खाला और अम्मी की चुदा‌ई

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मेरी नज़र उनके गुदाज़ मम्मों पर पड़ी जो उनके हाथों की हरकत की वजह से आहिस्ता-आहिस्ता हिल रहे थे। मुझे देख कर उन्होंने फौरन अपनी पुश्त मेरी तरफ कर ली और कहा कि – “मैं कपड़े बदल रही हूँ।“ मैं फौरन उल्टे क़दमों बेडरूम से बाहर आ गया। अम्मी की गाँड काफी टा‌ईट और फूली हु‌ई थी। अम्मी को भी खाला की तरह ऊँची हील के सैंडल-चप्पल पहनने की आदत थी जिससे अम्मी की गाँड और ज्यादा दिलकश लगती थी। उनकी कमर हैरत-अंगैज़ तौर पर पतली थी और ये बात उनके जिस्म को गैर-मामूली तौर पर पुर-कशिश बनाती थी।

मुझे अचानक एहसास हु‌आ के अम्मी के बारे में सोचते हु‌ए मेरा लंड खड़ा हो गया है। मैंने फौरन अपने ज़हन से इन गंदे ख़यालात को झटक दिया और सोने की कोशिश करने लगा। मुझे अगले दिन अम्बरीन खाला ने घर बुलाया था मगर मैं निदामत और खौफ की वजह से अभी उनका सामना नहीं करना चाहता था। मैंने सुबह स्कूल जाने से पहले उन्हें फोन कर के बताया के स्कूल में मेरा टेस्ट है और मैं आज उनके घर नहीं आ सकता।

स्कूल में मुझे अम्बरीन खाला का बेटा राशिद मिला। वो भी दसवीं में ही पढ़ता था मगर उस का सेक्शन दूसरा था। उससे मिल कर मेरा एहसास-ए-जुर्म और भी बढ़ गया। वो मेरा कज़िन भी था और दोस्त भी लेकिन मैंने उसकी अम्मी को चोदने की कोशिश की थी। मेरी इस ज़लील हरकत की वजह से ही नज़ीर जैसा घटिया आदमी उसकी अम्मी की चूत हासिल करने में कामयाब हु‌आ था। खैर अब जो होना था हो चुका था।

उस दिन मेरी ज़हनी हालत ठीक नहीं थी लिहाज़ा मैंने आधी छुट्टी में ही घर जाने का फ़ैसला किया। हम दसवीं के लड़के सब से सीनियर थे और हमें स्कूल से निकलने में को‌ई मसला नहीं होता था। मैं खामोशी से स्कूल से निकल कर घर की तरफ चल पड़ा। घर पुहँच कर मैंने बेल बजायी मगर काफ़ी देर तक किसी ने दरवाज़ा नहीं खोला। तक़रीबन साढ़े-ग्यारह का वक़्त था और उस वक़्त घर में सिर्फ अम्मी होती थीं। अब्बू प्रा‌इवेट कम्पनी में जनरल मनेजर थे और उनकी वापसी शाम सात-आठ बजे होती थी। मेरे छोटे बहन-भा‌ई तीन बजे स्कूल से आते थे। खैर को‌ई छः-सात मिनट के बाद अम्मी के सैंडलों की खटखटाहट सुनायी दी और उन्होंने दरवाज़ा खोला तो में अंदर गया।

अम्मी मुझे देख कर कुछ हैरान भी लग रही थीं और बद-हवास भी। लेकिन एक चीज़ का एहसास मुझे फौरन ही हो गया था के उस वक़्त अम्मी ने ब्रा नहीं पहनी हु‌ई थी। जब हम दोनों दरवाज़े से अंदर की तरफ आने लगे तो मैंने अम्मी के दुपट्टे के नीचे उनके मम्मों को हिलते हु‌ए देखा। जब वो ब्रा पहने होती थीं तो उनके मम्मे कभी नहीं हिलते थे। ऐसा भी कभी नहीं होता था के वो ब्रा ना पहनें। मैंने सोचा हो सकता है अम्मी नहाने की तैयारी कर रही हों। खैर मैंने उन्हें बताया के मेरी तबीयत खराब थी इसलिये जल्दी घर आ गया।

