हँसी तो फँसी

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उन्हें पक्का भरोसा था की अगले एक दो साल में इतना अधिक सेल तो मैं कर ही लूंगा। पिता के ऑपरेशन के बाद दीपा इस चिंता में डूबी हुई इतनी ज्यादा परेशान हो रही थी की पैसे तो उधार ले लिए पर वापिस भी तो करने होंगे। जब दीपा ने बॉस की बात सुनी तो उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। दीपा बॉस की इस उदारता से इतनी गदगद हो गयी की उस की आँखों में आँसूं भर आये और वह अनायास ही बॉस से लिपट गयी और बॉस के दोनों हाथ पकड़ कर बार बार शुक्रिया अदा करने लगी। मेरे बॉस बेचारे भौंचक्के से खड़े होकर मेरी बीबी को बार बार 'इट्स ओके' कहते रहे।

उसी दिन से स्वाभाविक रूप से मेरी बीबी मेरे बॉस की बड़ी फैन हो गयी। उसे जब भी मौक़ा मिलता वह मेरे बॉस की तारीफ़ करते हुए न थकती।

एक रात बातों ही बातों में बॉस की बात शुरू हुई। दीपा ने कहा, "तुम्हारे बॉस को तुम पर बहोत भरोसा है। उन्होंने मेरे मांगने पर अपनी डिपॉज़िट तोड़ कर फ़ौरन सात लाख रुपये बिना कोई कागज़ पत्तर किये दे दिए। मजे की बात तो यह है की उन्होंने हमें पैसे वापिस करने के लिए भी नहीं कहा। उन्हें तुम्हारे परफॉरमेंस पर जबरदस्त भरोसा है। उन्हें पता है की अगले दो तीन सालों में तुम अपने इंसेंटिव में से इतना तो कमा ही लोगे। यह बहोत बड़ी बात है।"

मैंने कहा, "दीपा क्या तुम्हें पता है की बॉस ने वह रकम बढ़िया सा ऑफिस खरीदने के लिए इकट्ठी कर रक्खी थी। यह उनकी बहोत जरुरी बचत थी जो उन्होंने हमें दे दी। उसके साथ एक बात और है जो तुमने नहीं नोटिस की।"

दीपा ने मेरी और देख कर पूछा, "क्या? कौनसी बात?"

मैंने कहा, "उन्होंने मुझ पर शायद भरोसा किया होगा। पर उससे कहीं ज्यादा भरोसा उन्होंने तुम पर किया। वह तुमसे बहोत इम्प्रेस्ड हैं। तुम उनके पास पैसे मांगने गयी इसी लिए उन्होंने यह पैसे दिए। अगर मैं उनके पास पैसे मांगने गया होता तो शायद वह ना देते। यह हकीकत है।"

दीपा ने टेढ़ी नजर से मुझे देखा और बोली, "ऐसा तुम्हें क्यों लगा? मैं तो सिर्फ इस लिए गयी थी की तुम जाने से झिझक रहे थे। हालांकि मैं तैयार थी की वह मना करेंगे। अगर वह मना करते तो मुझे आघात नहीं लगता। क्यूंकि मैं तो यही सोच रही थी की आज कल के जमाने में कोई भी अपने साथीदार पर इतनी बड़ी रकम के लिए ऐसे बिना लिखापढ़ी के इतना भरोसा नहीं करता और इतनी आसानी से पैसे नहीं देता। मानलो अगर तुमको कोई बेहतर जॉब मिल जाए और तुम कंपनी छोड़ दो तो वह क्या करेंगे? इसी लिए मैं तो खाली हाथ वापस आने के लिए तैयार थी। पर फिर भी कोशिश करने से मैं पीछे नहीं हटी और सफल भी हुई।"

मैंने कहा, "तुमने ही तुम्हारे सवाल का जवाब दे दिया। तुमने कहा की इतनी आसानी से कोई अपने साथीदार पर भरोसा नहीं करता। फिर बॉस ने क्यों किया? क्यूंकि तुम बॉस के पास गयी और बॉस ने तुम पर भरोसा किया। तुम्हें वह मना नहीं कर सके। तुम्हारी खूबसूरती और तुम्हारी सख्सियत के वह कायल हैं। यह तो तुमने भी महसूस किया ही है ना?"

