हँसी तो फँसी

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दीपा ने कहा, "तुम्हारी बीबी तुम्हारे सामने है। मना किसने किया है।"

मैंने दीपा की चूत में हाथ डाला तो वह ना सिर्फ गीली हुई थी। उसकी चूत में से रस रिस रहा था।

मैंने दीपा को अपनी दोनों टांगों में जकड़ लिया। मेरी जाँघें मेरी बीवी के नंगे बदन ऊपर जैसे अजगर अपने शिकार को अपने आहोश में जकड लेता है वैसे ही लिपटी हुयी थीं। मेरी पत्नी उसमे समा गयी थी। मैं अपना लण्ड दीपा की चूत पर रगड़ने लगा। ऐसे कड़क लण्ड को सम्हालना मेरे लिए वास्तव में मुश्किल हो रहा था। दीपा और मैं एक दुसरेकी आहोश में चुम्बन कर रहे थे। दीपा ने एक हाथ में मेरा लण्ड पकड़ रखा था।

मेरी शर्मीली और रूढ़िवादी पत्नी एक हाथ में मेरा लण्ड बड़े प्रेम से सहला रही थी। मैंने मेरे और मेरी बीबी के कपडे निकाल दिए। हम पूर्ण रूप से नग्न हालात में थे और एक दूसरे को लिपटे हुए थे। दीपा बिच बिच में मेरे अंडकोष को अपने हाथों से इतने प्यार से सहलाती थी की मैं क्या बताऊँ। दीपा के हाथ में एक जादू था। वह मेरे एंडकोष को ऐसे सहलाती थी की मैं उस आनंद का कोई वर्णन कही कर सकता।

मैं दीपा के नंगे पिछवाड़े को सहला रहा था। मैं बार बार दीपा के कूल्हों को दबाता रहता था और मेरी उँगलियाँ कूल्हों के बिच वाली दरार में बार बार घुस कर दीपा की गाँड़ के छिद्र में घुसेड़ता रहता था। मैं कभी दीपा की चूत के उभार पर अपना हाथ फिरा कर हलके से दीपा की चूत को छू लेता और उसकी चूत की पंखुड़ियों को प्यार से सहलाता। इस से दीपा और उत्तेजित हो कर गहरी साँसे लेकर, "डार्लिंङ्ग यह क्या कर रहे हो? प्लीज मैं बहुत गरम हो रही हूँ। आहहह......". बोलती रहती थी। दीपा की उत्तेजना उसकी धीमी सी कराहटों में मेहसूस हो रही थी।

ऐसे ही प्यार से मैं मेरी बीबी को देख रहा था। धीरे धीरे मेरी कामुक हरकतों और सेक्सी बातों से दीपा इतनी गरम और उत्तेजित हो चुकी थी की वह कामोत्तेजना में कराह ने लगी।

दीपा कीउत्तेजना को देख दीपा के मैं पाँव से लेकर धीरे धीरे दीपा की चूत तक मसाज करने लगा। दीपा की उत्तेजना जैसे जैसे मेरे हाथ दीपा की जाँघों से हो कर उसकी चूत के करीब पहुँच रहे थे वैसे वैसे बढ़ने लगी। दीपा के मुंह से हाय.... ओह.... उफ़..... की कराहट बिना रुके निकल रही थी। दीपा बार बार कभी अपनी गाँड़ तो कभी अपना पूरा बदन हिलाकर अपनी उत्तेजना को जाहिर कर रही थी। मैंने दीपा की चूत पर अपना दायां हाथ रखा और वह चूत के होठों को बड़े प्यार से सहलाने लगा। जब मैंने उसकी चूत में अपनी उंगली डाली तो दीपा एकदम उछल पड़ी। वह मेरी उँगलियों को अपनी चूत की पंखुड़ियों से खेलते अनुभव कर पगला रही थी।

उस समय दीपा का पूरा ध्यान मेरी उंगली पर था जो दीपा की चूत में खेल रही थीं। मैं तो जानता था की मेरी पत्नी को सेक्स के लिए तैयार करने का इससे बेहतर कोई रास्ता नहीं था। जब दीपा को चुदवाने के लिए तैयार करना होता था, तब मैं उसकी चूत में प्यार से अपनी एक उंगली डाल कर उसकी चूत के होठ को अंदर से धीरे धीरे रगड़ कर उसे चुदवाने के लिए मजबूर कर देता था। मेरी बीबी की चूत में अपनी उंगली को वह जगह रगड़ रहा था जहाँ पर रगड़ने से दीपा एकदम पागल सी होकर चुदवाने के लिए बेबस हो जाती थी।

