अधेड़ उम्र का प्रेम

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अधेड़ उम्र में प्रेम का मिलना और उसके बाद का घटनाक्रम.
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इस कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। स्थानों के नाम केवल घटनाक्रम

को प्रवाह देने के लिये दिये गये है। कहानी पूरी तरह से कल्पना पर आधारित है।

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किसी संबंधी के यहाँ समारोह में शामिल होने गया था। चहल-पहल थी सब तरफ लोग सजधज कर घूम रहे थे। हम भी सजधज कर गये थे। हमारी इस सजधज ने ही परेशानी में डाल दिया, परेशानी भी मीठी सी। घर से चलते समय बीवी ने कहा था कि आज काले सुट में जँच रहे हो। किसी की नजर ना लग जाए मैंने कहा कि अब इस उम्र में कहाँ किसी को नजर लगती है। उस ने काजल का टीका उड़तें बालों में छिपा कर लगा दिया। मैंने कहा कि तुम्हारे सामने हमें कौन देखेगा? इसी चुहलबाजी में हम दोनों समारोह में पहुँच गये। ज्यादातर लोग परिचित थे इस लिए समय सही कट रहा था।

मैं एक कोने में बैठा भीड़ का मजा ले रहा था तभी किसी की आवाज ने मेरी तन्द्रा तोड़ी, मैंने नजर उठा कर देखा तो एक सजी-धजी महिला मेरी तरफ आ रही थी और मेरा नाम पुकार रही थी। मैं हड़बड़ा कर सीट से ऊठ कर खड़ा हो गया, उन को पहचानने की कोशिश की, मेरी याददास्त ने धोखा दे दिया। मेरी हैरानी को देख कर उन्होनें अपना परिचय दिया तो मुझे याद आया। वह पास आ कर बोली कि आज तो आप कहर ढ़ा रहे है। मैंने फिकी सी मुस्कराहट दी। वह बोली की आप के साथ एक सेल्फी तो बनती है, मैं और भी सकुचा गया वह बोली की आप को ले नही जा रही सिर्फ आप के साथ सेल्फी ही तो ले रही हूँ, ये कह कर उन्होंने अपने फोन से सेल्फी ले ली। फिर मुझे दिखाई तो लगा कि उन की बात में सच्चाई थी।

तब तक मेरी सकुचाहट कम हो चुकी थी मैंने कहा कि अकेली है अगर भाई साहब ने सुन लिया तो लफड़ा हो सकता है। वह हँसी और बोली इसी लिए तो मैं अकेली आई हूँ। बोली की आप के साथ बैठ जाऊँ? मैंने कहा कि यह भी कोई पुछने की बात है। वह बैठ कर बोली कि आप तो हमारे फेसबुक ग्रुप के हीरों हो। आप ने अपने पोस्ट पर कभी लाईक की सख्या गिनी है? मैंने कहा कि अब मुझे चने के झाड़ पर ना चढ़ाये। वह जोर से हँस दी। मुझे उस की हँसी अच्छी लगी। चालीस की उम्र होगी उन की, बैलोस व्यवहार की मालकिन थी। हम दोनों बातें करने लगे। किताबें पढ़ने का शौक, फोटोग्राफी, गजलें, घूमने के शौक हम दोनों के समान थे।

मैंने कहा कि आप का ड्रेसिग सेंस भी कमाल का है। हम पुरुषों को तो ले दे कर सुट से ही काम चलाना पड़ता है, आप के लिए तो ढ़ेरों ड्रेसेज है। वह बोली कि यह बात तो है हम महिलाओं के लिए ज्यादा चॅायसेस है। फेसबुक के बारे में बातें होने लगी, वह बोली की आप का सामाजिक सरोकार स्पष्ट हैं, विचारधारा स्पष्ट है पोस्ट भी ज्यादातर इन्ही से जुड़ें होते हैं, अपने आप को ज्यादा नही पेश करते है। फेसबुक पर ज्यादातर लोग अपने आप का विज्ञापन करते हैं। मैंने कहा कि अपने आप को पेश करने की उम्र नही रही। जैसे है वैसे है। इस ग्रुप में वैसे भी सभी करीबी लोग है।