दीपा ने शर्माते हुए अपनी मुंडी तो हिलायी पर कुछ ना बोली। मैंने कहा, "हम उनके इतने एहसानमंद हैं की अगर हम उनके लिए कुछ भी कर लें तो भी हम उनके एहसानों का बदला चुका नहीं पाएंगे। आज कल के जमाने में कोई किसी पर भरोसा नहीं करता।"

दीपा ने कहा, "यह तो सच कहा तुमने। पर हम भला इतने बड़े आदमी के लिए क्या कर सकते हैं?" और मैंने देखा की वह अचानक ही गहरे सोच में खो गयी।

अचानक मैंने कहा, "एक बात कहूं?"

दीपा ने मेरी और देखा। मैंने कहा, "देखो, यह तो तुम नकार नहीं सकती की बॉस तुम्हारे ऊपर फ़िदा हैं। जब देखो उनकी नजर चोरी छुपकर तुम्हारी छाती और तुम्हारे पिछवाड़े पर ही होती है। मुझे लगता है तुम उनसे जो चाहो करवा सकती हो।"

दीपा मेरी बात सुनकर शर्मायी और फिर हंसने लगी। उसने कहा, "क्यों? जलन हो रही है क्या? वैसे तुम्हारे बॉस है ही इतने अच्छे। स्मार्ट हैं, यंग हैं, भले आदमी हैं। और उनकी बीबी को तो देखो? जितने बॉस अच्छे हैं बीबी बिलकुल उलटी है। पता नहीं उन्होंने ऐसी औरत के साथ शादी क्यों की? उन्हें तो अच्छे से अच्छी लड़की मिल सकती थी। शायद इसी लिए बॉस दुखी लगते हैं, और शायद इसी लिए मुझे घूरते होंगे। पता नहीं। क्या तुमने नोटिस किया की उनकी बीबी की शकल मुझसे कुछ मिलती जुलती है? शायद जो उनको अपनी बीबी में नहीं मिला वह मुझमें खोजते होंगे। खैर यही जिंदगी का चक्कर है। मुझे तुम्हारे बॉस से और कुछ नहीं चाहिए। उन्होंने मेरे पिताजी की जान बचाइ है यह ही मेरे लिए बहोत बड़ा तोहफा है। उनका यह एहसान मैं कैसे चुकाऊं यही मैं सोचती रहती हूँ। अगर तुम्हारे बॉस कुछ पल के लिए मुझे देख कर खुश होते हैं तो यह तो मेरे लिए ख़ुशी की बात है। वैसे सारे मर्द यही तो करते हैं। तो फिर बॉस को क्यों दोष दें? इसमें क्या बुराई है?"

मैंने कहा, "बॉस की नजर तुम पर काफी तेज हो रही है। वह जब तुम्हें देखते हैं तब ऐसा लगता है जैसे वह तुम्हें निगल जाएंगे। जब भी तुम झुक कर कुछ देती हो ना तो बेचारे तुम्हारे ब्लाउज के अंदर झांकते ही रहते हैं।"

दीपा ने मेरी बात को खारिज करते हुए कहा, "मैंने तुम्हें दूसरी औरतों पर लाइन मारते हुए नहीं देखा क्या? बड़े शरीफ बनते हो? तुम्हारे बॉस तो तुमसे फिर भी बहोत अच्छे हैं। उन की बीबी को देखो तो समझ में आता है की बेचारे बॉस भी क्या करे? उसकी छाती तो है ही नहीं। मेरे मम्मे इतने मस्त भरे हुए हैं फिर भी तुम दूसरे की बीबियों की छाती पर नहीं ताकते हो? तुम मर्दों की तो फितरत ही ऐसी होती है। पर क्या करें मर्दों के बिना जिया भी तो नहीं जाता। इसमें कोई नयी बात नहीं। मेरे लिए यह अब आम बात हो चुकी है। मुझे उनकी बीबी निहायत ही घमंडी और सूखे स्वभाव की लगी। तो बेचारे बॉस अगर मेरे भरे हुए मम्मे ताकते हैं तो ताकने दो। तुम्हें कोई एतराज है तो बोलो। मैं तुम्हारे बॉस के सामने नहीं जाउंगी।"

मैंने कहा, "अरे भाई, तुम तो ख्वामखा: नाराज हो गयी। मुझे बॉस से कोई जलन नहीं हो रही। मेरा कहने मतलब यह बिलकुल नहीं था। तुम्हारी बात बिलकुल सच है। बस मैं तो यूँही मजाक कर रहा था।"

