लेडी डाक्टर

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थोड़ी देर मैं कभी उसके दाने को तो कभी उसकी चूत की दरार को सहलाता रहा। फिर मैं उसकी चूत पर झुक गया। अपनी लंबी ज़ुबान निकाल कर उसके दाने को छुआ तो वो चींख पड़ी और उसने फिर अपनी टाँगों को समेट लिया। मैंने फिर उसकी टाँगों को अलग किया और अपने दोनों हाथ उसकी जाँघों में यूँ फँसा दिये कि अब वो अपनी टाँगें आपस में सटा नहीं सकती थी। मैंने चपड़-चपड़ उसकी चूत को चाटना शुरू किया तो वो किसी कत्ल होते बकरे की तरह तड़पने लगी। मैंने अपना काम जारी रखा और उसकी चार इंच की चूत को पूरी तरह चाट-चाट कर मस्त कर दिया।

वो जोर-जोर से साँसें ले रही थी। उसकी चूत इतनी भीग चुकी थी कि ऐसा लग रहा था, शीरे में जलेबी मचल रही हो। उसने अपनी आँखें खोलीं और मुझे वासना भरी नज़रों से देखते हुए तड़प कर बोली... “खुदा के लिये अपना लंड निकालो और मुझे सैराब कर दो!”

मैंने उसकी इलतिजा को ठुकराना मुनासिब नहीं समझा और अपनी पैंट उतार दी। फिर मैंने अपनी शर्ट भी उतारी। इससे पहले कि वो मेरे लंड को देखती, मैं उस पर झुक गया और उसके पतले-पतले होंठों को अपने मुँह में ले लिया। उसके होंठ गुलाब जामुन की तरह गर्म और मीठे थे और वैसे ही रसीले भी थे। पाँच मिनट तक मैं उसके रसभरे होंठों को चूसता रहा। फिर मैंने अपनी टाँगों को फैलाया और उसकी जाँघों के बीच में बैठ गया। अब मेरा तमतमाया हुआ लंड उसकी चूत की तरफ किसी अजगर की तरह दौड़ पड़ने के लिये बेताब था। अब उसने फिर आँखें बंद कर लीं।

मैंने उसकी चूत के दरारों पर अपने लंड का सुपाड़ा रखा तो वो फिर कसमसाने लगी। मुझे आश्चर्य भी हो रहा था कि शादीशुदा होते हुए भी वो ऐसे रिएक्ट कर रही थी जैसे ये उसकी पहली चुदाई हो। मैंने अपने लंड के सुपाड़े से उसकी दरार पर घिसायी शुरू कर दी। चूत के अंदर से सफेद-सफेद रस निकलने लगा। पता नहीं कब घिसायी करते-करते लंड चूत के अंदर दाखिल हो गया... इतने आराम के साथ, इतनी सफ़ाई से, इतनी चिकनायी से कि लगा सारे शरीर में बिजली की लहर दौड़ गयी हो।

उसन अपने दोनों हाथों में मेरी कमर थाम ली। मैं उसकी चूत में धक्के मारने की कोशिश कर रहा था, और वो मुझे ऐसा करने नहीं दे रही थी। उसने मुझे कुछ यूँ थाम रखा था कि मेरा लंड उसकी चूत में अंदर तक धंसा हुआ था। मैंने अपनी कमर हिला-हिला कर धक्के मारने जैसा अंदाज़ अपनाया। फिर मैं अपने शरीर के निचले हिस्से को यूँ गोल-गोल घुमाने लगा, जैसे कोई चाय के प्याले में चीनी घोल रहा हो। मेरा लंड उसकी चूत में दही बिलो रहा था। ये अनुभव भी बड़े मज़े का था। उसे भी अच्छा लगा और वो भी अपनी गाँड को नीचे से थोड़ा उचका कर गोल-गोल घुमाने लगी। मेरा लंड उसकी चूत में गोल-गोल घूम रहा था।

उसने कस कर मुझे पकड़ लिया और खुद ही मेरे होंठों को अपने मुँह में ले लिया। फिर वो मेरे होंठों को किसी कैंडी की तरह चूसने लगी। नीचे मेरा लंड बराबर उसकी चिकनी चूत में गोल-गोल घूम रहा था। फिर उसने अपने दोनों हाथ ढीले कर दिये और मैंने मक्खन बिलोना बंद किया। अब बारी थी धक्के मारने की। मैं उसकी चूत में अपने लंड को यूँ आगे-पीछे कर रहा था कि मेरा लंड पूरी तरह उसकी चूत से बाहर आ जाता और फिर एक झटके से चूत की गहराई में समा जाता। हर झटके में वो चींख पड़ती।