दीपा की बेबसी अब देखते ही बनती थी। मेरे लगातार क्लाइटोरिस पर उंगली रगड़ते रहने से दीपा कामुकता भरी आवाज में कराहने लगी। जैसे जैसे दीपा की छटपटाहट और कामातुर आवाजें बढती गयी, मैं अपनी उंगली उतनी ही ज्यादा फुर्ती से और रगड़ने लगा। मेरी कामातुर पत्नी तब मुझ से चुदवाने के लिए मेरा हाथ पकड़ कर कहने लगी, " यार यह मत करो। मैं पागल हुयी जा रही हूँ। मैं अपने आप को रोक नहीं पा रही। जल्दी मुझ पर चढ़ जाओ और प्लीज मेरी चुदाई करो।"

दीपा ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे अपनी और खिंचा। मैं दीपा के कूल्हों से अपना लण्ड सटाकर बैठ गया। दीपा की गरम चूत का स्पर्श होते ही धीरे धीरे मेरा लण्ड कड़क होने लगा। थोड़ी देर तक मेरी नंगी बीबी को चूमने के बाद मैंने उसे पलंग के किनारे सुलाया और उसे अपनी टांगें नीचे लटकाने को कहा। जब दीपा पलंग के किनारे अपनी टाँगे नीचे लटका के पलंग के ऊपर लेट गयी तो मैं उसकी छाती पर अपना मुंह रख कर लेट गया। मैं झट से पलंग के नीचे उतरा और अपनी बीबी की टांगो को फैला कर उसकी चूत चाटने लगा। मेरी जीभ जैसे ही दीपा की चूत में घुसी की दीपा छटपटाने लगी। मुझे पता था की दीपा की चूत चाटने से या उंगली से चोदने से वह इतनी कामान्ध हो जाती थी की तब वह बार बार मुझे चोदने के लिए गिड़गिड़ाती थी। आज मैं उसे इतना उत्तेजित करना था की वह शर्म के सारे बंधन तोड़ कर खुल्लमखुला चुदवाने के लिए बाध्य हो जाए।

मेरी पत्नी की छटपटाहट पर ध्यान ना देते हुए मैंने उसकी चूत मैं एक उंगली डाल कर उसे उंगली से बड़ी फुर्ती और जोर से चोदना शुरू किया। दीपा के छटपटाहट देखते ही बनती थी। वह अपना पूरा बदन हिलाकर अपने कूल्हों को बेड पर रगड़ रगड़ कर कामाग्नि से कराह रही थी। उसका अपने बदन पर तब कोई नियंत्रण न रहा था। वह मुझे कहने लगी, "दीपक डार्लिंग, ऐसा मत करो। मुझे चोदो। अरे भाई मैं पागल हो जा रही हूँ।" मैं दीपा की बात पर ध्यान दिए बगैर, जोर शोर से उसको उंगली से चोद रहा था। उंगली से दीपा को चोदते हुए मैंने दीपा से कहा, "अब बताओ तुम बॉस के घर में मुझसे चुदवाओगी की नहीं?"

दीपा उस समय उत्तेजना के मारे उछाल रही थी। वह बोल पड़ी, "दीपक, मैं तुमसे चुदवाउंगी और तुम कहोगे उससे भी चुदवाउंगी पर अभी तो तुम मुझे चोदो प्लीज?"

उस रात हमारी ऐसी चुदाई हुई जो शायद काफी सालों के बाद हुई थी। उस रात शायद बॉस के बारे में बातों ने हमारी काम वासना की आग में घी का काम किया था। जब हमारी साँस में साँस आयी तब मैंने दीपा से कहा, "देखो डार्लिंग अब हम एकदम सच्ची और खुली बात करेंगे। जैसे तुमने कहा, बॉस कहीं तुमसे ज्यादा छूट ना ले ले। यही डर है ना तुमको?"

दीपा कुछ उलझन भरी सोच में डूब गयी और बोली, "पता नहीं। वैसे तो तुम्हारे बॉस बड़े ही नेक और शरीफ हैं। पर कभी कभी वह आवेश में भी आ जाते हैं। फिर सम्हल जाते हैं और माफ़ी भी मांग लेते हैं! मेरी तो कुछ समझ में नहीं आता। और हाँ, तुमसे वह बड़े ही ड़रते हैं।"

मैंने कहा, "मेरे बॉस मुझसे डरते हैं? क्या कहती हो?"