दीपा ने नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा, "ऐसे किसी भले आदमी पर मजाक में भी गलत तोहमत नहीं लगाते।"

मुझे उस रात को सपना आया की जब मैं टूर पर गया था तो बॉस मेरे घर आये और दीपा और बॉस दोनों ने मिलकर जमकर चुदाई की। मैं इस सपने को देख कर इतना उत्तेजित हो गया की रात को नींद में मेरे पाजामे में ही मेरा छूट गया।

पहली बार मैंने महसूस किया की मैं भी एक तरह से ककोल्ड हूँ। ककोल्ड का मतलब है अपनी पत्नी को किसी गैर मर्द से चुदाई करवाने के लिए लालायित मर्द। शायद उसी दिन से किसी गैर मर्द से (और अगर हो सके तो बॉस से) मेरी बीबी को चुदते हुए देखने की एक ललक मेरे मन में घर कर गयी।

दीपा मेरे बॉस की ऐसी ऋणी हो गयी की उनका जन्म दिवस या कोई भी त्यौहार पर समय समय पर वह उन्हें कोई ना कोई गिफ्ट भेजती और जब बॉस की बीबी नहीं होती तो उन्हें खाना खाने के लिए बुलाती या खाना भिजवाती। बॉस भी मौक़ा मिलते ही दीपा को मिलने आ जाते या जन्म दिवस या शादी की सालगिराह पर आ जाते और महंगे तोहफे देते। ऐसे मुझे लगा की बॉस और दीपा के बिच में कुछ ना कुछ आकर्षण की बात बन रही थी।

दूसरी हमारे जीवन में परिवर्तन लाने वाली घटना यह हुई की इस दौरान ही अचानक बॉस के जीवन में एक गज़ब का भूचाल सा आया। बोस और उनकी पत्नी के बिच में कुछ मनमुटाव की ख़बरें आने लगीं। जो बॉस दिन रात मेहनत कर बिज़नेस लाते थे और हमारे सारे ग्राहक के अति प्रिय थे वह एकदम मुरझा से गए। अब पहले की तरह वह भाग कर ग्राहक की समस्या का समाधान हल नहीं कर रहे थे। सब ग्राहक नाराज होने लगे। ग्राहक एक के बाद एक छुटते गए। देखते ही देखते सेल निचे जाने लगी। मेरा इंसेंटिव भी निचे चला गया। पूरी कंपनी में गजब का मायूस सा वातावरण छा गया। और एक दिन बॉस को उनकी बीबी से तलाक का नोटिस भी आ गया। बॉस की पत्नी बॉस को छोड़ कर चली गयी। बॉस के सपनों का महल जैसे टूट गया। बॉस वैसे ही बड़े संवेदनशील थे। वह इस हादसे से बिखर से गए। अब बॉस अकेले ही उनके बड़े घर में रहते थे।

मुझे मेरा भविष्य अंधकारमय लग रहा था। मुझे तब समझ में आया की मेरी सफलता में मेरे बॉस का कितना बड़ा योगदान था। यही हाल पुरे दफ्तर का था। हम एक असफलता के कगार पर खड़े थे। बात यहां तक पहुँच गयी की हमारी कंपनी के फाइनेंसर हमारी ऑफिस आये और बड़े ही निराश और शायद थोड़े ग़ुस्से में उन्होंने सबके साथ और खास तौर से बॉस के साथ बात की। पर उसके बाद भी बॉस पर उस बात का कोई ख़ास असर नहीं पड़ा। ऑफिस में हम सब को लगने लगा की या तो हम सब की छुट्टी हो जायेगी या फिर कंपनी ही बंद हो जायेगी।

कुछ दिनों तक वैसे ही चलता रहा। बॉस कुछ दिनों तक ऑफिस भी नहीं आये। सब निराश और हतप्रभ हो गए। सब ने मिल कर मुझे कहा की मैं बॉस को समझाऊं की बॉस वापिस अपना काम उसी ताकत और जोश के साथ शुरू करे। मैं बड़ा ही परेशान हो कर यही सोचता रहा की बॉस को इस अंधेरे कुवें में से कैसे निकाला जाए। पत्नी के चले जाने के सदमे से बॉस ने ऑफिस में आना ही बंद कर दिया था।