बातें किताबों पर मुड़ गई, उन्होनें अपनी पढ़ी हुई किताबों के बारे में बताया मैंने भी अपनी वर्तमान में पढ़ी जा रही किताबों की चर्चा की। गजलों की बात चली तो अपनी मन पसन्द गजलों की याद करने लगें। मैंने कहा कि मुझे तो जगजीत की सभी गजलें पसन्द है। बेगम अख्तर भी पसन्द है। पता चला कि उन की पसन्द भी मेरी जैसी है। मैंने कहा कि मेरे पास शायद 1000 गजलों का सग्रह है। अब इन सब को सुन नही पाता क्यों कि मेरी बीवी को संगीत पसन्द नही है तथा मेरी बेटी की पसन्द अलग है। मुझे ही मन मारना पड़ता है।

उन्होनें सहानुभूति से सिर हिलाया। मैंने पुछा कि यह सेल्फी क्या एफबी पर शेयर करनी है, वह बोली की नहीं, यह तो अपने संग्रह के लिए है, हर चीज सब के लिए नही होती। मैं यह सुन कर मुस्कराया।

मैंने पुछा कि आप ने खाना खाया है या नहीं, उस ने कहा कि अभी तो नही खाया, मैंने कहा कि चलिए खाना खाते है। वह बोली की अभी भीड़ है कुछ देर बाद जब भीड़ कम हो जाएगी तब खाना खाने चलगें। मैंने भी सहमति में सर हिलाया। इतनी भीड़ में खाना खाने में कपड़ों के गन्दे होने का पुरा खतरा था। फिर दोनों बातें करने लगे इस बीच में मेरी बीवी के दर्शन नहीं हुए। वह लोगों के बीच व्यस्त थी। मेरा वक्त इन के साथ कट रहा था। लग रहा था कि उन को भी मेरा सानिध्य अच्छा लग रहा था।

जब खाना खाने के लिए उठ ही रहे थे तभी श्रीमति जी आती हुई दिखाई दी। आ कर बोली की चलों चल कर खाना खाते है। वह भी उठ कर हम दोनों के साथ खाना खाने चल दी। खाने के दौरान भी श्रीमति जी किसी से बात करने के लिए हम दोनों से अलग हो गई। खाना खाते हुए वह बोली की आप का नम्बर चाहिए, बाद में भुल ना जाऊँ। मैंने उन का फोन लेकर अपना नम्बर डायल कर दिया, अब उन के और मेरे फोन में एक-दूसरे के नम्बर आ गये थे। खाना स्वादिष्ट था इस लिए भरपेट खाना खा लिया। इस दौरान मैं भी कई लोगों से दुआ-सलाम करता रहा, मेरा परिचय का दायरा ज्यादा बड़ा नही है, लेकिन जिन से परिचय है उन से संबंध स्थाई है।

इस दौरान मैंने देखा कि इन महिला पर उम्र का ज्यादा जोर नही चला है। पुरे बदन में कसाव था, फालतू मांस शरीर में कही पर नही दिख रहा था, यही कारण था कि चालीस की होने के बावजूद पैतीस से कम की ही लगती है। मैंने पुछा कि महिलाओं से उन की उम्र नही पूछते है लेकिन मैं यह कह सकता हूँ कि आप ने उसे रोक दिया है। इस का राज पता चलना चाहिए। मेरी इस बात पर वह मुस्कराई, और बोली कि अब आप फ्लर्ट करने लग गये है, मैंने कहा कि जिस चीज की प्रशंसा होनी चाहिए उसी की कर रहा हूँ। विश्वास ना हो तो अपनी हमउम्र औरतों को नजर घुमा कर देख ले मेरी बात की सच्चाई समझ में आ जाएगी। वह बोली की मैं कुछ खास नही करती हूँ कुछ योग और पैदल चलती हूँ यही शायद मेरी सेहत का राज है।

