बरसात की रात बॉस के साथ

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मैनें पुछा कि आगे करे या छोड़ दे? तो वह बोली कि मंजिल से पहले कैसे छोड़ दे? यह सुन कर मैंने उन्हें फिर से पीठ के बल लिटाया और लिंग डाल कर धक्कें लगाने लगा। वह नीचे से बड़बड़ा रही थी कील मी कील मी। मैंने अपना शरीर एक लकीर में सीधा करके जोर-जोर से धक्कें लगाने शुरु कर दिये। उन्होनें अपने पांव चौड़े कर लिये, कुछ देर बाद मुझे लगा कि चरम आने को है तो मैंने पुछा कि बाहर निकाल लुँ तो वह बोली कि नहीं कुछ मत करों।

मुझे महसुस होने दो। मैंने कहा कि डिस्चार्ज होने वाला हूँ तो वह बोली कि हो जाओ। तभी मेरी आँखें मुद गयी और मेरे लिंग के मुख पर गरम वीर्य के कारण आग सी लग गयी। लेकिन इस के बाद भी मेरे धक्कें नहीं रुकें, स्खलित होने के बाद भी शरीर का तनाव बना हुआ था कुछ देर बाद लिंग से तनाव गया और वह योनि से बाहर निकल गया इस के बाद मैं भी उन की बगल में लेट गया। हम दोनों के शरीर गर्मी की वजह से जल रहे थे कमरें में ऐसी चलने के बावजूद ऐसा था। कुछ समय तक ऐसे ही पड़े रहें।

जब दोनों को कुछ होश आया तो मैंने और उन्होनें एक-दूसरे की तरफ मुख किया। वह बोली कि आज तो जान ही निकल गयी थी। कितनी देर चला? मैंने कहा कि कह नहीं सकता। शायद 40-50 मिनट। वह बोली कि इतनी ताकत कहाँ से आयी? मैंने कहा कि कह नहीं सकता, यह तो मेरे लिये भी आश्चर्यजनक है। जीवन में कभी इतना लम्बा संभोग नहीं किया। पहला अनुभव है वो भी उम्र के इस पड़ाव पर। उन का दर्द के कारण पुरा हाल था बोली कि नीचे, कमर में और कुल्हों में जोरदार दर्द हो रहा है। मैंने कहा कि मेरी कमर भी दुख रही है बाकी का बाद में पता चलता है।

इस के बाद उन्होनें मेरा चुम्बन ले कर कहा कि तुमने तो सारी उम्र की कसर निकाल दी है। लग रहा है कि जवानी में हनीमून पर हूँ। ऐसे ही किस्सें सुने है दूसरों सें, अपना को कोई अनुभव नहीं है। लेकिन आज का अनुभव तो अकल्पनीय है। मैंने भी उन की हाँ में हाँ मिलाते हूये कहा कि मेरा भी पहला अनुभव है कि संभोग इतना लंबा चला। कारण शायद यही हो सकता है कि हम दोनों एक दूसरें से प्यार करते है।

मुझे तो लग रहा था कि संभोग को बिना चरम पर पहुँचे ही खत्म करना पड़ेगा। लेकिन अंत में चरम सुख भोग ही लिया मैंने और आपने। वह मुझे हाथ मार कर बोली कि क्या आप-आप लगा रखी है मेरा नाम क्यों नहीं लेते? मैंने कहा कि शोभा बोलने की आदत डालनी पड़ेगी तो जबाव मिला की आदत डाल लो। मैंने उन्हें चुम कर कहा कि जैसा आप का हूक्म सरकार।

मेरी बात पर वह मेरे गले से लिपट गयी और बोली कि तुम्हारें मुँह से अपना नाम सुनने के लिये मेरे कान कब से तरस रहे है इन्हें और मत तरसाओं। हम दोनों फिर से गहन आलिंगन में बंध गये। कुछ देर बाद जब अलग हुये तो मैंने देखा कि घड़ी में सुबह के चार बज रहे थे। कोई भी बेड से उठना नहीं चाहता था सो चद्दर से शरीर ढ़क लिये और पड़े रहें। लंबें संभोग का मजा तो अब आना शुरु हुआ था दोनों के शरीर थकान से टूट रहे थे। करवट बदलने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी। जाने फिर कब सो गये। साढ़े छः बजे मेरे मोबाइल में लगा अलार्म बजा तो मेरी नींद खुली तो मैं उठ कर बेड़ से उतर गया और वाशरुम चला गया।

