इस बात पर हम दोनों हँस दिये

तीनों के बीच जमी बर्फ पिघलने लगी थी। मैं यही चाहता था मेरे से बिना प्यार के किसी के साथ सेक्स नहीं किया जाता था। यह शायद रमा को समझ आ गया था। वह भी वातावरण को हल्का करना चाहती थी। उस की अपनी बहुत परेशानियाँ थी।

मैं अपने ऑफिस के लिये निकल गया। दोपहर में घर पर फोन करके बात करी तो रमा बोली कि मुझे थोड़ा दर्द हो रहा था सो डाक्टर को फोन किया था उन्होनें दवाई बताई थी वह भाभी जी ने ला कर दे दी है। उसे लेने के बाद अब दर्द बंद हो गया है। शाम को में आइसक्रीम लेकर आया मुझे पता था कि रमा को और वाणी दोनों को आइसक्रीम पसन्द है। दोनों को आइसक्रीम अच्छी लगी। रात को सोते समय वाणी बोली कि दोनों बच्चें मेरे साथ सो रहे है तुम दोनों आराम से सोओ। हम दोनों लेटे तो रमा बोली कि तुम वाणी से ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हो? मैंने उसे बताया कि मेरा मन अंदर से तैयार नहीं है, मैं इस मामले में कुछ नहीं कर सकता उसे इंतजार करना पड़ेगा।

उस ने तुम से शिकायत की है।

नहीं तो लेकिन मैं सब कुछ समझती हूँ।

मेरा मन क्यों नहीं समझती

समझती हूँ तभी तो पुछ रही हूँ

मन को चोट लगी थी, उस घाव को दबा दिया था लेकिन वह अभी तक हरा है

मैं सब समझती हूँ, तुम्ही बताओ क्या करे?

ऐसे ही चलने दो, हो सकता है कुछ समय बाद मन बदल जाये, घाव भर जाये

जैसी तुम्हारी मर्जी, मैं तुम्हारे दर्द को समझती हूँ

मैं खुद इस मसले को सुलझा लुगाँ तुम इसे लेकर परेशान मत हो

उस के साथ सो तो सकते हो

सो जाऊँगा, ऐसी क्या जल्दी है, अभी तो वह गर्भ नहीं चाहती है

हाँ यह तो है

मेरे पर छोड़ दो

मैंने उसे चुमा और थपथपाया वह नींद की गोंद में चली गयी। मैं अनमना सा बिस्तर पर करवटें बदलता रहा। जब नहीं रहा गया तो उठ कर बाहर के कमरे में आ कर टहलने लगा। कुछ देर बाद किसी की आहट आयी। कोई आ कर मेरे पीछे से लिपट गया। वही जानी पहचानी सी सुगंध मेरे नथुनों में भर गयी। कोई अपनी जगह से नहीं हिला। मैं उस के उभारों को अपनी पीठ पर महसुस कर रहा था लेकिन इस बार मुझे कुछ हो नहीं रहा था। मैं उसे महसुस तो करना चाहता था लेकिन शरीर कुछ कर नहीं रहा। हम दोनों काफी देर ऐसे ही खड़े रहे। फिर मैंने उसे खींच कर अपने सामने कर लिया। वह फिर से मुझ से लिपट गयी।

मेरी गल्ती इतनी बड़ी है कि मुझे छुने में भी तुम्हें परेशानी है।

मुझे नहीं मेरे मन को है वह मान ही नहीं रहा है

ऐसा क्या हुआ है

जैसे तुम्हें कुछ पता नहीं है

मैंने उस का हाथ पकड़ के अपनी जाँघों के मध्य रख दिया, वहां कोई तनाव नहीं था। उस ने अपना हाथ खींच लिया। लेकिन मुझ से अलग नहीं हुई।

मुझे पीटते क्यों नहीं हो, मेरे पर अपना हक क्यों नहीं जताते

मुझ से नहीं हो रहा बताओ क्या करुँ

मन में दबे गुस्से को किसी तरह से भी निकलो

तुम बताओ कैसे निकालुँ मुझे समझ में नहीं आ रहा है?

मैं क्या बताऊँ

वो मेरी बाँहों से खिसक कर नीचे बैठ गयी और मेरे पायजामे को नीचे कर के मेरी ब्रीफ में हाथ डाल कर लिंग को बाहर निकाल लिया। लिंग में कोई तनाव नही था यह उसे पहले से पता था। वह उसे सीधा मुँह में लेकर चुसने लगी। लिंग में इस से कुछ तनाव आया। वह काफी देर कोशिश करती रही। फिर खड़ी हो कर बोली कि अब तुम कोशिश करो। मैं भी बैठ गया और उस का गाउन मेरे ऊपर आ गया। मैँ उस की योनि की खुशबु लेता रहा फिर उस की योनि को चटने लग गया। आज मुझे इस में मजा नहीं आ रहा था। वाणी के पाँव काँप रहे थे। वह गिर सकती थी इस लिये उसे गोद में उठा कर सोफे पर लिटा दिया। हम दोनों 69 की पोजिशन में थे। वह मेरे लिंग को चाट रही थी और मैं उस की योनि को चाट रहा था।