थोड़ी देर बाद वह मेजबान से विदा लेने चली गई। वापस आ कर मुझ से बोली कि अब मैं चलती हूँ, मैंने कहा कि कैसे जाएगी? तो वह बोली की बाहर से कुछ पकड़ लुगी। मैंने कहा कि रात हो गई है। पता करते है कि कोई आपकी तरफ जा रहा हो तो आप को छोड़ देगा। मैंने पता किया लेकिन कोई उस तरफ नही जा रहा था, मैंने बीवी को ढुढ़ा तो वह किसी से बात कर रही थी उस से पुछा कि कब चलना है तो वह बोली कि अभी तो देर लगेगी। मैंने कहा कि मैं इन को बाहर से गाड़ी करा के आता हूँ तो वह बोली कि जब बाहर तक जाओगे तो थोडी दूर और जा कर इसे घर ना छोड़ दो रात में अकेली कैसे जायेगी?

बात तो उस की सही थी, रात को अकेले भेजना सही नही था। लोग काफी दिनों बाद एक दूसरे से मिले थे इस लिए कोई जाने की जल्दी में नही था। मैं उन के पास आया और उन से बोला कि चलिए मैं आप को घर छोड़ देता हूँ वो बोली कि मेरे लिए क्यों परेशान होते है? मैंने कहा कि इस में परेशानी की कोई बात नही है। हम दोनों बाहर आये और मैंने अपनी कार का दरवाजा खोल कर उन को बैठाया। फिर मैंने कार स्टार्ट की और उन के घर की तरफ चल दिया। वह बोली की कार भी आपने अपनी तरह ही शानदार रखी है। मैंने कहा ये कार तो श्रीमति जी की पसन्द है। हम तो कार चालक का रोल निभाते है यह सुन कर वह मुस्करायी।

घर ज्यादा दूर नही था जल्द ही पहुच गयें। उन के घर तक कार नही जाती थी। इस लिए गली के बाहर कार खड़ी कर के मैं उन्हें उन के घर तक छोड़ने चला गया। घर पहुँच कर वह बोली कि यहाँ तक आये है तो एक कप चाय पी कर जाये, मैंने कहा कि देर हो जाएगी, इस पर वह बोली कि मैं बुरा मान जाऊगी। पांच मिनट की बात है। मैं उन के साथ घर में चला गया। उन्होनें घर को बड़े सलीके से सजा रखा था। घर की सजावट को देख कर घर की मालकिन की सुरुचि का पता चलता था। मैं सजावट को निहारता रहा।

वह मुझे बिठा कर अन्दर चली गई। थोड़ी देर में ही चाय लेकर आ गई। मैंने चाय की चुस्कियां लेते हुए कहा कि घर की सजावट बड़ी सुरुचिपुर्ण है। वह बोली की मैंने ही की है। मैंने कहा कि सजावट घर की मालकिन की रुचि को दर्शाती है। यह सुन कर वह सकुचा गई। चाय पीने के बाद मैंने उन को चाय के लिए धन्यवाद दिया और उन से कहा कि कभी समय निकाल कर वह मेरे घर भी आने की कृपा करेगी। वह बोली कि देखते है कब ऐसा हो पायेगा?

मैं उन के घर से निकला और कार लेकर समारोह स्थल पर वापस लौट आया। श्रीमति जी अभी भी व्यस्त थी मेरी कमी किसी को खली नही थी।

एक कोने में बैठ कर श्रीमति जी का इन्तजार करने लगा। तभी फोन की घन्टी बजी, नम्बर देखा तो किसी का नाम नही था लेकिन तभी याद आया कि उन महिला का नम्बर तो सेव किया ही नही है। फोन उठाया तो उन की ही आवाज थी वह बोली की यह पुछने के फोन किया था कि सही से पहुँच गये है या नही? मैं ने कहा कि वापस पहुच गया हूँ। बोली कि इस बहाने ही आप मेरा नम्बर सेव कर लेगे। मैं हँसने लगा। हँसे किस लिए? मैं बोला कि औरतों की छठी इन्दिय हमेशा सही निकलती है। आप का नम्बर सेव नही किया था अब करुँगा।