मैं अगले दिन बॉस के घर गया और बॉस को समझाबुझा कर ऑफिस में तो ले आया। पर बॉस में वह जान नहीं थी। जो बॉस सब लोगों को ऐसे प्यार और दुलार से मिलते थे जैसे वह उनके बड़े की करीबी हों और कई महीनों के बाद मिले हों। पर बॉस जब ऑफिस में आये तो उन्होंने किसी की और एक नजर देखा तक नहीं। जो लड़कियों को "हाय डार्लिंग! हाय बेबी!" बगैरह कह कर प्यार से बुलाते थे वह अब उन लड़कियों को देख कर हँस भी नहीं पा रहे थे। ऐसा लगता था जैसे वह बॉस नहीं बॉस का भूत था।

बॉस ने ऑफिस आने के बाद मुझे दीपा के बारे में पूछा। जब हम दीपा के बारे में बात करने लगे तो मैं हैरान रह गया की बॉस में अचानक ही कुछ जोश का संचार सा हुआ। वह बड़े चाव से मेरी बात सुनने लगे। मुझे लगा की शायद दीपा के बारे में बात करने से उनमें कुछ देर के लिए थोड़ा सा शुमार आया था। वह शुमार ज्यादा देर नहीं टिक पाया। जैसे ही लोग उनको उनकी पत्नी के बारे में पूछने लगे की बॉस फिर हताशा और कुंठा की दशा में चले गए।

उस दिन शाम को अचानक ही मेरे मोबाइल में मेरे बॉस का दीपा के साथ डान्स करता हुआ वीडियो मैंने शूट किया था वह देखा। उस वीडियो में बॉस दीपा के साथ इतने जोश में नजर आ रहे थे। मुझे बॉस के शब्द भी याद आये जो उस पार्टी में डान्स करने के बाद उन्होंने मुझे कहे थे। उन्होंने कहा था, "दीपक तुम्हारी बीबी, मुर्दे में भी जान डाल सके ऐसी काबिल और सेक्सी है। सालों के बाद मैंने इस तरह डान्स किया है। और मुझसे ऐसा डान्स करवाने का श्रेय तुम्हारी पत्नी दीपा को जाता है। वरना मैं ऐसे नाच नहीं पाता।"

अचानक मुझे ख्याल आया की क्यों ना मेरे बॉस को एक बार फिर दीपा से मिलाया जाये? शायद उनमें कुछ जान आ जाये। वैसे मुझे लगता तो नहीं था की ऐसा कुछ होगा, पर कोशिश करने में कोई नुकसान भी तो नहीं था। मुझे घने अँधेरे में आशा की एक किरण नजर आयी। मुझे लगा की शायद बॉस को अपने मूल जोश में लाने की तरकीब मेरे हाथ में लग गयी थी। यह कामयाब हो सकती थी। हालांकि उसमें मुझे मेरी पत्नी की सहायता की जरुरत थी। मैंने उस बात पर काफी मंथन किया और हर बार मेरा निष्कर्ष वही था। अब मुझे यह देखना था की क्या मेरा सोचना सही था या गलत।

उसी दिन रात को मैंने मेरी बीबी को कहा, "बॉस की कुछ समस्याएं हैं और वह तकलीफ में हैं। मुझे लगता है तुम उनकी मदद कर सकती हो।"

दीपा मेरी और आश्चर्य से देखने लगी। मैंने कहा, "उस दिन हमें बॉस की जरुरत थी। आज बॉस को हमारी जरुरत है, ख़ास तौर से तुम्हारी मदद की जरुरत है। मेरा मानना है की अगर हम बॉस के जीवन में एक नयी ऊर्जा का संचार कर पाएं तो हम सब के लिए एक नयी जिंदगी होगी। यह बहुत जरुरी है की बॉस को खुश रखने की ख़ास कोशिश की जाए। फिर मैंने दीपा को बॉस के बारे में सारी बातें बतायी और ख़ास कर मेरा जो अवलोकन था की अगर बॉस दीपा के साथ कुछ समय गुजारें तो शायद उनमें वह जोश और जज़्बा धीरे धीरे वापस आ जाय। मैंने दीपा को यह भी बताया की अगर बॉस उस दौर से वापस नहीं आये तो हमारी कंपनी बंद हो सकती है और ख़ास कर मैं बेरोजगार हो जाऊंगा और बॉस के उधार पैसे हम उन्हें चुका नहीं पाएंगे।