दीपा ने झिझकते हुए कहा, "मेरा मतलब है, उस दिन जब तुम आइसक्रीम लेने गए थे और तुम्हारे बॉस मुझसे कुछ छेड़खानी करने लगे थे तब मैंने उनको यह कह कर टरका दिया की कहीं तुम आ तो नहीं गए? यह सुन कर तुम्हारे बॉस एकदम डर गए और इधर उधर देखते हुए उन्होंने मुझे छोड़ दिया।"

मैंने मजाकिया स्वर में कहा, "अच्छा? तो मैं उस दिन कबाब में हड्डी का काम कर रहा था क्या?"

दीपा ने नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा, "क्या दीपक तुम भी! क्यों मेरी टांग खींचते हो? मैं तो तुम्हें जो हुआ वह बता रही थी। पर देखो जब हम बॉस के साथ में या उनके घर में रहेंगे तो हमारी करीबियां बढ़ सकती हैं। और तुम्हारे बॉस कहीं वही पुरानी आदत पर ना आ जाएँ। यही डर मुझे लगता है।"

मैंने कहा, "डार्लिंग वही तो मैं चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ की बॉस वैसे ही पहले जैसे चहकते हो जाएँ और उनकी वही पुरानी जिंदगी वापस लौट आये। अगर तुम यह कर पायी तो ना सिर्फ मैं पर हमारा सारा दफ्तर तुम्हारा ऋणी होगा।"

दीपा ने कहा, "ठीक है। अगर तुम कहते हो तो मैं पूरी कोशिश करुँगी। और तुम वैसे ही करोगे जैसा मैं कहूँगी।"

मैंने कहा, "वह तो मैं हमेशा ही करता हूँ। यह मेरे लिए कोई नयी बात नहीं है।"

मैंने बॉस से कह दिया की हम उनके वहाँ कुछ दिन रहने के लिए तैयार थे। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ जब बॉस ने मुझे दफ्तर में स्टाफ मीटिंग बुलाने के लिए कहा। सारा स्टाफ यह सुन कर बड़ा खुश हुआ। बॉस धीरे धीरे काम में रस लेने लगे थे ऐसा सभी को लगने लगा था। सारे मेरे साथी मुझे पूछने लगे की मैंने बॉस पर ऐसा क्या जादू किया था। मैंने सिर्फ ऊपर उंगली उठा कर कहा, "यह सब उपर वाले का कमाल है।"

मेरी बात सुनकर सब ने अपने हाथ ऊपर वाले की खिदमत में जोड़े। मेरी छोटी सी केबिन में मेरे ऊपर लगी मेरी बीबी की तस्वीर किसी ने नहीं देखि।

बॉस उस दिन के बाद रोज ऑफिस के बाद मेरे साथ घर आते थे और इंतजार कर रही दीपा के साथ बातें करने में खो जाते थे। बातें अक्सर घुमा फिरा कर बिज़नेस की और ऑफिस की होती थीं। दीपा बॉस को कई सुझाव देती थी और बॉस भी शायद मेरी बीबी को बुरा ना लगे इस लिए उसकी बातें बड़े ध्यान से सुनते भी थे और उसके ऊपर अपनी राय भी जाहिर करते थे। मैं उनको छोड़ इधर उधर हो जाता था और कई बार छुप कर उनको देख भी लेता था।

मौक़ा मिलने पर बॉस अकेले में दीपा को अपनी बाँहों में घेर लेते थे और जल्दबाजी में किस कर लेते थे और कपड़ों के ऊपर से ही मेरी बीबी के भरे हुए मम्मों को भी मसल देते थे। दीपा तब कुछ डरी, घबड़ायी सी हँस कर उसे नजर अंदाज कर देती थी।