वह बोली की मैं आप पर जबरदस्ती तो नही चिपक रही हूँ। मैंने कहा कि ऐसा दूबारा नही बोलिएगा। आप मेरा और अपना अपमान करेगी। नम्बर सेव करने का मौका ही नही मिला था। आप तो सब जानती है। वह बोली की बुरा मत मानिए, मैं तो मजाक कर रही थी। मजाक करने का तो अधिकार है मेरा आप पर। मैं भी हँस दिया। उन्होनें गुड नाईट कर के फोन रख दिया। तब तक श्रीमति जी भी आ गई और बोली की घर चले मैंने कहा कि मैं तो कब से तुम्हारा इन्तजार कर रहा हूँ। वो बोली की मुझे लगा कि साली को घर छोड़ने गये है तो देर तो लगेगी।

मैंने कहा कि मैं तो उन के छोड़ कर घर में चाय पी कर के कब का आ गया था। हम दोनों भी घर के लिए निकल पड़े, रास्ते में श्रीमति जी बोली की ऐसे कार्यक्रमों में आना चाहिए इसी बहाने लोगों से मिलना हो जाता है। मैंने कहा यह बात तो सही है। मिलने-मिलाने के अच्छे बहाने है। इसी बहाने सब से मिलना हो जाता है। वह बोली की तुम्हे तो आज एक प्रसंशिका मिल गई। मैंने कहा कि हाँ यह तो है, घर आने का निमंत्रण दिया है किसी दिन चलेगे। उस ने भी हाँ में सर हिलाआ।

घर आ कर मैं तो उन के बारे में भूल सा गया। घर जाने की बात भी कही दब गयी। एक दिन अचानक उन का फोन आया और कहा कि अगर आज शाम को व्यस्त ना हो तो मेरे घर चाय पीने आ जाए। मैंने कहा कि घर जा कर श्रीमति जी से पुछ कर आप को फोन करता हूँ। वह बोली कि बहाना मत बनाईये। बहन जी से मैंने बात कर ली है आप शाम को मेरे घर आ रहे है। मैंने मजाक में कहा कि जब हाईकमान ने हाँ कर दी है तो हम भी राजी है वैसे भी कार चालक का दायित्व भी निभाना पड़ता है। उन की आवाज आई कि यह बात घर तक पहुच जायेगी। मैंने कहा कि कुछ बातें मित्रों के मध्य में रहने दीजिए। एक कहकहे के साथ फोन कट गया। मैं इस सोच में पड़ गया कि यह संबंध कहाँ तक जाएगा?

शाम को पत्नी के साथ उन के घर चाय पर चले गये। घर को देख कर पत्नी जी मुग्ध हो गई, उन के साथ सारे घर को देखती फिरी। पत्नी जी पर भी उन का जादू चल गया था। उस दिन भी उन के पति से मुलाकात नही हूई। हम दोनों थोड़ी देर के बाद घर लौट आये।

रास्ते में मैंने पत्नी से पुछा कि इन के पति कहाँ है? इस पर श्रीमति ने कहा कि पति से संबंध काफी पहले की टूट गये थे, उस का किसी और से चक्कर था, मैंने कहा कि इतनी सुन्दर और सुघढ़ स्त्री के साथ भी ऐसा हो सकता है। वह बोली की तभी तो यह माँ के साथ अकेले रहती है, टीचर ना होती तो परेशानी होती लेकिन आर्थिक रुप से आत्मनिर्भर होने के कारण परेशानी नहीं है। लेकिन वैवाहिक जीवन सही नहीं रहा। इस के बाद इस विषय पर कोई बात नही हुई।

कुछ दिनों के बाद दिन में फोन की घन्टी बजी तो देखा कि उन का फोन था, मैंने नमस्ते कर के हाल चाल पुछा तो दूसरी तरफ से रुआँसी आवाज सुन कर मुझे हैरानी हुई, उन्होनें कहा कि आप से कुछ देर बात करुँ तो आपको परेशानी तो नही होगी। दोपहर को मैं थोड़ा खाली होता हूँ तो झपकी मार लेता हूँ, इस लिए मैंने कहा कि कोई परेशानी नही है आप अपनी बात कह सकती है, उन की आवाज में रोना झलक रहा था मैंने पुछा कि हुआ क्या है, इस पर वो बोली की आज मेरा तलाक मेरे पति से हो गया है। संबंध तो पहले ही टूट गया था, एक नाम का रिश्ता बचा था वह भी आज खत्म हो गया है।