मैंने दीपा को कहा की शायद मेरे बॉस को वापस उनकी पुराने जोश में लाने की चाभी दीपा के पास थी। अगर दीपा चाहे तो बॉस को अपनी पुरानी पर्सनालिटी में वापस ला सकती है। दीपा की बात होते ही बॉस की आँखों में एक अजीब सी चमक आ जाती है। दीपा को देखते ही बॉस आवेश में आ जाते हैं, और उनके पुरे बदन में ऊर्जा का संचार हो जाता है। मेरा मानना था की कुछ देर दीपा के संपर्क में आने से बॉस जल्दी ही अपना पुराना फायर पावर पा सकते हैं।

दीपा मेरी बात सुनकर एकदम सोच में डूब गयी। दीपा ने कहा, "ठीक है। मैं समझ गयी। अब तुम यह सब मुझ पर छोड़ दो। मुझे सोचने दो। फिर मैं देखती हूँ की क्या हो सकता है।"

मैंने कहा, "जो तुम कहोगे वह मैं करूंगा। मैं उस काम के लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ। अब आगे क्या करना है?

दीपा ने मेरी और तीखी नजर कर देखा और बोली, "अब तुम सब मुझ पर छोड़ दो। सब से पहले तो तुम बॉस को कल घर पर डिनर के लिए यह कह कर बुलाओ की उन्हें खाने पर मैंने ख़ास आग्रह कर बुलाया है। देखते हैं क्या होता है।"

मैंने बॉस से अगले दिन खाने का निमत्रण देते हुए कहा, "दीपा आपको बहोत याद कर रही थी। वह काफी समय से आप से नहीं मिली है ना, तो कह रही थी की सर को खाने पर बुलाओ। तो सर क्या आप हमारे यहां कल रात को खाना खाने के लिए आओगे?"

जैसा मैंने सोचा था वैसा ही हुआ। दुःख के सागर में डूबे हुए बॉस ने जब दीपा का नाम सूना तो उनके चेहरे पर रौनक आ गयी। वह बोल, क्या, दीपा ने बुलाया है? मैं क्यों नहीं आऊंगा? मैं दीपा से मिलकर खुश होऊंगा। मैं जरूर आऊंगा।"

बॉस शाम को आये। दीपा को देखते ही उनके मुरझाये हुए चेहरे पर रौनक आ गयी। दीपा ने उनको गेट पर ही खड़ा कर दिया और उनकी आरती उतारी, उनको तिलक किया और उन पर फूल बरसाए। मेरी पत्नी के कहने पर मैंने उस का वीडियो बनाया। घरमें प्रवेश कर उन्होंने जब हमारे घर की सजावट देखि और बाहर घर के आँगन में घाँस की लॉन में कुर्सी डालकर बैठे तो मुझे उनके चेहरे पर वही पुरानी रौनक दिखाई दी।

बॉस सारी सजावट की तारीफ़ करने लगे। मैंने उन्हें बताया की वह सारी करामात दीपा की थी। यह सुन कर वह बड़े खुश हुए। बॉस दीपा की तारीफों के पूल बाँधने लगे। दीपा की अक्लमंदी, उसकी सुंदरता, उसका भोलापन, कपडे पहनने की काबिलियत बगैरह की बड़ी प्रशंशा की। बॉस ने मुझे कहा की दीपा में एक बड़ी ही सक्षम प्रशासक और व्यवस्थापक होने की क्षमता है। उस समय दीपा का हाल देखने वाला था। दीपा के लाल गाल शर्म के मारे और लाल हो गए। वह बॉस की भूरी भूरी तारीफ़ सुनकर अपना सर ऊंचा नहीं कर पा रही थी। मुझे काफी समय के बाद अंधेरी टनल के दूसरे छोर पर हलकी सी रौशनी दिखाई दे रही थी।

बातचीत करते हुए बॉस ने बताया की उन्हें आइसक्रीम बहोत पसंद है। यह सुन कर दीपा ने फ़ौरन मुझे आइसक्रीम लाने के लिए बाजार में भेजा। आइसक्रीम की दूकान हमारे घर के पास ही थी। मैंने फ़टाफ़ट आइसक्रीम ली और वापस घर पहुंचा।