अभी मैं ये बात कर ही रहा था कि अम्मी के बेडरूम से राशिद निकल कर आया। अब हैरानगी की मेरी बारी थी। मैं तो उसे स्कूल छोड़ कर आया था और वो यहाँ मौजूद था। उसने कहा कि वो अम्बरीन खाला के कपड़े लेने आया था। उस का हमारे घर आना को‌ई न‌ई बात नहीं थी। वो हफ्ते में तीन-चार बार ज़रूर आता था। मैं उसे ले कर अपने कमरे में आ गया जहाँ अम्मी कुछ देर बाद नींबू शर्बत ले कर आ गयीं। मैंने देखा के अब उन्होंने ब्रा पहन रखी थी और उनके मम्मे हमेशा की तरह को‌ई हरकत नहीं कर रहे थे। मुझे ये बात भी कुछ समझ नहीं आयी। को‌ई आधे घंटे बाद राशिद चला गया।

मुझे ये थोड़ा अजीब लगा - राशिद का स्कूल से आधी छुट्टी में हमारे घर आना और मेरे आने पर अम्मी का परेशान होना और फिर उनका बगैर ब्रा के होना। वो तो कभी अपने मम्मों को खुला नहीं रखती थीं लेकिन आज राशिद के घर में होते हु‌ए भी उन्होंने ब्रा उतारी हु‌ई थी। पता नहीं क्या मामला था। मुझे ख़याल आया के कहीं राशिद मेरी अम्मी की चूत का ख्वाहिशमंद तो नहीं है। आख़िर मैं भी तो अम्बरीन खाला पर गरम था बल्कि उन्हें चोदने की कोशिश भी कर चुका था। वो भी अपनी खाला यानी मेरी अम्मी पर गरम हो सकता था। मगर अम्मी ने अपने मम्मों को खुला क्यों छोड़ रखा था? क्या वो राशिद को अपनी मरज़ी से चूत दे रही थीं? मेरे ज़हन में क‌ई सवालात गर्दिश कर रहे थे।

लेकिन फिर मैंने सोचा के चुँकि मैं खुद अम्बरीन खाला को चोदना चाहता था और मेरे अपने ज़हन में ग़लाज़त भरी हु‌ई थी इसलिये मैं राशिद और अम्मी के बारे में ऐसी बातें सोच रहा था। मुझे यक़ीन था कि अगर वो अम्मी पर हाथ डालता भी तो वो कभी उसे अपनी चूत देने को राज़ी ना होतीं। मैं तो यही समझता था कि वो बड़े मज़बूत किरदार की औरत थीं। मैं ये सोच कर कुछ पूर-सुकून हो गया लेकिन मेरे ज़हन में शक ने जड़ पकड़ ली थी। मैंने सोचा के अब मैं राशिद पर नज़र रखुँगा।

हमारे घर में बड़े दरवाज़े के अलावा एक दरवाज़ा और भी था जो ड्रॉ‌इंग रूम से बाहर पोर्च में खुलता था। यहाँ से मेहमानों को घर के अंदर लाया जा सकता था। मैंने इस दरवाज़े के लॉक की चाबी की नक़ल बनवा कर रख ली। स्कूल में अब मैं राशिद की निगरानी करने लगा। को‌ई चार दिन के बाद ही मुझे पता चला कि राशिद आज स्कूल नहीं आया। मेरा माथा ठनका और मैं फौरन अपने घर पुहँचा। ड्रॉ‌इंग रूम के रास्ते अंदर जाने में मुझे को‌ई मुश्किल पेश नहीं आयी। अंदर अम्मी और राशिद के बोलने की हल्की-हल्की आवाज़ें आ रही थीं। वो दोनों बेडरूम में थे लेकिन दरवाज़ा बंद था। मैं दबे पांव फिर से ड्रॉ‌इंग रूम का दरवाज़ा लॉक करके घर के पीछे की तरफ बेडरूम की खिड़की के नीचे आ गया जिस पर अंदर की तरफ पर्दे लगे थे लेकिन बीच में से परदा थोड़ा सा खुला था और तक़रीबन दो इंच की दराज़ से अंदर देखा जा सकता था। मैंने बड़ी एहतियात से अंदर झाँका।

मैंने देखा कि राशिद बेडरूम में पड़ी हु‌ई एक कुर्सी पर बैठा हु‌आ था और पेप्सी पी रहा था। वो स्कूल के बारे में कुछ कह रहा था। अम्मी सामने दीवार वाली अलमारी से कुछ निकाल रही थीं। उनकी पतली कमर के मुक़ाबले में मांसल चूतड़ बड़े नुमायाँ नज़र आ रहे थे। उनका तौर-तरीक़ा उस वक़्त काफ़ी मुख्तलीफ़ था। उन्होंने दुपट्टा भी नहीं लिया हु‌आ था और वो शायद कहीं जाने के लिये तैयार हो रही थीं वो भी अपने भांजे के सामने। उनके चेहरे पर वो तासुरात नहीं थे जो मैंने हमेशा देखे थे।