मैंने पुछा कि इस से आप खुश है या दुखी है? वह बोली की यही तो मैं समझने की कोशिश कर रही हूँ। मैंने कहा कि अब तक तो आपको समझ लेना चाहिए था। वह फिर रोने लगी मैंने कहा कि मैं आप को दुखी नही करना चाहता था लेकिन आप जब तक इस संबंध को ढोती रहेगी तब तक ये आप को दुखी करता रहेगा। जिस दिन आप इस को उतार फेकेगी, परेशानी दूर हो जायेगी। थोड़ी देर तक सामने से कोई जबाव नही आया मुझे चिन्ता हुई कि क्या हुआ? मैंने कहा कि कहाँ पर है तो वह बोली कि स्कुल में हूँ। मैंने कहा कि आईये एक कप काफी पीते है आप सागररत्न आ जाइये मैं पांच मिनट में पहुँचता हूँ फिर आराम से बातें होगी।

वह बोली कि मैं अभी निकलती हूँ। मैं कार ले कर निकल लिया। सागररत्न मेरे आफिस से पास ही था। सागररत्न के बाहर ही इन्तजार करने लगा। थोड़ी देर में वह भी आती दिखाई दी। पास आ कर मैंने देखा कि रोने के कारण उन की आँखे लाल थी मैंने कहा कि कुछ खायेगी तो सर हिला दिया, दोपहर के समय रेस्टोरेन्ट में भीड़ नही होती थी इस लिए एक कोने की सीट पर जा कर बैठ गये। दो प्लेट उपमा ऑडर किया। उपमा आने के बाद वह चुपचाप उसे खाने लगी। मुझे लगा कि शायद उन्होनें सुबह से खाना भी नही खाया था। उपमा के बाद मैंने पुछा कि कुछ मीठा खायेगी तो उस ने चेहरा उठा कर देखा कि मुझे लगा कि मैंने कुछ गलत कह दिया।

सॅारी कह कर मैं चुप हो गया, वह बोली कि आज तो शायद मीठा खाने का अवसर है। मगाँइये। मैंने ऑडर किया और दो काफी भी बोल दी। जब तक ऑडर आये मैंने पुछा कि अगर बताना चाहे तो बताए कि क्या हुआ है? वह मेरे चेहरे की तरफ देख कर बोली कि आप सुनना चाहते है, मैंने कहा कि नही मैं आप के अतीत की बातें नही सुनना चाहता। लेकिन अगर आप को अपना दुख कह कर आराम मिलता है तो मैं सुनना चाहुँगा। उस के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई। बोली की बातें बनाना तो कोई आप से सीखे। मैंने कहा कि चलो मेरी कोई बात तो आप को पसन्द आई। वह हँसी। मुझे अच्छा लगा मैंने कहा कि मुझे तो यह चेहरा चाहिऐ। वह फिर से हँसी।

थोड़ी देर बाद बोली की सुबह से मन में इतना दुख भरा हुआ था कि समझ नही आ रहा था कि क्या करुँ, रो कर भी दुख हल्का नही हो रहा था, फिर आप का ध्यान आया लेकिन लगा कि आप पर मेरा इतना अधिकार नही है लेकिन कोई और चारा ना देख कर मन की बात मान कर आप को फोन कर लिया। सही किया, आप के साथ बात कर के साँस में साँस आई और आप ने यहाँ बुला कर तो मेरे में जान डाल दी नही तो मैं आज क्या कर लेती मैं नही जानती थी। आप मेरे मन की बात कैसे जान पाये? मैंने कहा कि वो मित्र ही क्या जो दूसरे मित्र की बात न समझ सकें। आपका चेहरा देख कर सब समझ आ गया लेकिन लगा कि बात कर के दुख को बढाने की बजाए दुख को दूर करने की आवश्यकता है।