मैं वहाँ पहुंचा तो मैंने देखा की दीपा रसोई में खाना बनाने गयी थी। उसके पीछे पीछे बॉस भी वहाँ चले गए थे और दीपा के पीछे खड़े खड़े दीपा को देखते हुए दीपा से इधर उधर की बातें कर रहे थे। मैं चुप चाप दरवाजे के पीछे छिपकर सारा नजारा देखने लगा। दीपा जब रसोई में व्यस्त थी तो बॉस रसोई में दीपा की पीछे कुछ दूर खड़े हुए दीपा से इधर उधर की बातें करते करते दीपा की साडी में छिपी हुई सुआकार गाँड़ का घुमाव देख कर अपनी आँखें सेक रहे हुए पाया।

दीपा जब अचानक कुछ लेने के लिए मुड़ी तो उसने पाया की बॉस उसके एकदम पीछे खड़े हुए थे। दीपा बॉस को इतने करीब देख कर चौंक गयी और अपने आप को सम्हाल नहीं पायी और लड़खड़ाई तब बॉस ने दीपा की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी बाँहों में उठा कर गिरने से बचा लिया। कुछ देर तक वह दोनों उसी पोज़ में राजकपूर और नरगिस की तरह खड़े खड़े एक दूसरे की आँखों में झांकते रहे। मैंने देखा की बॉस की आँखों में अजीब सी प्यास और काम वासना साफ़ झलक रही थी। दीपा शायद बॉस की आँखों के भाव पढ़ने की कोशिश कर रही थी।

बिना हिले डुले कुछ देर तक ऐसे ही रहने के कारण कमरे में माहौल कुछ गरमा सा गया था। ना तो बॉस ने दीपा की कमर पर से अपनी पकड़ ढिली की और ना ही दीपा ने बॉस के आहोश में से खिसक ने की कोई कोशिश की। कुछ देर तक ऐसे ही रहने के बाद बॉस ने झुक कर दीपा को थोड़ा ऊपर उठा लिया। दीपा के होँठों को अपने होँठ के एकदम करीब ले आये। उन्होंने अपने होँठ दीपा के होँठ पर रखना चाहा तब दीपा अचानक हँस पड़ी और बॉस से कुछ हट कर खड़ी हुई। दीपा बॉस की और देख कर हँसते हुए बोली, "सर आप तो बड़े तेज निकले! इतनी देर में ही कहाँ से कहाँ पहुँच गए!"

मैंने देखा तो मुझे ऐसा लगा जैसे दीपा शर्म के मारे पानी पानी हुई जा रही थी। बॉस अपनी करतूत पर शर्मा कर दीपा से माफ़ी मांगने लगे। बॉस ने कहा, "दीपाजी, आई एम् वैरी सॉरी। मुझसे गलती हो गयी। मैं कुछ परेशानी में हूँ ........ मैं अपने आप पर नियत्रण नहीं रख पाया। मुझे माफ़ करना।"

यह कह कर वह चुप हो गए। बॉस की आँखों में आंसूं भर आये। बॉस के चेहरे पर फिर वही दुःख की सियाही छा गयी। वह वहाँ से निकल कर दीपा से दूर जब बाहर बरामदे की और जाने लगे तो दीपा ने लपक कर उनका हाथ थाम लिया और उनको बाहर जाने से रोका। बॉस दीपा की और देखने लगे।

हमारी रसोई और डाइनिंग रूम जुड़ा हुआ था। दीपा ने बॉस को एक कुर्सी पर बिठाया और खुद उनके सामने खड़ी हुई। दीपा की छाती में फुले हुए उरोज बॉस की आँखों के ठीक सामने थे। मैं देख रहा था की बॉस की आँखें वहीँ गड़ी हुईं थीं। दीपा ने बॉस की आँखों को अपनी छाती मर टकटकी लगाए हुए पाया तो थोड़ी सी सहम कर अपनी चुन्नी छाती पर बिछाती हुई बोली, "सर कोई बात नहीं। आप मुझे अपना समझिये। आप इतने परेशान क्यों हैं? बताइये ना क्या बात है जिसे कहने से आप इतना हिचकिचाते हैं? मुझे नहीं बताएंगें?"

