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Click hereवह मेरे कंधें से लग कर बोली कि कहीं और चले? मैने हां में सर हिलाया तो हम दोनों समुद्र तट से दूर चल दिये। रास्ते में एक पब में चले गये। वहाँ के माहौल का हम पर असर होने लगा और हम दोनों बियर पीने बैठ गये। कुछ देर बियर पी कर टून्न होने के बाद दोनों ने होटल लौटने का निश्चय किया।
होटल आने तक नशे के कारण चलना मुश्किल हो गया था। रुम में आ कर मैंने उस से पुछा कि खाने का क्या करना है तो जवाब मिला की भुख तो लगी है। मैंने फोन पर खाना ऑडर कर दिया। खाना आने के बाद दोनों खाने पर टुट पड़ें। खाना खत्म होने के बाद जब होश सा आया तो लगा कि रेत से सारा शरीर सना हुआ था। अब सोने से पहले नहाना जरुरी था। मैंने उस से कहा कि पहले तुम नहाने चली जाओ तो वह शरारत से बोली कि हम दोनों एक साथ नहाते है मेरी एक फैन्टशी एक साथ नहाने को लेकर भी है।
उस की बात सुन कर मैंने उसे पकड़ा और बाथरुम में घुस गया। वहाँ पर उस के और अपने कपड़ें उतार फैकें और दोनों शॉवर के नीचे खड़े हो गये। पहली बार हम दोनों बिल्कुल नंगें एक दूसरे के सामने खड़े थे। उस ने साबुन उठा कर मेरे शरीर पर लगाना शुरु किया और फिर मैंने उस के शरीर पर साबुन मल दिया। दोनों एक दूसरें के शरीर को साबुन के झाग से मल रहे थे। इस के कारण वासना की आग दोनों के शरीर में भड़क गयी थी। बाथरुम में उसे बुझाने का मेरा मुड नहीं था। इस लिये हम दोनों नहा कर एक-दूसरें को तौलिये से साफ करके बाहर आ गये। नहा कर अच्छा लग रहा था। नशा भी कुछ कम सा हो गया था।
अब हम दोनों मिलन के लिये तड़प रहे थे। मिलन तो होना ही था। जैसे ही लाइट बंद कर के मैं बेड पर आया, वह मेरे से लिपट गयी और उस के और मेरे होंठ एक-दूसरें का रस पीने लग गये। दोनों काफी लंबें समय से प्यासे थे। काफी देर तक दोनों अपनी प्यास बुझाते रहे। जब दोनों की सांस फुल गयी तब जा कर हम दोनों अलग हुये। वह मेरे कान में बोली कि आज फिर तुम मुझे तोड़ दो।
मैंने पिछले दो महीने इंतजार किया है। मेरे दोनों हाथों ने उस के कसे उरोजों को अपनी पकड़ में ले लिया और उन्हें दबाने लगा। दोनों को खुब दबाने के बाद उरोजों के निप्पलों का नंबर लगा और मेरे होंठो के बीच उस के एक उरोज का निप्पल आ गया और मैं उस का रस पीने लग गया। फिर दूसरें उरोज के निप्पल का नंबर लग गया। वह आहहहहहहहहह उहहहहहहह करती रही।
उरोजों का मर्दन के बाद मैंने उस की गरदन पर चुम्बन ले कर उस के कंधों पर अपने दांत गढ़ा दिये। उस ने अपने दांत मेरे कंधें पर चुभा दिये। हम दोनों एक-दूसरें के शरीरों को काटने लग गये थे। इस से होने वाले दर्द में हम दोनों को मजा आ रहा था। पाशविक आनंद की लहर हम दोनों के शरीर में दौड़ने लग गयी थी। अब यह लहर उफान पर जा कर ही बुझने वाली थी।