इस लिए आप को यहाँ बुला लिया। पेट भरा हो तो और बातें कर सकते है। काफी पी कर हम दोनों वहाँ से निकल गये। पास में ही पार्क था, दोनों उस में चले गयें और टहलने लग गये। मैंने पुछा कि अब कैसा लग रहा है तो वह बोली कि काफी अच्छा लग रहा है अन्दर जो घुटन थी वह कम हो गयी है। मैंने कहा कि थोड़ी देर टहलते है बची-खुची घुटन भी निकल जायेगी। वह हँस पड़ी, फिर बोली कि किसी को पटाना तो कोई आप से सीखे, मैंने कहा कि जो पहले से पटा हुआ है उस को क्या पटाना। उस ने मुझे घूर कर देखा मैंने कहा कि गुस्ताखी माफ हो, मुँह से निकल गया, ना अब उम्र है ना कोई पटने वाला है। वह हँस कर बोली की बातें बनाने में तो महारत है मैंने कहा की पीएचडी कर रखी है। वह जोर से हँसी।

मैंने कहा कि इतने दिन से अकेली रह रही है, अब क्या हो गया, क्या मन के किसी कोने में यह आशा थी कि कोई लौट आयेगा। वह बोली नही यह बात तो बहुत पहले ही समझ चुकी थी। मैंने पुछा कि इतने दिन तक इन्तजार क्यों किया? वह बोली की समाज और बुढ़ी माँ की वजह से कदम रुक जाते थे। उसी ने धक्का मार कर यह वहम भी तौड़ दिया। मैंने कहा कि झुठे वहम जितना जल्दी टूट जाए उतना ही अच्छा है।

हाँ बात तो आप की सही है। आज के बाद यह बात खत्म।

बढि़या है।

हाँ ऐसा ही है जब मैं गिरने लगुँ तो आप मुझे सभांल लेना।

बहुत बड़ी जिम्मेदारी सौप रही है, ये तो देख ले कि सामने वाले के कन्धें इतने मजबुत है या नही।

विश्वास है तभी तो आप को अपने आप को सौप दिया है। पता है कि आप मुझे गिरने नही देगे।

दो मुलाकातों में इतना विश्वास?

मन की आवाज सुन ली है।

पता है ना मैं क्या हूँ?

हां, आप से बदले में कुछ माँग नही रही हूँ। सिर्फ साथ और दोस्ती, पता है कि वह जरुर मिलेगी। और कुछ सोचा नही है। आगे आप पर है।

मैं अपने दोस्तों को छोड़ कर भागने वाला नही हूँ। कम दोस्त बनाता हूँ लेकिन जो है वो पक्के है

मुझे भी उस लिस्ट में शामिल कर लें

शामिल कर लें? अरे अगर आप उस में नही होती तो क्या मैं यहाँ होता? सोचिए?

मेरी आप से कुछ माँग नही है, बस आप का साथ चाहिए, मित्र की तरह

आगे कुछ बोलने की आवश्यकता नही है।

आप को लगे कि मैं कुछ पाने की अधिकारी हूँ तो मेरी झोली में कुछ डाल दिजियेगा। भीख समझ कर।

अब तुम पीटने की बात कर रही हो।

आप पीटते भी है।

अपनों पर तो हर बात का हक होता है, पिटाई का भी।

अब तो आप की चीज है जो मन आये करिए

अपनी चीज को तो सभांल कर रखा जाता है।

बड़ी परेशानी आयेगी।

हाँ पता है, अन्दाजा है कि आग का दरियां है आगे।

मेरे पास देने को कुछ नही है। शारीरिक तौर पर तो कुछ भी नही है। इच्छा ही मर गई है।

मैंने कुछ माँगा ही कहा है? तो चिन्ता किस बात की है। शारीरिक इच्छा तो कब की मर गई है। मन का साथ चाहिए, वो तो मिल ही गया है, आप माने या ना माने।

मैंने मना कब किया है।

काफी देर तक इसी तरह की बातें करते रहे, फिर शाम घिरती देख मैंने कहा कि घर चले, और वादा करे कि घर जा कर कुछ नही सोचेगी।

मैरे पास अब सोचने को और कुछ है, इस से तो कोई परेशानी नही।

नही।

मैं सोच रही हूँ कि इस घर को छोड़ कर दूसरा घर जो गोमतीपूरम में है वहाँ शिफ्ट कर जाऊ। अब उस घर में रहने का मन नही है। माँ को मनाना पड़ेगा।