कुछ देर इधर उधर की बातों के बाद राशिद ने कहा – “खालाजान, अब तो मुझे चोद लेने दें। मैंने स्कूल वापस भी जाना है।” अम्मी ने जवाब दिया – “राशिद, चाहती तो मैं भी हूँ लेकिन आज वक़्त नहीं है अभी शाकिर की फूफी ने आना है और उसके साथ कुछ और औरतें भी आने वाली हैं। उनके साथ मुझे किट्टी-पार्टी में जाना है। तुम कल आ कर सकून से सब कुछ कर लेना।” राशिद बोला – “खालाजान, अभी तो घर में को‌ई नहीं है हम क्यों वक़्त ज़ाया करें? मैं आज जल्दी खल्लास हो जा‌ऊँगा। नहीं तो मेरा पढ़ने में मन नहीं लगेगा और आपके बारे में ही सोचता रहुँगा!”

ये बातें मेरे कानो में पहुँचीं तो मेरे दिल-ओ-दिमाग पे जैसे बिजली गिर पड़ी। इन बातों का मतलब बिल्कुल साफ़ था। राशिद ना सिर्फ मेरी अम्मी को चोद रहा था बल्कि इस में अम्मी की भी पूरी मर्ज़ी शामिल थी। वो अपने भांजे से चुदवा रही थीं जो उनसे उम्र में चौबीस साल छोटा था और जिसे उन्होंने गोद में खिलाया था। अम्मी और अम्बरीन खाला की शादी एक ही साल में हु‌ई थी और मेरी और राशिद की पैदा‌इश का साल भी एक ही था। फिर भी अम्मी अपने भांजे से चूत मरवा रही थीं जो उनके बेटे की उम्र का था। मैं बेडरूम की दीवार के सहारे ज़मीन पर बैठ गया। हैरत, गुस्से, शर्मिंदगी और नफ़रत के मारे मेरी आँखों में आँसू आ गये। मैं कुछ देर दीवार के साथ इसी तरह सर झुकाये बैठा रहा। फिर मैंने हिम्मत कर के दोबारा अंदर झाँका।

उस वक़्त राशिद कुर्सी से उठ कर अम्मी के क़रीब पुहँच चुका था जो बेड के साथ रखी ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी लिपस्टिक लगा रही थीं। उस ने पीछे से अम्मी की पीठ के साथ अपना जिस्म लगा दिया और आगे से उनके मम्मों और पेट पर हाथ फेरने लगा। अम्मी ने लिपस्टिक लगानी बंद कर दी और ड्रेसिंग-टेबल पर अपने दोनों हाथ रख दिये। फिर राशिद एक हाथ से उनके मम्मों को दबाने लगा जबकि दूसरा हाथ उसने उनके मोटे चूतड़ों पर फेरना शुरू कर दिया।

अम्मी ने गर्दन मोड़ कर उसकी तरफ देखा। उनके चेहरे पर मुस्कुराहट थी जैसे उन्हें ये सब बड़ा सकून और लुत्फ़ दे रहा हो। वो थोड़ा सा खिसक कर सा‌इड पर हो गयीं और बेड की तरफ आ कर उस के ऊपर दोनों हाथ रख दिये। राशिद उनके मम्मों और गाँड से खेलता रहा। अम्मी ने अपना हाथ पीछे कर के राशिद के लंड को पतलून के ऊपर से ही पकड़ लिया। साफ़ नज़र आ रहा था के ये सब कुछ उन्हें अच्छा लग रहा था।

राशिद ने अम्मी के मम्मों और कमर पर हाथ फेरते-फेरते सलवार के ऊपर से ही उनके चूतड़ों के बीच में अपनी उंगली डाल कर आगे पीछे हिलायी। अम्मी के मुँह से हल्की सी सिसकारी निकली। राशिद ने पतलून के बावजूद खड़े-खड़े ही अम्मी की गाँड के ऊपर दो-चार घस्से लगाये और उन्हें अपनी तरफ मोड़ कर चूमने लगा। अम्मी कुछ देर पूरी तरह उस का साथ देती रहीं। वो अपना मुँह खोल-खोल कर राशिद के होंठ चूस रही थीं। लेकिन फिर उन्होंने अपना मुँह पीछे कर लिया और बोलीं – “राशिद, ज्यादा वक़्त नहीं है। तुम बस अब अपना बेकाबू लंड अंदर करो और फटाफट फ़ारिग़ होने की कोशिश करो।“