शुक्रवार शामको बॉस हमें अपने घर ले जाने के लिये आये। बॉस के आने पर दीपा ने चाय बनायी और बॉस को दी। दीपा ने बॉस से कहा, "हम आपके घर आ तो रहे हैं, पर मेरी एक शर्त है वह मैं आपको बता देना चाहती हूँ। मैं घर में थोड़ी सी भी गन्दगी बर्दास्त नहीं कर सकती। मैंने देखा है की आपका घर है तो बहोत बढ़िया पर आपकी बीबी, मतलब शिखाजी उसे बिलकुल साफ़ नहीं रखती थी। घर पहुँचते ही मैं घर की सफाई में लग जाउंगी। आप भले ही मेरे पति के बड़े बॉस हों, पर आपको भी मेरे साथ सफाई में लगना पडेगा।"

बॉस ने मेरी बीबी की बात सुनी तो मुस्कुराये और बोले, "पर घर जाते ही मुझे नजदीक के स्टोर में ही मेरा अकाउंट है वहाँ से घर का कुछ सामान ग्रोसरी बगैरह लाना पडेगा।"

दीपा ने मेरी और इशारा करते हुए कहा, "कहीं ऐसा तो नहीं की आप सफाई के काम से बचना चाहते हो? दीपक भी तो वहाँ से ग्रोसरी ला सकते हैं।

बॉस ने कहा, "मुझे सफाई के काम करने में कोई हिचकिचाहट नहीं है। ठीक है, मैं आप के साथ सफाई के काम में लग जाऊंगा और दीपक ग्रोसरी ले आयेंगे।"

दीपा और बॉस कुछ बातचीत करते हुए बाहर निकले और बॉस की कार में जा बैठे। मैं घर के सब दरवाजे, खिड़कियाँ, बिजली की स्विच, नलके सब बंद कर सारी चीज़ों को चेक कर हरेक कमरे को अच्छी तरह बंद कर घर के बाहर निकला। दीपा ने हमारी दो सूट केस पैक की थी वह मैंने ली और उन्हें कार की डिक्की में रख कर घर में ताला लगा कर बॉस की कार में पीछे की सीट पर बैठ गया। दीपा आगे बॉस की बगल वाली सीट में बैठी थी।

घर पहुँचते ही दीपा ने घर का चार्ज सम्हाल लिया। दीपा कपडे बदल कर सिर्फ एक छोटी सी चड्डी और ऊपर बिना ब्रा पहने टैंक टॉप (एक गंजी के जैसा टॉप) पहन कर सफाई के लिए तैयार हो गयी। मुझे दीपा ने एक लिस्ट पकड़ा दी जिसमें जरुरी रसोई बगैरह का सामन लिखा हुआ था। बॉस भी सफाई के लिए चड्डी और टी शर्ट पहन कर प्लास्टिक के बकेट मशीन के साथ तैयार हो गए। बाहर निकल कर कुछ देर के लिए मैं दरवाजे के पीछे खड़ा हो कर चोरी से अंदर का नजारा देखने लगा। मैंने देखा की दीपा आगे झुक कर जब घर में कोने कोने में झाड़ू लगा रही थी तो बॉस उसके पीछे मेरी बीबी की बाहर निकली हुई सुआकार गाँड़ को, जो की उस छोटी सी चड्डी में इतनी कामुक लग रही थी, देखते ही रहते थे।

कुछ देर के बाद दीपा जब पीछे मुड़ी तो उसने बॉस को उसकी गाँड़ को घूरते हुए पकड़ लिया। दीपा फ़ौरन अपनी कमर पर हाथ रख कर नकली गुस्सा दिखाती हुई बोली, "क्या देख रहे हो? कभी कोई औरत को आगे से झुक कर झाड़ू लगाते हुए नहीं देखा क्या?"

बॉस ने कहा, "हाँ देखा तो है, पर इतनी खूबसूरत औरत को कभी ऐसे झाड़ू लगाते हुए नहीं देखा।"

मेरी बीबी ने कुछ शर्माते हुए कहा, "चलो सोमजी, देखने के लिए बहुत कुछ है और बहोत दिन हैं। अभी काम पर ध्यान दो। अगर ऐसे देखते रहोगे तो काम कब होगा?"