लंड उसकी चूत में अंदर जा रहा था, बाहर आ रहा था। अंदर-बाहर, अंदर-बाहर... उसकी चूत मेरे लंड को इतनी स्वादिष्ट महसूस हो रही थी कि मुझे लग रहा था, बरसों के भूखे को खीर मिल गयी हो। वो हर झटके में सिसकारी भर रही थी। मैंने उससे कंपकंपाती हुई आवाज़ में फूछा... “लंड का रस निकलने वाला है... कहाँ निकालूँ... अंदर या बाहर...?”

वो भी कंपकंपाती हुई आवाज़ में बोली... “अंदर... अंदर...!”

फिर दो तीन धक्के में ही लंड का गरमा-गरम वीर्य़ निकल कर उसकी चूत में भीतर तक चला गया। मस्त गर्म वीर्य के चूत में जाते ही वो भी ढेर हो गयी। एक जबरदस्त सिसकारी के साथ उसने मुझे एक तरफ ढकेला और दोनों टांगें फैला कर पेट के बल लंबी हो गयी। उसकी साँसें फूल रही थीं। मैं भी दूसरी तरफ चित्त लेट गया और छत पर चलते फैन को ताकने लगा। शरीर एकदम हल्का हो गया था।

धीरे-धीरे उसकी सांसें बहाल हुईं और मुझे लगा जैसे वो सो गयी हो। मैं चुपके से उठा और देखा तो वो लंड हिला देने वाले अंदाज़ में पेट के बल लेटी हुई थी। उसकी उभरी हुई गाँड रेगिस्तान के किसी गर्म टीले की तरह सुंदर दृश्य पेश कर रही थी। मेरे तन-बदन में फिर आग लग गयी। मैंने उसकी उभरी हुई चूतड़ पर हाथ फेरा तो वो हलके से चौंक गयी। लेकिन कुछ कहा नहीं। मैंने उसकी गाँड के दोनों भागों को सहलाना शुरू किया। मेरी हथेलियों में लुत्फ की तरंगें निकल कर मेरे रोम-रोम को मदमस्त कर रही थीं। धीरे-धीरे मैं उसकी गाँड की खाई में उतरना चाहता था। मैंने उसके तरबूज के दोनों फाँकों को अपनी अँगुलियों से फैलाया तो गाँड का छेद नज़र आया, जो इतना चुस्त-दुरूस्त था कि मेरा लंड तन कर इस तरह खड़ा हो गया जैसे कोई साँड गाय को देख कर बैठे-बैठे झट से खड़ा हो जाता है। अपनी अँगुली मैंने उसकी गाँड के सुराख पर रखी और धीमे-धीमे उसे सहलाने लगा। वो तड़पने लगी।

अब मुझसे बरदाश्त नहीं हो रहा था। मैंने बेड की दराज़ खोली और वेसलीन की डब्बी निकाली। चिकनी वेसलीन मेरी अँगुलियों में थी। मैंने खूब अच्छी तरह अपने लंड को चिकना किया और ढेर सारी वेसलीन उसकी गाँड के छेद पर उड़ेली। मुझे ये देख कर अच्छा लग रहा था कि वो किसी तरह से भी विरोध नहीं कर रही थी। वो पेट के बल लंबी लेटी हुई थी और मैं उसकी गोल-गुदाज नर्म गाँड को देख-देख कर अपने होंठों पर ज़ुबान फेर रहा था। जब उसकी गाँड का छेद पूरी तरह ल्युब्रिकेटेड हो गया और मेरी अँगुली आसानी से अंदर बाहर होने लगी तो मैंने अपना लंड उसकी गाँड के दरार पर रखा। उसने फिर भी कोई आपत्ति जाहिर नहीं की। शायद उसे गाँड मरवाने का काफी अनुभव था और उसकी गाँड के छेद को देख भी यही अनुमान लगाया जा सकता था कि वो लंड लेने की आदी है। मैंने धीरे से अपने लंड का सुपाड़ा उसकी गाँड के छेद पर रख कर पुश किया। वो वो कसमसायी। मैंने उसकी गाँड की दोनों फाँकों को अपने हाथों से चौड़ा कर दिया था, जिससे उसकी गाँड का सुराख साफ नज़र आ रहा था।

मैंने धीरे से अपना लंड उसके छेद में पुश किया। वो दर्द से थोड़ा तिलमिलायी और जोर से गुर्रायी “आँआँहहह या अल्लाह आआआहह!!!”