शायद यह सही रहेगा। इस का क्या होगा।

बन्द रहेगा, बाद में किराये पर उठा दूगी। आय का स्त्रोत बनेगा। शायद टीचर की नौकरी भी छोड़ दूँ।

क्यों इतना सारा बदलाव किस लिए, सिर्फ तलाक मिलने की वजह से या कोई और कारण है।

पुरानी यादों से दूर जाना ही कारण है। नौकरी भी इसी लिए करी थी।

जैसा मन को अच्छा लगे करे। मेरी सहायता चाहिए हो तो अवश्य बताना।

तुम्हारें ही लिए तो कर रही हूँ कि मेरे तुम्हारे बीच अब कोई ना आये

समझा नही।

छोड़ो

कोई बात नही।

ना जाने हम दोनों ने कब एक-दूसरें के हाथ थाम लिए थे पता ही नही चला।

मैंने उसे घर छोड़ा। और अपने घर चल पड़ा, रास्ते में सोचा कि इस प्यार को कैसे सभाला जाए? उसे सहारा देने के अलावा मैं उसे और कोई सुख नही दे सकता हूँ, शारीरिक आनंद का स्वाद तो चखे जमाना गुजर गया। अब तो तनाव भी नही आता। व्यस्तता ने जीवन को मशीन बना कर रखा दिया है। पत्नी की अरुचि ने इसे और बढ़ा दिया है। समझौता कर लिया है। मन को एक साथी की तलाश रहती थी, शायद वह अब पुरी हूई है।

मन की उलझनों को सुलझाने की कोशिश करते करते घर आ गया। पत्नी बोली की आज देर कैसे हो गई? मैंने कहा कि किसी दोस्त से मिलने चला गया था। उस ने इस के बाद कुछ नही पुछा। हम दोनों ने अपनी-अपनी सीमा बांध रखी थी। उसे लाघने की चेष्टा कम ही होती थी।

रात को सोने से पहले उन को फोन किया, फोन एकदम उठा लिया गया, लगा कि फोन के पास ही बैठी है। मैंने पुछा कैसी है, जबाव मिला जैसी आपने छोड़ा था, फोन यह जानने के लिए किया था कि खाना खाया है या नही।

आप झुठ मत बोला करो, आप को बोलना नही आता है। यह क्यों नही कहते कि मेरी चिन्ता हो रही होगी कि कुछ कर तो नही लिया?

चिन्ता तो थी, कुछ कर लोगी इस की नही अब तुम अपनी कहाँ रही, किसी और की हो, इस लिए अपनी वस्तु की चिन्ता थी।

खनखती हुई हँसी सुनाई दी। इतनी रोमांटिक लाईन तो आज के लड़के भी नही बोल सकते।

हमारी उम्र की, वक्त की, आज के किसी के साथ तुलना नही हो सकती।

दीदी से पुछना पड़ेगा कि इतने रोमांटिक व्यक्ति को कैसे झेला है।

अनरोमांटिक हो कर, उन की तरफ से उत्तर मैं ही दे देता हूँ।

विपरीत ध्रुर्व ही एक दूसरे का आकर्षित करते है प्रकृति का नियम है।

हाँ है तो

गुड नाईट

बस इतना सा ही कहना था, मैसेज कर देते।

मैंने फोन काट दिया। औरतों के व्यवहार को तो ईश्वर भी समझ नही पाया है, हम मनुष्यों की तो बिसात ही क्या है।

दो-तीन दिन बिना बात किए ही कट गये। मेरे पास किसी बात के लिए समय ही नही रहा, एक प्रोजेक्ट फिनिश होने वाला था, इस लिए मुझे खुद अपनी ही फिक्र नही थी। आज प्रोजेक्ट खत्म हो गया था। चिन्ता खत्म हो गई थी। उन का फोन दोपहर में आया, बात शुरु हुई तो पता चला कि वह घर बदलने में लगी हुई थी। काम आज खत्म हुआ था। अनुरोध था कि मैं आ कर नये आशियाने को देख लुँ। मैंने कहा कि कब आऊँ तो जबाव मिला कि कभी भी आ जाए।