बॉस शर्मिन्दा होते हुए दीपा के झाड़ू लगाने के बाद पोछा करने लगे। मैं वहाँ से सामान लेने के लिए निकल पड़ा। सामान फ़टाफ़ट ले लिया और बिल लेकर मैं बॉस के घर की और चल पड़ा। सामान लेकर वापस आने में मुझे करीब आधा घंटा लगा होगा। जब मैं घर पहुंचा तो शाम के करीब सात बज चुके थे। बाहर अन्धेरा था। मैंने फिर दरवाजे के पीछे छिप कर देखना चाहा की अंदर क्या हो रहा था।

घर में सारी बत्तियों की रौशनी से घर जगमगा रहा था। मैंने अंदर झाँक कर देखा तो दीपा ने अपना काम खतम कर लिया था और वह पसीने से तरबतर घर के एक कोने में थकान की मारी गहरी साँसें ले रही थी। बॉस भी पोछा लगा कर बाल्टी और मशीन अपनी जगह रख कर दीपा के सामने खड़े हो गए। दीपा का टॉप पूरा पसीने से भीगा हुआ था। ऊसके सर, बालों और पेट से भी पसीना बह रहा था। मेरी खूबसूरत बीबी पूरी पसीने में भीगी हुई थी। मेरी बीबी की मदमस्त भरी और फूली हुई चूँचियाँ उसके गहरे साँसें लेने के कारण टॉप में से ऊपर निचे बाहर निकली हुई दिख रहीं थीं। उस शाम दीपा जल्दी में शायद ब्रा पहनना भूल गयी थी। टॉप भिगने के कारण दीपा के बॉल की गोलाई, उसके गोर स्तनों पर कब्जा किये हुए कामुक अरोएला और उसकी कड़क निप्पलों की झांकी हो रही थी। दीपा का टॉप दीपा की कमर से काफी ऊंचा था। दीपा की नंगी कमर, नाभि बड़ी कामुक लग रही थी।

दीपा के मस्त फुले हुए टॉप में से जबरदस्ती से बाहर निकलने को व्याकुल धमन की तरह ऊपर निचे हो रहे स्तन को देखते बॉस की आँखें वहाँ से हटने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं। दीपा ने बॉस की नजर देखि तो थोड़ा शर्माते हुए अपने आपको सम्हालती हुई बोली, "सोमजी, यह क्या देख रहे हैं? ऐसा मत करो प्लीज। मुझे शर्म आती है। आपने मेरा काम में साथ दिया उसके लिए शुक्रिया। मैं देखना चाहती थी की आप जैसा बड़ा आदमी ऐसे सफाई के काम करने में छोटापन तो नहीं महसूस करता।"

बॉस ने दीपा के सामने अपनी बाँहें फैलायीं और दीपा को उसमें जकड़ते हुए बोले, "तो मैडम, क्या मैं आपके टेस्ट में पास तो हुआ ना?"

दीपा बॉस को देख कर अपनी आँखें नचाती हुई कुछ हिचकिचाती हुई बोली, "हाँ पास तो हुए आप! पर सोमजी यह क्या है?"

बॉस ने कहा, "दीपा, क्या तुम मुझे तुम्हारे बताये हुए काम करने का इनाम नहीं दोगे? मैं कई हफ़्तों से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ। मुझे मत तड़पाओ ना।"

दीपा ने कहा, "मैं कहाँ तड़पा रही हूँ? आपको तड़पा तो आपकी शिखा रही है।"

बॉस यह सुनकर नाराज हो गए और दीपा की कमर से अपना हाथ हटा दिया और बोले, "प्लीज शिखा का नाम मत लो। अगर तुमने शिखा का नाम लिया तो मैं तुमसे बात नहीं करूंगा। मुझे उसके नाम से भी नफरत है।" ऐसा कह कर बॉस नाराज हो कर वहाँ से उठ कर सीढ़ी चढ़ कर ऊपर वाले उनके बैडरूम में चले गए। दीपा अफ़सोस करती हुई पंखे के निचे अपना पसीना सुखाते हुए खड़ी खड़ी इधर उधर देखती रही तब मैं सामान के बड़े थैले लेकर कमरे में दाखिल हुआ।

मैं जब घर में दाखिल हुआ तो मैंने देखा की बॉस ने शायद खाना बाहर से आर्डर कर दिया था जो टेबल पर रक्खा हुआ था। दीपा पंखे के निचे खड़ी थी और उसका चेहरा उतरा हुआ था। मैंने पहुँच कर थैले निचे रख कर दीपा के पास जा कर पूछा, "डार्लिंग, क्या बात है। आप का चेहरा इतना उतरा हुआ क्यों है?"