वहां जा कर पेशाब करने के बाद लिंग को साफ किया और बाहर आ गया। मुझे बहुत प्यास लग रही थी सो कपड़ें पहन कर किचन की तरफ चल दिया। किचन में जा कर गिलास ले कर पानी पीया और अपनी प्यास बुझाई। वापस बेडरुम में आया तो देखा कि शोभा भी उठ गयी थी। मुझे देख कर बोली कि कब से जगे हो? मैंने बताया कि ज्यादा देर नहीं हुई है। वह बोली कि मुझे जगा देते। मैंने कहा कि प्यास लग रही थी सो किचन में पानी पीने गया था।

वह बोली कि मैं भी वाशरुम जा कर आती हूँ वह चद्दर लपेट कर वाशरुम में घुस गयी। मैंने सोचा कि यह अब मुझ से शर्म कर रही है और रात को मेरे साथ नंगी सो रही थी। औरतों की कुछ बातें पुरुष कभी नहीं समझ पाते। उन में से यह एक है। कुछ देर बाद वह चद्दर में लिपटी हूई बाहर आयी और अपने कपड़ें ले कर वाशरुम में जाने लगी तो मैंने कहा कि तुम इन्हें यही पर पहन सकती हो, मुझ से कैसी शर्म? वह बोली कि अपना मुँह दूसरी तरफ करों, मैंने अपना मुँह दूसरी तरफ कर लिया।

जब शोभा ने कपड़ें बदल लिये तो बोली कि अब घुम जाओ। मैं हँस कर उस की तरफ घुम गया तो वह बोली कि हँस क्यों रहे हो? मैंने कहा कि नहीं कोई बात नहीं है। वह बोली कि इस लिये हँस रहे हो कि यह औरत रात को तो नंगी साथ में सोती है और अब मुँह मोड़नें को कहती है। मैंने कहा कि हाँ यही बात है तो वह बोली कि अपनों से ही शर्म लगती है। तुम अब अपने हो। मैं यह सुन कर मुस्करा दिया। वह बोली कि बैठों में चाय बना कर लाती हूँ।

मैंने कहा कि मैं भी साथ चलता हूँ तो वह बोली कि किचन में क्या आता है? मैंने कहा कि कुछ नहीं केवल चाय बनानी आती है। वह बोली कि आज तुम्हारें हाथ की चाय हो जाये। हम दोनों किचन में पहुँचें मैंने गैस जला कर दो कप पानी रख दिया और चाय पत्ती और चीनी डा़ल दी। शोभा ने फ्रिज से दूध निकाल कर मुझे दे दिया। मैं दूध डाल कर चाय को खोलने दिया। दो-तीन बार चाय को खोला कर उसे छान कर दो कपों में कर लिया और एक कप शोभा के हाथ में थमा कर कहा कि पी कर बताओं कैसी बनी है।

उस ने एक घुट चाय का भरा और कहा कि चाय तो बढ़िया बनाते हो। मैंने कहा कि किचन में बस यही आता है। वह बोली की आदमी किचन से दूर ही अच्छे लगते है। मैंने कहा कि बड़ी पुराने विचारों की हो तो वह बोली कि हाँ सो तो हूँ। दोनों चाय के कप ले कर बॉलकानी की तरफ चल दिये और बाहर आ कर सुबह की ठंड़ी हवा का आनंद उठाने लगे। आकाश पर बादल अभी भी छाये हुये थे और बारिश कभी भी हो सकती थी, लेकिन हम दोनों अपने जीवन में आयी नयी बहार का आनंद लेने में व्यस्त थे।

**** समाप्त ****

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