अम्मी को इस अंदाज़ में बातचीत करते सुन कर में हैरान रह गया। अम्मी के लहजे में थोड़ी सी सख्ती थी जिसे महसूस कर के राशिद ने अपनी पतलून खोल कर नीचे की और अंडरवीयर में से उसका अकड़ा हु‌आ लंड एकदम बाहर आ गया। उस का लंड ख़ासा लंबा मगर पतला था। उसके लंड का टोपा सुर्खी-मायल था और मुझे साफ़ नज़र आ रहा था। अम्मी ने उस के लंड की तरफ देखा और उसे हाथ में ले लिया। राशिद उनकी क़मीज़ का दामन उठा कर मम्मों तक ले गया और फिर उनकी ब्रा बगैर खोले ही ज़ोर लगा कर उनके मम्मों से ऊपर कर दी। अम्मी के गोल-गोल और गोरे मम्मे उछल कर बाहर आ गये। उनके निप्पल तीर की तरह सीधे खड़े हु‌ए थे जिससे अंदाज़ा लगाया जा सकता था के वो गरम हो चुकी हैं।

राशिद ने अम्मी के मोटे ताज़े मम्मे हाथों में ले लिये और उन्हें चूसने लगा। अम्मी ने अपनी आँखें बंद कर के गर्दन एक तरफ मोड़ ली और राशिद के कंधे पर हाथ रख दिया। राशिद उनके मम्मों को हाथों में भर-भर कर चूसता रहा। वो जज़्बात में जैसे होश-ओ-हवास खो बैठा था। दुनिया से बे-खबर वो किसी प्यासे कुत्ते की तरह मेरी अम्मी के खूबसूरत मम्मों को चूस-चूस कर उनसे मज़े ले रहा था। कुछ देर बाद अम्मी ने राशिद को ज़बरदस्ती अपने मम्मों से अलग किया और एक बार फिर उसे कहा के वो जल्दी करे क्योंकि मेहमान आते ही होंगे और अब तो उन्हें फिर से तैयार भी होना पड़ेगा।

राशिद बेड पर लेट गया और अम्मी को हाथ से पकड़ कर अपनी तरफ़ खींचा। अम्मी उसके साथ बेड पर बैठ गयीं तो उसने अपना लंड चूसने को कहा। अम्मी ने जवाब दिया कि – “आज लंड चूसने का वक्त नहीं है तुम बस जल्दी फ़ारिग हो जा‌ओ!” राशिद बोला – “खाला जान बस दो मिनट चूस लें... मुझे मज़ा भी आयेगा और आपकी चूत कें अंदर करने में भी आसानी होगी!” ये सुनकर अम्मी झुक कर उसका लंड कुल्फी की तरह चूसने लगीं। राशिद ने हाथ नीचे कर के उनका दायाँ मम्मा हाथ में ले लिया और उसे मसलने लगा।

कुछ देर उसका लंड चूसने के बाद अम्मी ने फिर कहा कि – “राशिद देर ना करो!” राशिद फौरन बेड से उतरा और अम्मी को भी खड़ा कर दिया। फिर उसने अम्मी की सलवार का नाड़ा खोल दिया। अम्मी की सलवार उनके पैरों में गिर गयी। राशिद फुर्ती से अम्मी के पीछे आया और उनकी पैंटी भी टाँगों के नीचे खिसका कर पैरों के पास छोड़ दी और उनके चूतड़ों के ऊपर से क़मीज़ उठा कर उनकी कमर तक ऊँची कर दी। अम्मी के गोरे-गोरे मोटे और गोल चूतड़ नंगे नज़र आने लगे। राशिद ने अपने लंड पर ऊपर-नीचे दो-तीन दफ़ा हाथ फेरा और उसका टोपा अम्मी के मोटे चूतड़ों के अंदर ले गया। राशिद ने अपना लंड अम्मी की चूत के अंदर करने की कोशिश की मगर कामयाब नहीं हु‌आ। चंद लम्हों बाद राशिद ने फिर अपने लंड को अम्मी की गाँड के बीच रख कर हल्का-सा घस्सा मारा।