दीपा ने कुछ रक्षात्मक भाव से कहा, " मैंने और बॉस ने मिलकर सफाई की। बात बात में मैंने बॉस को शिखाजी के बारे में पूछा तो वह दुखी हो गए। लगता है मैंने उनका मन दुखा दिया। वह उनके बारेमें बात भी नहीं करना चाहते हैं।"

मैंने कहा, "हाँ वह उनकी दुखती रग है। वह अब उनको भुला देना चाहते हैं। शिखाजी ने बॉस का दिल तोड़ दिया है।"

दीपा ने कहा, "हाय रब्बा, मुझे क्या पता की वह शिखाजी से इतनी नफरत करते हैं।"

मैंने कहा, "कोई बात नहीं। मैं जा कर बॉस से माफ़ी माँग लूंगा।"

दीपा ने कहा, "नहीं तुम कहीं नहीं जाओगे। तुम क्यों माफ़ी मांगोगे? गलती मैंने की है तो माफ़ी भी मुझे ही मांगनी चाहिए। तुम यह सब्जी धो कर बाद में फ्रिज में रख दो और यह खाना माइक्रो में गरम कर दो। मैं अभी बॉस से माफ़ी मांग कर उनको खाने के लिए बुला लाती हूँ।"

मैंने कहा, "ठीक है डार्लिंग। जैसा आप कहो। पर कैसे भी कर के बॉस का मूड़ ठीक करने की कोशिश करना।"

दीपा ऊपर बॉस के कमरे में गयी। मैं टेबल पर सब्जी धो कर टेबल पर रख कर सीढ़ी चढ़ कर धीरे से बॉस के बैडरूम के बाहर जाकर खड़ा अंदर का नजारा देखने लगा। बॉस कोने के एक टेबल के सामने एक कुर्सी पर बैठे हुए सामने की दीवार पर देख रहे थे और दीपा उनके पीछे खड़ी थी। दीपा ने पीछे से जाकर बॉस के कंधे पर हाथ रख कर कहा, "सॉरी सर! आई मीन सोमजी, मुझे माफ़ कर दो।"

बॉस ने वैसे ही बैठे रह कर दीपा की और पीठ रखते हुए, अपने कंधे पर रखे हुए दीपा के हाथ के ऊपर अपना हाथ रखा और उसे कस कर दबाते हुए कहा, "इट्स ओके दीपा। कोई बात नहीं। शिखा ने जो मुझे घाव दिए हैं मैं उसे भुलाना मेरे लिए बड़ा ही मुश्किल है। मैं उन्हें भुलाने की कोशिश कर रहा हूँ। वह बड़ी ही बददिमाग, उच्छृंखल, आलसी होते हुए भी मैंने उसकी सारी कमियां नजरअंदाज़ कीं क्यूंकि मैं मेरी दिनरात की मेहनत के बाद मेरी बीबी की बाँहों में रात को शकुन से सोना चाहता था। उसके प्यार की सिंचाई से अपना कुटुंब बनाना चाहता था। पर वह सुख भी मुझे उसने नहीं दिया। उसे सिर्फ पैसा ही नजर आता था। आखिर में जो होना था वही हुआ। अब मैं उसका नाम भी नहीं सुनना चाहता।

पर मुझे एक बड़ा अफ़सोस है की मेरे पास जब मौका था तब मैं एक बार भी उसे उसकी औकात का एहसास नहीं करा पाया। काश एक बार मैं उसकी ऐसी की तैसी कर उसकी बैंड बजा देता। एक बार उसे यह एहसास करा देता की वह पत्नी नहीं एक राँड़ थी जो शादीशुदा होते हुए भी अपने यार से पति से चोरी छुपी चुदवाती थी। काश मैं एक बार उसे एक राँड़ की तरह बड़ी बेदर्दी से ऐसी की तैसी कर देता ना? तो मेरे मन को बड़ी ही ढाढस मिलती और मैं उसे मेरे मन से और जिंदगी से हमेशा के लिए निकाल फेंकता।"

बॉस कुर्सी घुमा कर दीपा के सामने आगये। दीपा की कमर पर अपना हाथ टिकाते हुए बॉस ने कहा, "दीपा, मैंने तुममें अपने सपने की मूरत देखि है। मैं थोड़े समय के लिए ही सही, तुम्हें देखता हूँ तो अपने सारे ग़म भूल जाता हूँ। मैं जानता हूँ की तुम शादीशुदा हो। पर मैं क्या करूँ? तुम्हें देखते ही मेरा दिल मचल जाता है। अगर मैं ऐसी वैसी हरकत कर बैठूं तो मुझे तुम हड़का देना, डाँट देना। मुझे ज़रा भी बुरा नहीं लगेगा। पर मुझे माफ़ कर देना। मुझसे रूठ मत जाना। मुझ से दूर मत जाना। मैं कोशिश करूंगा की तुम्हें परेशान ना करूँ।"