मैंने अपने आप को उसकी जाँघों के जोड़ पर झुका कर उस की योनि का चुम्बन लिया तो उसने मुझे घुमने को कहा मैं 69 की पोजिशन में आ गया और उस को अपना मनपसंद स्थान मिल गया। मैं उस की योनि को चाट रहा था और वह मेरे लिंग को लालीपॉप की तरह से चुस रही थी। मेरी जीभ उस की योनि में अंदर जा कर वहाँ का स्वाद ले रही थी और वह मेरे लिंग से निकल रहे प्रीकम को चाट रही थी। हम दोनों काफी देर तक इस पोजिशन में रह कर एक-दूसरे का स्वाद लेते रहे। फिर जब आग बर्दाश्त से बाहर हो गयी तो मैं उस के ऊपर से उठ गया और उसे पीठ के बल लिटा दिया।
इस के बाद उस की केले के तने के समान भरी जाँघों के बीच बैठ कर उस की टांगों को चौड़ा कर दिया और अपने लिंग को उस की पानी उगल रही योनि के मुँह पर लगा कर धक्का दिया। पहली बार में ही लिंग उस की योनि में आधा समा गया। वह कराही। मैंने दूबारा जोर लगाया तो लिंग अंड़कोश तक उस की योनि में समा गया। योनि के अंदर बहुत गर्मी और नमी थी। उस की योनि ने मेरे लिंग को कस कर मथना शुरु किया। मैंने धक्कें लगाने शुरु किये। मेरी गति पहले तो धीमी थी फिर तेज होती गयी।
वह नीचे से आहहहहहहहहहहहह....... उहहहहहहहहहहह... कर रही थी।
मेरे शरीर में जो पाशविक आग लगी थी उसे मुझे बुझाना था क्योंकि अब मुझ से यह गर्मी बर्दाश्त नहीं हो रही थी। नीचे से उस की भी हालत कुछ ऐसी ही थी। वह नीचे से अपने कुल्हें उठा कर मेरा साथ दे रही थी लेकिन उस की गति धीमी थी। कुछ देर बाद मैं थक गया और उस के ऊपर से उतर कर उस की बगल में लेट गया।
अब वह मेरे ऊपर थी और उस के कुल्हें जोर-जोर से आगे पीछे हो कर मेरे फुले हुये 6 इंच के लिंग को अंदर समा रहे थे। फच-फच की आवाज कमरे में भर गयी थी। दोनों एक-दूसरें में समाने का प्रयास करते रहे। फिर करवट बदल कर वह नीचे हो गयी और मैं ऊपर आ गया। मेरे धक्कों की वजह से बेड भी कराह सा रहा था।
वह बोली कि मेरा सारा शरीर जल रहा है। मुझे क्या हो रहा है?
मैं क्या जवाब देता मैं भी उसी आग में चल रहा था। फिर मेरे लिंग के मुँह पर आग सी लग गयी और मैं उस के ऊपर निढ़ाल हो कर गिर गया। उस के पैर मेरी कमर पर कस गये थे। हम दोनों के शरीर में लगी आग उफान पर पहुँच कर बुझ गयी थी।
दोनों पसीने से तरबतर थे। जब मैं उस के ऊपर से उठ कर बगल में लेटा तो वह मुझे चुम कर बोली कि आप तो हर बार मुझे चौकाँते हो। आज मेरी कमर का दम निकाल दिया है। आधें घंटें से अधिक हो गया है हमें प्यार करते करते। मैंने कहा कि तुम ही तो कह रही थी कि आज मुझे तोड़ दो। वह बोली कि हाँ आज तो मेरा सारा शरीर टुट गया है। सारा शरीर गर्मी के कारण जल सा रहा है। मैंने उसे बताया कि मेरा भी यही हाल है शरीर बहुत गर्म हो गया है। शायद अब कुछ आराम मिले।
वह मेरे सीने में अपना मुँह छिपा कर बोली कि मैं तो हवा में उड़ रही हूँ मुझे पकड़ कर रखना कही उड़ ना जाऊँ। मैंने कहा कि मैंने तुम्हें पकड़ा हुआ है तुम कहीं नहीं जा रही हो। कुछ देर बाद हम दोनों नींद के आगोश में खो गये।
सुबह जब मेरी आँख खुली तो देखा की वह मेरे से चिपकी सो रही थी। उस के बाल उस के चेहरें पर पड़े थे। इस से उस का चेहरा ऐसा लग रहा था कि मानों बादलों में चांद छिपा हुआ हो। तभी उस ने भी कुनमुना कर आँखें खोली और मुझे अपने को घुरता देख कर बोली कि क्या देख रहे है?