जब बॉस ने यह सूना तो वह कुर्सी पर लुढ़क से गए और बोले, "दीपाजी, मैं ना सिर्फ आप और दीपक पर, और ख़ास कर आप पर बहोत विश्वास करता हूँ; बल्कि मैं आप की काबिलियत और व्यवस्थापक क्षमता का भी मुरीद हूँ। मैं आप को वाकई में अपना समझने लगा हूँ। मैं आप को भला क्यों नहीं बताऊँगा? पर सबसे पहले तो मैं इस लिए बहोत दुखी हूँ की मैं तो आप को अपना समझता हूँ पर आप मुझे अपना नहीं समझतीं। क्यों की आप मुझे सर कहकर बुलाती हो। सर कहने से अपनापन खतम हो जाता है। मेरा नाम सोम है। आप मुझे सोम कह कर बुला सकती हैं।"

दीपा ने फ़ौरन कहा, "यह तो उलटी गंगा हो गयी। आप मुझसे उम्र, ओहदे और समझदारी में बड़े हैं। आप क्यों मुझे दीपाजी अथवा 'आप' कह कर बुला रहे हो? मुझे आप 'आप' कह कर मत बुलाओ। तुम या दीपा बल्कि तू भी कहेंगे तो मुझे अच्छा लगेगा। मैं आपको सर भी नहीं कहूँगी और सोम भी नहीं कहूँगी। मैं आपको सोमजी कहूँगी। अब आप मुझे बताइये की आप इतने परेशान क्यों हैं? आपकी इतनी परेशानी है तो आपने हमें पराया क्यों समझा? क्या आप हमें बता नहीं सकते थे?"

बॉस ने कहा, "फिर तुम भी मुझे आप कह कर हमारे बिच की दूरियां मत बढ़ाओ। अब तुम भी मुझे तुम या सोमजी कह कर बुलाओ।"

दीपा ने कुछ नकली अकड़ दिखाते हुए कहा, "नहीं मैं आपको तुम नहीं कह सकती। मैं आपसे हर नाप दंड में छोटी हूँ। मैं आप को आप ही कहूँगी। जहां तक दूरियां नहीं बढ़ाने की बात है तो लो मैं आपके एकदम करीब खड़ी हो गयी। अब कोई दूरियां नहीं बस?" ऐसा कह मेरी बीबी मुस्का कर बॉस के बिलकुल सामने जा कर खड़ी हो गयी। दीपा के फुले हुए अल्लड़ बॉल बॉस की नाक को लगभग छू रहे थे।

बॉस ने बिना कुछ सोचे समझे अपनी बाँहें दीपा की कमर के इर्दगिर्द लपेट कर दीपा को अपनी और खींचा और अपनी बाँहों में ले लिया। दीपा के होँठों पर अपने होँठ रखते हुए बोले, "दीपा, पहले तुम यह कहो की तुमने बुरा नहीं माना और मुझे माफ़ कर दिया।"

यह कह कर बॉस ने दीपा के रसीले होँठों पर अपने होँठ चिपका दिए और वह दीपा को किस करने लगे। कुछ पलों तक दीपा मंत्रमुग्ध सी खड़ी रही। उसकी समझ में नहीं आया की वह क्या करे। फिर धीरे से बॉस को धक्का दे कर बॉस के बाहुपाश से अपने आप को छुड़ाया और कुछ दूर खड़ी रहकर अचानक फिर हँस पड़ी और बोली, "अरे कमाल है! पहले किस करते हो और फिर कहते हो माफ़ करो? गुनाह भी करते जाते हो और माफ़ी भी मांगते रहते हो? बॉस, सॉरी सोमजी, आप बड़े चालु हो, पर हो बड़े हैंडसम! कोई बात नहीं। चलो माफ़ कर दिया पर सोमजी, मैंने तुम्हें रोका क्यूंकि वह आते ही होंगे। ऐसा मत करो, कहीं पकडे ना जाएँ। मैं तुम्हें मेरे पति के सामने शर्मिन्दा या लज्जित नहीं देखना चाहती।"

क्या दीपा बॉस को साफ़ साफ़ सन्देश दे रही थी की अगर उसे यह डर नहीं होता की कोई देख लेता तो शायद वह विरोध नहीं करती?