दीपा ने बॉस के करीब जाते हुए कहा, "सोमजी, मैं शिखा राँड़ की तरह आपसे मेरे पति से छुप कर सम्बन्ध नहीं रखूंगी। मैं दीपक की बीबी हूँ, तुम किसी और के पति हो। यह सारा विधि का खेल है। पर मैंने तुम्हें अपना अंतरंग माना है।"

फिर ऊपर टेढ़ी नजर कर बॉस की आँखों में आँखें मिला कर दीपा ने कुछ नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा, "अंतरंग का मतलब तो जानते हो ना? की भूल गए? मैंने तुम्हें बताया नहीं था?"

बॉस ने अपने कान पकड़ते हुए कहा, "हाँ भई हाँ, जानता हूँ। मैं कैसे भूलता? तुमने मुझे डंके की चोट पर जो समझाया था।अंतरंग माने जो अपने अंतःकरण के अंग जैसा हो। जिससे कोई भी, मतलब कोई भी बात की जा सकती फिर वह चाहे सेक्स की हो या कोई और समस्या की हो या कोई और कितनी प्राइवेट या गुह्य क्यों ना हो। जिससे कुछ भी किया जा सकता है जैसे छूना, प्यार करना किस करना इत्यादि। अंतरंग की व्याख्या में प्रिय, प्रियतम, पति, पत्नी (अगर उनमें गहरी आत्मीयता हो तो) या गहरा दोस्त भी आता है, उसे अंतरंग कहते हैं। इस में पिता, माँ, बेटी, भाई या बहन नहीं आते, हालांकि वह बहोत ही प्यारे होते हैं; क्यूंकि इन संबंधों में कुछ बंदिशें हैं। खून के रिश्तों में होती हैं।"

बॉस ने फिर दीपा की और देख कर कहा, "क्यों टीचर, मैंने ठीक समझा ना?"

दीपा ने अपने दांतों तले उंगली दबाते हुए कहा, "बापरे! सोमजी, तुम तो बड़े नकलची निकले यार! तुमने तो मेरी बात का रट्टा ही लगा लिया ऐसा मुझे लगता है।"

बॉस ने कहा, "दीपा! मैं तुम्हारी बातों को हलके में नहीं लेता। अब तुम आगे कहो क्या कहना चाहती थी?"

दीपा ने अपनी बात पूरी गंभीरता से जारी रखते हुए कहा, "सोमजी. मेरी जिंदगी में सिर्फ दो ही लोग मेरे अंतरंग हैं, एक मेरे पति और दूसरे तुम। अगर तुम भी मुझे अंतरंग मानते हो तो हमारे बिच कोई भी पर्दा नहीं होना चाहिए। इसलिए यह माफ़ी बगैरह की बात मत कीजिये।" यह कह कर दीपा ने बॉस का सर अपने नंगे पेट के साथ सटा दिया और बोली, " अभी तो मेरा बदन पसीने से तरबतर है।अभी मैं नहाने के लिए जा रही हूँ। देखना कहीं आपके मुंह में मेरा खारा पसीना ना आ जाए।"

यह कर क्या दीपा बॉस को खुला आमंत्रण दे रही थी कीअगर बॉस चाहे तो दीपा के पेट को और नाभि को या फिर किसी और अंग को जीभ से चाट सकते हैं? अगर ऐसा था तो मुझे दीपा का ऐसा कहना अच्छा लगा।

दीपा की प्रोत्साहित करने वाली भाषा सुन कर बॉस ने दीपा का टॉप उठाना चाहा तो दीपा ने धीरे से बॉस के हाथ हटाते हुए कहा, "रुको भी सोमजी। धीरज रखो। धीरज का फल मीठा होता है।"

बॉस ने मेरी बीबी के पेट और नाभि को अपनी जीभ से हलके से चूम कर चाटते हुए कहा, "कोई बात नहीं, जल्दबाजी में मुझे थोड़ा खारा रस मिल रहा है, फिर भी मैं खुश हूँ।"

दीपा ने बॉस का हाथ पकड़ कर उठाते हुए कहा, "अब उठो और मेरे पतिदेव को रसोई में मदद करो। आज मैं रसोई में कोई काम नहीं करुँगी। आज रात काम करने के लिए मेरे साथ दो हट्टेकट्टे मर्द जो हैं।"

बॉस ने दीपा को आँख मार कर पूछा, "मैडम, इस बात के कई मतलब हो सकते हैं। क्या आप जानती हो?"