मैंने उसे बताया कि उस का चेहरा मुझे बादलों में छिपे चांद सा लग रहा है तो वह बोली कि लगता है आज आप के अंदर का कवि जग गया है।
मैंने हँस कर कहा कि अपनी प्रेयसी को ऐसे देख कर तो हर नर कवि हो ही जायेगा।
वह शर्मा कर बोली कि सुबह सुबह इतना रोमान्टिक क्यों हो रहे है। मैंने कहा कि इस में क्या रोक है। अपनी बगल में लेटी प्रेमिका तो देख कर कौन ऐसा होगा जो कवि नही हो जायेगा? वह मेरी बात सुन कर उठ गयी और बैठ कर बोली कि कवि महाशय अब कपड़ें पहन ले नहीं तो आगे के सारे प्रोग्राम खतरे में पड़ जायेगे। उस की बात में सच्चाई थी इस लिये मैंने उसे उसके कपड़ें दिये और कपड़ें पहनने लग गया।
वह कपड़ें पहन कर बोली कि आप तो लगता है मेरे प्यार में पुरी तरह से डुब गये है। मैंने कहा कि तुम्हें इस बात में कोई शक है? वह बोली कि मुझे तो पहले भी शक नहीं था, आज आप ने भी अपनी तरफ से उसे पक्का कर दिया है। उस की इस बात पर मैं चुप रहा।
हम दोनों ने कमरे में रखी कैटल में चाय बनायी और चाय पीते हुये मैंने उस से पुछा कि कल क्या हुआ था, तो वह बोली कि ऐसा लग रहा था कि आग से मेरा सारा बदन जल जायेगा। गर्मी सहन ही नहीं हो रही थी। मैंने उसे बताया कि मेरा भी ऐसा ही हाल था तो वह बोली कि इस के पीछे क्या कारण है। मैंने कहा कि कुछ तो नशा हो सकता है लेकिन काम अग्नि ही सही कारण लगती है। लंबें समय के बाद मिलन में ऐसा होना संभव है। वह बोली कि आप के साथ हर मिलन नया ही अनुभव देता है।
मैंने सहमति में सर हिलाया तो वह बोली कि ऐसा क्यों होता है? मैंने कहा कि सही तो नहीं बता सकता लेकिन शायद हम दोनों गहरे प्रेम में डुबे प्रेमी है तो हमारा हर मिलन अनोखा होता है। वह मेरी बात सुन कर बोली कि शायद आप की बात सही हो।
तैयार होने के बाद हम दोनों नाश्ता करने रेस्टोरेंट में चले गये। वहाँ से निकले तो बाहर गोवा घुमाने के लिये हमारी गाड़ी आ गयी थी उस में सवार हो कर गोवा की सैर करने निकल गये। हम दोनों के बीच प्रेम प्रगाढ़ हो रहा था। यह हम दोनों महसुस कर रहे थे। प्रेम के वशीभुत हम दोनों का मन जो चाह रहा था वह हो रहा था। बुद्धि का उस में कोई काम नहीं था। काम के देवता ने कमान अपने हाथ में ले ली थी। अब वही हम दोनों की नैया का खैवया बन गया था।
गोवा की नमी भरी गर्मी में घुम कर हम दोनों का दम सा निकल गया था। शाम को होटल आ कर हम दोनों होटल के स्वीमिंग पुल में चले आये। वह तो स्विमिंग सुट में बहुत हॉट लग रही थी। मुझे पानी में अपने साथ देख कर, मेरे से बोली कि ऐसा कभी मेरे साथ होगा मैंने सोचा नहीं था। बता नहीं सकती मेरा क्या हाल हो रहा है। लेकिन उस की आँखों की चमक सब कुछ कह रही थी। कुछ देर पानी में अपनी गर्मी मिटा कर दोनों वापस कमरे में आ गये।
वह बाथरुम में जाने लगी लेकिन तभी रुक कर सोचने लगी और फिर मेरा हाथ पकड़ कर मुझे बाथरुम में ले गयी। उस के जो मन में था वह मुझे समझ आ रहा था। उसे स्विमिंग सुट में देख कर मैं भी बहुत उत्तेजित था। उसे बाथरुम के वाशबैसिन के स्टैड़ पर बिठाया और उसे चुमने लगा। वह भी वही चाहती थी जो मैं चाह रहा था। उस ने मेरे स्विमिंग सुट को नीचे खिसका दिया और अपने वाले को उतार दिया। इस के बाद मैं उस में समा गया। दोनों अपने अंदर लगी आग को बुझाने लगे।
वह मेरे कान में बोली कि आज तो मैं तुम्हें स्विमिंग पुल में देख कर ही डिस्चार्ज हो गयी थी। वह तो पानी की वजह से किसी को कुछ पता नहीं चला। मैंने उसे बताया कि उसे स्विमिंग सुट में देख कर तो आज मेरा पानी भी निकल गया था। उस ने यह सुन कर मेरे कान की लौ अपने दांतों से काट ली। हमारा संभोग ज्यादा देर नहीं चला। जल्दी ही हम दोनों दोनों डिस्चार्ज हो गये।
क्विक सेक्स से मजा तो बहुत आया। इसके बाद दोनों शॉवर के नीचे खड़े हो गये। शरीर तो गर्म थे ही ठंड़ा पानी पड़ने से आराम मिल रहा था। दोनों ने एक-दूसरे को मन भर के साबुन लगाया और फिर नहा कर बाथरुम से बाहर निकल आये।