कोशिश के बावजूद राशिद के लंड को इस दफ़ा भी अम्मी की चूत में दाखिला ना मिल सका। अम्मी ने कहा – “ऐसे क्या कर रहे हो? थूक लगा कर डालो!” उन्होंने अपने पैरों में पड़ी सलवार से टाँगें बाहर निकलीं और अपनी सैंडल की ठोकर से उसे थोड़ा दूर खिसका दिया। पैंटी उनके एक पैर की ऊँची पेंसिल हील की सैंडल में उलझ कर रह गयी और उसकी परवाह किये बिना अम्मी सामने बेड पर हाथ रख कर थोड़ा सा और नीचे झुक गयीं ताकि राशिद को लंड उनकी चूत में घुसाने के लिये बेहतर एंगल मिल सके। राशिद ने अपने हाथ पर थूका और अम्मी की टाँगें खोल कर उनकी चूत पर अपना थूक लगाया। राशिद का हाथ उनकी चूत से लगा तो अम्मी के मुँह से ‘ऊँऊँ’ की आवाज़ निकली और उनके चूतड़ थरथरा कर रह गये।

राशिद ने अपने लंड पर भी थूक लगाया और उसे चूत से सटा दिया। अम्मी ने थोड़ा पीछे हो कर उस का लंड अपनी चूत में ले लिया। थोड़ी कोशिश के बाद राशिद अपना लंड पूरी तरह अम्मी की चूत के अंदर ले जाने में कामयाब हो गया। अम्मी ने आँखें बंद कर लीं। अब राशिद ने उनकी चूत में घस्से मारने शुरू किये। अम्मी का जिस्म भी आहिस्ता-आहिस्ता आगे-पीछे होने लगा। चुदवाते हु‌ए अम्मी का मुँह हल्का सा खुला हु‌आ था और राशिद के धक्कों की वजह से उनका पूरा जिस्म हिल रहा था। मुझे अम्मी के चूतड़ आगे पीछे होते नज़र आ रहे थे। हर घस्से के साथ राशिद की रानों का ऊपरी हिस्सा अम्मी के चूतड़ों से टकराता और उनके खूबसूरत जिस्म को एक झटका लगता। क़मीज़ के ऊपर से उनके मम्मे हिलते हु‌ए नज़र आ रहे थे। राशिद ने आगे से क़मीज़ के अंदर हाथ डाल कर अम्मी के बेक़ाबू मम्मे पकड़ लिये और अपना लंड उनकी चूत के अंदर बाहर करने लगा।

मुझे ना जाने क्यों उस वक़्त नज़ीर का ख़याल आया। मैंने अपना मोबा‌इल जेब से निकाला और अम्मी और राशिद की चुदा‌ई करते हु‌ए क‌ई तस्वीरें ले लीं। राशिद चुदा‌ई में नज़ीर की तरह तजुर्बेकार नहीं लग रहा था। चंद मिनटों के घस्सों के बाद उसका जिस्म बे-क़ाबू होने लगा। उसने अम्मी की कमर को पकड़ लिया और बुरी तरह अकड़ने लगा। वो अम्मी की चूत के अंदर ही खल्लास होने लगा। अम्मी ने अपने चूतड़ों को आहिस्ता-आहिस्ता तीन-चार दफा गोला‌ई में हर्कत दी और रशीद की सारी मनि अपनी चूत में ले ली।

जब राशिद पूरी तरह छूट गया और उसने ने अपना लंड अम्मी की चूत से बाहर निकाला तो अम्मी फ़रश से अपनी सलवार उठा कर पहनने लगी राशिद भी अपनी पतलून उठा कर बाथरूम में घुस गया। मैं खामोशी से उठा और वहीं से घर के गेट से बाहर निकल गया।

वहाँ से निकल कर मैं सड़कों पर आवारागर्दी करता रहा। एक बार फिर मैं शदीद ज़हनी उलझन का शिकार था। इस दफ़ा तो मामला अम्बरीन खाला वाले वाकये से भी ज्यादा परेशान-कुन था। अम्मी और राशिद के ताल्लुकात का इल्म होने के बाद मेरी समझ में नहीं आ रहा था के मुझे क्या करना चाहिये। क्या अब्बू से अम्मी की इस हरकत के बारे में बात करूँ? क्या अम्मी को बता दूँ के मैंने उन्हें राशिद से चुदवाते हु‌ए देख लिया है? क्या अम्बरीन खाला के इल्म में ला‌ऊँ कि उनका बेटा अपनी खाला यानी उनकी सग़ी बहन को चोद रहा है? क्या राशिद का गिरेबान पकड के पूछूँ कि वो मेरी अम्मी को क्यों चोद रहा था? मेरे पास फिलहाल किसी सवाल का जवाब नहीं था।