दीपा ने नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा, "अरे हटो, गंदे कहीं के। अगर तुम मुझे आप कह कर बुलाओगे तो मैं तुमसे बात नहीं करुँगी। लो मैं तो चली नहाने।"

बॉस ने दीपा को मुंह बना कर कहा, "क्या मैं भी चलूँ तुम्हारे साथ? जहां तुम्हारे हाथ नहीं पहोचेंगे वहाँ मैं साबुन लगा दूंगा और धो भी दूंगा।"

दीपा ने उसी अंदाज में कहा, "जानती हूँ, तुम तो कभी से यही करने के सपने देख रहे होंगे?"

बॉस ने जवाब दिया, "यह तो कुछ भी नहीं है। और भी बहुत कुछ करने के सपने देखता हूँ मैं।"

दीपा ने कहा, "कहीं मेरे पति ने सुन लिया ना, तो आप तो बॉस हो, बच जाओगे; पर मुझे तो मार पड़ेगी और कहीं मुझे घर से निकाल ही ना दें।"

बॉस ने कहा, "तो मेरा घर खुला है, खुला ही रहेगा तुम्हारे लिए।"

दीपा ने कोई जवाब नहीं दिया। वह तो वहाँ से फ़ौरन भाग कर नहाने के लिए जा चुकी थी। उसके पहले की बॉस निचे उतरे, मैं फुर्ती से निचे रसोई में पहुँच गया और खाने को गरम करने की कवायद में लग गया। मेरा लण्ड मेरी पतलून में खड़ा हो गया था। मेरे बॉस और मेरी बीबी की गरमागरम बातें मुझे भी गरम कर रही थीं।

बॉस ने आकर मेरा हाथ थाम कर मुझे "हेलो!" किया और बोले, "दीपक, मैं आपसे क्या कहूं? आप दोनों ने मेरे घर आ कर मुझ पर बड़ा एहसान किया है। आप दोनों मेरी टूटी हुई जिंदगी को जोड़ कर वापस पटरी पर लाने ने में मेरी मदद कर रहे हो उसका एहसान मैं जिंदगी भर तक चुका नहीं पाउँगा।"

मैंने बॉस का हाथ मेरी हथेलियों में दबाते हुए कहा, "बॉस, आप की जिंदगी हमारी जिंदगी से अलग थोड़े ही है? आप की जिंदगी से हम सब जुड़े हुए हैं। ख़ास तौर से मैं और दीपा तो आप को हमारा 'अंतरंग' मानते हैं।"

जब बॉस ने मेरे मुंह से भी 'अंतरंग' शब्द सूना तो वह मुझे देखते ही रहे। उनकी समझ में यह नहीं आया की मेरी पत्नी और मैं कैसे एक ही सुर में बात कर रहे थे। बॉस ने मुझसे लिपट कर कहा, "दीपक, आज से तुम मेरे जूनियर साथीदार नहीं, मेरे अंतरंग मित्र हो। तुम मुझे बॉस या सर मत कहो। मुझे सोम कह कर बुला सकते हो।"

मैंने कहा, "नहीं सर, मैं आपको सर ना कहूं तो फिर सोमजी कह कर बुलाऊंगा जैसे दीपा आपको बुलाती है। और सिर्फ मैं ही नहीं, दीपा भी आपकी अंतरंग मित्र है। जैसे दीपा और मैं मतलब हम अलग अलग नहीं हैं, वैसे ही आप हम दोनों को आपसे अलग मत समझो। हम जो कुछ कर रहे हैं वह आपके लिए नहीं, हमारे लिए कर रहे हैं। आजसे हम तीनो एक हैं। बॉस एक बात और। आप दीपा के साथ किसी भी तरह की बात करते हुए या कोई भी हरकत करते हुए मन में कोई भी संकोच कोई भी ऐसा ख़याल मन में मत रखना की मुझे बुरा लगेगा। दीपा जितनी मेरी है उतनी ही आपकी भी है। यह मैं पूरी तरह से मानता हूँ।"