कपड़ें पहन कर तैयार हुये तो वह बोली कि अब कहीं जाने का मन नहीं है खाना यहीं मगाँ लो। मैंने ऐसा ही किया। खाना खा कर सोने के तैयारी करने लगे तो वह बोली कि रात के लिये ताकत बची है? मैंने कहा कि नहीं अभी तो दम नहीं है। सुबह देखेगें। वह मेरी बात सुन कर मुस्कराई और बोली कि तुम मेरे पास आयो तो। मुझे पता था कि उस का मन अभी भरा नहीं था। रात को भी वहीं हुआ जो वह चाहती थी। खुब जोरदार सेक्स हुया और थक कर दोनों एक-दूसरें की बांहों में सो गये।
सुबह उठ कर दोनों फिर से तैयार हो कर गोवा देखने निकल गये। जब गोवा आये है तो उसे देखना तो बनता था। गोवा की प्राकृतिक सुन्दरता बहुत मनमोहक है उसे देखना शुरु करे तो मन ही नहीं भरता है वही हमारा भी हाल था। शारीरिक रुप से तो हम दोनों थकें हुये थे लेकिन इस मौके का भरपुर लाभ उठाना चाहते थे। दिन भर घुमते रहे। शाम को समुद्र तट पर काफी देर घुमने के बाद दोनों होटल वापस आ गये। बहुत थके होनें के कारण खाना खाने के लिये रेस्टोरेंट जाने की ताकत नहीं थी। इस लिये खाना कमरे में ही मंगा लिया। आधा घंटे बाद वेटर खाना रख गया। खाना खा कर बहुत नींद आ रही थी। इस लिये दोनों एक-दूसरें से लिपट कर लेट गये। कुछ ही देर में दोनों नींद में खो गये।
सुबह जब नींद खुली तो वह मेरे उपर पांव रख कर सो रही थी। नींद में बहुत सुन्दर लग रही थी। मैं उसे देखता रह गया। शायद कुछ और देर उसे ऐसे ही देखता रहता अगर वह जग कर मुझे झकझौर नहीं देती। मैं ने नजर दूसरी तरफ कर ली। वह बोली कि
अभी यह हाल है तो बाद में क्या होगा?
मैंने कहा कि जब तक मौका है तो उस का फायदा तो उठाना चाहिये, फिर यह मौका मिले ना मिले। वह बोली कि मेरी हालत भी ऐसी ही होने वाली है। तुम से दूर रहना मुश्किल होगा। मैंने कुछ नहीं कहा, हम दोनों को अपनी सीमाओं के बारें में पता था। हम दोनों नदी के ऐसे किनारें थे जो साथ होकर भी कभी एक-साथ नहीं मिल सकते थे। यही हमारे संबंध की विडंबना थी।
आज का दिन ही हम दोनों एक-साथ थे, शाम को हमें वापस लौटना था। सुबह के कारण लिंग अपने प्राकृतिक तनाव में था। वह उठी और मुझे चुम कर बोली कि
क्या सोच रहे हो?
कुछ नहीं
कुछ तो है
यही कि हमें ऐसे ही हमेशा दूर-दूर ही रहना होगा
और कोई रास्ता नहीं हैं
हाँ, ऐसा भी कब तक चलेगा कह नही सकता
मुझे तो जो कुछ मिल रहा है मैं उसी से संतुष्ट हूँ
हाँ संतुष्ट होना ही सही रहेगा, नही तो साथ होने का आनंद नहीं उठा पायेगे
उस ने मुझे अपने ऊपर खींच लिया। हम दोनों गहरें चुम्बन में डुब गये। फिर दोनों में सनातन युद्ध शुरु हो गया। काटना, नोचना, आहें, कराहें कमरें में भर गयी। दोनों एक-दूसरें में समाने की भरपुर कोशिश कर रहे थे। दोनों बेड पर गुथ्थमगुथ्था हो कर लुढ़क रहे थे। शरीर में लगी आग को बुझाने की कोशिश कर रहे थे। फिर ज्वालामुखी फट गया और दोनों स्खलित हो कर अगल-बगल लेट गये। आज कहीं जाना तो था नहीं इस लिये लेटे रहे। फिर जब प्यार की प्यास फिर जगी तो उसे बुझाने में लग गये। प्यास बुझ जाने के बाद दोनों सो गये।
जब आँख खुली तो दिन काफी निकल आया था। उठ कर तैयार हुये और नाश्ता करने चले गये। नाश्ते के बाद होटल में ही खरीदारी करते रहे। लंच करने के बाद रुम में आ कर दोनों नें एक बार और संभोग किया। इस के बाद दोनों वापस चलने के लिये तैयार होने लगे। सामान ले कर होटल से चैकआउट करके एअरपोर्ट चले आये। यहाँ से हम दोनों के रास्ते अलग-अलग होने वाले थे। हम दोनों अपने-अपने शहरों की फ्लाईट ले कर गोवा से निकल गये।
मित्रता स्थाई होना
गोवा के मिलन के बाद हम दोनों के बीच का संबंध और गहरा हो गया। हम दोनों के मध्य ऐसा संबंध था जो पहले शारीरिक संबंध से शुरु हुआ और बाद में मन का संबंध बन गया। आगे भी हम दोनों को कई बार मिलने का मौका मिला इस के बारें में फिर कभी और लिखुंगा।
**** समाप्त ****