मुझे अम्मी को राशिद के साथ देख कर दुख हु‌आ था बल्कि सख़्त गुस्सा भी आया हु‌आ था। लेकिन इस से भी ज्यादा हसद की भड़कती हु‌ई आग में जल रहा था। आख़िर राशिद में ऐसी क्या बात थी के मेरी अम्मी जैसी हसीन और शानदार औरत जो उसकी सगी खाला भी थी उसे अपनी चूत देने को रज़ामंद हो गयी थी। वो एक आम सा लड़का था जिसमें को‌ई ख़ास बात नहीं थी। लेकिन इस के बावजूद वो किस अंदाज़ में अम्मी से गुफ्तगू कर रहा था। लग रहा था जैसे अम्मी पूरी तरह उस के कंट्रोल में हों। मैं उनका बेटा होते हु‌ए भी उन से बहुत ज्यादा फ्री नहीं था। हम तीनो बहन-भा‌ई अब्बू से ज्यादा अम्मी के गुस्से से घबराते थे। मगर राशिद का तो उनके साथ को‌ई और ही रिश्ता बन गया था और यही बात मेरी बर्दाश्त से बाहर थी।

मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मेरी को‌ई बहुत क़ीमती चीज़ किसी ने छीन ली हो। आख़िर ये सब कुछ कैसे हु‌आ? अम्मी को राशिद में क्या नज़र आया था? अम्मी और अब्बू के ताल्लुकात भी अच्छे ही थे। उनका आपस में को‌ई लड़ा‌ई झगड़ा भी नहीं था और वो एक खुश-ओ-खुर्रम ज़िंदगी गुज़ार रहे थे। फिर अम्मी ने अपने भांजे के साथ जिस्मानी ताल्लुकात क्यों कायम किये? ये सब बातें सोच कर मेरा दिमाग फटने लगा। मैं घर वापस आया लेकिन अम्मी पर ये ज़ाहिर नहीं होने दिया के में उनका राज़ जान चुका हूँ। मगर फिर चंद घंटों के अंदर ही मेरे ज़हन पर छा जाने वाली धुंध छंटने लगी और मैंने फ़ैसला कर लिया के मुझे इन हालात में क्या करना है।

मैंने फ़ैसला किया था कि मुझे खुद ही इन सारे मामलात को सुलझाना होगा। किसी को ये बताना कि राशिद मेरी अम्मी की चूत मार रहा था पूरे खानदान के लिये तबाही का मंज़र बनता। अगर मैं राशिद से इंतकाम लेता तो अम्मी भी ज़रूर उस की ज़द में आतीं और मुझे अपने तमामतर गुस्से के बावजूद ये मंज़ूर नहीं था। मुझे अम्मी से बहुत प्यार था और उनकी बद-किरदारी के बावजूद मेरे दिल में उनके लिये नफ़रत पैदा नहीं हो सकी थी। हाँ ये ज़रूर था के रद्दे-ए-अमल के तौर पर अब मैं अम्मी की चूत पर अपना हक जायज़ समझने लगा था।

हैरत की बात ये थी के मुझे ऐसा सोचते हु‌ए को‌ई एहसास-ए-गुनाह नहीं था। मैंने पहले भी ज़िक्र किया है कि बाज़ हौलनाक वक़्यात इंसान को बहुत कम वक़्त में बहुत कुछ सिखा देते हैं। मेरे साथ तो ऐसे दो वक़्यात हु‌ए थे जिन्होंने मुझे एक बिल्कुल मुख्तलीफ़ इंसान बना दिया था। अम्बरीन खाला का नज़ीर के हाथों चुद जाना और राशिद का मेरी अम्मी की चूत लेना। दोनों ने मेरी ज़िंदगी को बदल कर रख दिया था। इसीलिये शायद मुझे अब अम्मी की चूत लेने में को‌ई बुरा‌ई नज़र नहीं आ रही थी। मेरी कमीनगी अपनी जगह लेकिन अम्मी को चोदने की इस ख्वाहिश में हालात का सितम भी शामिल था। मामलात को संभालने के लिये ये बहुत ज़रूरी था के में कुछ ऐसा करूँ कि राशिद और अम्मी का ताल्लुक हमेशा के लिये ख़तम हो जाये। इस का बेहतरीन तरीक़ा यह था कि मैं अम्मी की ज़िंदगी में राशिद की जगह ले लूँ। मुझे यक़ीन था के मैं ऐसा करने में कामयाब हो जा‌ऊँगा।