मैंने कहा कि थोड़ी देर में आता हूँ पता दूबारा पता कर के निकल पड़ा। वहाँ पहुँच कर पता चला कि यह घर तो बहुत बड़ा है, गाड़ी पार्क करने की जगह काफी थी। हरियाली भी काफी थी। वह घर के बाहर ही इन्तजार कर रही थी। घर में गाड़ी खड़ी करके उन के साथ घर देखने लगा। घर सादगी के साथ ही भव्य था। सजावट में उन का प्रभाव था। मेरे मन को अच्छा लगा। चैन सा मिला। मैंने कहा कि इस घर की ऊर्जा पोजेटिव है। एकान्त भी है। भव्यता भी है।

हाँ, मुझे यहाँ अच्छा लगता है। एकान्त वाली बात आप ने सही पकड़ी है, पुराने घर में एकान्त नही था। जगह भी ज्यादा है, गाड़ी वगैरहा खड़ी करने के लिए भी खुब जगह है। हरियाली भी खुब है, यह मेरे मन को शान्ति प्रदान करती है। लगता है तुम से मिलने के लिए अब कही बाहर नही जाना पड़ेगा।

हाँ एकान्त में बैठ कर बात कर पायेगे। बाहर तो हर समय किसी जान पहचान के व्यक्ति के मिल जाने का डर लगा रहेगा।

हाँ, ये तो है।

उस ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे सोफे से उठाया और कहा कि आयों तुम्हें अपना बेडरुम दिखाती हूँ। मैं उस के साथ चल पड़ा, बेडरुम मकान के पीछे की तरफ था। बड़ी सी खिड़की थी। रोशनी खुब थी। बीच में किंग साईज बेड पड़ा था। मैंने कहा कि बेड तो बढ़िया है। किंग साईज, लो हाईट डिजाइन अच्छा लग रहा है, आराम दायक तो होगा ही।

लेट कर चैक कर लो। यह कह कर मुझें हल्का सा धकेल कर बिस्तर पर गिरा दिया। मैं भी गिरते हुए उस को भी साथ में ले कर गिरा।

मैं नीचे और वो मेरे ऊपर गिरी। दोनों को समझ नहीं आया कि क्या करे। फिर मेरे हाथ उन के कमर पर कस गये। वो नीचे से कसमसाई, लेकिन मैंने अपनी पकड़ ढ़ीली नही की।

दम निकालने का इरादा है।

नहीं

तो इतनी कसावट क्यों

यह तो सामान्य बल है, कहों तो छोड़ दूँ।

मैंने कब कहा कि छोड़ दो। मैं तो पकड़ की ताकत की शिकायत कर रही हूँ।

मैंने और जोर से कस लिया। उन के उरोज मेरी छाती में गड़ें हुए थे। पुरा वजन मेरे ऊपर था, कोई भी हिलने को तैयार नही था।

और कस के दम ही निकाल दो झंझट ही खत्म हो जाऐगा।

ये सुन कर मैंने कसाव कम कर दिया। उन्हें अपने आप को हिलाने का मौका मिला। उन्होनें अपने आप को ऊपर खिसका कर मेरे चेहरे के बराबर किया और अपनें होंठ मेरे होंठों पर रख दिये। उन के होंठों की कंपकपाहट मेरे होंठ महसुस कर रहे थे। उन का सारा शरीर काँप रहा था। मैंने अपना कसाव फिर बढ़ा दिया अब हम दोनों के शरीरों में दूरी मिट गई। दोनों कुछ देर तक ऐसे ही पड़े रहे। कुछ और करने की हिम्मत नही हो रही थी। उन के शरीर की गरमी अब मेरे शरीर को गरमा रही थी। वह शायद इस के लिए तैयार नही थी इस लिए उस के शरीर की कंपकपाहट कम नही हो रही थी। मुझे लगा कि शायद बंधन से मुक्ति ही इस को खत्म करेंगी। दोनों ने चुम्बन को आगे नही बढ़ाया था। केवल होंठ ही एक दूसरें पर पड़े थे।