बॉस ने कहा, "दीपा, आई एम् रियली सॉरी। तुम मेरी कहानी सुनना चाहती हो ना? तो सुनो। मैं अपनी क्या बताऊँ? कहते हुए बहोत दुःख होता है। शिखा (बॉस की बीबी का नाम शिखा था) पिछले एक महीने से घर छोड़ कर चली गयी है और अब वह वापस ही नहीं आएगी। उसने मुझे तलाक का नोटिस भेज दिया है। मैंने कभी लीगल लड़ाइयां नहीं लड़ीं। मैं बहोत परेशान हूँ और अकेला महसूस कर रहा हूं। क्या करूँ? तुम्हारी सहानुभूति भरा प्रेम देख कर मुझ से रहा नहीं गया और तुम्हें इतने करीब देख कर मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और आप को छूने की घृष्टता कर बैठा।"

बॉस के चेहरे पर हताशा और परेशानी साफ़ झलक रही थी और उनकी आँखों में आँसू छलक रहे थे। दीपा यह देख कर परेशान हो गयी। दीपा बॉस के सामने दूसरी कुर्सी पर बैठ गयी और एक हाथ से बॉस का हाथ पकड़ा और दूसरे हाथ से बॉस के आँसूं अपनी उँगलियों से पोंछते हुए बोली, "इतनी बड़ी कंपनी के मालिक और ऐसी जिंदगी की कस म कस पर ऐसे मायूस हो कर आंसूं बहाते हो? आपके आंसूं बड़े कीमती हैं। उन्हें वेस्ट मत कीजिये। और हाँ, अगर आप मुझे "आप" कहेंगे तो मैं आप से नहीं बोलूंगी।"

बॉस ने दीपा के हाथ को अपने हाथों में पकड़ कर बोले, "दीपा मैं अभी से आगे तुम्हें आप नहीं कहूंगा बस कसम। पर तुम भी वादा करो की तुम मुझे तुम कह कर बुलाओगी। और मुझे यह मत जताओ की मैं तुमसे बड़ा हूँ।"

दीपा ने अपने कान पकडे और बोली, "अब मुझे माफ़ करोगे? आगे से मैं तुम्हें आप कह कर नहीं बुलाऊंगी। तुम या फिर सोमजी कह कर बुलाऊंगी। बस? और जहां तक तुम्हारी घृष्टता का सवाल है तो मैं कहूं की मुझे तुम्हारी हरकत से कतई भी बुरा नहीं लगा। अपनों से प्यार जताने में कोई बुराई नहीं। प्यार के जोश या आवेश में ऐसा अक्सर हो जाता है। मैं समझ सकती हूँ। मैं तुम्हें अपना अंतरंग मित्र समझती हूँ इस लिए तुम ने जो किया उसके लिए तुम अपने आप को दोषी मत समझो।"

फिर मेरी पत्नी ने अचानक ही आगे बढ़ कर बॉसके कान पकड़ कर पूछा (जब मैंने यह देखा तो मेरी जान हथेली में आ गयी), "अंतरंग का मतलब समझते हो? मैं बताती हूँ। इसे याद रखना। अंतरंग माने जो अपने अंतःकरण के अंग जैसा हो। जिससे कोई भी, मतलब कोई भी, बात की जा सकती है; फिर वह चाहे सेक्स की हो या कोई और समस्या की हो या कोई और कितनी प्राइवेट या गुह्य क्यों ना हो। इसमें प्रिय, प्रियतम, पति, पत्नी (अगर उनमें गहरी आत्मीयता हो तो) या गहरा दोस्त भी आता है, उसे अंतरंग कहते हैं। इस में पिता, माँ, बेटी, भाई या बहन नहीं आते, हालांकि वह बहोत ही प्यारे होते हैं; क्यूंकि इन संबंधों में कुछ बंदिशें हैं। खून के रिश्तों में होती हैं। तुम सोमजी, मेरे अंतरंग हो और मैं भी तुम्हारी अंतरंग हूँ। हम कोई बाप बेटी या भाई बहन तो है नहीं। हमारे बिच ऐसी कोई बंदिशें नहीं की तुम मुझसे माफ़ी मांगो। तुमने मुझे छूकर कोई घृष्टता नहीं की। रिलैक्स! आवेश में ऐसा हो जाता है। बस मैं सिर्फ मेरे पति के आने से डर रही थी। मैं नहीं चाहती की तुम मेरे पति के सामने अपने आपको छोटा महसूस करो।"

दीपा की बात सुनकर बॉस की आँखों में एक अजीब सी चमक आ गयी। बॉस को डर था की कहीं दीपा उनकी हरकत से नाराज या गुस्सा ना हो जाए।