ये बात तो साफ़ थी के राशिद अम्मी को चोद कर यक़ीनन उनकी जिस्मानी ज़रूरत पूरी कर रहा था वरना अम्मी अपने शौहर के होते हु‌ए अपने बेटे की उम्र के भांजे से अपनी चूत क्यों मरवा रही थीं? उनकी ये ज़रूरत अब मैं पूरी करना चाहता था। मैं फिर कहुँगा के बिला-शुबहा इस फ़ैसले में मेरे अपने ज़हन की कमीनगी भी शामिल थी। मैं अपनी दिलकश खाला को नहीं चोद पाया तो अब अपनी अम्मी को ही चोदना चाहता था। मगर ये भी तो सही था के राशिद से चुदवा कर अम्मी ने मेरे दिल से गुनाह के एहसास को मिटा दिया था। अगर वो राशिद से अपनी चूत मरवा सकती थीं तो मुझसे चुदवाने में उन्हें क्या मसला हो सकता था? इस तरह राशिद भी उनकी ज़िंदगी से निकल जायेगा और में भी उन्हें चोद पा‌ऊँगा।

मैंने ये भी सोच लिया था के अब मेरे लिये अम्बरीन खाला की चूत लेना लाज़मी था। आख़िर हरामी राशिद ने मेरी अम्मी को चोदा था तो मैं उस की अम्मी को क्यों छोड़ूँ? अम्बरीन खाला को इस सारे मामले में लाये बगैर वैसे भी हालात ठीक नहीं हो सकते थे। वो ना सिर्फ राशिद को रोक सकती थीं बल्कि इस बात को भी यक़ीनी बना सकती थीं के ये राज़ हमेशा राज़ ही रहे। लेकिन अम्मी को चोदना सूरत-ए-हाल में एक मुश्किल काम था। मेरे मोबा‌इल में उनकी और राशिद की तस्वीरें मौजूद थीं मगर मैं उन्हें ब्लॅकमेल कर के उनकी चूत हासिल नहीं करना चाहता था। मेरी ख्वाहिश थी के वो खुशी से मुझे अपनी चूत दे दें। इस के लिये ज़रूरी था कि मैं उनके और ज्यादा क़रीब होने की कोशिश करूँ।

मैंने उस दिन से अम्मी को बहलाना फुसलाना शुरू कर दिया। मैं हर रोज़ किसी ना किसी वजह से उनकी तारीफ करता जिससे सुन कर वो बहुत खुश होती थीं। पता नहीं उन्होंने मेरे बदले हु‌ए रवय्ये को महसूस किया या नहीं पर अब मैं अम्मी को उसी नज़र से देखने लगा था जिस नज़र से अम्बरीन खाला को देखता था। पहले मैं अम्बरीन खाला का तसव्वुर करके मुठ मारता था लेकिन अब मुठ मारते वक़्त अम्मी मेरे ख्यालों में होती थीं। रात को मैं अम्मी की ब्रा, पैंटी और ऊँची हील वाली सैंडल छुपा कर अपने कमरे में ले आता और फिर उन्हें सूँघता, चूमता और अपने लंड पर रगड़ कर मुठ मारता।

फिर सालाना इम्तिहानात से पहले तैयारी के लिये स्कूल की दो हफ्ते के लिये छुट्टियाँ हो गयीं और मैं ज्यादा वक़्त घर में गुज़ारने लगा। मुझे खुशी थी कि कम-अज़-कम इन छुट्टियों में राशिद का हमारे घर आना जाना भी बिल्कुल ख़तम हो जायेगा और वो अम्मी को नहीं चोद सकेगा।

एक दिन मेरे दोनों बहन-भा‌ई नानाजान के घर गये हु‌ए थे और घर में सिर्फ अम्मी और मैं ही थे। उस दिन मैं घर पे आने इम्तिहान के लिये पढ़ा‌ई कर रहा था और अम्मी कुछ खरीददारी करने कार से ड्रा‌इवर के साथ बाज़ार गयी हु‌ई थीं। दोपहर साढ़े तीन बजे के क़रीब अम्मी घर आयीं तो काफी थकी हु‌ई थीं। वो ड्रा‌ईंग रूम में ही सोफे पर बैठ गयीं और मैंने उन्हें पानी पिलाया। मैंने कहा कि आज तो वो बहुत थकी हु‌ई लग रही हैं तो मैं उनका जिस्म दबा देता हूँ। वो फौरन मान गयीं। इस में को‌ई न‌ई बात नहीं थी क्योंकि मैं बचपन से ही अम्मी का जिस्म दबाया करता था। हम बेडरूम में आ गये और वो बेड पर बैठ गयीं। उन्होंने पहले अपने सैंडल उतारे और फिर अपना दुपट्टा उतारा और बेड पर उल्टी हो कर लेट गयीं। लेट कर उन्होंने अपने चूतड़ों के ऊपर अपनी क़मीज़ को ठीक किया। इस के लिये उन्होंने अपने चूतड़ों को ऊपर उठाया और फिर हाथ पीछे ले जा कर उन्हें क़मीज़ के दामन से ढक दिया। अम्मी के गुदाज़ चूतड़ों की हरकत ने मेरा खून गरमा दिया। मैंने सोचा के आज अम्मी को चोदने की कोशिश कर ही लेनी चाहिये।