मेरा चिकना लंड उसकी चिकनी गाँड में यूँ घप से घुस गया जैसे छूरी मक्खन में धंस जाती है। वो जोर से “आँआँहहह आँआँहहह” करते हुए इतने जोर से झटके देने लगी कि मुझे लगा मैं अभी गिर जाऊँगा। मगर मैंने मजबूती से बेड का ऊपरी सिरा पकड़ लिया था और उसे ज्यादा हिलने नहीं दे रहा था। धीरे-धीरे वो शांत हो गयी और कुछ देर तक मैं उसके ऊपर यूँ ही पड़ा रहा। मेरा लंड अब भी उसकी गाँड में पूरी तरह धंसा हुआ था। वो चुपचाप पड़ी रही। अब मैंने धीरे-धीरे अपने लंड को थोड़ा बाहर खींचा तो वो सिसकने लगी। लंड चूंकि बहुत चिकना था, इसलिये सरलता से बाहर आ रहा था। मैंने लंड को पूरा बाहर नहीं निकाला और एक-चौथाई हिस्सा बाहर आते ही मैंने फिर धीरे से उसे उसकी गाँड में पेल दिया। वो थरथराई, मगर कुछ कहा नहीं।

अब धीरे-धीरे मेरा काम चालू हो गया। मैं अपने लंड को उसकी गाँड में अंदर-बाहर करने लगा। उसकी गाँड का उभरा हुआ चिकना भाग मेरी जाँघों से टकरा कर मुझे अजीब सा एहसास दिला रहा था। जो मजा चूत में लंड अंदर-बाहर करने का है, उससे सौ गुना मज़ा गाँड मारने में है... ये एहसास मुझे पहली बार हुआ।

मगर मुझे ये अनुभव करके थोड़ा अफसोस जरूर हुआ कि गाँड मारने में बहुत जल्द झड़ जाने का डर रहता है। जहाँ मैं चूत में आधे घंटे तक हल चला सकता हूँ, वहीं गाँड में दस मिनट से ज्यादा नहीं टिक सकता। बस, दसवें मिनट में ही झर-झर करके लंड का सारा रस बाहर आ गया और उसकी गाँड पूरी तरह से चिपचिपी हो गयी। मुझे एक बात और पता चली कि गाँड मारने के बाद झड़ने से वीर्य की एक-एक बूँद निचुड़ जाती है और फिर आप अगले आधे पौने घंटे तक कुछ नहीं कर सकते।

वैसे भी काफी टाइम हो गया था। वो उठ कर बैठ गयी। शर्म से उसने अपनी नज़रें झुका ली थीं और खामोश थी। मुझे लगा कि शायद गाँड मारने से वो दुखी है। मैंने उससे पूछा... “क्या तुम्हें बुरा लगा... कि मैंने तुम्हारी गाँड....?”

बो बोली... “नहीं, नहीं... इन फैक्ट... मुझे बहुत अच्छा लगा... मुझे तो बहोत शौक है इसका... ऑय लव इट!”

मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। मैंने उन औरतों को दिल ही दिल में बुरा-भला कहा, जो गुदा (एनल) सैक्स से पता नहीं क्यों बिचकती हैं। मैंने देखा कि वो मेरे लंड को बड़े गौर से देख रही थी। फिर उसने मुझे घुरते हुए कहा, “तुम तो कह रहे थे कि ये ग्यारह इंच का है, मुझे तो आठ-नौ इंच से ज्यादा का नहीं लगता।”

अब बगलें झांकने की मेरी बारी थी। मैंने अपनी जान बचाने की खातिर कहा, “तुम्हें प्यास लगी होगी, पीने के लिये कुछ ले आता हूँ...!” ये कह कर मैं किचन की तरफ भागा।

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1 Comments
chachajaanichachajaaniover 8 years ago

Very old but very nice story

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