अम्मी के लेटने के बाद मैंने आहिस्ता-आहिस्ता उनकी कमर को दबाना शुरू कर दिया। मेरे हाथों के नीचे अम्मी की कमर का गोश्त बड़ा गुदाज़ महसूस हो रहा था। मेरी हथेलियों ने अम्मी की सफ़ेद ब्रा के स्ट्रैप को महसूस किया जो उनकी क़मीज़ में से झाँक रहा था। मेरा लंड खड़ा होने लगा। मैंने अम्मी के गोल कंधों को दोनों हाथों में पकड़ लिया और उन्हें होले-होले दबाने लगा। कंधों के थोड़ा ही नीचे उनके मोटे-मोटे मम्मे उनके जिस्म के वज़न तले दबे हु‌ए थे। मैं अपनी उंगलियों को अम्मी के कंधों से कुछ नीचे ले गया और उनके मम्मों का बाहरी नरम-नरम हिस्सा मेरी उंगलियों से टकराया। उनको अब सरूर आने लगा था और वो आँखें बंद किये अपना जिस्म दबवा रही थीं। कमर से नीचे आते हु‌ए मैंने बिल्कुल गैर-महसूस अंदाज़ में अम्मी के सुडौल और मोटे चूतड़ों पर हाथ रख कर उन्हें दबाया और जल्दी से उनकी गोरी पिंडलियों की तरफ आ गया। मैंने पहली दफ़ा अम्मी के चूतडों को हाथ लगाया था। मेरे जिस्म में सनसनाहट सी होने लगी। मुझे अपने लंड पर क़ाबू रखना मुश्किल हो गया।

मैंने बड़ी मुश्किल से खुद को अम्मी की गाँड की दरार में उंगली डालने से रोका। मैंने इससे पहले कभी अम्मी का जिस्म दबाते हु‌ए उनके चूतड़ों को हाथ नहीं लगाया था इसलिये मुझे डर था कि कहीं वो बुरा ना मान जायें मगर वो चुपचाप लेटी रहीं और में इसी तरह उन्हें दबाता रहा। मेरा लंड अकड़ कर तन चुका था। तीन-चार दफ़ा अम्मी की गाँड का इसी तरह लुत्फ़ लेने के बाद मैंने एक क़दम और आगे बढ़ने का इरादा किया। मैं अपना हाथ उनकी बगल की तरफ ले गया और सा‌इड से उनके एक मोटे मम्मे को आहिस्ता से दबाया। पहले तो उन्होंने किसी क़िस्म का रि‌ऐक्शन ज़ाहिर नहीं किया लेकिन जब मैंने दोबारा ज़रा बे-बाकी से उनके मम्मे को हाथ में लेने की कोशिश की तो वो एक दम सीधी हो कर बैठ गयीं और बड़े गुस्से से बोलीं – “ये क्या कर रहे हो तुम शाकिर! तुम्हें शरम आनी चाहिये। मैं तुम्हारी अम्मी हूँ। पहले तुमने मेरी कमर के नीचे टटोला और अब सीने को हाथ लगा रहे हो।”

उनका चेहरा गुस्से से लाल हो गया था। अगरचे मुझे पहले ही तवक्को थी कि वो इस तरह का रद्द-ए-अमल ज़ाहिर कर सकती हैं और मैं जानता था के मुझे इसके बाद क्या करना था। लेकिन फिर भी उनका गुस्सा देख कर मेरा दिल लरज़ गया। मैंने कहा कि – “मैंने कुछ गलत नहीं किया। मैं तो आप को दबा रहा था।” उन्होंने जवाब दिया के मैं उनके सीने को टटोल रहा था जो बड़ी बे-शर्मी की बात है। ये कह कर वो गुस्से में बिस्तर से नीचे उतरने लगीं। अब मेरे पास इसके अलावा को‌ई चारा नहीं बचा था के में उन्हें बता देता कि मैं उनकी शरम-ओ-हया से बड़ी अच्छी तरह वाक़िफ़ हूँ। मैंने कहा – “अम्मी, जब आप राशिद को अपनी चूत देती हैं उस वक्त तो आपको को‌ई शरम महसूस नहीं होती! आज मैंने आप के मम्मे को ज़रा-सा हाथ लगा लिया तो आप इतना गुस्सा कर रही हैं।”

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